Ancient Indian Mathematicians

प्राचीन भारतीय गणितज्ञ (Ancient Indian Mathematicians) -


1.ब्रह्मगुप्त(Brahmagupta)-

ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के महान् आचार्य हुए हैं। प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इन्हें 'गणित चक्र चूड़ामणि' कहा है।
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Brahmagupta


इनका जन्म पंजाब के अन्तर्गत भिलनालका नामक स्थान पर सन् 598 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम विष्णुगुप्त था। यह चापवंशी राजा के यहाँ रहते थे परन्तु स्मिथ के अनुसार यह उज्जैन नगरी में रहा करते थे और वहीं पर इन्होंने कार्य किया। इन्होंने सन् 628 ई. में ब्रह्म स्फुट सिद्धान्त और सन् 665 में खण्ड साधक को बनाया था। इन्होंने ध्यान ग्रहोपदेश नामक ग्रन्थ भी लिखा है। ब्रह्म स्फुट सिद्धान्त में 21 अध्याय हैं जिनमें गणित अध्याय तथा कुटखाध्यका उल्लेखनीय है। इन्होंने अंकगणित, बीजगणित तथा रेखागणित - सभी गणितों पर प्रकाश डाला है और यह पाई का मान 10 ^1/2 मानकर चले हैं। वर्गीकरण की विधि का वर्णन सर्वप्रथम ब्रह्मगुप्त ने ही किया है। गणित अध्याय शुद्ध गणित में ही है। इसमें जोड़ना, घटाना आदि त्रैराशिक भाण्ड, प्रतिभाण्ड आदि हैं ।अंकगणित या परिपाटी गणित में है श्रेणी व्यवहार, क्षेत्र व्यवहार, त्रिभुज, चतुर्भुज आदि के क्षेत्रफल जानने की रीति, चित्र व्यवहार (ढाल-खाई आदि के घनफल जानने की रीति), त्रैवाचिक व्यवहार, राशि व्यवहार (अन्न के ढेर जानने की रीति), छाया व्यवहार, (इसमें दोष, सम्बन्ध तथा उसके स्तम्भ की अनेक रीति) आदि 24 प्रकार के अध्याय इसी के अन्तर्गत हैं।
त्रिकोणमिति के विषय में भी इन्होने उल्लेख किया है। इन्होंने ज्या के अर्थ में ही क्रमज्या का प्रयोग किया है। इन्होंने एक ज्या सारणी भी दी है, जिसमें त्रिज्या 3270 ली है।

2. महावीराचार्य(Mahaviracharya) -

महावीराचार्य का जीवन-परिचय अन्य प्राचीन आचार्यों की भांति अन्धकार में छिपा हुआ है। अब तक खोंजो से ज्ञात होता है कि वे राष्ट्रकूट के महान् शासक अमोघवर्ष नृपतुंग के समकालीन थे। महावीराचार्य ने गणित सारसंग्रह, ज्योतिष-पटल तथा षटत्रिशंका इत्यादि मौलिक एवं अभूतपूर्व ग्रन्थों की भी रचना की है जो कि ज्योतिष एवं गणित विषयों पर अपनी विषय-वस्तु के कारण महत्त्वपूर्ण है।
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Mahaviracharya


महावीराचार्य के इन ग्रन्थों को भारतीय गणित के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। इसमें गणित में संसार को जो देन मिली है, उनकी अनेक विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है। हिन्दू गणित के सुप्रसिद्ध विद्वान डाॅ. विभूतिभूषणदत्त ने अपने निबन्ध में मुख्य रूप से महावीराचार्य के त्रिभुज और चतुर्भुज-सम्बन्धी गणित का विश्लेषण किया है और बताया है कि इसमें अनेक ऐसी विषमताएँ हैं जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। इसी प्रकार महावीराचार्य की प्रशंसा करते हुए डी. ई. स्मिथ 'गणित सार-संग्रह' के अंग्रेज़ी संस्करण की भूमिका में लिखते हैं कि त्रिकोणमिति तथा रेखागणित के मौखिक तथा व्यावहारिक प्रश्नों से यह भाषित होता है कि महावीराचार्य, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य में समानता तो है लेकिन फिर भी महावीराचार्य के प्रश्नों में इनसे अधिक श्रेष्ठता पाई जाती है।
महावीराचार्य ने गणित की प्रशंसा करते हुए 'गणित सार-संग्रह' में लिखा है - कामशास्त्र, अर्थशास्त्र, गन्धर्वशास्त्र, गायन, नाट्यशास्त्र, पाकशास्त्र, आयुर्वेद, वास्तुविद्या, छन्द, अंलकार, काव्यतर्क, व्याकरण इत्यादि में तथा कलाओं के समस्त गुणों में गणित अत्यंत उपयोगी है। सूर्य आदि ग्रहों की गति को ज्ञात करने में, देश और काल को ज्ञात करने में, सर्वत्र गणित अंगीकृत है। द्वीपों, समूहों और पर्वतों की संख्या, व्यास और परिधि, लोक, अन्तर्लोक, स्वर्ग और नर्क के रहने वाले सबके श्रेणीबद्ध भवनों, सभा एवं मन्दिरों के निर्माण गणित की सहायता से ही जाने जाते हैं। अधिक कहने से क्या प्रयोजन? त्रैलोक्य में जो कुछ भी वस्तु है, उसका अस्तित्व गणित के बिना सम्भव नहीं हो सकता।
महावीराचार्य ने अंक-सम्बन्धी जोड़, बाकी,गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल और घनमूल - इन आठों परिक्रमों का भी उल्लेख किया है। इन्होंने शून्य तथा काल्पनिक संख्याओं पर भी विचार व्यक्त किए हैं। गणित सार-संग्रह में 24 अंक तक की संख्या का उल्लेख किया है और उसको इस प्रकार नाम दिए हैं - एक, दस, शत, सहस्र, दश सहस्र, लक्ष, दशलक्ष, कोटि, दशकोटि, अबुद, न्यर्बुद, खर्व, महाखर्व, पद्म, महापद्म, क्षोणी, महाक्षोणी, शंख, महाशंख, क्षिति, महाक्षिति, क्षोभ, महाक्षोभ।
भिन्नों के भाग के विषय में महावीराचार्य की विधि विशेष उल्लेखनीय है। लघुत्तम समापवर्त्य की कल्पना पहले महावीर ने ही की थी।
महावीराचार्य ने युगपत् समीकरण (Simultaneous Equation) को हल करने का नियम भी दिया है। वर्ग समीकरण को व्यावहारिक प्रश्नों को दो भागों में विभाजित किया है। एक तो वे प्रश्न, जिनमें अज्ञात राशि के वर्गमूल का कथन होता है तथा दूसरे वे, जिनमें अज्ञात राशि के वर्ग का निर्देश रहता है।
पाटी गणित और रेखागणित के विचार से भी गणित सार-संग्रह में अनेक विशेषताएं हैं। इन्होंने 'क्षेत्र-व्यवहार' प्रकरण में आयत को वर्ग और वर्ग को वृत्तों में बदलने का भी उल्लेख है। इस ग्रन्थ में त्रिभुजों के कई भेद भी बताए गए हैं तथा समद्विबाहु त्रिभुज, विषमबाहु त्रिभुज, आयत, विषमकोण, चतुर्भुज, वृत्त तथा पंचमुख के क्षेत्रफल निकालने की रीति का वर्णन है। दीर्घवृत्त पर गहन अध्ययन करने में महावीराचार्य ही एक हिन्दू गणितज्ञ थे। महावीराचार्य द्वारा गोले का आयतन-सम्बन्धी नियम बड़ा ही रोचक है।
गणित सार-संग्रह में बीजगणित सम्बन्धी भी अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। इसमें मूलधन, ब्याज, मिश्रधन और समय निकालने के सम्बन्ध में तथा भिन्न के सम्बन्ध में शेष-सम्बन्धी अनेक ऐसे नियमों का उल्लेख मिलता है जो प्राचीन और आधुनिक गणित में बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इस प्रकार से हमें भाषित होता है कि गणितज्ञ महावीराचार्य की गणित को देन संसार की अमूल्य निधि है और उसकी प्रशंसा करना सूर्य के सामने दीपक दिखाना होगा। 

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