Practical Suggestion in Teaching Arithmetic

 Practical Suggestion in Teaching Arithmetic -

(अंकगणित के अध्यापन में व्यावहारिक सुझाव)-

1.भूमिका (Introduction)-

संख्या प्रणाली संरचनाएं संख्याओं को सीखने में महत्त्वपूर्ण आधार प्रदान करती हैं। विद्यार्थी पहले प्राकृत संख्याएँ सीखता है। वह इस प्रणाली का योग के लिए संवृत्त होना, साहचर्य होना तथा क्रमविनिमेय होना सीखता है। इसके पश्चात् वह इस प्रणाली का गुणन के लिए संवृत्त, साहचर्य एवं क्रमविनिमेय होना सीखता है। भाग के लिए इन गुणधर्मों की अनुपस्थिति का अनुभव करता है। वह संख्या रेखा द्वारा शून्य तथा ऋण पूर्णांकों से परिचित होता है। इस प्रकार वह पूर्णांकों की प्रणाली का जिसमें एक योगज सर्वसमिका (तत्सम) है, प्रत्येक संख्या का योगज प्रतिलोम है तथा जिसमें संवृत्त होने का, साहचर्यता, क्रमविनिमेयता तथा बंटन गुण विद्यमान है। इसके पश्चात् वह भिन्न सीखता तथा परिमेय संख्या प्रणाली से परिचित होता है।

2.संख्या प्रणाली से लाभ(Profit from Number System) -


(1.)किसी निकाय की संरचना के विषय में विद्यार्थी को अन्तर्दृष्टि से ज्ञान होता है।
(2.)विद्यार्थी गणित नियमों से परिचित होता है। वह सीखता है कि विभिन्न निकायों के भिन्न भिन्न नियम हैं।
(3.)वह गुणन क्रिया समझने लगता है।
(4.)वह ऋण संख्याओं की क्रियाओं को समझने लगता है तथा संख्या रेखा का अध्ययन कर छोटी, बड़ी, ऋणात्मक, धनात्मक संख्याओं के परस्पर स्थानों को पहचानने लगता है।
(5.) वह जोड़ तथा गुणा की प्रक्रियाओं में परस्पर सम्बद्धता को समझने लगता है कि भाग वास्तव में बाकी करने की सतत् प्रक्रिया है।
(6.)इस बात का प्रयास आवश्यक है कि विद्यार्थी अंकगणित से सम्बद्ध मूल तर्कों को समझे। मूल तर्क एवं अमूर्त सिद्धान्त उदाहरणों द्वारा पढ़ाए जाएं। विधियों तथा नियमों का विस्तार कई चरणों में हो।
(7.)विद्यार्थी को यह अन्तर्दृष्टि होना आवश्यक है कि गणित में कुछ नियम हैं तथा गणित की क्रियाएं स्वेच्छापूर्वक नहीं बनाई गई है।
(8.)अमूर्त गणित को सयझाने हेतु मूर्त उदाहरणों एवं वस्तुओं का प्रयोग किया जाए।
(9.)गणित एक तर्कसंगत विषय है। इसमें सहज ज्ञान तथा सामान्य अनुमान का स्वच्छंद प्रयोग होना चाहिए।
(10.)गणित निगमनिक तर्क विज्ञान है। निगमनिक तर्क की शक्ति का विकास गणित में मूर्त उदाहरणों से किया जाना चाहिए।
(11.)विद्यार्थियों को शून्य तथा स्थानमान प्रणाली की महत्ता समझानी चाहिए।
(12.)समुच्चय, साहचर्य, क्रमविनिमेय तथा बंटन नियम, असमताओं के समीकरणों तथा लेखाचित्रों पर पर्याप्त बल दिया जाना चाहिए। संख्या प्रणाली को लेखाचित्रों द्वारा पढ़ाया जाना आधुनिक गणितज्ञों ने अत्यंत उपयोगी माना है।
(13.)अंकगणित तथा ज्यामिति के शिक्षण को एक रूप करने के लिए समुच्चय संकल्पनाओं का उपयोग करना चाहिए। ज्यामितीय बिन्दुओं के समुच्चय के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।
(14.)समीकरणों तथा असमताओं के सत्य समुच्चयों की संकल्पना का पूर्ण उपयोग किया जाए।
(15.)प्रमाप अंकगणित का अध्ययन तथा दस के अतिरिक्त अन्य आधारों में अंकगणित का अध्ययन विद्यार्थियों को संख्या निकाय में संरचनाओं, प्रतिरूपों तथा नियमों को सीखने में सहायक होते हैं।
(16.)संख्या रेखाओं की संकल्पना तथा काटती हुई संख्या रेखाओं की संकल्पना में प्रबल संकल्पनाएं हैं जिनका पूर्ण उपयोग करना चाहिए।
(17.)संख्या रेखा के द्वारा अंकगणित ज्यामिति के पाठन में काफी समन्वय हो जाता है। धन पूर्णांकों, शून्य, ऋण पूर्णांकों, परिमेय संख्याओं को संख्या रेखा पर निरूपित किया जा सकता है। इस प्रकार सत्य समुच्चयों, समुच्चयों के संघ तथा सर्वनिष्ठ को, पूर्णांकों के जोड़, गुणा, बाकी तथा भाग आदि सबको निरूपित किया जा सकता है।
(18.)अंकगणित का मुख्य उद्देश्य परिमेय संख्या निकाय की बीजीय संरचना को समझना है।
(19.)भिन्नों को पढ़ाने के लिए लघुत्तम समापवर्त्य तथा लघुत्तम समापवर्त्य को पढ़ाने के लिए गुणनखण्डों का तथा गुणनखण्डों को पढ़ाने के लिए अभाज्य संख्याओं तथा संयुक्त संख्याओं और भाज्यता इन संकल्पनाओं को आधार बनाया जाना चाहिए।
(20.)गणित अध्यापन में मनोरंजन सामग्री का समावेश लाभकारी ढंग से किया जा सकता है।
अंकगणित तथा ज्यामिति में समुच्चय

3.निष्कर्ष (conclusion)-

समुच्चयों की संकल्पना गणित को एक रूप में लानेवाली प्रबल संकल्पना है। इससे संघ तथा सर्वनिष्ठ ज्ञात किए जा सकते हैं। रिक्त समुच्चय की कल्पना महत्त्वपूर्ण है। ज्यामिति में बिन्दुओं के समुच्चयों का अध्ययन किया जाता है। रेखाओं, समतलों, त्रिभुजों, बहुभुजों, बहुभुजी क्षेत्रों, किरणों, कोणों आदि सभी गुण समुच्चयों के संघों तथा प्रतिच्छेदों द्वारा ज्ञात होते हैं। लघुत्तम तथा महत्तम गुणजों तथा गुणनखण्डों के समुच्चयों के प्रतिच्छेदों के रूप में प्रकट किए जाते हैं। सत्य समुच्चयों तथा उनके ज्यामितीय निरूपण को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
विश्व के गणितज्ञों का सुझाव है कि अंकगणित तथा ज्यामिति को समन्वित रूप में कक्षा में पढ़ाया जाए। संख्याओं को संख्या रेखा, ग्राफ या अन्य ज्यामितीय आकृतियों पर प्रदर्शित किया जा सकता है। संख्या का स्वतंत्र रूप से कोई अस्तित्व नहीं है। संख्या का अस्तित्व उसके स्थानीय मान एवं संख्या रेखा पर निरूपण से सम्बद्ध है। इसलिए अब त्रिभुज संख्याएँ, पंचभुज संख्याएँ, पास्कल संख्याएँ, फिबोनैशी संख्याएँ आदि का उल्लेख संख्याओं के ज्यामितीय महत्त्व के आधार पर किया जाता है। एक आयामी द्विआयामी, त्रिआयामी आदि संकल्पनाएं संख्याओं के सन्दर्भ में ही समझी जा सकती है। संख्या रेखा, त्रिभुज, आयत, वर्ग, घन आदि संख्याओं की संकल्पनाओं से सम्बद्ध हैं।

4.बीजगणित :संख्याओं का चित्रण(Algebra: Illustrations of Numbers)-



बीजगणित में लेखाचित्र एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा अंकगणित की संख्याओं का चित्रण ज्यामिति को आधार बनाकर प्रभावी किया गया है। अंकगणित, बीजगणित तथा ज्यामिति का समन्वय का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण लेखाचित्र है।
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Algebra: Illustrations of Numbers)-




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