General Principles of Teaching arithmetic

General Principles of Teaching Arithmetic

(अंकगणित के अध्यापन के सामान्य सिद्धान्त ) -

1.जीवन से सम्बन्ध(Relation to life) -

General Principles of Teaching arithmetic

General Principles of Teaching arithmetic

इस विषय की पाठ्य-सामग्री को जीवन के तथ्यों एवं परिस्थितियों से संबंधित कर पढ़ाना चाहिए अन्यथा यह विषय विद्यार्थियों के लिए एक नीरस विषय बन जाएगा। हमारे विद्यालयों में अधिकांश विद्यार्थियों को यह विषय अत्यन्त कठिन एवं नीरस लगता है तथा परीक्षा में भी उनके कम अंक आते हैं। वास्तव में अंकगणित एक रसमय तथा रुचिपूर्ण विषय है किन्तु त्रुटिपूर्ण अध्यापन विधियों के कारण इस विषय में विद्यार्थियों की रुचि का विकास नहीं हो पाता है। अंकगणित में विद्यार्थियों के अनुभवों, पूर्वज्ञान तथा रुचियों को आधार बनाने से विषय रोचक बन जाता है तथा प्रश्नों को हल करने के लिए विद्यार्थी प्रेरित होते हैं। स्टुअर्ट मिल ने कहा है - "संख्याएँ अमूर्त नहीं होती हैं। सभी संख्याएँ किसी न किसी वस्तु की संख्या होती हैं।" यदि हम किसी छोटी कक्षा के विद्यार्थी से पूछे कि 5 तथा 7 को जोड़ने पर क्या उत्तर आएगा तो शायद उसे जोड़ने में कठिनाई होगी। यदि हम पूछें, "5 नारंगियाँ तथा 7 नारंगियाँ कितनी होगी?" विद्यार्थी इसका उत्तर सरलता से दे सकेगा। स्थूल वस्तुओं तथा संख्या का सम्बन्ध स्थापित कर जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि की प्रक्रियाओं को सरलता से किया जा सकता है क्योंकि बालक यहाँ पर कम या अधिक के बोध के साथ प्रक्रियाओं को सम्बन्धित कर सकता है।
अंकगणित की पाठ्य-सामग्री को जीवन के वास्तविक तथ्यों से सम्बंधित करने से एक विशेष लाभ यह है कि विद्यार्थियों के अंकगणित ज्ञान का सामाजिकरण हो जाता है। अंकगणित की समस्याओं को हल करते समय हम उन्हें दो परिचित स्थानों के बीच की वास्तविक दूरी, डाकखानों में ब्याज की वास्तविक दर, डाकगाड़ी की प्रतिघंटा किलोमीटर में चाल, साइकिल की कीमत, फिलिप्स रेडियो का बाजार भाव, दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों का औसत-भार, शाला के पास खेत का क्षेत्रफल, शाला के हाल की चारों दीवारों का क्षेत्रफल, शाला के बाग में पानी की कुंडी का आयतन, शाला से डाकखाने की वास्तविक दूरी, एक तरबूज का औसत भार, भारत की आबादी में प्रतिवर्ष वृद्धि, भारत में मृत्यु दर, जन्म दर आदि, भारत के राष्ट्रीय आय, राजस्थान में प्रतिव्यक्ति पर शिक्षा पर खर्च, कम्प्यूटर की कीमत, एक कार को रखने पर औसत मासिक खर्च, औसत परिवारों में भोजन पर खर्च आदि से संबंधित आँकड़ों की जानकारी द्वारा सही गणितीय दृष्टिकोण के विकास में सहायता देते हैं।

2.प्रत्ययों का समीकरण(Equation of Ideas) -

गणना करना अंकगणित का एक पक्ष-मात्र है। अंकगणित के प्रत्ययों का स्पष्ट ज्ञान भी महत्त्वपूर्ण है। अंकगणित में प्रत्येक उप विषय में अनेक प्रत्यय है जिनकी जानकारी बिना उनका उपयोग गणना प्रक्रिया में सम्भव नहीं है। जिन विद्यार्थियों को इन सम्बन्धों का व्यावहारिक ज्ञान नहीं हो पाता तब तक आगे का पाठ प्रारम्भ न करें।
प्रत्ययों के स्पष्टीकरण के साथ-साथ विद्यार्थियों को उनका उपयोग करने का समुचित अभ्यास भी कराया जाना चाहिए। अंकगणित में दशमलव प्रणाली, प्रतिशत, औसत, अनुपात आदि ऐसे अनेक उप-विषय हैं जिनके प्रत्ययों के बारे में स्पष्टता का होना अनिवार्य है तथा उनके व्यावहारिक प्रयोग के लिए पर्याप्त अभ्यास की भी आवश्यकता है। उदाहरणार्थ जब हम ब्याज का उप-विषय पढ़ाएं तो विद्यार्थी को निम्नांकित प्रत्ययों का स्पष्ट ज्ञान होना आवश्यक है -
(1.)ब्याज की गणना मूलधन पर होती है।
(2.)समय की अवधि के साथ-साथ ब्याज बढ़ता है।
(3.)ब्याज, पूँजी के उपयोग करने का एक प्रकार का किराया है।
(4.)ब्याज=Px R xT%
इसी प्रकार लाभ-हानि से सम्बंधित निम्न प्रत्ययों का स्पष्ट ज्ञान आवश्यक है -
(i) लाभ या हानि क्रय-मूल्य पर होती है।
(ii) प्रत्येक व्यापार लाभ के लिए किया जाता है।
(iii) लाभ प्राप्त करने के लिए विक्रय-मूल्य, क्रय-मूल्य से अधिक होगा।
(iv) व्यापार में होने वाले खर्चों को लागत मूल्य में जोड़ दिया जाता है।
(v) विक्रय-मूल्य तथा क्रय-मूल्य में जितना अधिक अन्तर होगा। इसी प्रकार क्रय-मूल्य तथा विक्रय-मूल्य में जितना अधिक अन्तर होगा, उतनी ही अधिक हानि होगी।
प्रत्ययों को स्पष्ट करने के लिए 'स्थूल से सूक्ष्म' के सिद्धांत को काम लेना चाहिए। जहाँ पर आवश्यक हो वहाँ पर चार्ट, चित्र माॅडल आदि का भी प्रयोग करना चाहिए। जो भी समस्याएं प्रस्तुत की जाएँ, वे विद्यार्थियों के जीवन से सम्बंधित होनी चाहिए तथा पूर्वज्ञान को चिंतन का आधार बनाना चाहिए।

3.मानसिक गणना(Mental calculation) -

अंकगणित की समस्याओं को हल करते समय विद्यार्थियों को मानसिक अंकगणित का अभ्यास करना चाहिए। सिद्धान्तों को समझने के पश्चात् विद्यार्थी उनकी प्रयुक्ति के लिए जिस प्रकार का चिंतन मन में करता है, मानसिक कार्य कहलाता है। गणना करते समय अनेक बातों को विद्यार्थी बिना कागज तथा पेंसिल के करने की स्थिति में होना चाहिए। मानसिक गणित से विद्यार्थी समस्या से सम्बंधित प्रत्ययों एवं गणना के बारे में चिंतन कर सम्भावित हल करने के बारे में निर्णय ले सकता है।
मानसिक गणना से निम्नलिखित लाभ हैं-
Elementary school teacher dictating students

Elementary school teacher dictating students


(1.)विद्यार्थियों में चिंतन के स्तर को सुधारा जा सकता है।
(2.)प्रत्ययों, प्रक्रियाओं एवं तथ्यों को मानसिक स्तर पर बहुत जल्दी समझा जा सकता है।
(3.)अपेक्षित निष्कर्षों को शीघ्रता से ज्ञात किया जा सकता है।
(4.)विषयवस्तु को याद रखने की शक्ति में वृद्धि होती है।
(5.)उत्तरों को शीघ्रता से जाँचा जा सकता है।
जो विद्यार्थी गणित के सिद्धान्तों, प्रत्ययों, प्रक्रियाओं आदि के उपयोगों के बारे में मानसिक स्तर पर चिंतन करते हैं, उनका विषय का ज्ञान अच्छे स्तर का होता है तथा उन्हें नए पाठों को सीखने में सुविधा होती है। कक्षा में मौखिक कार्य के साथ-साथ मानसिक गणित का पर्याप्त अभ्यास कराया जाना चाहिए। विद्यार्थियों को समस्या हल करते समय प्रत्ययों के बारे में अध्यापक प्रश्नोत्तर द्वारा सही दिशा में मानसिक चिंतन के लिए प्रेरित कर सकता है। लिखित कार्य करने के पहले विद्यार्थियों में चिंतन करने की आदत उपयोगी होती है।

4.समस्याओं को प्रस्तुत करने का वैज्ञानिक ढंग (Scientific way of posing problems)-

अंकगणित में जीवन से सम्बंधित समस्याओं का निर्माण किया जाना चाहिए। परम्परागत समस्याओं को हल करने में विद्यार्थियों को आनन्द की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि उनमें दिए गए तथ्यों का उनके जीवन से कोई सम्पर् नहीं होता। यदि तथ्य सही एवं रुचिकर होंगे तो विद्यार्थी निष्कर्षों को उत्सुकता से ज्ञात करेंगे। अंकगणित के सीखने में अमनोवैज्ञानिक एवं परम्परागत समस्याओं ने सबसे अधिक बाधा पहुँचाई है। अंकगणित के अध्यापक को समाज की गतिविधियों की जानकारी होनी चाहिए जिससे कि आवश्यक तथ्यों को संकलित कर वैज्ञानिक ढंग से समस्याओं का निर्माण किया जा सके। समस्याओं को हल करते समय विद्यार्थी अंकगणित की विषय-सामग्री की उपादेयता के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं तथा समाज के बारे में एक दृष्टिकोण बनाते हैं। समस्या निवारण विधि अंकगणित सिखाने में अधिक उपयुक्त है। पुस्तकों में उपलब्ध समस्याएं अधिकांशतः घिसी-पिटी एवं त्रुटियों से भरी होती हैं। समस्याओं के निर्माण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
(i )समस्या की भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए।
(ii)समस्या अनावश्यक रूप से लम्बी नहीं होनी चाहिए।
(iii)समस्या में दिए गए तथ्य स्पष्ट एवं सही हों।
(iv)समस्या में 'क्या ज्ञात करना है?' स्पष्ट होना चाहिए।
(v)यदि आवश्यक हो तो समस्या को विभिन्न भागों में बाँटकर लिखा जाए जिससे विद्यार्थी उसे भली प्रकार समझ सकें। बीजगणित को आधार बनाया जाए।
(vi)जहाँ पर सम्भव हो, समस्या के साथ चित्र, सारणी आदि भी दिए जाएं जिससे दिए गए तथ्यों को समझने में सुविधा हो।
(vii)समस्या बालकों के स्तर के अनुकुल हो।
(viii) अंकगणित तथा ज्यामिति का समन्वित अध्यापन किया जाना चाहिए।

5.कक्षा में वैयक्तिक भिन्नताएं(Individual variations in the classroom)-

कक्षा में सभी विद्यार्थी समान योग्यता के नहीं होते हैं। कुछ विद्यार्थी कुशाग्र बुद्धि वाले तथा अन्य सामान्य बुद्धि वाले होते हैं। विद्यार्थियों की क्षमता तथा अध्यापन के स्तर में सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है। एक कुशल अध्यापक कक्षा में विद्यार्थियों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास करता है। विद्यार्थियों की वैयक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखकर इकाई-योजनाओं तथा पाठ-योजनाओं का निर्माण करना चाहिए। एक कालांश में कितनी समस्याओं को हल कराया जा सकता है। इसका निर्णय अध्यापक अपनी कक्षा के विद्यार्थियों की क्षमता को ध्यान में रखकर कर सकता है। कक्षा में अध्यापन करते समय प्रश्नोंत्तर विधि द्वारा इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि विद्यार्थी विषयवस्तु को समझ रहे हैं या नहीं। जब कभी नया पाठ पढ़ाया जाए तो समस्त सम्बन्धित प्रत्ययों को अनेक विधियों द्वारा स्पष्ट करने के प्रयास किए जाने चाहिए। कक्षा में समस्या को बोर्ड पर लिखकर प्रस्तुत करने से विद्यार्थियों का ध्यान समस्या के विभिन्न पक्षों की ओर आकर्षित किया जा सकता है। कुछ विद्यार्थियों से सारी कक्षा के समक्ष समस्या को पढ़वाना चाहिए जिससे भाषा एवं तथ्य सम्बन्धी बातें स्पष्ट हो सकें। प्रत्येक विद्यार्थी को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि 'क्या दिया है'? तथा क्या ज्ञात करना है? 'इसके पश्चात् अध्यापक विद्यार्थियों से हल करने की विधि के बारे में चर्चा करे तथा मौखिक रूप से यह स्पष्ट करे कि कौनसी विधि इस समस्या को हल करने में उपयुक्त है तथा अन्य विधियां उपयुक्त क्यों नहीं है।विद्यार्थियों के मानसिक चिंतन को अध्यापक सही दिशा प्रदान कर उनके सोचने एवं तर्क करने के स्तर को ऊँचा उठा सकता है। कक्षा में विद्यार्थियों को स्वतंत्रता से समस्या का हल ज्ञात करने की छूट होनी चाहिए जिससे कि वे स्वयं सम्बन्धित विधि की उपयुक्तता के बारे में जाँच कर सकें। ऐसे अवसरों पर अध्यापक विद्यार्थियों को व्यक्तिगत ध्यान देकर हल ज्ञात करने में सहायता दे सकता है। श्यामपट्ट का अधिकाधिक उपयोग कक्षा का ध्यान आकर्षित करने में अत्यधिक सहायक सिद्ध होता है। गणना सम्बन्धी सामूहिक कठिनाईयों को श्यामपट्ट पर विद्यार्थियों की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है। यदि इन बातों को ध्यान में रखकर अध्यापन कार्य सम्पन्न किया जाए तो विद्यार्थियों की वैयक्तिक भिन्नताओं के साथ सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। अध्यापन कार्य में कुशाग्र विद्यार्थियों को भी आवश्यकतानुसार सहायता ली जा सकती है जिससे कमजोर विद्यार्थियों की कठिनाइयों को दूर किया जा सके। विद्यार्थियों द्वारा सीखे हुए सिद्धान्तों आदि की स्पष्टता के लिए कक्षा में तथा घर पर अभ्यास आवश्यक है।
कक्षा में यदि प्रत्ययों, संकल्पनाओं, सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं, गणना सम्बन्धी क्रियाओं को अधिकाधिक स्पष्ट करने के प्रयास किए जाएं तो शनैः शनैः विद्यार्थियों में वैयक्तिक भिन्नताओं की मात्रा में कमी होगी, कक्षा में उपलब्धि स्तर में विकास होगा तथा कक्षा समजातीय बन सकेगी।

6.अभ्यास एवं लिखित कार्य(Practice and written work)-

अंकगणित के सिद्धान्तों और प्रक्रियाओं का बोध कराने के लिए अभ्यास कार्य आवश्यक है। अभ्यास का कार्यक्रम व्यवस्थित एवं पूर्व योजना के आधार पर हो। अभ्यास कार्य का रोचक होना भी आवश्यक है। यदि कक्षा में विद्यार्थी नए सिद्धान्तों को ठीक प्रकार से समझ जाते हैं तो अभ्यास कार्य उनके लिए आकर्षक बन जाता है। अभ्यास कार्य गणित शिक्षण के महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करता है। गणित में ऐसी अनेक क्रिया हैं जिनको बार-बार करना आवश्यक है। अभ्यास कार्य से क्रियाओं में शुद्धता एवं गति की प्राप्ति होती है।

अभ्यास कार्य की निरन्तर जाँच होना आवश्यक है। इससे विद्यार्थियों की त्रुटियों में अपेक्षित सुधार सम्भव हो सकेगा। विद्यार्थियों को जब तक उनके द्वारा की गई त्रुटियों की जानकारी नहीं होगी तब तक वे उन्हें सुधार नहीं सकेंगे। अभ्यास कार्य का सम्बन्ध कक्षा में पढ़ाई गई सामग्री से होना चाहिए। विद्यार्थियों को सही, शुद्ध, स्वच्छ एवं व्यवस्थित ढंग से लिखित कार्य करने का प्रशिक्षण आवश्यक है।


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