solution of question of cone

Solution of question of cone 

CONE-

A cone is a surface generated by a variable straight line passing through a fixed point and satisfying one more condition i.e. intersecting a given curve or touching a given surface .
The fixed  point is called the vertex and the given curve(or guiding surface)of the cone. The variable straight line is known as the generator of the cone.
A cone whose equation is of second degree is known as quartic or quadratic cone.
solution of question of cone

solution of question of cone 


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Practical Suggestion in Teaching Arithmetic

 Practical Suggestion in Teaching Arithmetic -

(अंकगणित के अध्यापन में व्यावहारिक सुझाव)-

1.भूमिका (Introduction)-

संख्या प्रणाली संरचनाएं संख्याओं को सीखने में महत्त्वपूर्ण आधार प्रदान करती हैं। विद्यार्थी पहले प्राकृत संख्याएँ सीखता है। वह इस प्रणाली का योग के लिए संवृत्त होना, साहचर्य होना तथा क्रमविनिमेय होना सीखता है। इसके पश्चात् वह इस प्रणाली का गुणन के लिए संवृत्त, साहचर्य एवं क्रमविनिमेय होना सीखता है। भाग के लिए इन गुणधर्मों की अनुपस्थिति का अनुभव करता है। वह संख्या रेखा द्वारा शून्य तथा ऋण पूर्णांकों से परिचित होता है। इस प्रकार वह पूर्णांकों की प्रणाली का जिसमें एक योगज सर्वसमिका (तत्सम) है, प्रत्येक संख्या का योगज प्रतिलोम है तथा जिसमें संवृत्त होने का, साहचर्यता, क्रमविनिमेयता तथा बंटन गुण विद्यमान है। इसके पश्चात् वह भिन्न सीखता तथा परिमेय संख्या प्रणाली से परिचित होता है।

2.संख्या प्रणाली से लाभ(Profit from Number System) -


(1.)किसी निकाय की संरचना के विषय में विद्यार्थी को अन्तर्दृष्टि से ज्ञान होता है।
(2.)विद्यार्थी गणित नियमों से परिचित होता है। वह सीखता है कि विभिन्न निकायों के भिन्न भिन्न नियम हैं।
(3.)वह गुणन क्रिया समझने लगता है।
(4.)वह ऋण संख्याओं की क्रियाओं को समझने लगता है तथा संख्या रेखा का अध्ययन कर छोटी, बड़ी, ऋणात्मक, धनात्मक संख्याओं के परस्पर स्थानों को पहचानने लगता है।
(5.) वह जोड़ तथा गुणा की प्रक्रियाओं में परस्पर सम्बद्धता को समझने लगता है कि भाग वास्तव में बाकी करने की सतत् प्रक्रिया है।
(6.)इस बात का प्रयास आवश्यक है कि विद्यार्थी अंकगणित से सम्बद्ध मूल तर्कों को समझे। मूल तर्क एवं अमूर्त सिद्धान्त उदाहरणों द्वारा पढ़ाए जाएं। विधियों तथा नियमों का विस्तार कई चरणों में हो।
(7.)विद्यार्थी को यह अन्तर्दृष्टि होना आवश्यक है कि गणित में कुछ नियम हैं तथा गणित की क्रियाएं स्वेच्छापूर्वक नहीं बनाई गई है।
(8.)अमूर्त गणित को सयझाने हेतु मूर्त उदाहरणों एवं वस्तुओं का प्रयोग किया जाए।
(9.)गणित एक तर्कसंगत विषय है। इसमें सहज ज्ञान तथा सामान्य अनुमान का स्वच्छंद प्रयोग होना चाहिए।
(10.)गणित निगमनिक तर्क विज्ञान है। निगमनिक तर्क की शक्ति का विकास गणित में मूर्त उदाहरणों से किया जाना चाहिए।
(11.)विद्यार्थियों को शून्य तथा स्थानमान प्रणाली की महत्ता समझानी चाहिए।
(12.)समुच्चय, साहचर्य, क्रमविनिमेय तथा बंटन नियम, असमताओं के समीकरणों तथा लेखाचित्रों पर पर्याप्त बल दिया जाना चाहिए। संख्या प्रणाली को लेखाचित्रों द्वारा पढ़ाया जाना आधुनिक गणितज्ञों ने अत्यंत उपयोगी माना है।
(13.)अंकगणित तथा ज्यामिति के शिक्षण को एक रूप करने के लिए समुच्चय संकल्पनाओं का उपयोग करना चाहिए। ज्यामितीय बिन्दुओं के समुच्चय के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
(14.)समीकरणों तथा असमताओं के सत्य समुच्चयों की संकल्पना का पूर्ण उपयोग किया जाए।
(15.)प्रमाप अंकगणित का अध्ययन तथा दस के अतिरिक्त अन्य आधारों में अंकगणित का अध्ययन विद्यार्थियों को संख्या निकाय में संरचनाओं, प्रतिरूपों तथा नियमों को सीखने में सहायक होते हैं।
(16.)संख्या रेखाओं की संकल्पना तथा काटती हुई संख्या रेखाओं की संकल्पना में प्रबल संकल्पनाएं हैं जिनका पूर्ण उपयोग करना चाहिए।
(17.)संख्या रेखा के द्वारा अंकगणित ज्यामिति के पाठन में काफी समन्वय हो जाता है। धन पूर्णांकों, शून्य, ऋण पूर्णांकों, परिमेय संख्याओं को संख्या रेखा पर निरूपित किया जा सकता है। इस प्रकार सत्य समुच्चयों, समुच्चयों के संघ तथा सर्वनिष्ठ को, पूर्णांकों के जोड़, गुणा, बाकी तथा भाग आदि सबको निरूपित किया जा सकता है।
(18.)अंकगणित का मुख्य उद्देश्य परिमेय संख्या निकाय की बीजीय संरचना को समझना है।
(19.)भिन्नों को पढ़ाने के लिए लघुत्तम समापवर्त्य तथा लघुत्तम समापवर्त्य को पढ़ाने के लिए गुणनखण्डों का तथा गुणनखण्डों को पढ़ाने के लिए अभाज्य संख्याओं तथा संयुक्त संख्याओं और भाज्यता इन संकल्पनाओं को आधार बनाया जाना चाहिए।
(20.)गणित अध्यापन में मनोरंजन सामग्री का समावेश लाभकारी ढंग से किया जा सकता है।
अंकगणित तथा ज्यामिति में समुच्चय

3.निष्कर्ष (conclusion)-

समुच्चयों की संकल्पना गणित को एक रूप में लानेवाली प्रबल संकल्पना है। इससे संघ तथा सर्वनिष्ठ ज्ञात किए जा सकते हैं। रिक्त समुच्चय की कल्पना महत्त्वपूर्ण है। ज्यामिति में बिन्दुओं के समुच्चयों का अध्ययन किया जाता है। रेखाओं, समतलों, त्रिभुजों, बहुभुजों, बहुभुजी क्षेत्रों, किरणों, कोणों आदि सभी गुण समुच्चयों के संघों तथा प्रतिच्छेदों द्वारा ज्ञात होते हैं। लघुत्तम तथा महत्तम गुणजों तथा गुणनखण्डों के समुच्चयों के प्रतिच्छेदों के रूप में प्रकट किए जाते हैं। सत्य समुच्चयों तथा उनके ज्यामितीय निरूपण को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
विश्व के गणितज्ञों का सुझाव है कि अंकगणित तथा ज्यामिति को समन्वित रूप में कक्षा में पढ़ाया जाए। संख्याओं को संख्या रेखा, ग्राफ या अन्य ज्यामितीय आकृतियों पर प्रदर्शित किया जा सकता है। संख्या का स्वतंत्र रूप से कोई अस्तित्व नहीं है। संख्या का अस्तित्व उसके स्थानीय मान एवं संख्या रेखा पर निरूपण से सम्बद्ध है। इसलिए अब त्रिभुज संख्याएँ, पंचभुज संख्याएँ, पास्कल संख्याएँ, फिबोनैशी संख्याएँ आदि का उल्लेख संख्याओं के ज्यामितीय महत्त्व के आधार पर किया जाता है। एक आयामी द्विआयामी, त्रिआयामी आदि संकल्पनाएं संख्याओं के सन्दर्भ में ही समझी जा सकती है। संख्या रेखा, त्रिभुज, आयत, वर्ग, घन आदि संख्याओं की संकल्पनाओं से सम्बद्ध हैं।

4.बीजगणित :संख्याओं का चित्रण(Algebra: Illustrations of Numbers)-



बीजगणित में लेखाचित्र एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा अंकगणित की संख्याओं का चित्रण ज्यामिति को आधार बनाकर प्रभावी किया गया है। अंकगणित, बीजगणित तथा ज्यामिति का समन्वय का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण लेखाचित्र है।
Practical Suggestion in Teaching Arithmetic

Algebra: Illustrations of Numbers)-




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Homogeneous function question with solution

Homogeneous Function Question with Solution

If every term occuring in a function is of the same degree sayn,then the function is said to be a homogeneous function of nth degree.It is to be remembered that if the function is of x and y while judging. the degree of any term we have to add the indices of x and y.
Homogeneous function question with solution

Homogeneous function question with solution



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General Principles of Teaching arithmetic

General Principles of Teaching Arithmetic

(अंकगणित के अध्यापन के सामान्य सिद्धान्त ) -

1.जीवन से सम्बन्ध(Relation to life) -

General Principles of Teaching arithmetic

General Principles of Teaching arithmetic

इस विषय की पाठ्य-सामग्री को जीवन के तथ्यों एवं परिस्थितियों से संबंधित कर पढ़ाना चाहिए अन्यथा यह विषय विद्यार्थियों के लिए एक नीरस विषय बन जाएगा। हमारे विद्यालयों में अधिकांश विद्यार्थियों को यह विषय अत्यन्त कठिन एवं नीरस लगता है तथा परीक्षा में भी उनके कम अंक आते हैं। वास्तव में अंकगणित एक रसमय तथा रुचिपूर्ण विषय है किन्तु त्रुटिपूर्ण अध्यापन विधियों के कारण इस विषय में विद्यार्थियों की रुचि का विकास नहीं हो पाता है। अंकगणित में विद्यार्थियों के अनुभवों, पूर्वज्ञान तथा रुचियों को आधार बनाने से विषय रोचक बन जाता है तथा प्रश्नों को हल करने के लिए विद्यार्थी प्रेरित होते हैं। स्टुअर्ट मिल ने कहा है - "संख्याएँ अमूर्त नहीं होती हैं। सभी संख्याएँ किसी न किसी वस्तु की संख्या होती हैं।" यदि हम किसी छोटी कक्षा के विद्यार्थी से पूछे कि 5 तथा 7 को जोड़ने पर क्या उत्तर आएगा तो शायद उसे जोड़ने में कठिनाई होगी। यदि हम पूछें, "5 नारंगियाँ तथा 7 नारंगियाँ कितनी होगी?" विद्यार्थी इसका उत्तर सरलता से दे सकेगा। स्थूल वस्तुओं तथा संख्या का सम्बन्ध स्थापित कर जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि की प्रक्रियाओं को सरलता से किया जा सकता है क्योंकि बालक यहाँ पर कम या अधिक के बोध के साथ प्रक्रियाओं को सम्बन्धित कर सकता है।
अंकगणित की पाठ्य-सामग्री को जीवन के वास्तविक तथ्यों से सम्बंधित करने से एक विशेष लाभ यह है कि विद्यार्थियों के अंकगणित ज्ञान का सामाजिकरण हो जाता है। अंकगणित की समस्याओं को हल करते समय हम उन्हें दो परिचित स्थानों के बीच की वास्तविक दूरी, डाकखानों में ब्याज की वास्तविक दर, डाकगाड़ी की प्रतिघंटा किलोमीटर में चाल, साइकिल की कीमत, फिलिप्स रेडियो का बाजार भाव, दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों का औसत-भार, शाला के पास खेत का क्षेत्रफल, शाला के हाल की चारों दीवारों का क्षेत्रफल, शाला के बाग में पानी की कुंडी का आयतन, शाला से डाकखाने की वास्तविक दूरी, एक तरबूज का औसत भार, भारत की आबादी में प्रतिवर्ष वृद्धि, भारत में मृत्यु दर, जन्म दर आदि, भारत के राष्ट्रीय आय, राजस्थान में प्रतिव्यक्ति पर शिक्षा पर खर्च, कम्प्यूटर की कीमत, एक कार को रखने पर औसत मासिक खर्च, औसत परिवारों में भोजन पर खर्च आदि से संबंधित आँकड़ों की जानकारी द्वारा सही गणितीय दृष्टिकोण के विकास में सहायता देते हैं।

2.प्रत्ययों का समीकरण(Equation of Ideas) -

गणना करना अंकगणित का एक पक्ष-मात्र है। अंकगणित के प्रत्ययों का स्पष्ट ज्ञान भी महत्त्वपूर्ण है। अंकगणित में प्रत्येक उप विषय में अनेक प्रत्यय है जिनकी जानकारी बिना उनका उपयोग गणना प्रक्रिया में सम्भव नहीं है। जिन विद्यार्थियों को इन सम्बन्धों का व्यावहारिक ज्ञान नहीं हो पाता तब तक आगे का पाठ प्रारम्भ न करें।
प्रत्ययों के स्पष्टीकरण के साथ-साथ विद्यार्थियों को उनका उपयोग करने का समुचित अभ्यास भी कराया जाना चाहिए। अंकगणित में दशमलव प्रणाली, प्रतिशत, औसत, अनुपात आदि ऐसे अनेक उप-विषय हैं जिनके प्रत्ययों के बारे में स्पष्टता का होना अनिवार्य है तथा उनके व्यावहारिक प्रयोग के लिए पर्याप्त अभ्यास की भी आवश्यकता है। उदाहरणार्थ जब हम ब्याज का उप-विषय पढ़ाएं तो विद्यार्थी को निम्नांकित प्रत्ययों का स्पष्ट ज्ञान होना आवश्यक है -
(1.)ब्याज की गणना मूलधन पर होती है।
(2.)समय की अवधि के साथ-साथ ब्याज बढ़ता है।
(3.)ब्याज, पूँजी के उपयोग करने का एक प्रकार का किराया है।
(4.)ब्याज=Px R xT%
इसी प्रकार लाभ-हानि से सम्बंधित निम्न प्रत्ययों का स्पष्ट ज्ञान आवश्यक है -
(i) लाभ या हानि क्रय-मूल्य पर होती है।
(ii) प्रत्येक व्यापार लाभ के लिए किया जाता है।
(iii) लाभ प्राप्त करने के लिए विक्रय-मूल्य, क्रय-मूल्य से अधिक होगा।
(iv) व्यापार में होने वाले खर्चों को लागत मूल्य में जोड़ दिया जाता है।
(v) विक्रय-मूल्य तथा क्रय-मूल्य में जितना अधिक अन्तर होगा। इसी प्रकार क्रय-मूल्य तथा विक्रय-मूल्य में जितना अधिक अन्तर होगा, उतनी ही अधिक हानि होगी।
प्रत्ययों को स्पष्ट करने के लिए 'स्थूल से सूक्ष्म' के सिद्धांत को काम लेना चाहिए। जहाँ पर आवश्यक हो वहाँ पर चार्ट, चित्र माॅडल आदि का भी प्रयोग करना चाहिए। जो भी समस्याएं प्रस्तुत की जाएँ, वे विद्यार्थियों के जीवन से सम्बंधित होनी चाहिए तथा पूर्वज्ञान को चिंतन का आधार बनाना चाहिए।

3.मानसिक गणना(Mental calculation) -

अंकगणित की समस्याओं को हल करते समय विद्यार्थियों को मानसिक अंकगणित का अभ्यास करना चाहिए। सिद्धान्तों को समझने के पश्चात् विद्यार्थी उनकी प्रयुक्ति के लिए जिस प्रकार का चिंतन मन में करता है, मानसिक कार्य कहलाता है। गणना करते समय अनेक बातों को विद्यार्थी बिना कागज तथा पेंसिल के करने की स्थिति में होना चाहिए। मानसिक गणित से विद्यार्थी समस्या से सम्बंधित प्रत्ययों एवं गणना के बारे में चिंतन कर सम्भावित हल करने के बारे में निर्णय ले सकता है।
मानसिक गणना से निम्नलिखित लाभ हैं-
Elementary school teacher dictating students

Elementary school teacher dictating students


(1.)विद्यार्थियों में चिंतन के स्तर को सुधारा जा सकता है।
(2.)प्रत्ययों, प्रक्रियाओं एवं तथ्यों को मानसिक स्तर पर बहुत जल्दी समझा जा सकता है।
(3.)अपेक्षित निष्कर्षों को शीघ्रता से ज्ञात किया जा सकता है।
(4.)विषयवस्तु को याद रखने की शक्ति में वृद्धि होती है।
(5.)उत्तरों को शीघ्रता से जाँचा जा सकता है।
जो विद्यार्थी गणित के सिद्धान्तों, प्रत्ययों, प्रक्रियाओं आदि के उपयोगों के बारे में मानसिक स्तर पर चिंतन करते हैं, उनका विषय का ज्ञान अच्छे स्तर का होता है तथा उन्हें नए पाठों को सीखने में सुविधा होती है। कक्षा में मौखिक कार्य के साथ-साथ मानसिक गणित का पर्याप्त अभ्यास कराया जाना चाहिए। विद्यार्थियों को समस्या हल करते समय प्रत्ययों के बारे में अध्यापक प्रश्नोत्तर द्वारा सही दिशा में मानसिक चिंतन के लिए प्रेरित कर सकता है। लिखित कार्य करने के पहले विद्यार्थियों में चिंतन करने की आदत उपयोगी होती है।

4.समस्याओं को प्रस्तुत करने का वैज्ञानिक ढंग (Scientific way of posing problems)-

अंकगणित में जीवन से सम्बंधित समस्याओं का निर्माण किया जाना चाहिए। परम्परागत समस्याओं को हल करने में विद्यार्थियों को आनन्द की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि उनमें दिए गए तथ्यों का उनके जीवन से कोई सम्पर् नहीं होता। यदि तथ्य सही एवं रुचिकर होंगे तो विद्यार्थी निष्कर्षों को उत्सुकता से ज्ञात करेंगे। अंकगणित के सीखने में अमनोवैज्ञानिक एवं परम्परागत समस्याओं ने सबसे अधिक बाधा पहुँचाई है। अंकगणित के अध्यापक को समाज की गतिविधियों की जानकारी होनी चाहिए जिससे कि आवश्यक तथ्यों को संकलित कर वैज्ञानिक ढंग से समस्याओं का निर्माण किया जा सके। समस्याओं को हल करते समय विद्यार्थी अंकगणित की विषय-सामग्री की उपादेयता के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं तथा समाज के बारे में एक दृष्टिकोण बनाते हैं। समस्या निवारण विधि अंकगणित सिखाने में अधिक उपयुक्त है। पुस्तकों में उपलब्ध समस्याएं अधिकांशतः घिसी-पिटी एवं त्रुटियों से भरी होती हैं। समस्याओं के निर्माण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
(i )समस्या की भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए।
(ii)समस्या अनावश्यक रूप से लम्बी नहीं होनी चाहिए।
(iii)समस्या में दिए गए तथ्य स्पष्ट एवं सही हों।
(iv)समस्या में 'क्या ज्ञात करना है?' स्पष्ट होना चाहिए।
(v)यदि आवश्यक हो तो समस्या को विभिन्न भागों में बाँटकर लिखा जाए जिससे विद्यार्थी उसे भली प्रकार समझ सकें। बीजगणित को आधार बनाया जाए।
(vi)जहाँ पर सम्भव हो, समस्या के साथ चित्र, सारणी आदि भी दिए जाएं जिससे दिए गए तथ्यों को समझने में सुविधा हो।
(vii)समस्या बालकों के स्तर के अनुकुल हो।
(viii) अंकगणित तथा ज्यामिति का समन्वित अध्यापन किया जाना चाहिए।

5.कक्षा में वैयक्तिक भिन्नताएं(Individual variations in the classroom)-

कक्षा में सभी विद्यार्थी समान योग्यता के नहीं होते हैं। कुछ विद्यार्थी कुशाग्र बुद्धि वाले तथा अन्य सामान्य बुद्धि वाले होते हैं। विद्यार्थियों की क्षमता तथा अध्यापन के स्तर में सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है। एक कुशल अध्यापक कक्षा में विद्यार्थियों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास करता है। विद्यार्थियों की वैयक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखकर इकाई-योजनाओं तथा पाठ-योजनाओं का निर्माण करना चाहिए। एक कालांश में कितनी समस्याओं को हल कराया जा सकता है। इसका निर्णय अध्यापक अपनी कक्षा के विद्यार्थियों की क्षमता को ध्यान में रखकर कर सकता है। कक्षा में अध्यापन करते समय प्रश्नोंत्तर विधि द्वारा इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि विद्यार्थी विषयवस्तु को समझ रहे हैं या नहीं। जब कभी नया पाठ पढ़ाया जाए तो समस्त सम्बन्धित प्रत्ययों को अनेक विधियों द्वारा स्पष्ट करने के प्रयास किए जाने चाहिए। कक्षा में समस्या को बोर्ड पर लिखकर प्रस्तुत करने से विद्यार्थियों का ध्यान समस्या के विभिन्न पक्षों की ओर आकर्षित किया जा सकता है। कुछ विद्यार्थियों से सारी कक्षा के समक्ष समस्या को पढ़वाना चाहिए जिससे भाषा एवं तथ्य सम्बन्धी बातें स्पष्ट हो सकें। प्रत्येक विद्यार्थी को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि 'क्या दिया है'? तथा क्या ज्ञात करना है? 'इसके पश्चात् अध्यापक विद्यार्थियों से हल करने की विधि के बारे में चर्चा करे तथा मौखिक रूप से यह स्पष्ट करे कि कौनसी विधि इस समस्या को हल करने में उपयुक्त है तथा अन्य विधियां उपयुक्त क्यों नहीं है।विद्यार्थियों के मानसिक चिंतन को अध्यापक सही दिशा प्रदान कर उनके सोचने एवं तर्क करने के स्तर को ऊँचा उठा सकता है। कक्षा में विद्यार्थियों को स्वतंत्रता से समस्या का हल ज्ञात करने की छूट होनी चाहिए जिससे कि वे स्वयं सम्बन्धित विधि की उपयुक्तता के बारे में जाँच कर सकें। ऐसे अवसरों पर अध्यापक विद्यार्थियों को व्यक्तिगत ध्यान देकर हल ज्ञात करने में सहायता दे सकता है। श्यामपट्ट का अधिकाधिक उपयोग कक्षा का ध्यान आकर्षित करने में अत्यधिक सहायक सिद्ध होता है। गणना सम्बन्धी सामूहिक कठिनाईयों को श्यामपट्ट पर विद्यार्थियों की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है। यदि इन बातों को ध्यान में रखकर अध्यापन कार्य सम्पन्न किया जाए तो विद्यार्थियों की वैयक्तिक भिन्नताओं के साथ सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। अध्यापन कार्य में कुशाग्र विद्यार्थियों को भी आवश्यकतानुसार सहायता ली जा सकती है जिससे कमजोर विद्यार्थियों की कठिनाइयों को दूर किया जा सके। विद्यार्थियों द्वारा सीखे हुए सिद्धान्तों आदि की स्पष्टता के लिए कक्षा में तथा घर पर अभ्यास आवश्यक है।
कक्षा में यदि प्रत्ययों, संकल्पनाओं, सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं, गणना सम्बन्धी क्रियाओं को अधिकाधिक स्पष्ट करने के प्रयास किए जाएं तो शनैः शनैः विद्यार्थियों में वैयक्तिक भिन्नताओं की मात्रा में कमी होगी, कक्षा में उपलब्धि स्तर में विकास होगा तथा कक्षा समजातीय बन सकेगी।

6.अभ्यास एवं लिखित कार्य(Practice and written work)-

अंकगणित के सिद्धान्तों और प्रक्रियाओं का बोध कराने के लिए अभ्यास कार्य आवश्यक है। अभ्यास का कार्यक्रम व्यवस्थित एवं पूर्व योजना के आधार पर हो। अभ्यास कार्य का रोचक होना भी आवश्यक है। यदि कक्षा में विद्यार्थी नए सिद्धान्तों को ठीक प्रकार से समझ जाते हैं तो अभ्यास कार्य उनके लिए आकर्षक बन जाता है। अभ्यास कार्य गणित शिक्षण के महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करता है। गणित में ऐसी अनेक क्रिया हैं जिनको बार-बार करना आवश्यक है। अभ्यास कार्य से क्रियाओं में शुद्धता एवं गति की प्राप्ति होती है।

अभ्यास कार्य की निरन्तर जाँच होना आवश्यक है। इससे विद्यार्थियों की त्रुटियों में अपेक्षित सुधार सम्भव हो सकेगा। विद्यार्थियों को जब तक उनके द्वारा की गई त्रुटियों की जानकारी नहीं होगी तब तक वे उन्हें सुधार नहीं सकेंगे। अभ्यास कार्य का सम्बन्ध कक्षा में पढ़ाई गई सामग्री से होना चाहिए। विद्यार्थियों को सही, शुद्ध, स्वच्छ एवं व्यवस्थित ढंग से लिखित कार्य करने का प्रशिक्षण आवश्यक है।


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convergence of a series

Convergence of a Series 

Let S be any non-empty set.A function whose domain is the set N of natural numbers and whose range is a subset of S, is called a sequence in the set S.
 In other words a sequence in a set S is a rule which assigns to each natural number a unique element of S.
A sequence whose range is a subset of R is called a real sequence or a sequence of real numbers.
In this question we will solve and study only real sequences. therefore the term sequence will be used to denote a real sequence.
If s is a sequence,then the image ss(n) of N is usually denoted by s(n). It is customary to denote the sequence s by the symbol <s(n)>.The image s(n) of n is called the nth term of the sequence.
convergence of a series

convergence of a series 


2.A sequence(series) can be described in several different ways-

(1.)Listing in order the first few elements of a sequence,till the rule for writing down different elements becomes clear.For example,<1,8,27,64,...>is the sequence.
(2.)Defining a sequence by a formula for its nth term.For example,the sequence <1,8,27,64,....> can also be written as <1,8,27,.....,n^3,.....>

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how to develop skills in hindi


how to develop skills in hindi



via https://youtu.be/FT6fogNfO18

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Teaching of Arithmetic in hindi

अंकगणित का अध्यापन (Teaching of Arithmetic) -

1.भूमिका(Introduction)

Teaching of Arithmetic

Teaching of Arithmetic

अपने प्रारम्भिक दिनों में जब मानव जब कन्दराओं में पेड़ों के नीचे रहता था तब उसे अंकगणित की आवश्यकता नहीं थी। भोजन तथा सुरक्षा के अतिरिक्त उसकी आवश्यकता नहीं के बराबर थी। उसका विशेष ध्यान तत्कालीन सुख-सुविधाओं तक ही सीमित था। जब मानव समूह बनाकर रहने लगा तो उसकी आवश्यकताओं की संख्या बढ़ने लगी और उसे सभ्यता के विकास के साथ हिसाब रखने की आवश्यकता पड़ने लगी। वह अपनी वस्तुओं को गिनने लगा तथा उनके खो जाने पर उनकी कमी महसूस करने लगा। शनैः शनैः वह संख्या की भाषा का प्रयोग करने लगा तथा दूसरों के मुख से सुनकर इसे समझने भी लगा। आरम्भ में वस्तुओं की संख्या का हिसाब भिन्न-भिन्न चिन्हों या वस्तुओं से किया गया।
वस्तुतः मनुष्य को अंकगणित के ज्ञान की आवश्यकता वस्तुओं का लेनदेन करते समय पैदा हुई। आवश्यक औजार, वस्त्र, भोजन आदि को प्राप्त करने के लिए उसके लिए यह आवश्यक हो गया कि वह वस्तुओं के मूल्य को आँके और उनकी तुलना दूसरी वस्तुओं के मूल्यों से करे। सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए अंकगणित का विकास किया तथा संख्या प्रणाली को एक वैज्ञानिक रूप प्रदान किया। वर्तमान जीवन में अंकगणित के बिना हमारा काम नहीं चल सकता। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संख्याओं तथा अंकगणित के प्रत्ययों का प्रयोग होता है। ज्यों-ज्यों हमारा जीवन तथा व्यवसाय जटिल होता जा रहा है त्यों-त्यों अंकगणित का प्रयोग भी बढ़ता जा रहा है।
आज हम अंकगणित की अनेक संकल्पनाओं तथा प्रक्रियाओं को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काम में लेते हैं। संख्या प्रणाली इनका एक महत्त्वपूर्ण आधार है तथा संख्याओं की विशेषताओं ने ही बीजगणित तथा ज्यामिति को जन्म दिया है। समुच्चय सिद्धान्त तो संख्याओं की विशेषताओं पर ही आधारित है। मानव की इस संख्या प्रणाली को विकसित करने में शताब्दियों तक सतत् प्रयास करना पड़ा है तथा आज भी इसको परिष्कृत करने के प्रयास जारी हैं।
सभ्यता के आरम्भ में जीवन जटिल नहीं था। किन्तु व्यापार तथा जीवन के विकास के साथ ही मानव को नये अंकगणितीय प्रत्ययों का निर्माण करना पड़ा। दशमलव प्रणाली इस शताब्दी की अभूतपूर्व देन है। इसकी खोज के पहले लेन-देन, माप-तौल आदि की इकाइयाँ भिन्न-भिन्न थी तथा उनकी गणना के आधार भी समान नहीं थे। किन्तु दशमलव प्रणाली ने विभिन्न इकाइयों की गणना का आधार समान मानकर, कठिन से कठिन गणना को सरल बना दिया है। शून्य का आविष्कार मनुष्य के मस्तिष्क की अनोखी देन है। यदि आज हमें शून्य का ज्ञान नहीं होता तो शायद गणना की प्रक्रियाओं का स्वरूप बहुत ही अवैज्ञानिक होता और सम्भवतः हमारी प्रगति की मात्रा भी बहुत कम होती। गणना करने के नये-नये उपाय निकाले जा रहे हैं तथा कम्प्यूटर की सहायता से कठिन से कठिन गणना बहुत ही शीघ्र की जा सकती है।
अब तक अंकगणित को एक गणना करने का विषय ही माना जाता रहा है। किन्तु शनैः शनैः गणना प्रक्रियाओं के सरलीकरण से इस मान्यता का महत्त्व कम होता जा रहा है। वस्तुतः अंकगणित में गणना-पक्ष प्रक्रियाओं से सम्बंधित है। अंकों का वैज्ञानिक अध्ययन भी अंकगणित का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। आज अंकगणित का क्षेत्रफल अत्यन्त व्यापक हो गया है। विभिन्न क्षेत्रों में इसका उपयोग होने लगा है। इन क्षेत्रों में अंकगणित का विशिष्ट स्वरूप विकसित हो गया है।
(1.)परिवार अंकगणित (2.)कृषि अंकगणित (3.)बीमा अंकगणित (4.)बैंक अंकगणित (5.)उत्पादन अंकगणित (6.)जनसंख्या अंकगणित (7.)व्यापार अंकगणित (8.)उपभोग अंकगणित (9.)कर अंकगणित (10.)विपत्ति अंकगणित (11.)कम्प्यूटर अंकगणित (12.)खेल अंकगणित) (13.)परीक्षा अंकगणित

2.अंकगणित का अर्थ (Meaning of Arithmetic) -

अंकगणित ग्रीक शब्द से निकला है जिसका अर्थ है 'अंकों का विज्ञान' तथा 'गणना की कला'। अंकगणित में अंकों के सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन तथा गणना की कला में दक्षता सम्मिलित है। गणित के अध्यापकों को चाहिए कि वे अंकगणित के दोनों पक्षों पर बल दें। एक ही पक्ष पर बल देने से अंकगणित का दूसरा पक्ष गौण हो जाता है। अंकों का ज्ञान तथा गणना की कला-दोनों ही पक्ष महत्त्वपूर्ण हैं। अंको के वैज्ञानिक ज्ञान के बिना गणना करने में दक्षता प्राप्त करना कठिन है तथा गणना करते समय अंकों का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। दोनों एक दूसरे से सम्बंधित हैं।
अंकगणित को पढ़ाने के पक्ष में एक प्रबल तर्क यह है कि इसका दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण उपयोग है। अंकगणित तथा उसके लिखित प्रतीकों को अर्थपूर्ण बनाने के लिए प्रतिदिन काम में आनेवाली वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार विद्यार्थी संख्याओं के प्रत्ययों तथा प्रतीकों का वास्तविक वस्तुओं से सम्बन्ध स्थापित कर अर्थ समझ सकेंगे।

3.अंकगणित में प्राइमरी कक्षाओं में निम्न बातें सिखाना अभीष्ट है(Arithmetic is intended to teach the following things in primary classes) -

Teaching of Arithmetic

Teaching of Arithmetic


(1.)शीघ्रता से गिनने की योग्यता।
(2.)लिखित तथा मौखिक रूप से छोटी तथा बड़ी संख्याओं का जोड़, घटाव, गुणा एवं भाग करने की योग्यता तथा इन पर आधारित समस्याओं करने की क्षमता।
(3.)भिन्न का ज्ञान।
(4.)सिक्कों का ज्ञान तथा उनका संख्यात्मक मान।
(5.)वस्तुओं का क्रय-विक्रय करने की योग्यता। मूल्य आँकने तथा उनसे सम्बन्धित गणना करने की क्षमता। कम्प्यूटर की सहायता से गणना करने की योग्यता।
(6.)अंकगणित के पाठ्यक्रम से सम्बंधित उप-विषयों की सारणियों का उपयोग करने की योग्यता।
(7.)साधारण मापों, बाँटों तथा उनसे सम्बन्धित गणना प्रक्रियाओं का ज्ञान।
(8.)लम्बाई तथा दूरी मापने की इकाइयों का ज्ञान तथा उनसे सम्बन्धित गणना-प्रक्रियाएं करने की योग्यता।
(9.)अंकगणित के सिद्धान्तों को जीवन की समस्याओं को हल करने के काम में लाने की क्षमता।
(10.)अंकगणित एवं ज्यामिति का समन्वित अध्यापन।

4.अंकगणित अध्यापन के उद्देश्य (Objectives of Teaching of Arithmetic) -

(1.)बालकों को संख्या की भाषा, संख्या-प्रत्ययों तथा संख्या-प्रतीकों का ज्ञान देना तथा जीवन में उनका सफल उपयोग करने की योग्यता पैदा करना।
(2.)बालकों में संख्या, समय तथा स्थान से सम्बंधित स्पष्ट विचार करने की योग्यता पैदा करना।
(3.)बालकों में गणित सम्बन्धी विचारों का प्रयोग तथा तर्क करने की शक्ति उत्पन्न करना।
(4.)बालकों में अंकगणित सम्बन्धी कथनों को ठीक प्रकार समझने तथा उनका विश्लेषण कर सही निष्कर्ष ज्ञात करने की क्षमता पैदा करना।
(5.)बालकों में अंकगणित सम्बन्धी व्यावहारिक समस्याओं को हल करने की योग्यता पैदा करना। कम्प्यूटर का उपयोग करने की क्षमता पैदा करना।
(6.)बालकों में मात्रा (Quantity), संख्या (Numbers), दूरी (Distance) तथा भार (weight) का सही अनुमान लगाने की योग्यता पैदा करना।
(7.)बालकों में अंकगणित के आधारभूत सिद्धान्तों को उपयोग में लाने की योग्यता पैदा करना। संख्याओं को संख्या रेखा एवं ज्यामितीय आकृतियों द्वारा समझने की क्षमता का विकास करना।
(8.)बालकों में शीघ्रता एवं शुद्धता से गणना करने की योग्यता उत्पन्न करना।
(9.)बालकों में विचार-शक्ति, तर्क-शक्ति एवं निर्णय-शक्ति का विकास करना।
(10.)बालकों में स्वच्छता, शुद्धता एवं नियमित रूप से कार्य करने की आदत डालना।
(11.)बालकों के संख्या-ज्ञान को बीजगणित तथा रेखागणित के अध्ययन के लिए आधार बनाना। संख्या रेखा की विशेषताओं का ज्ञान देना।

4.बालकों में निम्नलिखित गुणों का विकास करना(Develop the following qualities in children) -

(1.)समय का पाबन्द होना।
(2.)खर्च और आमदनी में सामंजस्य स्थापित कर प्रति माह बचत करना। खर्च और आमदनी का बजट बनाना। कम खर्च करने की आदत डालना।
(3.)वस्तुओं का लाभ से क्रय-विक्रय करना तथा बाजार भावों का अध्ययन करना।
(4.)डाकखानों या बैंक में बचत खाता खोलकर धन जमा करना।
(5.)व्यापार करते समय उन घटकों का अध्ययन करना जिनका व्यापार पर प्रभाव पड़ता है।
(6.)वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि एवं गिरावट के कारणों को समझने के प्रयास करना।
(7.) वर्तमान अर्थव्यवस्था का अध्ययन करना तथा इसकी जटिलता को अंकगणित के सिद्धान्तों के सन्दर्भ में समझने का प्रयास करना।
(8.)जीवन बीमा के महत्व को समझना।
(9.)वर्तमान कर प्रणालियों का अध्ययन करना तथा कर की गणना करना।
(10.)राष्ट्र की आर्थिक नीतियों को सयझकर देश के विकास में योग देना।
(11.)सही संख्यात्मक अनुमान लगाना।
(12.)ज्यामितीय आकृतियों द्वारा संख्याओं को चित्रित करना।

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Mathematics and Discipline

गणित और अनुशासन (Mathematics and Discipline) -

1.भूमिका (Introduction) -

गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में अनेक मानसिक एवं अनुशासनात्मक गुणों तथा मूल्यों का विकास होता है। इसके अध्ययन से विद्यार्थियों में सोचने, समझने, तर्क करने, निर्णय करने आदि गुणों का विकास होता है। बालकों में निरीक्षण शक्ति एवं प्रयोगों द्वारा सत्यता की जाँच करने की आदत इस विषय के अध्ययन से पड़ जाती है तथा उनमें मूल तथा क्रमबद्ध विचार उत्पन्न होते हैं। प्रश्न के उत्तर प्राप्त करने के लिए बालक को सत्यता को आधार बनाना पड़ता है तथा सही उत्तर प्राप्त होने से उनकी सत्यता एवं तर्कसंगता में आस्था पैदा हो जाती है।
Mathematics and Discipline

Mathematics and Discipline 

2.गणित के विद्यार्थियों में अनेक मानसिक क्रियाओं द्वारा निम्नांकित विशेषताओं का विकास होता है जो उसके जीवन का अंग बन जाती हैं(Many mental activities in mathematics students develop the following characteristics which become part of their life) -

(1.)आधारभूत गणितीय क्रियाओं तथा सिद्धान्तों में विश्वास।
(2.)गणितीय विचारों को प्रयोग में लाकर समस्याओं के सही हल प्राप्त करने की क्षमता।
(3.)गणित को एक जीवनोपयोगी विषय मानना।
(4.)गणितीय दक्षताओं एवं तर्क का जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग।
गणित शिक्षण के अनुशासनात्मक उद्देश्य में आस्था रखने वाले समर्थकों का यह विश्वास है कि इस विषय द्वारा विकसित मानसिक अनुशासन केवल गणित तक ही सीमित नहीं रहता किन्तु जीवन की दूसरी क्रियाओं में भी इसका स्थानांतरण होता है।

3.गणित के अध्ययन से निम्न प्रकार की मानसिक क्रियाओं का विकास होता है जो दूसरे विषयों के अध्ययन से सम्भव नहीं है(The study of mathematics leads to the development of the following types of mental activity which is not possible by the study of other subjects)-

(1.)गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में एकाग्रता की शक्ति बढ़ती है। गणित की समस्याओं को समझने और हल करने के लिए एक अच्छे स्तर की एकाग्रता की आवश्यकता होती है। गणित के नियमित अध्ययन से इस शक्ति का विकास होता है।
(2.)गणित का अध्ययन विवेक तथा क्रियात्मक कल्पना को विकसित करता है। समस्या का हल ज्ञात करते समय विवेक का प्रयोग कर उपयुक्त विधि की कल्पना करनी पड़ती है तथा निर्णय लेना पड़ता है। ज्यामिति या अंकगणित की किसी भी समस्या को समझने में कल्पना-शक्ति का सहारा लेना पड़ता है तथा सही हल की खोज करनी पड़ती है। इस प्रकार का सतत प्रशिक्षण विद्यार्थियों के विवेक को जागृत करता है।
(3.)गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता का विकास होता है। पुस्तकीय ज्ञान पर धीरे-धीरे निर्भरता कम होती जाती है तथा स्वयं के चिन्तन एवं मनन पर विश्वास बढ़ता जाता है।
(4.)गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में स्वत: क्रमबद्धता से काम करने की आदत पड़ जाती है क्योंकि इसके बिना वे इस विषय पर अधिकार नहीं प्राप्त कर सकते हैं। गणित का अध्ययन प्रत्येक कक्षा में सत्र के आरम्भ से ही क्रमबद्धता से करना आवश्यक होता है। अन्य विषयों की भाँति इस विषय को केवल परीक्षा के दिनों में नहीं सीखा जा सकता है। कठिन परिश्रम एवं सतत प्रयासों के द्वारा ही यह विषय भली-भाँति सीखा जा सकता है।
(5.)नवीन आविष्कारों में गणित का अध्ययन सहायक सिद्ध होता है। इस विषय को समझने के लिए विद्यार्थी को मनन तथा तर्क-वितर्क करना पड़ता है तथा मौलिकता को काम में लाना पड़ता है। नवीन अनुसंधान के लिए मौलिकता, तर्क-वितर्क एवं क्रियात्मक कल्पना आवश्यक है और ये सब अधिकांशत: गणित के अध्ययन से प्राप्त होते हैं।
(6.)गणित का विद्यार्थी सतत् अध्ययन से चरित्रवान एवं अध्यवसायी बन जाता है। गणितीय सत्यों एवं जीवन से सम्बंधित तथ्यों में एकता की स्थापना कर वह सत्यनिष्ठ बन जाता है तथा सतत् परिश्रम करने पर उसे गणित की विषय-सामग्री पर अधिकार प्राप्त होता है। गणित विषय को इतिहास या भाषा की तरह नहीं सीखा जा सकता है। गणित के नियमों एवं सिद्धान्तों को समझकर समस्या को हल करने का श्रम करना पड़ता है तथा इस विषय में पारंगतता प्राप्त करने के लिए सतत् परिश्रम करना आवश्यक है। जितने भी गणित के अच्छे विद्यार्थी हैं उनकी सफलता का आधार उनके द्वारा इस विषय को सीखने में किया हुआ श्रम ही है। क्रमबद्ध तरीके से कार्य करने की आदत, नियमितता एवं सत्य में निष्ठा आदि से विद्यार्थियों में चरित्र का निर्माण होता है जिससे उनमें मानवीय गुणों का प्रादुर्भाव होता है। स्वच्छता एवं शुद्धता से कार्य करने का अभ्यास भी गणित के लिए आवश्यक है।
(7.)गणित के विद्यार्थी परिश्रमी होते हैं। अतः वे किसी भी कठिन विषय को परिश्रम एवं चिंतन से सीख सकते हैं। यह भी देखा गया है कि गणित के विद्यार्थियों का भाषा पर अधिकार होता है क्योंकि वे सरलता से भाषा के वाक्य निर्माण के नियमों, शब्दों के अर्थ तथा भाषा की बारिकीयों आदि को ग्राह्य कर लेते हैं। परिश्रमी होने के कारण उनका भाषा पर अधिकार प्राप्त करना सरल हो जाता है।
(8.)जीवन में सादगी और सरलता गणित की देन मानी जाती है। गणित की विषयवस्तु में सरल एवं कठिन पक्ष होते हैं तथा इसके सीखने की विधि सरलता से कठिनता की ओर होती है। समस्याओं के हलों या ज्यामिति के साध्यों में क्रमबद्धता एवं परिशुद्धता होती है जिनका प्रभाव विद्यार्थी के सोचने की विधि तथा आदतों पर पड़ता है। क्रियाशीलता एवं सरलता शनैः शनैः मनुष्य के व्यक्तित्व के भाग बन जाते हैं। सही निष्कर्षों को प्राप्त करने के सफल प्रयास विद्यार्थी में स्वयं की क्षमता के बारे में जागरूकता उत्पन्न करते हैं।
(9.)समीचीन तर्क -अपने लक्ष्य पर पहुँचने के लिए अर्थात् समस्या का सही हल प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी को प्रत्येक पद के औचित्य के बारे में विचार करना आवश्यक होता है। गणित में अपनी कमी को विद्यार्थी शब्दाडम्बर या भाषा के जाल द्वारा छिपा नहीं सकता। उसे सही हल ज्ञात करने के लिए सही सोपानों का उपयोग करना पड़ेगा अन्यथा वह सही उत्तर प्राप्त करने में असमर्थ रहेगा।

4.अन्य गुण जो गणित सीखने में सहायक सिद्ध होते हैं (Other qualities that prove helpful in learning mathematics)-

(1.)रटने में अविश्वास।
(2.)चिंतन का परिष्कृत होना।
(3.)कथनों में शुद्धि एवं परिकल्पनाओ की तर्कसंगतता में आस्था।
(4.)सत्य और असत्य का निर्णय करने की योग्यता का विकास।
(5.)शीघ्रता से समझने तथा तथ्यों का विवेचन करने की क्षमता का विकास।
(6.)आदतों में नियमितता।
(7.)स्मृति का विकास।
(8.)निष्कर्षों के सत्यापन के प्रति विश्वास।
(9.)स्पष्टता एवं परिशुद्धता का विकास।
(10.)क्रियात्मकता एवं कल्पना का समन्वय।
(11.)कार्य-विधि के चयन में पारदर्शिता।
गणित के अध्ययन से उपर्युक्त गुणों एवं अन्य शक्तियों का विद्यार्थी में विकास होता है। आज के युग में विचारों की शुद्धता, स्पष्टता एवं क्रमबद्धता का होना अत्यंत आवश्यक है। गणित का एक अच्छा विद्यार्थी कपट, झूठ, धोखा एवं आडम्बर को पसंद नहीं करता। चरित्र-निर्माण एवं मानसिक अनुशासन के लिए गणित एक सर्वश्रेष्ठ विषय है। गणित एवं दर्शनशास्त्र का घनिष्ठ संबंध है। संसार के प्रसिद्ध गणितज्ञ दर्शनशास्त्री भी हुए हैं। बर्टेन्ड रसेल, आइन्स्टीन आदि गणितज्ञ दर्शनशास्त्री भी थे। इस विषय के अध्ययन से सूक्ष्म निरीक्षण की आदत का निर्माण होता है तथा यही आदत मनुष्य को संसार के अनेक गूढ़ तत्त्वों के बारे में चिंतन की ओर अग्रसर करती है तथा दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में रुचि उत्पन्न करती है।


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Nature of Mathematics

गणित की प्रकृति (Nature of Mathematics) -

1.भूमिका(Introduction)

Nature of Mathematics

Nature of Mathematics

गणित वस्तुतः संकल्पनाओं तथा गूढ़ विचारों की विषय सामग्री है। इस विषय की प्रकृति अन्य विषयों से भिन्न है। हिन्दी, इतिहास, अर्थशास्त्र, भूगोल, सामान्य विज्ञान आदि की विषयवस्तु जीवन के अनुभवों से सीधे सम्बन्धित रहती है तथा इनके विषय-क्षेत्र परस्पर अधिक गहराई से उतने जुड़े हुए नहीं होते हैं जितने गणित विषयवस्तु के। हिन्दी में यदि आपको 'तुलसी' भलीभांति समझ में नहीं आया है तो भी 'सूरदास' को समझने में आपको विशेष बाधा नहीं आएगी। इसी प्रकार भारत के प्राकृतिक भागों की जानकारी आपको पूरी तरह नहीं है तो भी आप द्वारा किये गए निर्यातों को समझ सकते हैं किन्तु यह स्थिति गणित में नहीं है। यदि आपको दशमलव के सिद्धांत स्पष्ट नहीं है तो आप किसी भी स्थिति में लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन आदि से संबंधित समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार किसी विद्यार्थी को बिन्दु, रेखा, त्रिभुज, आयत, वर्ग आदि की संकल्पनाएं स्पष्ट नहीं हो तो वह ज्यामिति के साध्यों को नहीं समझ सकेगा। बीजगणित में छात्र यदि बीजीय राशियों का जोड़, गुणा, बाकी, भाग आदि संक्रियायें नहीं जानते हैं तो वे गुणनखण्ड, समीकरण, ग्राफ आदि की समस्याओं को दक्षता के साथ हल नहीं कर सकेंगे। ये तथ्य गणित विषय से विशेष रूप से सम्बंधित हैं तथा गणित विषयवस्तु की प्रकृति पर प्रकाश डालते हैं।
Nature of Mathematics

Nature of Mathematics


2.गणित की प्रकृति एवं संरचना की निम्नांकित विशेषताएँ हैं(The following characteristics of the nature and structure of mathematics are) -

(1.)गणित की भाषा अन्तरराष्ट्रीय है। भाषा से यहाँ तात्पर्य है-पद, संकल्पनाएं, सूत्र, संकेत, सिद्धान्त, प्रक्रियाएं आदि। विश्व के सभी शिक्षा संस्थानों में गणित की लगभग समान विषयवस्तु पढ़ाई जाती है। चूँकि गणित एक अन्तर्राष्ट्रीय विषय है, अतः इसके विकास में सभी देशों के गणितज्ञों का योगदान रहा है। भाषा, भूगोल, रहन-सहन, इतिहास आदि अलग होने के बावजूद गणित की भाषा सभी देशों में समान है। जोड़, बाकी, गुणा, दशमलव, प्रतिशत, औसत, समुच्चय, सम्बन्ध , फलन आदि के सिद्धांत विश्व के सभी शिक्षा संस्थानों समान हैं। गणित की भाषा सांकेतिक है।
(2.)गणित में संख्याओं, स्थान, मापन आदि का अध्ययन किया जाता है। संख्याओं, स्थान एवं मापन से सम्बंधित सिद्धान्तों के आधार पर ही अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, समुच्चय, सम्बन्ध, फलन आदि का विकास हुआ है।
(3.)स्थूल वस्तुओं के निरीक्षण तथा ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से गणित की नई संकल्पनाओं की खोज की जाती है तथा उन्हें संख्यात्मक तथा बीजीय भाषा में प्रकट किया जाता है। वातावरण में घटित घटनाओं एवं तथ्यों की सहायता से गणितीय सिद्धान्तों को खोजा जाता है।
(4.)गणित में सामान्यीकरण, आगमन, निगमन, अमूर्तन आदि मानसिक क्रियाओं की सहायता से सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं, सूत्रों आदि को गणितीय भाषा में प्रकट किया जाता है।
(5.)गणित की विषयवस्तु में क्रमबद्धता तथा व्यवस्था है। गणित सीखने हेतु निश्चित क्रमबद्धता को आधार बनाया जाता है तथा प्रत्येक पद को समझकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। गणित के ज्ञान में कमियाँ, बाधा उत्पन्न करती हैं तथा ज्ञान की व्यवस्था में तारतम्य स्थापित नहीं हो पाता है। किसी उप-विषय को सीखने के लिए उससे सम्बन्धित समस्त सामग्री को व्यवस्थित तरीके से समझना आवश्यक है। यदि ज्ञान में कोई कमी रह जाती है तो गणित की समस्याओं को हल करने में तथा आगे की सम्बन्धित सामग्री को समझने में तथा सह-सम्बन्धता स्थापित करने में कठिनाईयां आती है।
(6.)गणित कक्षा-अध्यापन का विषय है। इसको सीखने के लिए अध्यापक का मार्गदर्शन आवश्यक है। गणित को अध्यापक की सहायता के बिना सीखना कठिन है क्योंकि यह विषय वस्तुतः संकल्पनाओं का विषय है। इसलिए गणित के अध्यापकों को अपना अध्यापन कार्य निरन्तर करते रहना आवश्यक है। जो विद्यार्थी गणित की कक्षाओं से कुछ दिनों तक अनुपस्थित रह जाते हैं, उन्हें स्वयंपाठी के रूप में गणित सीखने में कठिनाई होती है।
(7.)गणित में अभ्यास हेतु विद्यार्थियों के समक्ष समस्याएं प्रस्तुत की जाती हैं तथा उनके हल करने में सूत्रों, सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं आदि का प्रत्यक्ष प्रयोग किया जाता है। समस्या समाधान इस विषय की एक प्रमुख अध्यापन विधि है। यदि समस्याएं वास्तविकताओं एवं जीवन के तथ्यों पर आधारित हों तो इन्हें हल करने में विद्यार्थियों में उत्साह बना रहता है तथा वे इस विषय की सामाजिक एवं व्यावहारिक उपादेयता से परिचित होते हैं।
(8.)गणित के निष्कर्ष निश्चित एवं तर्कसंगत होते हैं। इन निष्कर्षों को सत्यापित किया जा सकता है। गणित के निष्कर्षों का निरूपण तर्क एवं बुद्धि की सहायता से किया जाता है। समस्याओं के तथ्यों को परिवर्तन करने पर निष्कर्ष भी बदल जाते हैं।
(9.)यदि विद्यार्थी गणित की संकल्पनाओं को भलीभांति समझ ले तो यह विषय उन्हें सरल एवं रूचिकर लगता है। इस विषय को सीखने के लिए सतत् परिश्रम एवं लगन की आवश्यकता है। जो विद्यार्थी केवल परीक्षा के दिनों में ही पढ़कर इस विषय में उत्तीर्ण होना चाहते हैं उनके लिए यह धीरे-धीरे एक कठिन विषय बन जाता है।
(10.) गणित सीखने में यदि विद्यार्थी के मस्तिष्क में कोई विषय सम्बन्धी संशय हो तो उसका समाधान अध्यापक या किसी अच्छे विद्यार्थी की सहायता से जल्दी ही कर लिया जाना चाहिए अन्यथा विद्यार्थी को आगे की विषयवस्तु सीखने में कठिनाई होगी।
(11.)गणित एक प्रकार से रसहीन विषय है क्योंकि भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र आदि की तरह गणित में प्रयोगशाला नहीं होती है तथा गणित की समस्याओं का प्रयोगशाला में भौतिक सत्यापन वर्तमान परिस्थितियों में सम्भव नहीं है। गणित सीखने में मानसिक चिंतन एवं मौलिकता ही प्रमुख है।
(12.)अच्छे सफल एवं प्रभावी अध्यापक विद्यार्थी को गणित सीखने में सक्रिय सहायता देते हैं। यदि गणित का अध्यापक प्रभावी ढंग से कक्षा में इस विषय को नहीं पढ़ाता है तो उसके विद्यार्थी इस विषय में पिछड़ जाते हैं। जिन शिक्षण संस्थानों में गणित की विभिन्न अध्यापन सामग्री का कक्षा में प्रभावी अध्यापन हेतु उपभोग होता है वहां के विद्यार्थियों को गणितीय संकल्पनाओं का भौतिक स्वरूप अधिक स्पष्ट होता है। इस विषय से संबंधित फिल्में , माॅडल, चार्ट्स आदि का अधिकाधिक उपयोग करने से यह विषय रुचिप्रद बन जाता है।
(13.)हमारी संस्कृति के विकास में गणित का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान भौतिक प्रगति गणित की ही देन है। किसी देश की प्रगति का स्तर वहां की भौतिक प्रगति का सूचक है। गणित के सृजन के लिए मौलिकता, चिंतन एवं सृजनशीलता की आवश्यकता है।
(14.)गणित की विभिन्न शाखाओं का मूलभूत आधार संख्या प्रणाली है। संख्याओं को बीजगणितीय प्रतीकों से प्रकट कर उनकी विशेषताओं का विवेचन किया जाता है।
(15.)नवीन गणित की प्रगति लगभग पिछले 150 वर्षों में हुई है तथा समुच्चय भाषा का आधुनिक गणित में प्रयोग किया जाता है।
(16.)यह एक अमूर्त विषय है। गणित को अमूर्त विचारों एवं आकृतियों का विज्ञान कहा जाता है।
(17.)गणित की प्रकृति में गूढ़ता एक महत्वपूर्ण घटक है। प्रत्येक गणितीय कथन का निश्चित आधार होता है। कोई बात बिना आधार के स्वीकार नहीं की जा सकती है। उदाहरणार्थ ज्यामिति में उपपत्ति के प्रत्येक पद का ठोस आधार होता है तथा निगमन विधि के बिन्दुओं को ठोस सैद्धान्तिक आधार प्रदान किया जाता है।
(18.)गणित की विषयवस्तु में सांमनजस्यता है। गणित में एक प्रकार की निश्चितता है जिसके कारण चिंतन में होने वाली सम्भावित त्रुटियां कम हो जाती है।
गणित में स्वयंसिद्धियाँ, अपरिभाषित शब्दों आदि को चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता है जब तक कि वे परस्पर एकरूप हैं। जिस प्रकार संगीतज्ञ, चित्रकार, मूर्तिकार आदि को असीमित स्वतंत्रता होती है उसी प्रकार गणितज्ञों को भी गणित के निर्माण में पूरी स्वतंत्रता है यदि मूलभूत सिद्धान्तों में टकराव न पैदा होता हो। गणित, देखने एवं सोचने का नया तरीका है। 

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Ancient Indian Mathematicians

प्राचीन भारतीय गणितज्ञ (Ancient Indian Mathematicians) -


1.ब्रह्मगुप्त(Brahmagupta)-

ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के महान् आचार्य हुए हैं। प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इन्हें 'गणित चक्र चूड़ामणि' कहा है।
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Brahmagupta


इनका जन्म पंजाब के अन्तर्गत भिलनालका नामक स्थान पर सन् 598 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम विष्णुगुप्त था। यह चापवंशी राजा के यहाँ रहते थे परन्तु स्मिथ के अनुसार यह उज्जैन नगरी में रहा करते थे और वहीं पर इन्होंने कार्य किया। इन्होंने सन् 628 ई. में ब्रह्म स्फुट सिद्धान्त और सन् 665 में खण्ड साधक को बनाया था। इन्होंने ध्यान ग्रहोपदेश नामक ग्रन्थ भी लिखा है। ब्रह्म स्फुट सिद्धान्त में 21 अध्याय हैं जिनमें गणित अध्याय तथा कुटखाध्यका उल्लेखनीय है। इन्होंने अंकगणित, बीजगणित तथा रेखागणित - सभी गणितों पर प्रकाश डाला है और यह पाई का मान 10 ^1/2 मानकर चले हैं। वर्गीकरण की विधि का वर्णन सर्वप्रथम ब्रह्मगुप्त ने ही किया है। गणित अध्याय शुद्ध गणित में ही है। इसमें जोड़ना, घटाना आदि त्रैराशिक भाण्ड, प्रतिभाण्ड आदि हैं ।अंकगणित या परिपाटी गणित में है श्रेणी व्यवहार, क्षेत्र व्यवहार, त्रिभुज, चतुर्भुज आदि के क्षेत्रफल जानने की रीति, चित्र व्यवहार (ढाल-खाई आदि के घनफल जानने की रीति), त्रैवाचिक व्यवहार, राशि व्यवहार (अन्न के ढेर जानने की रीति), छाया व्यवहार, (इसमें दोष, सम्बन्ध तथा उसके स्तम्भ की अनेक रीति) आदि 24 प्रकार के अध्याय इसी के अन्तर्गत हैं।
त्रिकोणमिति के विषय में भी इन्होने उल्लेख किया है। इन्होंने ज्या के अर्थ में ही क्रमज्या का प्रयोग किया है। इन्होंने एक ज्या सारणी भी दी है, जिसमें त्रिज्या 3270 ली है।

2. महावीराचार्य(Mahaviracharya) -

महावीराचार्य का जीवन-परिचय अन्य प्राचीन आचार्यों की भांति अन्धकार में छिपा हुआ है। अब तक खोंजो से ज्ञात होता है कि वे राष्ट्रकूट के महान् शासक अमोघवर्ष नृपतुंग के समकालीन थे। महावीराचार्य ने गणित सारसंग्रह, ज्योतिष-पटल तथा षटत्रिशंका इत्यादि मौलिक एवं अभूतपूर्व ग्रन्थों की भी रचना की है जो कि ज्योतिष एवं गणित विषयों पर अपनी विषय-वस्तु के कारण महत्त्वपूर्ण है।
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Mahaviracharya


महावीराचार्य के इन ग्रन्थों को भारतीय गणित के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। इसमें गणित में संसार को जो देन मिली है, उनकी अनेक विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है। हिन्दू गणित के सुप्रसिद्ध विद्वान डाॅ. विभूतिभूषणदत्त ने अपने निबन्ध में मुख्य रूप से महावीराचार्य के त्रिभुज और चतुर्भुज-सम्बन्धी गणित का विश्लेषण किया है और बताया है कि इसमें अनेक ऐसी विषमताएँ हैं जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। इसी प्रकार महावीराचार्य की प्रशंसा करते हुए डी. ई. स्मिथ 'गणित सार-संग्रह' के अंग्रेज़ी संस्करण की भूमिका में लिखते हैं कि त्रिकोणमिति तथा रेखागणित के मौखिक तथा व्यावहारिक प्रश्नों से यह भाषित होता है कि महावीराचार्य, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य में समानता तो है लेकिन फिर भी महावीराचार्य के प्रश्नों में इनसे अधिक श्रेष्ठता पाई जाती है।
महावीराचार्य ने गणित की प्रशंसा करते हुए 'गणित सार-संग्रह' में लिखा है - कामशास्त्र, अर्थशास्त्र, गन्धर्वशास्त्र, गायन, नाट्यशास्त्र, पाकशास्त्र, आयुर्वेद, वास्तुविद्या, छन्द, अंलकार, काव्यतर्क, व्याकरण इत्यादि में तथा कलाओं के समस्त गुणों में गणित अत्यंत उपयोगी है। सूर्य आदि ग्रहों की गति को ज्ञात करने में, देश और काल को ज्ञात करने में, सर्वत्र गणित अंगीकृत है। द्वीपों, समूहों और पर्वतों की संख्या, व्यास और परिधि, लोक, अन्तर्लोक, स्वर्ग और नर्क के रहने वाले सबके श्रेणीबद्ध भवनों, सभा एवं मन्दिरों के निर्माण गणित की सहायता से ही जाने जाते हैं। अधिक कहने से क्या प्रयोजन? त्रैलोक्य में जो कुछ भी वस्तु है, उसका अस्तित्व गणित के बिना सम्भव नहीं हो सकता।
महावीराचार्य ने अंक-सम्बन्धी जोड़, बाकी,गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल और घनमूल - इन आठों परिक्रमों का भी उल्लेख किया है। इन्होंने शून्य तथा काल्पनिक संख्याओं पर भी विचार व्यक्त किए हैं। गणित सार-संग्रह में 24 अंक तक की संख्या का उल्लेख किया है और उसको इस प्रकार नाम दिए हैं - एक, दस, शत, सहस्र, दश सहस्र, लक्ष, दशलक्ष, कोटि, दशकोटि, अबुद, न्यर्बुद, खर्व, महाखर्व, पद्म, महापद्म, क्षोणी, महाक्षोणी, शंख, महाशंख, क्षिति, महाक्षिति, क्षोभ, महाक्षोभ।
भिन्नों के भाग के विषय में महावीराचार्य की विधि विशेष उल्लेखनीय है। लघुत्तम समापवर्त्य की कल्पना पहले महावीर ने ही की थी।
महावीराचार्य ने युगपत् समीकरण (Simultaneous Equation) को हल करने का नियम भी दिया है। वर्ग समीकरण को व्यावहारिक प्रश्नों को दो भागों में विभाजित किया है। एक तो वे प्रश्न, जिनमें अज्ञात राशि के वर्गमूल का कथन होता है तथा दूसरे वे, जिनमें अज्ञात राशि के वर्ग का निर्देश रहता है।
पाटी गणित और रेखागणित के विचार से भी गणित सार-संग्रह में अनेक विशेषताएं हैं। इन्होंने 'क्षेत्र-व्यवहार' प्रकरण में आयत को वर्ग और वर्ग को वृत्तों में बदलने का भी उल्लेख है। इस ग्रन्थ में त्रिभुजों के कई भेद भी बताए गए हैं तथा समद्विबाहु त्रिभुज, विषमबाहु त्रिभुज, आयत, विषमकोण, चतुर्भुज, वृत्त तथा पंचमुख के क्षेत्रफल निकालने की रीति का वर्णन है। दीर्घवृत्त पर गहन अध्ययन करने में महावीराचार्य ही एक हिन्दू गणितज्ञ थे। महावीराचार्य द्वारा गोले का आयतन-सम्बन्धी नियम बड़ा ही रोचक है।
गणित सार-संग्रह में बीजगणित सम्बन्धी भी अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इसमें मूलधन, ब्याज, मिश्रधन और समय निकालने के सम्बन्ध में तथा भिन्न के सम्बन्ध में शेष-सम्बन्धी अनेक ऐसे नियमों का उल्लेख मिलता है जो प्राचीन और आधुनिक गणित में बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इस प्रकार से हमें भाषित होता है कि गणितज्ञ महावीराचार्य की गणित को देन संसार की अमूल्य निधि है और उसकी प्रशंसा करना सूर्य के सामने दीपक दिखाना होगा। 

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Mathematician Aryabhatta pratham

गणितज्ञ आर्यभट्ट (प्रथम) (Mathematician Aryabhatta pratham

(1,)आर्यभट्ट (प्रथम )की जीवनी (Biography of Aryabhatta pratham)-

आर्यभट्ट (प्रथम) पटना के समीप कुसुमपुर नामक नगर में सन् 476 ई. में पैदा हुए थे। इनके तीन ग्रन्थों का पता चलता है - दशगीतिका, आर्यभटीय और तन्त्र। इनमें आर्यभटीय सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है। इसी नाम के अन्य ज्योतिष 950 ई. के लगभग हो गए, जिन्होंने 'महा-सिद्धान्त' नामक पुस्तक की रचना की। इसलिए इन्हें आर्यभट्ट प्रथम कहेंगे।
Mathematician Aryabhatta pratham

Mathematician Aryabhatta pratham

(2,)गणित में आर्यभट्ट का योगदान (Contribution of Aryabhatta in Mathematics)-

इन्होंने अपने ग्रन्थ 'आर्यभटीय' की रचना 499 ई. में कुसुमपुर जिले में की। इस जिले को आजकल पटना कहते हैं। आर्यभटीय में 121 श्लोक हैं जो चार खण्डों में विभाजित किये गए हैं - (1.)गीत पाटिका (2.)गणित पाद (3.)कालीक्रियापाद और (4.)गोलपाद ।
गोलपाद बहुत छोटा ग्रन्थ है। इसमें कुल मिलाकर 11 श्लोक हैं परन्तु इसमें इतनी सामग्री भर दी है जो सूर्य-सिद्धान्त के पूरे मध्याधिकार और कुछ स्पष्टीकरण में आई है। इसमें आर्यभट्ट ने संक्षेप में लिखने की अनोखी रीति का निर्माण किया है।
अंकगणित और रेखागणित
आर्यभट्ट पहले आचार्य हुए हैं जिन्होंने अपने ज्योतिष गणित में अंकगणित तथा बीजगणित एवं रेखागणित के प्रश्न दिए हैं। उन्होंने बहुत से कठिन प्रश्नों को 30 श्लोकों में भर दिया है
एक श्लोक में श्रेणी गणित के 5 नियम आ गए हैं।
दूसरे श्लोक में दशमलव पद्धति का वर्णन है। इसके आगे के श्लोकों में वर्ग का क्षेत्रफल, त्रिभुज का क्षेत्रफल, शंकु का घनफल, वृत्त का क्षेत्रफल, गोले का घनफल, विषम चतुर्भुज के क्षेत्र के कणों के सम्पात से दूरी और क्षेत्रफल तथा सब प्रकार के क्षेत्र की मध्यम लम्बाई और चौड़ाई जानकर क्षेत्रफल जानने के साधारण नियम दिए हुए हैं। एक जगह यह बताया गया है कि परिधि के छठवें भाग की ज्या उसकी त्रिज्या के समान होती है। एक श्लोक में बताया गया है कि वृत्त का व्यास 20000 हो तो उसकी परिधि 62832 होती है। इसमें परिधि तथा व्यास का सम्बन्ध चौथे दशमलव स्थान तक शुद्ध आ सकता है। आगे वृत्त, त्रिभुज तथा चतुर्भुज खींचने की रीति, किसी दीपक तथा उससे बने शंकु की छाया, दीपक की ऊँचाई तथा दूरी जानने की रीति, एक ही रेखा पर स्थिर तथा दीपक की दूरी में सम्बन्ध ज्ञात करना, जाना जा सकता है।
बीजगणित में साधारण नियम तथा दो राशियों का गुणनफल जानकर और अन्तर जानकर राशियों को अलग-अलग करने की रीति, भिन्नों के हरों को सामान्य हरों में बदलने की रीति, भिन्नों में गुणा और भाग देने की रीति, जितनी बातें ये 12 श्लोकों में भर दी गई है, लेकिन आजकल की परिपाटी की तरह पुस्तक बनाई जाए तो यही एक मोटा ग्रन्थ बन जाएगा।
आर्यभटीय में त्रिकोणमिति का उल्लेख मिल जाएगा। ज्या का प्रयोग सबसे इसी ग्रन्थ में मिलता है। इसमें ज्या और उत्क्रमज्या की भी सारणियाँ दी है। इस ग्रन्थ में ज्या सारणी बनाने के लिए दो नियम दिए गए हैं, उनमें से एक इस प्रकार है - पहली ज्या में से, उसको उसी से भाग देकर घटा दो इस प्रकार सारणीय ज्याओं का दूसरा अन्तर प्राप्त होगा। कोई सा भी अन्तर निकालने के लिए उससे पिछले अन्तरों के जोड़ को पहली ज्या से भाग देकर उससे पिछले अन्तर में से घटा दो। इस प्रकार सारे अन्तर प्राप्त हो जाएंगे।

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solution of a question of inverse circular functions

Solution of a Question of Inverse Circular Functions

 त्रिकोणमितीय फलन(Inverse Circular Function)-

हम जानते हैं कि Sin𝜽,Cos𝜽,tan𝜽 इत्यादि त्रिकोणमितीय फलन(Inverse Circular Function) कहलाते हैं ,जिनमें से प्रत्येक,𝜽के प्रत्येक मान के लिए एक निश्चित संख्या के बराबर होता है।
यदि sin𝜽=xतो𝜽=Sin-1x  होगा।
solution of a question of inverse circular functions

solution of a question of inverse circular functions


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Utility of Mathematics in practical life

Utility of Mathematics in practical life

व्यावहारिक जीवन में गणित की उपयोगिता (Utility of Mathematics in practical life) -

Utility of Mathematics in practical life

Utility of Mathematics in practical life

(1.)गणित का महत्त्व(Importance of Mathematics) - 


आज के वैज्ञानिक युग में गणित के महत्त्व पर प्रकाश डालना सूर्य को दीपक दिखाना है। गणित ही विज्ञान की जननी है तथा गणित की सहायता के बिना विज्ञान में प्रगति सम्भव नहीं है। वर्तमान में जितनी भौतिक प्रगति हम देखते हैं वह सब विज्ञान एवं गणित की ही देन है। गणित के बिना विज्ञान पंगु हो जाता है। तथ्यों का अध्ययन, संकलन तथा विवेचन गणित के सिद्धान्तों की सहायता से किया जाता है। तथ्यों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित कर नये सिद्धान्तों को जन्म गणित की मदद से दिया जाता है। भौतिक विज्ञान की प्रगति में गणित का महत्त्वपूर्ण हाथ है तथा जैविक विज्ञानों के विकास में इसका अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। स्वचालन विज्ञान और साइबरनैटिक्स के आगमन से गणित अध्ययन पर विशेष ध्यान देना और भी आवश्यक हो गया है।

(2.)वैज्ञानिक खोजों में गणित का योगदान (Contribution of Mathematics in Scientific Research)

मनुष्य का चाँद पर पहुँचना इस शताब्दी की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। चाँद की पृथ्वी से दूरी, राकेट की गति, वायुमंडल में राकेट की गति में विभिन्न बाधाएं, ताप का प्रभाव, पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का राकेट की गति पर प्रभाव, राकेट के चाँद पर पहुँचने का समय आदि की गणना, गणित की सहायता से ही सम्भव हो सकी है। गणित की सहायता के बिना राकेट सम्बन्धी कोई भी गणना नहीं की जा सकती है। विज्ञान को व्यावहारिक बनाने में गणित का प्रमुख हाथ है। मंगल और शुक्र ग्रह पर भी पहुँचने की योजना में गणित का उपयोग आवश्यक है तथा निकट भविष्य में मनुष्य चन्द्रमा की तरह अन्य ग्रहों पर भी पहुँच सकेगा। प्रकृति के विभिन्न तथ्यों को संख्यात्मक स्वरूप देना गणित के द्वारा ही सम्भव है। चन्द्रमा से प्राप्त अनेक तथ्यों एवं आँकड़ों का मूल्यांकन गणित की सहायता से किया गया है तथा शनैः शनैः हमें मूल्यांकन के निष्कर्षों से चन्द्रमा एवं वहाँ के वायुमंडल के बारे में अनेक नवीन बातों की जानकारी मिली है। भावी संसार की रूपरेखा एवं निर्माण गणित की मदद के बिना असम्भव है।

(3.)हमारी दिनचर्या में गणित का उपयोग (Utility of Mathematics in Our Routine)-

दैनिक जीवन में भी गणित का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है। प्रत्येक जीवन का हिस्सा किसी न किसी पक्ष से सम्बंधित होता है। जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में हम किसी न किसी प्रकार गणित के नियमों, सिद्धान्तों तथा प्रक्रियाओं का प्रयोग करते हैं। हरएक मनुष्य को समाज का एक उपयोगी अंग सिद्ध होने के लिए गणित का सामान्य ज्ञान होना चाहिए। इसके बिना दैनिक जीवन में पग-पग पर कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। जब हम बाजार से सब्जी या अन्य कोई वस्तु खरीदने जाते हैं तो गणित के सामान्य ज्ञान के बिना हमें भाव निश्चित करने में तथा कीमत की गणना करने में असुविधा होगी। घर का बजट बनाते समय, आय और मजदूरी की गणना करते समय, वस्तुओं को तौलते समय, घड़ी में समय देखते हुए, रेलगाड़ी के आने के वक्त की जानकारी देते हुए, बस का किराया देकर बाकी के पैसे लेते हुए, लिफाफे पर टिकट लगाते समय, तारघर में तार देते समय यानी प्रत्येक स्थल पर गणित का उपयोग करना पड़ता है। जीवन में शायद ही कोई ऐसा धन्धा है जिसमें कम या अधिक मात्रा में गणित का उपयोग न होता हो। दर्जी को कपड़ा माप के अनुसार काटना पड़ता है, हलवाई को अपने काम में अनुपात, औसत आदि का प्रयोग करना पड़ता है, दूध बेचने वाले को लीटर आदि को काम में लेना पड़ता है, पंसारी को तोलने के विभिन्न बाटों का उपयोग करना पड़ता है हालांकि आधुनिक युग में तकनीकी का इतना विकास हो चुका है कि बाटों से तौलने की प्रक्रिया खत्म होती जा रही है लेकिन तकनीकी के ज्ञान के लिए भी गणित के ज्ञान की आवश्यकता है। ओवरसियर एवं इंजीनियर को क्षेत्रफल, आयतन आदि की गणना करनी पड़ती है, खिलाड़ी को स्कोर का ध्यान रखना पड़ता है, डाॅक्टर को रोगी की आयु आदि को ध्यान में रखकर आवश्यक मात्रा में औषधि देनी पड़ती है, मजदूर को अपने कार्य तथा समय के हिसाब से मजदूरी की गणना करनी पड़ती है, खाती को लकड़ी की कोई वस्तु बनाते समय माप का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जिसमें गणित की आवश्यकता न हो। यह भी कहा जा सकता है कि प्रत्येक धन्धे में गणित का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है। मशीनों एवं बिजली के प्रयोग से अनेक धन्धों में गणित का अनिवार्य रूप से प्रयोग होने लगा है।

(4.)तकनीकी विकास में गणित का योगदान (Contribution of Mathematics in Development of Technology)-

विश्व के नागरिकों को निकट लाने में तथा समाज के उत्कर्ष में गणित की एक उपयोगी भूमिका रही है। समाज की आर्थिक प्रगति तकनीकी ज्ञान के प्रयोग पर निर्भर करती है। वैज्ञानिकों तथा गणितज्ञों के आविष्कारों को समझने के लिए गणित का ज्ञान आवश्यक है। रेडियो, कम्प्यूटर, टेलीविजन, फिल्में, राकेट, हवाई-जहाज, कार, पुल, अनेक मंजिलों की इमारतें, पंखें, सड़कें, पानी के जहाज, विज्ञान के उपकरण आदि की उपलब्धि गणित के कारण ही सम्भव हो सकी है। आगे आनेवाले समय में गणित के अधिकाधिक उपयोग के कारण जन-जीवन में और भी अधिक समृद्धि की अपेक्षा की जानी चाहिए।
Utility of Mathematics in practical life

Robotics experts showcase technology during STEM week


 ज्योतिष, भूगोल, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, भौतिकशास्त्र, रसायन शास्त्र, इंजीनियरिंग आदि के अध्ययन में गणित का ज्ञान आवश्यक है। इन विषयों में नवीन प्रगति गणित के ज्ञान के उपयोग से की जा रही है। यह देखने में आ रहा है कि इन विषयों में विषय-सामग्री का विवेचन गणित की सहायता से अधिक बोधगम्य हो गया है।

(5.)हमारे जीवन में गणित की भूमिका (Roll of Mathematics in Our Life)-

गणित के पाठ्यक्रम में अनेक ऐसे उप-विषय हैं जो हमारे जीवन में काम आते हैं तथा हमारे दैनिक जीवन के कार्यकलापों को सुविधा प्रदान करते हैं। उदाहरणार्थ माप, तोल एवं दशमलव प्रणाली, एकिक नियम, साधारण एवं चक्रवृद्धि ब्याज, अनुपात, समय, गति और दूरी, लेखाचित्र, औसत, प्रतिशत, सांख्यिकी बजट बनाना, क्षेत्रफल एवं आयतन, समुच्चय सिद्धान्त आदि ऐसे अनेक उप-विषय हैं जिनका ज्ञान आज के जीवन में आवश्यक है। प्रगति के साथ सम्भवतः भविष्य में अनेक नवीन उप-विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करना पड़े जिससे साधारण मनुष्य की नवीन आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। पुराने पाठ्यक्रमों में सैकण्डरी स्तर पर समुच्चय सिद्धान्त, त्रिकोत्रमिति, बेलन के क्षेत्रफल एवं आयतन, कम्प्यूटर आदि विषय नहीं थे किन्तु उच्च गणित एवं जीवन की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इन्हें नवीन पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है। गणित में समुच्चय सिद्धान्त को प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाना आरम्भ कर दिया है और भारत में हमें भी ऐसा करना आवश्यक है क्योंकि हमारे लिए विश्व में गणित की प्रगति के साथ ही चलना अपरिहार्य है। वर्तमान गणित की भाषा समुच्चय की भाषा है। 

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How to develop skill in hindi | how to develop efficiency in hindi


How to develop skill in hindi | how to develop efficiency in hindi



via https://youtu.be/j-g-_YA8Beo

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The effect of language modification of mathematics story problems

The effect of language modification of mathematics story problems on problem-solving in online homework

1.ऑनलाइन होमवर्क में समस्या को हल करने पर गणित की कहानी समस्याओं का भाषा संशोधन का प्रभाव-


अनुदेशात्मक विज्ञान में अनुच्छेद ·

गणित की कहानी की समस्या में गैर-गणितीय भाषा के छात्रों की समझ-जैसे शब्दावली और वाक्यविन्यास -उनकी समस्या को हल करने पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, और यह कमजोर भाषा कौशल वाले छात्रों के लिए विशेष रूप से सही हो सकता है । हालांकि, थोड़ा प्रयोगात्मक अनुसंधान की जांच की है जो व्यक्तिगत भाषा सुविधाओं के छात्रों के प्रदर्शन को प्रभावित करते हुए समस्याओं को हल करने-ज्यादा अनुसंधान सहसंबंधात्मक किया गया है या संयुक्त भाषा सुविधाओं को एक साथ है । वर्तमान अध्ययन में, हम छह बीजगणित कहानी की समस्याओं की विभिंन भाषाओं में हेरफेर-वाक्य की संख्या, सर्वसंज्ञा, शब्द concreteness, शब्द hypernymy, वाक्य की निरंतरता, और समस्या विषय-और कैसे व्यवस्थित अलग पठनीयता की जांच मांगों पर प्रभाव छात्र प्रदर्शन । हम दोनों सटीकता और प्रतिक्रिया समय उपायों की जांच की, ASSISTments ऑनलाइन समस्या को सुलझाने के वातावरण में रैखिक कार्य सीखने के लिए एक काम का उपयोग कर । हम छोटे सबूत है कि व्यक्तिगत भाषा सुविधाओं गणित शब्द पर काफी प्रभाव है पाया छात्रों की एक सामान्य  जनसंख्या के लिए प्रदर्शन को सुलझाने की समस्या है । हालांकि, वाक्य संगतता प्रतिक्रिया समय कम और गति या यात्रा के बारे में समस्याओं व्यापार या काम के बारे में समस्याओं से कम प्रतिक्रिया समय था । इसके अलावा, यह प्रतीत होता है छात्रों को लाभ या भाषा संशोधनों द्वारा ASSISTments के साथ अपने परिचित के आधार पर नुकसान हो सकता है । गणित शब्द की समस्याओं में भाषा की भूमिका के लिए निहितार्थ पर चर्चा कर रहे हैं ।
The effect of language modification of mathematics story problems on problem-solving in online homework

Social Security Online - HISTORY



क्या आप इस लेख के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो निम्न आलेख से सम्बंधित विषयवस्तु भी पढ़नी चाहिए।
आलेख-
(1,)छात्र प्रदर्शन पर गणित परीक्षण मदों की संज्ञानात्मक लोड को कम करने के प्रभाव

(2.)अंग्रेजी शिक्षार्थियों और गणितीय शब्द समस्या को सुलझाने: एक व्यवस्थित समीक्षा

(3.)व्यक्तिगत सीखने में स्थितिजन्य रुचि  की भूमिका

(4.)विभिंन प्रकार के संज्ञानात्मक लोड अंतर: विभिंन उपायों की तुलना

(5.)कैसे पठनीयता कारक अलग पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए प्रदर्शन के साथ संबद्ध है जब गणित शब्द की समस्याओं को हल कर रहे है

(6.)वयस्क पाठकों में पाठ की समझ, संसाधन, और अपनेपन की भविष्यवाणी: पठनीयता सूत्र के लिए नए दृष्टिकोण

(7.)प्रतिशत परिवर्तन समस्याओं में आंतरिक संज्ञानात्मक लोड को कम करने: समीकरण दृष्टिकोण

(8.)इष्टतम सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने: शिक्षण क्षमता और गणितीय समस्या को सुलझाने में संज्ञानात्मक भार सिद्धांत का उपयोग

(9.)संज्ञानात्मक भार सिद्धांत, विकासवादी शैक्षिक मनोविज्ञान, और अनुदेशात्मक डिजाइन

(10.)कैसे पठनीयता और विषय घटना कंप्यूटर आधारित पाठ्यक्रम में गणित की कहानी समस्याओं पर प्रदर्शन से संबंधित

(11.)कैसे गणितीय दृश्यों को संशोधन अनुभूति को प्रभावित: नेत्र ट्रैकिंग से सबूत

(12.)विशेषज्ञता उलटा प्रभाव अधिक सामान्य  तत्व अंतरक्रियाशीलता प्रभाव का एक संस्करण है

(13.)डिजाइन के बीच संबंधों की खोज, ' छात्रों उत्तेजित राज्यों, और एक के भीतर Disengaged व्यवहार अपने
सम्मेलन पत्र
(14.)संसंजन और अर्थविज्ञान के स्वचालित सूचकांकों के साथ पाठ कठिनाई quantifying

(15.)प्राथमिक स्कूल के बच्चों के लिए अंकगणितीय सामग्री को निजीकृत करने के लिए कंप्यूटर सहायता अनुदेश का उपयोग करना

(16.)गणित ' आइटम भाषा अल्पसंख्यक छात्रों के लिए मांग का प्रभाव: क्या वे ग्रेड के बीच अलग?

(17.)कैसे मोहक विवरण उनके नुकसान करते हैं: विज्ञान सीखने में संज्ञानात्मक रुचि का एक सिद्धांत

(18.)कहानी समस्याओं के पीछे असली कहानी: मात्रात्मक तर्क पर अभ्यावेदन के प्रभाव

(19.)गणित शब्द एक बुद्धिमान tutoring प्रणाली में अंग्रेजी शिक्षार्थियों और अंग्रेजी प्राथमिक छात्रों द्वारा हल समस्या

(20.)पैकेज Lme4: Eigen और S4 का उपयोग रेखीय मिश्रित प्रभाव मॉडल

(21.)शब्द समस्याएं: उनकी कठिनाई के लिए योगदान भाषाई और संख्यात्मक कारकों की समीक्षा
(22.)पाठ याद में concreteness प्रभाव: दोहरी कोडिंग या संदर्भ उपलब्धता?

(23.)क्या शब्द-समस्या पाठ बोध का एक रूप हल है?

(24.)प्रयोग और संबंधपरक अध्ययन समस्या को सुलझाने में: एक मेटा-विश्लेषण

(25.)व्यवहार विज्ञान के लिए सांख्यिकीय शक्ति विश्लेषण

(26.)व्यक्तिगत हितों के आसपास सीखने "Personalizing" द्वारा छात्रों को प्रेरित: सिद्धांत, डिजाइन, और कार्यांवयन के मुद्दों पर विचार

(27.)असिमेंट्स पारिस्थितिकी तंत्र: एक मंच है कि मानव सीखने और शिक्षण पर ंयूनतम इनवेसिव अनुसंधान के लिए वैज्ञानिकों और शिक्षकों को एक साथ लाता है निर्माण

(28.)रूचि  विकास के चार चरण मॉडल

(29.)एक त्वरित और आसान रणनीति परीक्षण चिंता को कम करने और परीक्षण के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए

(30.)छात्र हितों के लिए अनुदेश को निजीकृत करने के लिए अनुकूली अधिगम प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना: प्रदर्शन और अधिगम परिणामों पर प्रासंगिक संदर्भों का प्रभाव

(31.)शब्द समस्याओं और पढ़ने की समझ के बीच संबद्धता

(32.)संज्ञानात्मक लोड थ्योरी और निर्देशात्मक डिजाइन: हाल के घटनाक्रम

(33.)ग्रंथों से रूचि , Inferences, और सीखने

(34.)कहानी समस्याओं का खेल "बजाना": समंवय स्थिति आधारित तर्क बीजीय प्रतिनिधित्व के साथ

(35.)एक पाठ सरलीकरण एल्गोरिथ्म के प्रभाव का उपयोगकर्ता मूल्यांकन बोध पर शब्द अपनेपन का उपयोग, समझ, सीखने, और सूचना प्रतिधारणा

(36.)कहानी समस्याओं के पीछे असली कहानी: मात्रात्मक तर्क पर अभ्यावेदन के प्रभाव

(37.)Word समस्या प्रदर्शन पर सामग्री प्रभाव: परीक्षण पूर्वाग्रह का एक संभावित स्रोत?

(38.)अंग्रेजी भाषा सीखने वालों द्वारा लिए गए सामग्री आकलन पर परीक्षण वैधता अनुसंधान के लिए एक फ्रेमवर्क

(39.)अंग्रेजी भाषा सीखने वालों के लिए सामग्री के आकलन में भाषा मांगों की एक जांच

(40.)अंग्रेजी भाषा शिक्षार्थियों और विकलांग छात्रों के प्रदर्शन पर गणित परीक्षण मदों में भाषा विशेषताओं का प्रभाव

(41.)अभ्यास के नए अवधारणा: तीन मानदंड में आम सिद्धांतों प्रशिक्षण के लिए नई अवधारणाओं का सुझाव

(42.)बहुस्तरीय बहस की समझ के कंप्यूटेशनल विश्लेषण

(43.)समानताएं और पीसा २००३ और TIMSS के मतभेदों की तुलना

(44.)संरचनात्मक चर को प्रभावित करने वाले और बधिर छात्रों की अंकगणितीय शब्द समस्याओं के कारण

(45.)गणित में द्वितीय भाषा शिक्षार्थियों का प्रदर्शन: अकादमिक भाषा सुविधाओं के प्रभाव Disentangling

(46.)गणित परीक्षण में भाषा का कारक

(47.)छात्रों की बीजगणित विकास के शिक्षकों की मांयताओं की एक जांच

(47.)बीजगणित का एक सिद्धांत-शब्द समस्या समझ और उसके डिजाइन के लिए निहितार्थ

(48.)भाषाई जटिलता, योजनाबद्ध अभ्यावेदन, और गणित परीक्षणों में अंग्रेजी भाषा शिक्षार्थियों के लिए अंतर आइटम कार्य

(49.)सिफारिशों

समस्या को हल करने में और अधिक प्रकाशनों, प्रश्नों और परियोजनाओं की खोज

(50.)परियोजना

राष्ट्रीय अनुभूति और गणित अनुदेश के लिए केंद्र

शिक्षण, शिक्षा, और गणित के संवाद के लिए tangibility



2.कैसे पठनीयता और विषय घटना कंप्यूटर में गणित की कहानी समस्याओं पर प्रदर्शन से संबंधित हैं-...


गणित की कहानी समस्याओं को सुलझाने के पाठ समझ कौशल की आवश्यकता है । हालांकि, पिछले अध्ययनों से पाठ पठनीयता और कहानी की समस्याओं पर प्रदर्शन के पारंपरिक उपायों के बीच कुछ कनेक्शन मिला है । हम hypothesized है कि हाल ही में पठनीयता और विषय पाठ द्वारा मापा घटनाओं के उपायों का विकास खनन उपकरण पाठ कठिनाई और समस्या को हल करने के बीच संघों को रोशन कर सकते हैं ।

गणित को हल करने पर संज्ञानात्मक और गैर-संज्ञानात्मक पाठ आधारित कारकों का प्रभाव

व्यक्तिगत शिक्षार्थी पृष्ठभूमि और वरीयताओं को शिक्षा को निजीकृत कि बुद्धिमान tutoring सिस्टम (ITSs) सभी दुनिया भर में कश्मीर-16 कक्षा सेटिंग्स में उभरा है । गणित अनुदेश में, आईटीएसएस समय के साथ गणितीय कौशल विकास पर नज़र रखने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है । हालांकि, हाल ही में अनुसंधान पाठ के महत्व को बताया है आधारित उपाय जब गणित शब्द हल.. ।
प्राकृतिक भाषा संसाधन उपकरण का प्रयोग छात्र वचबद्धता  के जटिल मॉडल विकसित करने के लिए

इस कागज के विभिंन भाषाई विशेषताओं के प्रभाव की जांच (के रूप में प्राकृतिक भाषा संसाधन उपकरण के माध्यम से पहचाना) छात्र वचबद्धता के भावात्मक उपायों पर मॉडल दृष्टिकोण के साथ एक खोज का उपयोग कर । हम पिछले साहित्य पर निर्माण, स्वचालित डिटेक्टरों की पहचान है कि जब एक मध्य स्कूल के एक ऑनलाइन गणित ट्यूटर का उपयोग कर छात्र ऊब, भ्रम, हताशा, या अनुभव है का उपय

गणित पाठ्यचर्या डिजाइन में दो साझा हित-वृद्धि दृष्टिकोण, छात्रों के हितों के लिए समस्याओं का चित्रण और निजीकरण है । इन प्रयोगों का उद्देश्य विभिन्न दृष्टांतों और निजीकरण दृष्टिकोणों का परीक्षण करना है । रेखांकन प्रयोग में, छात्रों (N = २६५) बेतरतीब ढंग से कहानी सजावटी चित्र युक्त समस्याओं के साथ पाठ को सौंपा गया,.. ।

बुद्धिमान Tutoring सिस्टम में स्वचालित विषय पहचान के लिए सहसंबंधात्मक विषय मॉडलिंग का उपयोग.. ।

छात्र ज्ञान मॉडलिंग आधुनिक व्यक्तिगत शिक्षण प्रणालियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन आम तौर पर एक डोमेन में सामग्री और कौशल की संरचना के वैध मॉडल पर निर्भर करता है । इन मॉडलों अक्सर आइटम के लिए कौशल के विशेषज्ञ टैगिंग के माध्यम से विकसित कर रहे हैं । हालांकि, crowdsourced निजीकृत सीखने की प्रणाली में सामग्री रचनाकारों अक्सर समय (और कभी कभार डोमेन ज्ञान) के लिए टैग की कमी है ।

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Interest-enhancing approaches to mathematics curriculum design

Interest-enhancing approaches to mathematics curriculum design

रूचि  बढ़ाने के दृष्टिकोण को गणित पाठ्यचर्या डिजाइन:
 रेखांकन और निजीकरण(Illustrations and personalization)
गणित पाठ्यचर्या डिजाइन में दो साझा हित-वृद्धि दृष्टिकोण, छात्रों के हितों के लिए समस्याओं का चित्रण और निजीकरण है । इन प्रयोगों का उद्देश्य विभिन्न दृष्टांतों और निजीकरण दृष्टिकोणों का परीक्षण करना है । रेखांकन प्रयोग में, छात्रों (N = २६५) बेतरतीब ढंग से सजावटी चित्र, प्रासंगिक चित्र, आरेखी चित्र, भ्रामक चित्र, या कोई चित्र (केवल पाठ युक्त कहानी समस्याओं के साथ पाठ को सौंपा गया; नियंत्रण) । छात्रों की समस्या को सुलझाने के प्रदर्शन और व्यवहार चित्रण हालत से प्रभावित नहीं थे, लेकिन सीखने के नियंत्रण में प्रासंगिक चित्र की तुलना में बेहतर था. निजीकरण प्रयोग में, छात्रों (N = २२३) बेतरतीब ढंग से कहानी की समस्याओं के लिए आवंटित किया गया है कि या तो पर आधारित व्यक्तिगत थे: उनके हितों का सर्वेक्षण, रूचि, विषयों की उनकी पसंद, बेतरतीब ढंग से सौंपा रूचि  विषय, या मूल गैर-निजीकृत कहानी समस्या (नियंत्रण) । निष्कर्ष संकेत दिया कि दोनों समस्या में प्रदर्शन के लिए विकल्प निजीकरण के लिए लाभ के रूप में के रूप में अच्छी तरह से एक बाद में सीखने के आकलन पर सेट थे ।
Interest-enhancing approaches to mathematics curriculum design

curriculum design:Illustrations and personalization



डिस्कवर दुनिया के अनुसंधान

पोस्ट-हस्तक्षेप प्रश्नोत्तरी (प्रयोग 1) निश्चित प्रभाव के लिए प्रदर्शन के प्रतीपगमन मॉडल के लिए आउटपुट

रेखांकन और निजीकरण चल सिर: रेखांकन और निजीकरण ब्याज-गणित पाठ्यक्रम डिजाइन करने के लिए दृष्टिकोण को बढ़ाने: रेखांकन और निजीकरण वर्जीनिया क्लिंटन उत्तरी डकोटा Candace Walkington के विश्वविद्यालय दक्षिणी मेथोडिस्ट विश्वविद्यालय के लेखक का ध्यान दें । वर्जीनिया क्लिंटन के उत्तरी डकोटा विश्वविद्यालय में शैक्षिक नींव और अनुसंधान में एक सहायक प्रोफेसर है । वह , संयुक्त राज्य अमेरिका में संपर्क किया जा सकता है ।

रुचि  बढ़ाने के दृष्टिकोण को गणित पाठ्यचर्या डिजाइन: रेखांकन और निजीकरण । शैक्षिक अनुसंधान के जर्नल । 
अमूर्त गणित के पाठ्यक्रम के डिजाइन में दो साझा ब्याज-वृद्धि दृष्टिकोण छात्रों के हितों के लिए चित्रों और समस्याओं का निजीकरण कर रहे हैं । इन प्रयोगों का उद्देश्य विभिन्न दृष्टांतों और निजीकरण दृष्टिकोणों का परीक्षण करना है । रेखांकन प्रयोग में, छात्रों (N = २६५) बेतरतीब ढंग से सजावटी चित्र, प्रासंगिक चित्र, आरेखी चित्र, भ्रामक चित्र, या कोई चित्र (केवल पाठ युक्त कहानी समस्याओं के साथ पाठ को सौंपा गया; नियंत्रण) । छात्रों की समस्या को सुलझाने के प्रदर्शन और व्यवहार चित्रण हालत से प्रभावित नहीं थे, लेकिन सीखने के नियंत्रण में प्रासंगिक चित्र की तुलना में बेहतर था. निजीकरण प्रयोग में, छात्रों (N = २२३) बेतरतीब ढंग से कहानी की समस्याओं के लिए आवंटित किया गया है कि या तो पर आधारित व्यक्तिगत थे: उनके हितों का सर्वेक्षण, रूचि  विषयों की उनकी पसंद, बेतरतीब ढंग से सौंपा रूचि  विषय, या मूल गैर-निजीकृत कहानी समस्या (नियंत्रण) । निष्कर्ष संकेत दिया कि दोनों समस्या में प्रदर्शन के लिए विकल्प निजीकरण के लिए लाभ के रूप में के रूप में अच्छी तरह से एक बाद में सीखने के आकलन पर सेट थे ।  कीवर्ड: मध्य विद्यालय गणित; शब्द समस्याओं; ब्याज वैयक्तिकरण दृश्य निरूपण
गणित पाठ्यक्रम डिजाइन करने के लिए ब्याज बढ़ाने दृष्टिकोण: रेखांकन और निजीकरण हाल के अनुसंधान से पता चला है कि कितने छात्रों को किशोरावस्था से अधिक गणित सीखने  के साथ पीछा करना पड़ता हैं और तेजी से उनके जीवन  को गणित की प्रासंगिकता को देखने में कठिनाई होती है । तदनुसार, शैक्षिक संदर्भों में रुचि बढ़ाने के तरीके शैक्षिक मनोविज्ञान  में एक महत्वपूर्ण विषय रहा है । पाठ्यचर्या सामग्रियों में छात्रों की रुचि बढ़ाने के लिए कुछ हस्तक्षेपों में रंगीन चित्र  जोड़ना, खेल या संगीत जैसे विषयों में छात्रों के स्कूल के हितों के लिए शिक्षा को वैयक्तिकृत करना  और शिक्षार्थियों नियंत्रण और उनके सीखने की गतिविधियों में विकल्प। यद्यपि इनमें से कई हस्तक्षेपों ने रुचि प्राप्त करने के लिए वादा दिखाया है, पर विचार हमेशा इन संशोधनों के संज्ञानात्मक प्रभावों को नहीं दिया जाता है । इन संशोधनों की बेहतर समझ पाठ्यक्रम डिजाइन के लिए जानकारीपूर्ण होगा ।  विशेष रूप से, रुचि बढ़ाने के लिए डिज़ाइन की गई सुविधाएँ मोहक विवरण बन सकता है  गणितीय अवधारणाओं कि उनके केंद्रीय ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए के साथ जूझ से शिक्षार्थियों विचलित । इसके अलावा, यदि शिक्षार्थियों रूचि  बढ़ाने का समर्थन करता है कि संदर्भ प्रदान करने के इन प्रकार के आदी हो जाते हैं, वे स्थितियों में संघर्ष जहां वे अमूर्त गणित की समस्याओं का समाधान करना चाहिए, के रूप में वांछनीय से संबंधित सिद्धांतों सीखने में वर्णित है कठिनाइयों  । वांछनीय कठिनाइयों पर अनुसंधान से पता चलता है कि शिक्षार्थियों लंबे समय में उनके सीखने के माहौल में समर्थन की कमी से अधिक लाभ हो सकता है, क्योंकि यह उंहें वास्तव में महत्वपूर्ण अवधारणाओं के साथ हाथापाई और बलों

अपने दम पर महत्वपूर्ण वैचारिक कनेक्शन बनाओ  । दो प्रयोगों के वर्तमान सेट में, हम मध्य विद्यालय गणित के लिए एक ऑनलाइन पाठ्यक्रम में रेखांकन, निजीकरण, और विकल्प सहित-कई ब्याज बढ़ाने के हस्तक्षेप की जांच. हम इन संशोधनों के अल्पकालिक प्रभाव की जांच-चाहे ब्याज वृद्धि सहायक या हस्तक्षेप गतिविधियों को हल करने के लिए नहीं है-के रूप में अच्छी तरह के रूप में छात्र शिक्षा पर दीर्घकालिक प्रभाव-क्या ब्याज वृद्धि एक बैसाखी है या एक हस्तक्षेप समस्याओं से सीखने के बाद के आकलन के लिए पाड़ । इन दोनों अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिणामों की तरह पाठ्यक्रम डिजाइनरों के लिए महत्वपूर्ण विचार कर रहे हैं, विशेष रूप से ब्याज के रूप में संवर्द्धन ऑनलाइन सामग्री में अधिक आम हो गए हैं, जहां प्रौद्योगिकी adaptivity और विकल्प के लिए अनुमति दे सकते हैं । हम अगले प्रासंगिक रुचि से संबंधित साहित्य की समीक्षा और सीखने की गतिविधियों के दौरान जुटना सुनिश्चित करना । सैद्धांतिक रूपरेखा ब्याज सिद्धांत के रूप में छात्रों को तेजी से किशोरावस्था पर गणित के साथ विरत हो जाते हैं, अनुदेशात्मक डिजाइनरों से एक प्रतिक्रिया सामग्री है कि छात्रों के हित प्रकाश में लाना-आकर्षक और के राज्य के रूप में परिभाषित डिजाइन हो सकता है विशेष वस्तुओं, घटनाओं, विषयों, या विचारों  के साथ फिर से संलग्न करने की प्रवृत्ति । रूचि  के उच्च स्तर को बेहतर प्रदर्शन और सीखने  के साथ सीधे जुड़े रहे हैं पोविन और हसनी, २०१४) । किम, जियांग, और गीत (२०१५) एक बड़े डेटासेट का विश्लेषण और गणित में रुचि पाया मध्य और उच्च विद्यालय के गणित में उपलब्धि के भविष्य कहनेवाला हो ।  उच्च ब्याज ध्यान, सगाई, हठ, कथित क्षमता की तरह सीखने के महत्वपूर्ण मध्यस्थों से जुड़ा हुआ है, और सीखने की रणनीतियों का उपयोग


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