Hired Teacher Is Teaching Math: Chemistry Teacher Is Teaching Painting

1.हायर्ड अध्यापक पढ़ा रहे गणित तो केमिस्ट्री वाले चित्रकला का परिचय (Introduction to Hired Teacher Is Teaching Mathematics: Chemistry Teacher Is Teaching Painting)-

इस आर्टिकल में बताया गया है कि सरकारी स्कूलों में बहुत सारे पद रिक्त होने के कारण सरकारी स्कूलों हालत बिगड़ती जा रही है गणित जैसे विषय को पढ़ाने के शिक्षक नहीं है परन्तु सरकारी स्कूलों की स्थिति केवल शिक्षकों की कमी के कारण ही नहीं बिगड़ी बल्कि इसके पीछे ओर भी कारण हैं दूसरा कारण है कि शिक्षकों द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध न कराना तथा सरकार व प्रशासन द्वारा ध्यान नहीं देना तीसरा कारण है। चोथा कारण है अभिभावकों का निष्क्रिय रहना। 
दूसरी तरफ निजी स्कूलों की भी बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं है तो निजी में शिक्षा का व्यवसाय मानकर पढाने के ज्यादातर निजी स्कूल धन बटोरने में लगे रहते हैं। शिक्षकों और अभिभावकों का शोषण हो रहा है। सरकारें आँख बन्द करके इस सारे गोरखधंधे को देख रही है, उन्हें सत्ता में आने के लिए केवल वोट चाहिए। 
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Hired Teacher Is Teaching Math: Chemistry Teacher Is Teaching Painting,Rajasthan University

Rajasthan University ,Hired Teacher Is Teaching Math: Chemistry Teacher Is Teaching Painting

2.हायर्ड अध्यापक पढ़ा रहे गणित तो केमिस्ट्री वाले चित्रकला (Hired Teacher Is Teaching Mathematics: Chemistry Teacher Is Teaching Painting)-

Poor Education: hired teacher is teaching mathematics
प्रदेश में प्रारंभिंक शिक्षा के 25385 पद खाली, माध्यमिक शिक्षा में तो 31790 शिक्षकों की कमी है
2092 विज्ञान संकाय वाले स्कूलों में गणित-केमिस्ट्री-फिजिक्स शिक्षकों के 1025 पद खाली
Sep 22, 2019
जयपुर (आनंद चौधरी/विनोद मित्तल). सरकारी स्कूलों में बच्चों को वैज्ञानिक, डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के ख्वाब तो दिखाए जा रहे हैं लेकिन विज्ञान, गणित और अंग्रेजी जैसे विषय पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं हैं। कहीं फिजिक्स के टीचर गणित पढ़ा रहे हैं तो कहीं केमिस्ट्री के संस्कृत। हालात ये हैं कि राजस्थान के 2092 विज्ञान संकाय वाले स्कूलों में ही गणित, केमिस्ट्री और फिजिक्स विषयों के व्याख्याताओं के 1025 पद खाली हैं।
Hired Teacher Is Teaching Math: Chemistry Teacher Is Teaching Painting

Hired Teacher Is Teaching Math: Chemistry Teacher Is Teaching Painting

इतना ही नहीं माध्यमिक स्कूलों में हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक ज्ञान और संस्कृत जैसे प्रमुख छह विषयाें के वरिष्ठ अध्यापकों 12288 पद खाली हैं। प्रारंभिक शिक्षा में 25 हजार और माध्यमिक शिक्षा में 31 हजार शिक्षकों का इंतजार है। ऐसे हालात में अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि शिक्षा की स्थिति क्या होगी?
केस 1: गणित टीचर नहीं तो फिजिक्स वाले पढ़ा रहे
धौलपुर की बाड़ी तहसील के राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय चलाचौंध में विज्ञान संकाय में गणित विषय तो चल रहा है लेकिन दो साल से शिक्षक नहीं है। इस दौरान गणित में प्रवेश लेने वाले अधिकांश छात्र स्कूल छोड़ चुके हैं। स्कूल के एकमात्र गणित के छात्र को फिजिक्स व्याख्याता पढ़ा रहे हैं।
केस 2 : डूंगरपुर में केमिस्ट्री टीचर ही पढ़ा रहे चित्रकला 
राजकीय बालिका आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय डूंगरपुर में चित्रकला सबजेक्ट तो चल रहा है लेकिन पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं। केमिस्ट्री की व्याख्याता अपने विषय के साथ ही चित्रकला भी पढ़ाती हैं। यहां इतिहास विषय के व्याख्याता भी नहीं हैं। इसी स्कूल में उर्दू विषय में 85 छात्राएं हैं लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं। यहां इंटर्नशिप के लिए आए छात्र-छात्राओं के भरोसे यह विषय पढ़ाया जा रहा है।
केस 3: पांच हजार रुपए में निजी शिक्षक रख लिया
राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय डूंगरपुर की 12वीं कक्षा में गणित विषय के लिए दो साल से शिक्षक नहीं है। स्कूल प्रबंधन ने अपने स्तर पर यहां पांच हजार रुपए महीने में एक निजी शिक्षक को लगा रखा है ताकि छात्रों की पढ़ाई चलती रहे।
57 हजार पद खाली, भर्तियों का इंतजार
भर्तियां समय पर पूरा नहीं होने का खमियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। पिछले साल शुरू हुई तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती तो कैसे तैसे पूरी हो गई, लेकिन वरिष्ठ अध्यापक भर्ती और व्याख्याता भर्ती अभी पूरा होने का इंतजार हैं। इसी लापरवाही के चलते वर्तमान में शिक्षकों को 57 हजार पद खाली पड़े हैं। प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा में विषयवार खाली पदों की स्थिति में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। विद्यार्थियों को वैज्ञानिक, इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना दिखाने वाले सरकारी स्कूलों में विज्ञान के ही सैंकड़ों पद खाली पड़े हैं।
322 रसायन, 417 भौतिक विज्ञान, 286 जीव विज्ञान के पदों के भरने का इंतजार है। 
राज्य की 496 स्कूलों में पंजाबी विषय चल रहा है लेकिन इनमें सिर्फ 121 शिक्षक हैं।
प्रारंभिक शिक्षा में 25385 शिक्षकों  की कमी
Category              Granted post     vacant post
Senior Teacher           18645                 8010
Third Grade Level 2    56658                 5206
Third Grade Level  1   123140               8652
Physical Teacher    3   7953                   3517
-----------------------------------
Total                           206216               25385
------------------------------------
माध्यमिक शिक्षा में चाहिए 31790 शिक्षक
Category                  Granted post       Vacant Post
Principal                      10847                  496
Headmaster                   3650                 1790
School Lecturer            52699                 9676 
Senior Teacher              73033                12437
Third Grade Level 1-2   84131                7391
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Total                              224360             31790
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विषयवार खाली पदों की संख्या (मा.शिक्षा)

Category                    Granted Post          Vacant Post
Compulsory English     4080                      559
Compulsory Hindi         3793                     390
Biology                           1909                     286
Chemistry                       2386                     322
Physics                            2274                    417
Mathematics                    1229                    376
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Accountancy                     943                     179
Business Studies               938                      177
Painting                             440                      204
Economics                        1737                     372
Geography                         5760                   1276
Political Science                 8543                   1022
Sanskrit                              1613                    357
History                                6808                   1028
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क्योंकि... सरकारी स्कूलों का हर तथ्य सरकार और शिक्षा विभाग के पास मौजूद है। मंत्री-अफसर और शासन प्रमुख स्कूलों के सब हाल जानते हैं। हम पूछेंगे तो वे कहेंगे- सुधार कर रहे हैं, जल्दी सुधार कर देंगे। स्कूलों की बदहाली पर भास्कर ने यह पड़ताल बदलाव के इरादे से की है। जब वे घोषणाओं से अलग सुधार के बड़े फैसले करेंगे, तब इसी ताकत से छापेंगे।

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What is the role of teacher in Students Success and failure || what are causes students failure


What is the role of teacher in Students Success and failure || what are causes students failure



via https://youtu.be/H-pHFNcHfks

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Comprehending Mathematics

Comprehending Mathematics

1.सम्मोहित गणित का परिचय (Introduction to Comprehending Mathematics)-

इस आर्टिकल में बताया गया है कि विद्यार्थियों को गणित में पुस्तक पढ़ना व लिखना सीखाया जाता है। सामान्यतः विद्यार्थियों को परीक्षण और त्रुटि के माध्यम से पढ़ना, लिखना सीखाया जाता है। अर्थात् बालकों को कुछ गणित का अभ्यास कराने के बाद उसकी परीक्षा ली  जाती है। उस परीक्षा के आधार पर बालकों का मूल्यांकन करके जो त्रुटि वे करते हैं उसमें सुधार करवाया जाता है। इस प्रकार वे गणित की समस्याओं को हल करना सीखते हैं। धीरे-धीरे उनके सम्मुख चुनौतीपूर्ण गणितीय समस्याओं को प्रस्तुत किया जाता है जो विद्यार्थियों को अधिक समझदार बनाती है यदि वे उनको हल करने का प्रयास करते हैं या हल कर लेते हैं। इसलिए बालकों से चुनौतीपूर्ण गणितीय समस्याएं हल करवाई जानी चाहिए। यदि वर्षों से चले आ रहे पुराने ढर्रे पर बालकों को लिखना व पढ़ना सीखाया जाएगा तो सम्भव है उतना अच्छा परिणाम देखने को नहीं मिले।
मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों और नियमों में अधिगम के वैज्ञानिक सिद्धान्तों व नियमों का उपयोग किया जा सकता है। माता-पिता, अध्यापक व अभिभावक गणों को अधिगम के नियमों /सिद्धान्तों का उपयोग करके गणित में उत्तम व्यक्तित्त्व विकास की नींव बच्चों में डाल सकते हैं। क्लासिक नियमों का सही-सही उपयोग करके माता-पिता, अभिभावक व अध्यापक बच्चों को खतरा एवं सुरक्षा के संकेतों को सीखलाकर उनके व्यवहार में उत्कृष्टता ला सकते हैं। क्रियात्मक गणित का अनुप्रयोग करके तथा क्रियात्मक गणित के नियमों का उपयोग करके माता-पिता बच्चों को कई तरह की घिसी-पिटी आदतों से मुक्ति दिला सकते हैं। माता-पिता व अध्यापक एक अच्छे माॅडल के रूप में भी अपने बच्चों को कर्त्तव्यनिष्ठ, सामाजिक कौशल, उपाय कुशल व गणितीय कुशलता आदि बना सकते हैं।

2.शैक्षिक गणितीय अधिगम (In Academic Educational Learning) -

गणितीय अधिगम के सिद्धान्तों /नियमों का उपयोग शिक्षक एवं छात्रों द्वारा शैक्षिक गणित के परिणामों को उत्तम बनाने के लिए भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है। इसमें गणित पाठ को कई छोटे-छोटे अंशों में बाँटकर छात्रों को सीखाया जाता है या सीखते हैं। प्रत्येक अंश को सीखने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जाता है जिससे सीखना आसान हो जाता है। इस तरह से छात्रों को प्रोत्साहित करने के नियम के सहारे किसी गणितीय क्रिया को सीखने में अधिक सक्रिय बनाकर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है।
माता-पिता, शिक्षक अपने उत्तम आचरण के द्वारा भी विद्यार्थियों को सीखने में उत्तम माॅडल के रूप में पेश करते हैं जिससे छात्रों में व्यक्तिगत आदत तथा उचित गणितीय व्यवहार उत्पन्न हो सके। गणित में गृहकार्य तथा वर्ग कार्य करने के लिए देकर तथा पर्याप्त अभ्यास करना भी सीखलाया जाता है।

3.गणितीय चिंता (Mathematical Anxiety) -

कुछ विद्यार्थियों में गणितीय चिंता या डर मन में समाया हुआ होता है या उनके मन में बैठा दिया जाता है जिससे विद्यार्थी गणित से कतराने लगते हैं और गणित को हल करने में उनकी रूचि नहीं रहती है। जिन विद्यार्थियों के मन में डर बैठ जाता है उनमें क्रमबद्ध संवेदीकरण का उपयोग करके उनकी अनावश्यक चिंताओं एवं डर को दूर किया जाता है। वैसे विद्यार्थी जिनमें अतार्किक, आधारहीन डर के साथ-ही-साथ असामान्य व्यवहार भी होता है उनके लिए मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का उपयोग लाभदायक रहता है। जो विद्यार्थी अंतर्मुखी तथा शर्मीले प्रकृति के होते हैं तथा जिन्हें गूढ़ गणितीय क्रियाओं को करने में कठिनाई महसूस होती है, उनमें दृढ आत्मविश्वास उत्पन्न करके ऐसी समस्याओं से छुटकारा दिलाया जा सकता है। कुछ विद्यार्थी तुनकमिजाजी होते हैं अर्थात् उन्हें जरा- सा भी छेड़ने पर वे अपना मानसिक संतुलन खोने लगते हैं जैसे उनसे कहा जाए कि आपका गुणा, भाग, जोड़, बाकी गलत है तो भड़क उठते हैं, उनकी श्वसन गति तीव्र हो जाती है तथा वे उँट-पटाँग व्यवहार करने लगते हैं, ऐसी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए उन्हें सान्त्वना, प्रोत्साहन तथा सहानुभूति का उपयोग किया जाता है।

4.निष्कर्ष (Conclusion) -

विद्यार्थियों को गणित सीखना एक तप व साधना का कार्य है। इसमें विद्यार्थी के साथ-साथ अध्यापकों को भी तप व साधना करनी होती है। यदि माता-पिता शिक्षकों के भरोसे या विद्यालय के भरोसे पर विद्यार्थियों को छोड़ दे या अध्यापक विद्यार्थियों को मात्र कक्षा में पढ़ाकर इतिश्री समझ ले तो गणित जैसे विषय में विद्यार्थियों को पारंगत करना बहुत कठिन है। जिन बच्चों में जन्मजात प्रतिभा होती है उन बच्चों की बात अलग है, वे अपवाद होते हैं तथा उनको थोड़े प्रशिक्षण से ही उत्तम परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। आजकल के वातावरण को देखकर कहा जा सकता है कि विद्यार्थियों में सुविधाभोगी प्रवृत्ति पनपती जा रही है और माता-पिता व अध्यापकगण उनकी फरमाईशों को पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। यही कारण है कि विद्यार्थी तप व साधना से जी चुराता है और वे गणित विषय में पिछड़ जाते हैं जबकि गणित विषय उनके लिए जीवन में बहुत उपयोगी है। ऐसे विद्यार्थियों को जीवन क्षेत्र में गणित की जरुरत होती है तो उनके ठंडा पसीना छूटने लगता है।
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5.सम्मोहित गणित(Comprehending Mathematics)-

Comprehending Mathematics

Comprehending Mathematics

साक्षरता निर्देश हमें गणित सिखाने के बारे में क्या दिखा सकता है
हम छात्रों को वर्षों से बेहतर पाठक और लेखक बनने का तरीका सिखा रहे हैं। संरक्षक ग्रंथों के साथ, हम अपने छात्रों को पुस्तकों के भीतर मौजूद विभिन्न शैलियों, पाठ संरचनाओं और सुविधाओं के बारे में पढ़ाते हैं। छात्र मुख्य चरित्र और नए लेखन टुकड़े के विवरण को दर्शाने के लिए पात्रों और भूखंडों की पहचान करना, घटनाओं को बेचना, या सामग्री की एक तालिका स्थापित करना सीखते हैं।
अच्छी खबर यह है, हम अपने गणित निर्देश के दौरान इन्हीं अनुदेशात्मक विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं। जिस प्रकार पुस्तकों में विभिन्न प्रकार की पाठ संरचनाएँ (कथा, सूचनात्मक, जीवनी) और विशेषताएँ (वर्ण, घटनाएँ, भाषा, लेबल) होती हैं, उसी प्रकार गणित शब्द की समस्याएं भी। जब हम छात्रों को गणित की समस्याओं के भीतर इन संरचनाओं और विशेषताओं की पहचान करने का तरीका दिखाते हैं, तो हम उन्हें समझने, उन्हें हल करने और अंततः अपनी स्वयं की गणित कहानियों के लेखक बनने की क्षमता बढ़ाते हैं। अनुसंधान से पता चलता है कि पाठक जो किसी पाठ की संरचना की पहचान कर सकते हैं, वे सफल समझ के लिए आवश्यक जानकारी का पता लगाने में सक्षम हैं (विलियम्स, जे.पी., 2003)। यह ठीक वैसा ही परिणाम है जैसा हम तब खोज रहे हैं जब छात्र शब्द समस्याओं को हल कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि छात्र एक गणित समस्या की पाठ संरचना की पहचान करें, यह पहचानें कि कौन सा हिस्सा गायब है, और लापता मूल्य को हल करने के लिए प्रश्नों और ज्ञात रिश्तों का उपयोग करें।

6.समस्या संरचनाएं(Problem Structures)-

गणित की शब्द समस्याओं के लिए चार बुनियादी संरचनाएं हैं, जैसा कि थॉमस ग्रिपेंटर और उनके सहयोगियों ने अपनी ग्राउंडब्रेकिंग पुस्तक, चिल्ड्रन्स मैथमेटिक्स, 1999 में प्रकाशित किया था (2 संस्करण 2013):

(1.)सम्मिलित / अलग(Join/Separate): 

इन समस्याओं में, कुछ कार्रवाई है। एक प्रारंभिक मात्रा है; कुछ जोड़ा या छीन लिया गया है; और अंत में एक नई मात्रा है। गणितज्ञ को यह तय करना चाहिए कि कौन गायब है और दूसरों के आधार पर इसका मूल्य ढूंढें।
टोकरी में 3 बिल्ली के बच्चे हैं। 1 बिल्ली का बच्चा बाहर चढ़ता है। अब टोकरी में कितने बिल्ली के बच्चे हैं? (अलग, परिणाम अज्ञात)
शिक्षक ने 30 पेंसिलें तेज कर दीं। उन्होंने प्रत्येक पेंसिल बॉक्स में पेंसिल की समान संख्या डाल दी। उन्होंने 6 पेंसिल बॉक्स भरे। प्रत्येक डिब्बे में उसने कितनी पेंसिलें रखीं? (आंशिक विभाजन (अलग के समान), प्रत्येक समूह में राशि अज्ञात)
मार्क के पास अपने बटुए में कुछ पैसे हैं। उसके पास बैंक में 520 डॉलर हैं। कुल मिलाकर उसके पास $ 137 हैं। मार्क के पास अपने वॉलेट में कितने पैसे हैं? (शामिल हों, अज्ञात शुरू करें)

(2.)पार्ट-पार्ट-होल(Part-Part-Whole): 

इन समस्याओं में, भाग एक पूर्ण बनाते हैं, लेकिन कोई क्रिया या परिवर्तन नहीं होता है। एक या एक से अधिक भागों या पूरे लापता हो सकते हैं।
“बहुत पर 100 ऑटोमोबाइल हैं। कितनी हो सकती हैं कारें? ट्रक कितने हो सकते हैं? ”
“एक डीलरशिप में प्रत्येक पंक्ति में 10 के साथ कारों की 7 पंक्तियाँ हैं। वहाँ कितनी गाड़ियां हैं?

(3.)तुलना(Comparison): 

इन समस्याओं में, दो मात्राओं की तुलना की जाती है।
औसत जिराफ़ का वजन 750 पाउंड होता है। जो कि औसत बंदर से 15 गुना ज्यादा है। औसत बंदर कितना वजन करता है?
जोसेफ के पास 9 डॉलर हैं। मार्गरेट के पास 14 डॉलर हैं। मार्गरेट जोसेफ के पास कितना अधिक पैसा है?

(4.)दर(Rate): 

इन समस्याओं में, दोनों राशियों के बीच सीधा संबंध होता है। एक में बदलाव दूसरे में बदलाव का कारण बनता है।
हेनरी प्रति घंटे $ 15 कमाता है। 8 घंटे में वह कितना कमाएगा?

7.समस्या संरचनाओं से संबंधित पाठ संरचनाएं: सम्मिलित / अलग और वर्णनात्मक(Relating Text Structures to Problem Structures: Join/Separate and Narrative)-

आइए इस बारे में विचार करें कि गणित की शब्द समस्याओं की बुनियादी संरचनाएं कल्पना और गैर-कल्पना ग्रंथों को कैसे दर्शाती हैं। भाग-भाग-पूरा और तुलनात्मक समस्याओं में सूचनात्मक ग्रंथों के समान संरचनाएँ हैं। पार्ट-पार्ट-होल समस्याओं में एक समय और एक जगह का वर्णन है, थोड़ा सा मुख्य विचार और एक पुस्तक में विवरण। तुलनात्मक समस्याओं में सूचनात्मक ग्रंथों की तुलना / विपरीत के समान संरचनाएं होती हैं, एक आरेख की तरह जो जानवरों की ऊंचाइयों और वजन की तुलना करता है या एक किताब है जो पाठक को गर्मियों और गिरावट की तुलना और विपरीत करने के लिए कहता है। दर समस्याएँ, सूचनात्मक ग्रंथों को भी प्रतिबिंबित कर सकती हैं।
हालांकि, आइए, जॉइन / सेपरेट समस्याओं पर ध्यान दें। ये समस्याएं एक कथा संरचना का पालन करती हैं और आमतौर पर इसमें एक चरित्र, एक सेटिंग और एक क्रिया के रूप में एक प्लॉट / एक्शन होता है। शुरुआत, मध्य और अंत के साथ समस्या का प्रवाह है। ऊपर बिल्ली का बच्चा समस्या के बारे में सोचो: अक्षर बिल्ली के बच्चे हैं, सेटिंग एक टोकरी है, और कार्रवाई एक बिल्ली का बच्चा बाहर चढ़ाई है।
Comprehending Mathematics

Comprehending Mathematics

बहुत कम उम्र से बच्चों को कथा पाठ संरचनाओं से अवगत कराया जाता है; वे चरित्रों के रोमांच के साथ पालन करना सीखते हैं, समस्याओं के बारे में आश्चर्य करते हैं, और अंत का अनुमान लगाते हैं। यह प्रदर्शन स्पष्ट रूप से बच्चों के मन में कहानियों को व्यवस्थित करने की क्षमता बनाता है, भविष्यवाणी करता है कि आगे क्या हो सकता है, और जब अर्थ टूट जाता है तो प्रासंगिक प्रश्न पूछें।
उदाहरण के लिए, अनुसंधान से पता चलता है कि बच्चे आमतौर पर परीक्षण और त्रुटि (कारपेंटर, 2003) के माध्यम से शुरू-अज्ञात समस्याओं को हल करना सीखते हैं। हालांकि, समझ संरचना छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण समस्याओं को अधिक समझदार बना सकती है। समस्याओं को शब्द बनाने के लिए स्पष्ट रूप से कथा पाठ संरचनाओं को जोड़ने के लिए ग्राफिक आयोजकों का उपयोग करके, और उनके भीतर सुविधाओं और संरचनाओं की व्याख्या करते हुए, छात्रों को अज्ञात चर को निर्धारित करने और समस्याओं को हल करने के लिए संख्यात्मक संबंधों का उपयोग करने में बेहतर है। इसके अतिरिक्त, कई बच्चे संरचना के इस ज्ञान को लागू करने और अपनी स्वयं की गणित समस्याओं के लेखक बनने में सक्षम हैं। (नीचे छात्र का काम देखें)।
1.Sergio इस सेपरेट चेंज अननोन (SCU) समस्या में समस्या में लापता मान की स्थिति दिखाने के लिए ग्राफिक आयोजक (रिटेल बॉक्स) का उपयोग करने में सक्षम था। फिर उन्होंने अंतर को खोजने के लिए दिए गए मूल्यों का उपयोग किया और इसे उलटा ऑपरेशन के साथ साबित कर दिया। आप देखेंगे कि ऑपरेशन प्रतीकों के स्थान पर तीर हैं। इसका मतलब छात्रों को संख्याओं के बीच संबंधों के बारे में लचीले ढंग से सोचने के लिए प्रोत्साहित करना है।
सर्जियो की SCU समस्या
2. जब ज्वाइन चेंज अननोन (JCU) की समस्याएं दी जाती हैं, तो छात्र अक्सर दिए गए दो मूल्यों को जोड़ देते हैं। इस मामले में, चैस्टलीन अपनी जेसीयू शब्द समस्या बनाने में सक्षम था, जिसमें प्रश्न चिह्न परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता था।
चेस्टलीयन की JCU समस्या
3. अप्रैल की समस्या इस बात की परिचायक है कि वह स्वतंत्र रूप से एक दो कदम अलग परिणाम अज्ञात (SRU) शब्द समस्या बनाने में सक्षम थी।
अप्रैल की दो-चरणीय SRU समस्या
4. नताविदाद एक प्रश्न चिह्न का उपयोग करता है यह दिखाने के लिए कि वह लापता मूल्य को अलग-अलग परिवर्तन अज्ञात (SCU) समस्या के बीच में है। हल करने के लिए उसकी रणनीति उसके मूल्यों के बीच संबंधों की समझ को दर्शाती है। वह 20 का अंतर खोजने के लिए 30 से 10 घटाती है।
नेविदाद की SCU समस्या
समय के साथ, जैसे हम छात्रों से अधिक जटिल ग्रंथों को पढ़ने और लिखने की अपेक्षा करते हैं, हम उन्हें और अधिक गणितीय गणित समस्याओं को हल करने और लिखने की अपेक्षा कर सकते हैं। हम इंटरैक्टिव रीड अलाउड के दौरान मेंटर टेक्स्ट के रूप में विभिन्न प्रकार की शब्द समस्याओं का उपयोग कर सकते हैं, हम उन पाठ संरचनाओं और विशेषताओं के बारे में जोर से सोच सकते हैं जिन्हें हम नोटिस करते हैं। हम गणित के समय में छोटे समूहों को व्यवस्थित कर सकते हैं और रणनीतिक भागीदारी बना सकते हैं जो छात्रों को उनकी सोच को समझाने और अपने साथियों से महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया प्राप्त करने की अनुमति देता है। हम छात्रों को अधिक से अधिक जटिल प्रकार की समस्याओं को उजागर कर सकते हैं और उनकी संख्या समझ और गणितीय तर्क विकसित करने के रूप में देख सकते हैं।

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Secondary Mathematics Paper Divided into Two Parts in CBSE

Secondary Mathematics Paper Divided into Two Parts in CBSE 

1.सीबीएसई बोर्ड के माध्यमिक गणित  को पेपर में विभाजित  का परिचय (Introduction to Secondary Mathematics Paper Divided into Two Parts in CBSE )-

बहुत से विद्यार्थी गणित विषय कठिन लगने के कारण उसे हल नहीं कर पाते हैं और परीक्षा में फेल हो जाते हैं। फलस्वरूप वे विद्यार्थी आगे अध्ययन नहीं कर पाते हैं। सीबीआई बोर्ड ने एक अच्छा निर्णय लिया है कि गणित के दो पेपर कर दिए हैं पहला बेसिक मैथ जो सरल है और दूसरा स्टैंडर्ड मैथ जो कठिन है। जो विद्यार्थी आगे गणित विषय को ऐच्छिक विषय के रूप में नहीं चुनना चाहते हैं वे बेसिक मैथ ले सकते हैं और जो विद्यार्थी आगे गणित विषय को ऐच्छिक विषय के रूप में चुनना चाहते हैं वे स्टैंडर्ड मैथ ले सकते हैं। दोनों मैथ का सिलेबस समान है फर्क ये है कि स्टैंडर्ड मैथ पेपर का डिफिकल्टी लेवल अधिक होगा।यदि बाद में जिन विद्यार्थीयों ने बेसिक मैथ लेकर परीक्षा दी है और वे कक्षा ग्यारह में गणित विषय को ऐच्छिक विषय के रूप में चुनना चाहते हैं उनकी मदद के लिए CBSE बोर्ड यह व्यवस्था की है कि उन्हें अतिरिक्त मैथ्स स्टैंडर्ड परीक्षा में शामिल होना होगा, जो कि कंपार्टमेंट एग्जाम के साथ आयोजित किया जाएगा.
समय-समय पर इस तरह के प्रगतिशील और विद्यार्थियों के हित में लिए जाने वाले निर्णयों का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे जिन विद्यार्थियों के मन में गणित का फोबिया है और गणित में फेल होने का डर रहता है वो समाप्त हो जाएगा। 
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2.सीबीएसई बोर्ड के माध्यमिक गणित  को पेपर में विभाजित  (Secondary Mathematics Paper Divided into Two Parts in CBSE )-

Secondary Mathematics Paper Divided into Two Parts in CBSE

Secondary Mathematics Paper Divided into Two Parts in CBSE 

मैथ को मुश्किल समझने वाले स्टूडेंट्स ने मैथ की बाधा को बोर्ड एग्जाम में आसानी से पार करने के लिए आसान रास्ता चुन लिया है. सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन सीबीएसई ने हाईस्कूल में मैथ को दो भागों में बांटा था. इसमें एक मैथ बेसिक लेवल की है तो दूसरी थोड़ा टफ है. ऐसे में लाखों स्टूडेंट्स ने आसान मैथ को चुना है. बोर्ड के डाटा पर नजर डालें तो करीब 30 प्रतिशत स्टूडेंट्स ने हाईस्कूल में बेसिक मैथ को चुना है. इस बार 5.56 लाख से अधिक स्टूडेंट्स बेसिक मैथ का एग्जाम देंगे.
सीबीएसई ने इस साल से लागू की है नई व्यवस्था
बोर्ड ने छात्रों को मैथ में होने वाली परेशानी को देखते हुए नये सेशन से बोर्ड एग्जाम के पैटर्न में बदलाव कर दिया. स्टूडेंट्स हाईस्कूल में मैथ की पढ़ाई के बाद अपनी पसंद की स्ट्रीम और विषयों के साथ पढ़ाई को आगे बढ़ा सकेंगे. वहीं हाईस्कूल में मैथ के पेपर में फेल होने के डर को बोर्ड ने कम करते हुए इसके दो पेपर कराने का फैसला लिया था. फैसले के बाद स्टूडेंट्स को मैथ के पेपर को चुनने का मौका मिला.
यह है बेसिक और स्टैंडर्ड मैथ
सीबीएसई ने सत्र 2019-20 से मैथ के दो पेपर कराने का फैसला लिया. छात्रों को मौका दिया कि वह मैथ की पढ़ाई अगर सिर्फ हाईस्कूल तक करना चाहते हैं तो वह इसके लिए आसान पेपर दे सकते हैं. बोर्ड ने बेसिक और स्टैंडर्ड मैथ को लागू किया. ऐसे में जो छात्र आसान पेपर देना चाहते हैं, वह बेसिक मैथ को चुन सकेंगे. वहीं मैथ की भविष्य में पढ़ाई करने के उद्देश्य से स्टैंडर्ड मैथ के साथ हाईस्कूल का एग्जाम दे सकेंगे.
आंकड़ों में स्थिति
- 18 लाख से अधिक ने भरा हाईस्कूल एग्जाम का फॉर्म
- 13 लाख से अधिक ने चुना स्टैंडर्ड मैथमेटिक्स
- 5 लाख से अधिक ने चुना बेसिक मैथमेटिक्स
- 3500 स्टूडेंट्स शहर में देंगे बेसिक मैथमेटिक्स का एग्जाम
सिलेबस एक होगा, बस पेपर होगा आसान या कठिन
बोर्ड के सिटी कोऑर्डिनेटर डॉ. जावेद आलम खान ने बताया कि सीबीएसई ने बेसिक और स्टैंडर्ड मैथ का अलग-अलग पाठ्यक्रम नहीं दिया है. स्टूडेंट्स को बेसिक और स्टैंडर्ड मैथ के लिए एक ही पढ़ाई सालभर करनी होगी. सिर्फ परीक्षा के दौरान बेसिक और स्टैंडर्ड का अंतर सामने आएगा. स्टैंडर्ड मैथ के पेपर में प्रश्नों को डिफिकल्टी लेवल अधिक होगा. इस बार देशभर में 5 लाख स्टूडेंट्स ने बेसिक मैथ को चुना है.
3.CBSE 10th Maths Question Paper 2020: सीबीएसई ने जारी किया कक्षा 10वीं मैथ्स बेसिक और स्टैंडर्ड सैंपल पेपर, cbseacademic.nic.in से करें डाउनलोड

CBSE 10th Maths Question Paper 2020, CBSE Maths Ke Sample Paper: सीबीएसई बोर्ड ने 10वीं 2020 मैथ्स विषय के सैंपल पेपर और मार्किंग स्कीम ऑफिशियल वेबसाइट cbseacademic nic in पर जारी कर दिया है. जो छात्र कक्षा 11वीं में मैथ्स विषय नहीं चुनना चाहते हैं, वे सिर्फ मैथ्स बेसिक एग्जाम में शामिल होंगे. वहीं जो छात्र आगे की पढ़ाई मैथ्स विषय के साथ करना चाहते हैं उन्हें मैथ्स स्टैंडर्ड पेपर में शामिल होना होगा.

4.नई दिल्ली. 4 October,2019 CBSE 10th Maths Question Paper 2020: Update

सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBSE) ने कक्षा 10वीं 2020 के मैथ्स विषय के सैंपल पेपर को जारी कर दिया है. जो छात्र अगले साल 2020 में सीबीएसई 10वीं बोर्ड की परीक्षाओं में शामिल होने वाले हैं, वे मैथ्स सब्जेक्ट के सैंपल पेपर को सीबीएसई की ऑफिशियल वेबसाइट cbseacademic.nic.in पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं. सैंपल पेपर के अलावा छात्र 10वीं मैथ्स पेपर की मार्किंग स्कीम को भी चेक कर सकते हैं.
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ऑफिशियल वेबसाइट पर मैथ्स सैंपस पेपर और मार्किंग स्कीम को चेक किया जा सकता है. बोर्ड की ओर से परीक्षाओं के तैयारी कर रहे छात्रों की मदद के लिए सैंपल पेपर को जारी किया जाता है. इससे छात्रों को एग्जाम पेपर के फॉर्मेट को समझने में काफी मदद मिलती है. बता दें कि इस वर्ष से सीबीएसई ने कुछ बदलाव किया है. अब जो छात्र कक्षा 11वीं में मैथ्स विषय नहीं चुनना चाहते हैं, वे सिर्फ मैथ्स बेसिक एग्जाम में शामिल होंगे. वहीं जो छात्र आगे की पढ़ाई मैथ्स विषय के साथ करना चाहते हैं उन्हें मैथ्स स्टैंडर्ड पेपर में शामिल होना होगा. ऐसे में जो छात्र कक्षा 10वीं में बेसिक पेपर को चुनते हैं, और बाद में अगर उनका मन कक्षा 11वीं में मैथ्स लेने का हो जाता है तो उन्हें अतिरिक्त मैथ्स स्टैंडर्ड परीक्षा में शामिल होना होगा, जो कि कंपार्टमेंट एग्जाम के साथ आयोजित किया जाएगा.

5.How to Check CBSE 10th Maths Sample Question Paper 2020: सीबीएसई 10वीं मैथ्स सैंपल पेपर कैसे करें डाउनलोड

सीबीएसई 10वीं मैथ्स सैंपल पेपर और मार्किंग स्कीम डाउनलोड करने के लिए छात्र सबसे पहले ऑफिशियल वेबसाइट cbseacademic.nic.in पर जाएं.
सीबीएसई बोर्ड की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाने के बाद एसपीक्यू (SPQ) लिंक पर क्लिक करें.
इसके बाद कई सारे सीबीएसई सैंपल पेपर की लिस्ट आपकी स्क्रीन पर दिखाई देगी.
छात्र लिस्ट में से सीबीएसई 10वीं मैथ्स के बेसिक और स्टैंडर्ड पेपर को डाउनलोड करें और उसका प्रिंट आउट निकाल लें.
छात्र अब सैंपल पेपर के हिसाब से सीबीएसई बोर्ड एग्जाम के लिए तैयार कर सकते हैं.
CBSE Home Science Question Paper 2020: सीबीएसई बोर्ड 10वीं 2020 होम साइंस सैंपल पेपर और मार्किंग स्कीम जारी, डाउनलोड cbseacademic.nic.in
UP Board Question Paper 2020: यूपी बोर्ड 12वीं 2020 इंटरमीडिएट हिंदी, इंग्लिश और संस्कृत एग्जाम मॉडल पेपर जारी, डाउनलोड upmsp.edu.in

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Why We Rationalize The Denominator?

Why We Rationalize The Denominator?

Why We Rationalize The Denominator

Why We Rationalize The Denominator

1.क्यों हम हर का परिमेयकरण करते हैं  का परिचय ??(Introduction of Why We Rationalize The Denominator?)-

इस आर्टिकल में बताया गया है कि व्यंजक का हर ऐसा अंक हो जिसका प्राकृत संख्या में वर्गमूल नहीं निकाला जा सकता हो तो उसके परिमेयकरण की आवश्यकता क्यों हैं और उसका क्या लाभ है? जबकि अंश में करणी चिन्ह में संख्या हो तो उसके परिमेयकरण की आवश्यकता नहीं होती है अथवा उसका परिमेयकरण नहीं करते हैं यदि करते हैं तो कब करते हैं? वास्तविक संख्याएँ दो प्रकार की होती है - (1.)परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers) (2.)अपरिमेय संख्याएँ (Irrational Numbers)

(1.)परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers) -

ऐसी संख्याएँ जो p/q के रूप में लिखी जा सकती हैं जहाँ p व q पूर्णांक हैं, दोनो का कोई उभयनिष्ठ गुणनखण्ड नहीं है तथा q शून्य नहीं है, परिमेय संख्याएँ कहलाती है।

(2.)अपरिमेय संख्याएँ (Irrational Numbers) -

ऐसी संख्याएँ जो परिमेय नहीं है अपरिमेय संख्याएँ कहलाती है।
√2=1.414213562.......
Pi =3.141592653.........
(3.)यदि दो परिमेय संख्याओं को जोड़ें, घटाएं, गुणा करें तब भी हमें एक अपरिमेय संख्या प्राप्त होती है (अर्थात् जोड़, घटाना, गुणा के सापेक्ष परिमेय संख्याएँ संवृत (closed) होती है। हालांकि अपरिमेय संख्याएँ भी योग और गुणन के क्रमविनिमेय, साहचर्य और बंटन नियमों को संतुष्ट करती है। परन्तु अपरिमेय संख्याओं के योग, अंतर. भागफल और गुणनफल सदा अपरिमेय नहीं होते हैं। इस प्रकार एक परिमेय संख्या में अपरिमेय संख्या जोड़ते हैं और एक परिमेय संख्या को एक अपरिमेय संख्या से गुणा करते हैं तो ये अपरिमेय संख्या होती है।
(4.)एक परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का जोड़ या घटाने पर एक अपरिमेय संख्या प्राप्त होती है।
(5.)एक अपरिमेय संख्या के साथ एक शून्येत्तर (non-zero) परिमेय संख्या का गुणनफल या भागफल से एक अपरिमेय संख्या प्राप्त होती है।
(6.) यदि हम दो अपरिमेय संख्याओं को जोड़ें, घटाएँ, गुणा करें या एक अपरिमेय संख्या में दूसरी अपरिमेय संख्या का भाग दें तो परिणाम में परिमेय या अपरिमेय कुछ भी हो सकता है।

(7.)परिमेयकरण (rationalise) -

जब एक व्यंजक के हर में वर्गमूल वाला एक पद होता है या कोई संख्या करणी चिन्ह के अन्दर हो तब इसे तुल्य व्यंजक में हर को परिमेय संख्या में परिवर्तित करने की क्रियाविधि को हर का परिमेयकरण कहा जाता है।
(8.)हर का परिमेयकरण करने से व्यंजक का सरलीकरण हो जाता है जिससे हम उसका मान आसानी से निकाल सकते हैं। कभी-कभी अंश के परिमेयकरण से भी व्यंजक का सरलीकरण होता है और हम व्यंजक का मान आसानी से ज्ञात कर सकते हैं।
(9)अंश या हर का परिमेयकरण करने से अपरिमेय संख्या परिमेय संख्या में परिवर्तित हो जाती है जिससे व्यंजक का मान आसानी से ज्ञात किया जा सकता है।
Why We Rationalize The Denominator?

Why We Rationalize The Denominator?

(10.)परिमेयकरण से बहुत बड़ी तथा अव्यवस्थित व्यंजक छोटे रूप में तथा व्यवस्थित रूप में हो जाता है जिससे उससे लिखने व पढ़ने में आसानी रहती है।
(11.)परिमेयकरण से व्यंजक संक्षिप्त हो जाता है और कहा भी गया है कि संक्षिप्त में अपनी बात को कहना या व्यक्त करना, वाक्य या भिन्नों की सुन्दरता को बढ़ाता है। व्यंजक को हल करने में रुचि व जिज्ञासा जाग्रत होती है जबकि जटिल व सम्मिश्र भिन्न अरुचिकर, बोझिल होता है।
(12.)यही कारण है कि किसी व्यंजक का परिमेयकरण किया जाता है या परिमेयकरण करने की आवश्यकता होती है। अक्सर कभी-कभी हम हमारे उत्तर को बिना परिमेयकरण के छोड़ देते हैं। विद्यार्थी अक्सर यही सवाल पूछते हैं कि बिना परिमेयकरण के उत्तर दे दिया जाए तो ठीक होगा या नहीं। उत्तर में निवेदन है कि परिमेयकरण से हमारे ज्ञान की गहराई तथा व्यापकता का पता चलता है इसलिए जहाँ तक हो सके परिमेयकरण करना चाहिए।
(13.)कई बार भिन्नों का मान अंनत या अपरिभाषित प्राप्त होता है परन्तु परिमेयकरण से  अंनत या अपरिभाषित की समस्या समाप्त हो जाती है। 
(14.)यदि यह आर्टिकल आपको पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें ।यदि आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव हो तो कमेंट करके बताएं ।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

2.क्यों हम हर का परिमेयकरण करते हैं ??(Why We Rationalize The Denominator?)-

आपने इसे बार-बार सुना है, "भाजक को युक्तिसंगत बनाएँ। हर को तर्कसंगत बनाने के लिए सुनिश्चित करें! ”लेकिन क्यों ??? किसने तय किया कि मूल को भाजक से और अंश में से निकाला जाना है?आरटीडी अलजेब्रा से कैलकुलस तक मानक क्यों बने, इसके तीन कारण हैं।

3.कॉमन्सेंस कारण(Commonsense Reason)-

आरटीडी की आवश्यकता का मानक कारण पूरी तरह से व्यावहारिक है। जैसा कि आपने सबसे अधिक खोजा है, गणित में आप अक्सर कई अलग-अलग तरीकों और रूपों में समाधान लिख सकते हैं। ये सभी विविधताएं शांत हैं, लेकिन व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, वे आपके कागजात को ग्रेडिंग करने वालों के लिए जीवन को अधिक कठिन बनाते हैं।
उत्तरों के लिए एक मानक रूप को परिभाषित करना और आवश्यक करना आपके शिक्षक को यह सत्यापित करने के लिए समय लेने वाला सिरदर्द बचाता है कि आपका समाधान उत्तर कुंजी के बराबर है, या इससे भी बदतर, गलती से आपके उत्तर को गलत चिह्नित कर रहा है!
जैसे एक अंश को उसके सरलतम रूप में कम करने के लिए, आरटीडी, हर में वर्गमूल  के साथ अंशों को सरल बनाने के लिए प्रोटोकॉल है।

4.उचित कारण(Reasonable Reason)-

एक सामान्य रूप से परिभाषित नामकरण समझ में आता है और सभी, लेकिन फिर भी हमें इस सवाल के साथ छोड़ देता है: हमने क्यों तय किया है कि अंश में वर्गमूल  होना ठीक है, लेकिन हर  में वर्गमूल नहीं है ??
(2√3) / 3  को 2 / √3 का सरल रूप क्यों कहा जाता है?
कारण यह है कि अगर हमें रेडिकल के साथ अंश जोड़ना या घटाना है, तो यह गणना करना आसान है कि तर्कहीन संख्याओं के बजाय हर में पूर्ण संख्याएं हैं। उदाहरण के लिए, गैर-तर्कसंगत संस्करण की तुलना में (2√3 / 3) + ((3 -√ )2) / 7) जोड़ना आसान है: (2 / √3) + (1 / (3 + √2)।
अंशों के पहले सेट को एक साथ जोड़ने के लिए हम सभी को 21 का एक सामान्य भाजक बनाना होगा और फिर अंशों से शब्दों को जोड़ना होगा। यह लगभग स्पष्ट नहीं है कि आम भाजक भिन्न के दूसरे सेट का क्या है।
दूसरी समस्या को हल करने के लिए, आप सबसे पहले हर को युक्तिसंगत बनाने की कोशिश करेंगे और फिर एक साथ फ्रैक्चर को जोड़ने से पहले 21 के सामान्य हर को बनाएं।
इसलिए RTD समाधानों की तुलना और ग्रेडिंग के लिए एक सामान्य रूप प्रदान करता है और साथ ही जरूरत पड़ने पर हाथ से आगे की गणना करना हमारे लिए आसान बनाता है।

5.ऐतिहासिक कारण(Historical Reason)-

इस बिंदु पर आप सोच रहे होंगे, "क्यों न केवल वर्गमूल  को वर्गमूल  में छोड़ दिया जाए और उन्हें तब और युक्तिसंगत बनाया जाए जब मुझे भिन्नों को जोड़ने या घटाने की आवश्यकता होती है?"
और हाँ, यह एक वैध बिंदु है। यही कारण है कि शायद हम आरटीडी के लिए अक्सर ऐसा क्यों करते हैं, इसका सबसे अच्छा जवाब ऐतिहासिक है। उत्तर जो हमें कंप्यूटर और कैलकुलेटर से पहले जीवन में वापस ले जाता है, सर्वव्यापी थे। वापस जब लोगों को नियमित रूप से विभाजन करना पड़ा ... हाथ से! * दम तोड़ देना! *
चलो ऊपर से हमारे दो समकक्ष अंशों पर एक नज़र डालें:
यदि हम वास्तव में इन अंशों को विभाजित करना चाहते हैं तो क्या होगा?
आइए हाथ से 2/√3  विभाजित करके शुरुआत करें।
कैलकुलेटर से पहले, आप हाथ से√3   के एक अनुमान को खोजने के लिए एक एल्गोरिथ्म का उपयोग करके शुरू करेंगे, जो कि 1.73205081 है ... √3 को अनुमानित करने के बाद, आप फिर अपना लंबा विभाजन सेट करेंगे।
यदि यह आपको जटिल लगता है, तो इसका कारण यह है। एक तर्कहीन संख्या होने के कारण विभाजक व्यावहारिक रूप से अनसुना है।
इस विभाजन को करने के लिए, आपको यह तय करना होगा कि आप कितने दशमलव स्थानों को अपने आस-पास रखना चाहते हैं, उस दशमलव स्थान पर चक्कर लगाना चाहते हैं, फिर आपको अपने भाजक को बनाने के लिए लाभांश और भाजक दोनों को दस की बड़ी शक्ति से गुणा करना होगा। एक पूरी संख्या। वह सब करने के बाद आप उन दो अनिर्दिष्ट संख्याओं को विभाजित करने के गन्दे कार्य के साथ आगे बढ़ सकते हैं।
अब इस बात पर एक नज़र डालते हैं कि हम समतुल्य, परिमेय अंश को विभाजित करने के बारे में कैसे जानते हैं: (2√3) / 3।
कैलकुलेटर के बिना, आप उपरोक्त √3 के लिए सन्निकटन की गणना करके शुरू करते हैं, जो कि 1.73205081 है… अगला, आपने 1.73205081… 2 से गुणा करके 3.46410162 प्राप्त किया… फिर बस अपना विभाजन सेट करें।
यह हाथ से विभाजित करने के लिए बहुत आसान है! हमें कोई भी पूर्व काम नहीं करना है, हम सीधे विभाजन समस्या में कूद सकते हैं।

6.और सबसे महत्वपूर्ण बात, आरटीडी के लिए कैसे :(And most importantly, HOW to RTD )-

अब जब आप समझ गए हैं कि RTD के लिए यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है, तो आप इस पर अभ्यास करना चाहते हैं!
यह पहला ट्यूटोरियल बताता है कि मानक वर्ग मूल के साथ भाजक को कैसे युक्तिसंगत बनाया जाए, तब प्रदर्शित करने के लिए चाल को दर्शाता है कि भाजक के परिमेय परिदृश्य को कैसे संभालें जब आपके पास एक पूर्ण संख्या का योग या अंतर हो और भाजक में एक वर्गमूल हो। ऐसा करने के लिए आपको संयुग्म से परिचित कराया जाएगा।
इस दूसरे ट्यूटोरियल में, आप सीखेंगे कि घनमूल और चतुर्थमुल  के साथ अधिक कठिन हर को कैसे युक्तिसंगत बनाया जाए। हम इस बारे में भी बात करेंगे कि प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए आप वैकल्पिक भिन्नात्मक घातांक संकेतन का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
अधिक गणित सहायता की आवश्यकता है?
बीजगणित, त्रिकोणमिति, Precalculus, कलन , और उन्नत गणित से लोकप्रिय विषयों को कवर करने वाले अधिक हाथों के गणित के ट्यूटोरियल के लिए ब्लॉग के अन्य आर्टिकल पर गणित भाड़े की जांच करें।
आप कई सारे इंटरस पा सकते हैं...

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How Brain of Euclid Works

How Brain of Euclid Works

1.कैसे यूक्लिड का दिमाग काम करता है की भूमिका (Introduction of How Brain of Euclid Works)-

इस आर्टिकल में बताया गया है कि यूक्लिड ने बुद्धि का प्रयोग करके गणित के क्षेत्र में महान योगदान दिया है। गणित में उनके योगदान आज भी प्रासंगिक है और उनकी कृति एलिमेण्टस है जो वर्तमान में भी प्रसिद्ध ग्रन्थ है। प्राॅक्लस (Proclus) के कथनानुसार यूक्लिड का कार्यकाल लगभग 300 ई. पूर्व माना जाता है। उनके वास्तविक के विषय में बहुत कम जानकारी है। वे टाॅलमी प्रथम (Ptilemy) के सहकालिक माने जाते हैं। आर्कमिडीज ने यूक्लिड के सम्बन्ध में लिखा है। वे स्वयं टाॅलमी प्रथम के बाद हुए हैं। प्राॅक्लस (Proclus) जो पाँचवीं सदी में लगभग यूक्लिड से 800 वर्षों बाद हुए। यूक्लिड का समय लगभग 300 ई. पू. प्लेटो (Plato) के विद्यार्थियों और आर्कमिडीज की सशक्त दूरी के बीच मानते हैं।
How Brain of Euclid Works,Euclid

How Brain of Euclid Works

प्राॅक्लस (Proclus) के पास कोई प्रमाण नहीं थे। प्राॅक्लस के यूक्लिड की प्रथम पुस्तक (Euclid's Book I) के विवरण (commentary) से उनके कार्यों पर प्रकाश पड़ता है। यह अधिकार के साथ कहा जा सकता है कि यूक्लिड सिकन्दरिया (Alexandria) के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय (University) के प्रथम प्रोफेसर (Professor) थे। वे ही एलेक्जण्डिया स्कूल आॅफ मैथेमेटिक्स (Alexandria School of Mathematics) के संस्थापक थे। इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि उन्होंने गणित में प्रशिक्षण ऐथन्स (Athens) के प्लाटोनिक स्कूल (Platonic School) में प्राप्त की उन्होंने कम से कम 10 शोध पत्र (Treatise) लिखे। उन पर कुछ दूसरे बहुत कम ऐतिहासिक टिप्पणियाँ (Historical Comments) भी मिलती है। इनमें पैपस (Pappus) की टिप्पणी जो कि चौथी ई. सन् की शताब्दी में की गई थी, प्रमुख है। इसके अनुसार अपोलोनियस (Appollonius) तीसरी शताब्दी ई. पू. में यूक्लिड (Euclid) के विद्यार्थियों के साथ अलक्जण्ड्रिया (Alexandria) में अध्ययन करते थे यद्यपि यूक्लिड के जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम ऐतिहासिक विवरण उपलब्ध हैं, किन्तु अन्य प्राचीन कालीन गणितज्ञों की अपेक्षा उनके अधिक लेख (writings) उपलब्ध है ।ऐलिमेण्ट्स (Elements) के अतिरिक्त उनमें डेटा (Data), संख्याओं के विभाजन (On Divisions of Figures), दि फैनाॅमिना(The Phaenomena) और आॅप्टिका (Optica) गणित में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनकी रचना ऐलिमेण्ट्स (Elements) गणित की एक महान धरोहर विश्व को उपलब्ध है। टाॅलमी (Tolamy) जो कि स्वयं ग्रीक के शासक थे, ने एक बार यूक्लिड से पूछा, क्या ज्यामिति में ऐलिमेण्ट्स के अलावा अन्य सरल रास्ता नहीं है? यूक्लिड ने सहज रूप से कहा - "ज्यामिति में तत्वों के लिए कोई राजमार्ग नहीं है।"
इस आर्टिकल में इन छ:समस्याओं का वर्णन किया गया है। यदि यह आर्टिकल आपको पसन्द आए तो अपने मित्रो के साथ शेयर व लाईक करें ।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव हो तो कमेंट करके बताएं 

2.यूक्लिड का इतिहास और ग्रन्थ (History and Text of Euclid)-

यूक्लिड के जन्म और मृत्यु का ठीक-ठीक पता नहीं है। इतना अवश्य मालूम है कि उसका समय 300 ई. पू. के लगभग था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा एथेन्स में हुई। टोलेमी प्रथम (ptolemy I) के राज्यकाल (306 ई. पू. से 283 ई. पू. तक) में इन्होंने सिकन्दरिया (Alexanderia) में एक स्कूल खोला। ऐसा कहा जाता है कि एक बार इसके एक शिष्य ने ज्यामिति का प्रथम साध्य पढ़ने के बाद कहा कि इसके सीखने से क्या मिलेगा। यूक्लिड ने अपने नौकर से कहा कि इसे 6 पैनी दे दो क्योंकि यह प्रत्येक बात में लाभ ही चाहता है।
यूक्लिड का सबसे विख्यात ग्रन्थ 'एलिमेण्ट्स' जिसके 1882 ई. से अब तक एक हजार से अधिक संस्करण हो चुके हैं। इस ग्रन्थ की विषय-सूची निम्नलिखित है -
1.सर्वांगसमता (congruency)और समानता (parallelism)
2.बीजगणितीय सर्वसमिकाएँ और क्षेत्रफल (Algebraic Identity and Area)
3.वृत्त (Circle)
4.अन्तर्गत और परिगत बहुभुज (Inscribed and Circumscribed Polygons)
5.समानुपात (Proportion)
6.बहुभुजों की समरूपता ( Similarity of Polygons)
7.-9अंकगणित (Arithmetic)
10.असुमेय राशियाँ (Irrational Numbers)
11-13.ठोस ज्यामिति (Solid Geometry)
इस ग्रन्थ के अतिरिक्त यूक्लिड के अन्य ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
(1.)डेटा(Data) - इसमें 94 साध्य दिए गए हैं। इन साध्यों में किसी आकृति के कुछ अंग (Elements) ज्ञात होने पर शेष अंग ज्ञात करने की विधि का उल्लेख है।
(2.)आकृतियों के विभाजन पर एक पुस्तक - इस पुस्तक का विषय है कि यदि कोई आकृति त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त आदि दी हुई हो तो ऐसे दो भागों में किस प्रकार विभाजित किया जाए कि उन दोनों भागों के क्षेत्रफल में एक निर्दिष्ट (Given) अनुपात हो।
(3.)स्यूडेरिया (Pseudaria) - इस पुस्तक में यह विषय वर्णित किया गया है कि ज्यामिति के अध्ययन में विद्यार्थी आमतौर पर कौन-कौनसी गलतियाँ करते हैं।
(4.)शांकव (Conic) -यह पुस्तक चार जिल्दों में है।
(5.)पोरिज्म्स(Porisms)-इस ग्रन्थ में उच्च ज्यामिति विषय वर्णित किया गया है।
(6.)तल-बिन्दुपथ (Surface Loci)-यह ग्रन्थ दो भागों में वर्णित है।
यूक्लिड की अन्य कृतियाँ ज्योतिष, संगीत, चाक्षुषी(Optics) आदि पर हैं।
मुझे याद है कि मेरी गणितीय शिक्षा संख्याओं के साथ शुरू हुई है। पहले मेरे पिता, फिर बाद में मेरे प्राथमिक शिक्षक ने मुझे सिखाया कि मेरी प्राथमिक गणित शिक्षा को कैसे गिना जाए। हालांकि, 2400 साल पहले, सब कुछ पूरी तरह से अलग था, और बच्चों को पहले ज्यामिति सिखाया गया था।

3..कैसे यूक्लिड का दिमाग काम करता है (How Brain of Euclid Works-)

How Brain of Euclid Works

How Brain of Euclid Works

यीशु से पहले, ज्यामिति संख्या से अधिक महत्वपूर्ण थी। उदाहरण के लिए, जब पश्चिमी दुनिया में उच्च शिक्षा के पहले संस्थान के संस्थापक, प्लेटो एथेंस वापस आए, तो उन्होंने "अकादमी" को खोजने का फैसला किया जहां यह दुनिया का बौद्धिक केंद्र होगा (विकिपीडिया, "प्लेटो") । इस उद्देश्य के लिए, एक अकाट्य आवेदन शुल्क लेने के बजाय, उन्होंने अपनी अकादमी में प्रवेश करने के लिए ", ΜΗΔΕΙΣ ΕΙΣΙΤΩ" (ग्रीक से अनुवादित "ज्यामिति से अनभिज्ञ व्यक्ति को यहां प्रवेश न करें") उत्कीर्ण किया, जो विरोध कर रहे थे। प्लेटो के आदर्श दुनिया के विचार का सौंदर्य और बुद्धिमत्ता के साथ एक मजबूत संबंध था, जो गणित में अच्छी तरह से सिखाया जाता था। बाद में, एक युवक, अलेक्जेंड्रिया के यूक्लिड ने उस दरवाजे में प्रवेश किया और एक गणितज्ञ और दार्शनिक बन गया, और एक ज्यामिति पुस्तक, द एलीमेंट्स लिखी, जो अब तक की सबसे प्रसिद्ध पाठ्यपुस्तक रही और सबसे व्यापक रूप से मुद्रित पाठ के बाद पवित्र बाइबल और पवित्र कुरान (सूचना का इतिहास, "यूक्लिड के तत्व")।
तत्व इसलिए प्रभावशाली थे क्योंकि इसमें यूक्लिड के समय तक गणित में महत्वपूर्ण कार्यों का एक व्यापक संग्रह था (कॉलेज ऑफ एजुकेशन, "यूक्लॉक्स के तत्वों पर प्रभाव")। यूक्लिड के अधिकांश विचार रहस्योद्घाटन के रूप में आए और यूक्लिडियन ज्यामिति की नींव रखी। ये विचार आज से दो हजार साल पहले तक ज्यामिति के शिक्षण और समझ का मूल बन गए थे। लंबे समय तक, यदि आप द एलीमेंट्स नहीं पढ़े हैं, तो आपको शिक्षित नहीं देखा गया था। आज भी, जब आप द एलिमेंट्स पढ़ते हैं, तो इसमें आधुनिक सिद्धांत शामिल होते हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं, जो इसे असाधारण बनाता है।
ओलिवर बर्न: यूक्लिड के तत्वों की पहली छह पुस्तकें
How Brain of Euclid Works,The First Six Books of the Elements of Euclid

The First Six Books of the Elements of Euclid

यूक्लिड ईसा से लगभग 300 वर्ष पहले जीवित था। वह गणित में रुचि रखने वालों के लिए एक आदर्श उदाहरण था। उनकी मृत्यु के बाद, उनके विचारों और प्रकाशित कामों का उत्पादन उन्होंने प्रतिभाशाली दिमागों के लिए एक अभिसरण बिंदु बन गया। सीखे हुए व्यक्ति अपनी गणित की शक्ति की खोज के लिए अपनी पुस्तकों को पढ़ने जा रहे थे, भले ही वे गणितज्ञ न हों।
उदाहरण के लिए, 2,000 से अधिक वर्षों के बाद यह पहली बार लिखा गया था, अब्राहम लिंकन यूक्लिड के एलीमेंट्री लैम्पलाइट को पढ़ रहे थे ताकि सभी को डॉरमेटरी (विकिपीडिया, "यूक्लिड्स एलिमेंट्स") में बिस्तर पर जाने के बाद अपने तर्क को बढ़ाने के लिए लैम्पलाइट को पढ़ सकें। जब वह राष्ट्रपति बने, तब भी वह अपने तर्क से हटने और अमेरिका को शासित करने के दौरान सही राजनीतिक निर्णय देने के लिए उसी पुस्तक को पढ़ रहे थे।
इसी तरह, उपन्यासकार और दार्शनिक फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की ने यूक्लिड का उल्लेख अपनी पुस्तक द ब्रदर्स करमज़ोव में [नीचे  लिखा गया ]:
What are we aiming at how?I am trying to explain as quickly as possible my essential nature,that is what manner of man I am,what I believe in,and for what I hope ,that's it ,isn't?And therefore I tell you that I accept God simply.But you must note this:if God exists and if He really did create the world,then,as we all know.He created it according to the geometry of Euclid and the human mind with the conception of only three dimensions in space.Yet there have been and still are geometricians and philosophers,and even some of the most distinguished,who doubt whether the whole universe,or to speak more widely,the whole of being,was only created in Euclid's geometry;they even dare to dream that two parallel lines,which according to Euclid can never meet on earth,may meet somewhere in infinity.I have come to the conclusion that,since I can't understand even that,I can't expect to understand about God.I acknowledge humbly that I have no faculty for setting such question,I have a Euclidian earthly mind,and how could I solve problem that are not of this world?And I advise you never to think about it either ,my dear Alyosha,especially about God,whether He exists or not.All such question are utterly inappropriate for a mind created.with an idea of only three dimensions.And so I accept God and am glad to,and what's
और उसके एक सदी बाद, अल्बर्ट आइंस्टीन के सबसे महान दिमागों में से एक, यूक्लिड को और भी मजबूत समर्थन दिया और उनकी पुस्तक ऑन द थियोरेट ऑफ थ्योरिटिकल फिजिक्स के अपने निबंध में [नीचे प्रकाश डाला गया]]
We reverence ancient Greece as the cradle of western science .Here for the first time the world witnessed the miracle of a logical system which proceeded from step to step with such precision that every single one of its propositions was absolutely indubilable- I refer to Euclid's geometry.This admirable triumph of reasoning gave the human intellect the necessary confidence in itself for its subsequent achievements.If Euclid failed to kindle your youthful enthusiasm,then you were not born to be a scientific thinker.
अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा विज्ञान में योगदान, स्नातकोत्तर। 271 स्रोत: पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय
हमारे समय के कुलीन दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल (1872-1970) के शब्दों में, हम यूक्लिड का एक स्पष्ट और संक्षिप्त मूल्यांकन पाते हैं: "यूक्लिड के तत्व निश्चित रूप से अब तक लिखी गई सबसे बड़ी पुस्तकों में से एक है और सबसे आदर्श स्मारकों में से एक है ग्रीक बुद्धि। "उन्होंने अपनी आत्मकथा में यह भी कहा है:" ग्यारह साल की उम्र में, मैंने अपने ट्यूटर के रूप में अपने भाई के साथ यूक्लिड की शुरुआत की। यह मेरे जीवन की महान घटनाओं में से एक थी, जैसा कि पहला प्यार था। मैंने कल्पना नहीं की थी कि दुनिया में इतना स्वादिष्ट कुछ भी है। ”
Euclid Elements is certainly one of the greatest books ever written,and one of the most perfect monuments of the Greek intellect.It has,of course,the typical Greek limitations:the method is purely deductive,and there is no way,within it ,of testing the initial assumptions.These assumptions were supposed to be unquestionable,but in the nineteeth century non-Euclidean geometry showed that they might be in part mistaken,and that only observation could decide whether they were so.
यूक्लिड अन्य लोगों से अलग था। हम उनके व्यक्तिगत जीवन, परिवार और गैर-गणित की जिज्ञासा के बारे में लगभग कुछ भी नहीं जानते हैं; हालाँकि, एक बात जो हम जानते हैं कि वह अलेक्जेंड्रिया शहर में अपने समय के सबसे सम्मानित शिक्षकों में से एक थी। जबकि अन्य भोजन और आश्रय का खर्च उठा रहे थे, यूक्लिड अमूर्त विचारों से निपट रहा था। वह गणितीय अवधारणाओं के अनुसार शहरों के निर्माण और निर्माण में कोई दिलचस्पी नहीं रखते थे। उन्होंने महसूस किया कि समाज बदल रहा है और लोगों को शहरों पर शासन करने के लिए तार्किक तरीके से सोचने की जरूरत है। इसीलिए इस युग में गणित के सैद्धांतिक विचारों में वृद्धि देखी गई।
वह एक भटक आदमी था जिसने खुद को तुच्छ समस्याओं से मुक्त कर दिया, जिन्होंने उन सच्चाइयों की खोज की, जिनकी हम आज उपग्रह तस्वीरों के साथ पुष्टि कर सकते हैं, क्योंकि वह समुद्र में बैठे थे, जिस दुनिया में हम रहते हैं, उसके बारे में सवालों के जवाब देते हुए। सीधा और एक कम्पास। ये एकमात्र उपकरण थे जो यूक्लिड पूरे तत्वों के लिए उपयोग किए गए थे। सबसे पहले, उसने दो बिंदुओं और एक रेखा खींचने के लिए अपने उपकरणों का उपयोग किया, जिससे उसने हमसे सीखने के लिए बहुत अधिक दिलचस्प चीजें प्राप्त कीं। यदि हम गणित को एक बौद्धिक यात्रा के रूप में परिभाषित करते हैं, तो यूक्लिड के विचार निश्चित रूप से उस यात्रा के पहले चरण हैं। यूक्लिड की खिड़की से दृश्य एक क्रांति थी जिसे अंतरिक्ष में बढ़ाया जाएगा।
वास्तव में, यूक्लिड की दृष्टि में, गणित इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह विशुद्ध रूप से सत्य-उन्मुख है, और इसमें कला की सुंदरता और अमूर्त विचार का मूल्य है। उनका गणितीय दृष्टिकोण अभी भी तर्क का एक आदर्श मॉडल है। उन्होंने कुछ ऐसा किया जो पहले नहीं किया गया था। हम कह सकते हैं कि उनकी रचनाएँ गणित की एक विश्लेषणात्मक कटौती विषय के रूप में विचार की शुरुआत थीं। उसने हमें एक मूल्यवान सबक सिखाया; जब हम सहजता से महसूस करते हैं कि कुछ सच है, तो हमें यह साबित करने की जरूरत है कि यह हमेशा सभी के लिए सच है। उसने हमें प्रमाण की शक्ति और एक तार्किक मार्ग दिखाया जो हमें सार्वभौमिक सत्य खोजने में मदद करता है। उन्होंने गणित को एक ऐसे विषय में बदल दिया जो सौ प्रतिशत निश्चितता के साथ चीजों को साबित करता है और इसे विभिन्न स्थितियों में लागू किया जा सकता है।
जब आप यूक्लिड के तत्वों को पढ़ते हैं, तो आप देखेंगे कि यूक्लिड का गणितीय दृष्टिकोण अद्वितीय और सरल है। वह बुनियादी धारणाओं से शुरू होता है जैसे कि अगर यह सच है, तो यह सच होना चाहिए या यदि यह गलत है, तो इसके विपरीत सच होना चाहिए। फिर वह या तो अपनी मान्यताओं को साबित करता है या उसे खारिज करता है, और एक प्रमेय के रूप में परिणाम लिखकर निष्कर्ष निकालता है। यहां जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि यूक्लिड ने सार्वभौमिकता के लिए जाना चुना। उन्हें विशिष्ट मुद्दों के लिए अस्थायी समाधान नहीं मिला, उन्होंने एक उल्लेखनीय बदलाव किया और समाधान को सार्वभौमिक रूप से लागू किया।
आइए प्राइम नंबर के बारे में यूक्लिड के प्रमाण पर एक नज़र डालें। विशेष रूप से प्राइम नंबरों के बारे में इस तथ्य के अलावा कुछ भी नहीं है कि उनमें से कई असीम हैं। हम 100% निश्चित नहीं हैं, लेकिन यह मानने का कारण है कि यूक्लिड यह साबित करने वाला पहला मानव था कि असीम रूप से कई अपराध हैं। उसका प्रमाण भी था, शायद, गणित में पहला प्रमाण। हालांकि, यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि यूक्लिड ने कभी स्पष्ट रूप से नहीं लिखा था "असीम रूप से कई अपराध हैं"; इसके बजाय, उन्होंने लिखा: "अभाज्य संख्याएँ अभाज्य संख्याओं की किसी भी निर्धारित संख्या से अधिक हैं" (क्लार्क यूनिवर्सिटी गणित, "प्रस्ताव 20") इस अजीब शब्द का कारण इस तथ्य के कारण था कि अनंत का विचार आज की तुलना में अलग था और एक विकासशील अवधारणा थी। 
मुझे यकीन है कि आप सभी प्रमुख संख्या में आएंगे। यूक्लिड के अद्वितीय प्रमाण देने से पहले, हमें प्राइम नंबरों के बारे में थोड़ी बात करनी चाहिए क्योंकि परिभाषाएँ गणित को समझने के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। तो, अभाज्य संख्या क्या है?
परिभाषा: एक अभाज्य संख्या एक पूरी संख्या है जो केवल १ और स्वयं से विभाज्य है।
नंबर 1 इस नियम का एक अपवाद है। यद्यपि 1 सभी स्थितियों को प्रधानता से संतुष्ट करता है, हम यह नहीं मानते हैं कि यह अच्छे कारण के लिए एक प्रमुख संख्या है। ऐसा इसलिए है क्योंकि गणितज्ञों को व्यावहारिक परिभाषाएं बनाने की जरूरत है। यदि 1 को अभाज्य संख्या माना जाता है, तो जब आप किसी संख्या के लिए अभाज्य गुणनखंडन करते हैं, तो आप एक समस्या का सामना करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप 15 के लिए मुख्य गुणनखण्ड हैं, तो आपको लिखना होगा: 18 = 2x3x3x1x1x1x1x1x1x1x1x1x1x1x1x1x1x1 ...। यह कहने के लिए एक अच्छा पर्याप्त कारण है कि 1 अभाज्य नहीं है।
जब यूक्लिड ने इन पेचीदा संख्याओं की खोज की, तो उन्होंने उन पर शोध किया और कुछ रहस्यों को प्रकट करने का निर्णय लिया। शुरुआत करने के लिए, उन्होंने एक चर्मपत्र कागज पर पहले कुछ प्रमुख संख्याएँ लिखीं। उदाहरण के लिए, मान लें कि उसने 100 तक लिखा है। तब उसने पैटर्न की तलाश शुरू की क्योंकि सभी गणितज्ञ पैटर्न में रुचि रखते हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने देखा कि 2 केवल एकमात्र अभाज्य संख्या है क्योंकि 2 से बड़ी अन्य सभी संख्याएँ 2 से विभाज्य हैं। इसी तरह, 3 एक अभाज्य संख्या थी, लेकिन 3 का गुणक अभाज्य नहीं हो सकता था क्योंकि वह उन्हें 3 से विभाजित कर सकता था ।
फिर उसने खुद से पूछा: "अगर मैं लिखना जारी रखूंगा, तो क्या मैं कभी रुकूंगा?" वह असीम रूप से कई अभाज्य संख्याओं की उम्मीद कर रहा था क्योंकि अन्यथा, जीवन उसके लिए या उसके बाद किसी अन्य गणितज्ञ के लिए थकाऊ होगा। यह एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण सवाल था क्योंकि उसे यह जानने के लिए कि क्या वह प्रधान था या नहीं, प्रत्येक संख्या को श्रमसाध्य तरीके से जांचना होगा। उसके लिए गणना करने के लिए कोई कंप्यूटर नहीं थे। हां, यह गणना करना बहुत आसान है कि 13 प्रमुख है या नहीं, लेकिन एक निश्चित बिंदु के बाद, प्रत्येक अंक में दिन या सप्ताह लगेंगे ... भले ही हमारे पास दुनिया के सबसे शक्तिशाली कंप्यूटर को यूक्लिड की संस्था को दान करने का मौका था, यह अभी भी है उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। कंप्यूटर एक बहुत बड़ी प्राइम संख्या पा सकता है, लेकिन हम अभी भी यह नहीं जान पाएंगे कि वह सबसे बड़ी प्राइम संख्या है या नहीं। इसलिए, हमारे लिए बड़े अपराधों को खोजने के लिए कंप्यूटर से पूछना सबसे बड़ी अभाज्य संख्या के प्रश्न को हल करने वाला नहीं है।
यूक्लिड ने अपने समय के गणित का उपयोग करके कई सत्य पाए थे। चूंकि लोगों पर विश्वास करने के लिए कुछ विश्वास करना पर्याप्त नहीं था, इसलिए उन्हें एक बार सही निश्चितता की तलाश करनी थी। तभी वह इसे करने के लिए गणितीय तरीके से संपर्क कर सकता था। उसे बस एक चतुर विचार की आवश्यकता थी और एक सुरुचिपूर्ण प्रमाण के साथ समाप्त होना चाहिए। इसलिए उन्होंने सबसे पहले एक प्रमेय को परिभाषित किया।
प्रमेय: अभाज्य संख्याएँ अभाज्य संख्याओं की किसी निर्दिष्ट संख्या से अधिक होती हैं।
यूक्लिड के लिए सबूत का बहुत महत्व था क्योंकि उनके प्रमेय को ध्वनि की आवश्यकता थी। उनकी योजना एक विचार प्रयोग करने की थी, जो कि विरोधाभास द्वारा प्रमाण नामक एक गणितीय तकनीक है। सबसे पहले, उसने कल्पना की कि वह एक समानांतर ब्रह्मांड में रहता है, जहां कई प्रमुख संख्याएँ हैं। इस प्रकार, वह उन्हें एक सूची में लिख सकता था। यह एक बहुत लंबी सूची हो सकती है, लेकिन प्रमुख संख्या उसके ब्रह्मांड में परिमित हैं। उन्हें वास्तव में सबसे बड़ा प्राइम नहीं पता था, इसलिए उन्होंने इसे "पी" कहा। उन्हें एक बहुत बड़ा कागज मिला और उन्होंने दुनिया के सभी अपराधों को लिखा। उनकी सूची 2, 3, 5, 7 से शुरू होकर सभी तरह से "पी" तक थी जो कि सैद्धांतिक रूप से सबसे बड़ी अभाज्य संख्या है। फिर, यूक्लिड एक शानदार विचार के साथ आया: "मैं उन सभी संख्याओं को एक साथ गुणा कर रहा हूं और 1 जोड़ रहा हूं"।
वह नहीं जानता था कि वह संख्या क्या थी, लेकिन यह उसकी नई दुनिया में सभी अपराधों का एक उत्पाद था और साथ ही 1. वह पहले से ही जानता था कि उस नंबर का एक प्रमुख गुणनखण्ड होना चाहिए क्योंकि प्रत्येक संख्या 1 से बड़ा होना एक प्रमुख गुणनखण्ड है । [अंकगणित के मौलिक सिद्धांत] संभावना है कि यह संख्या स्वयं ही प्रमुख थी।
अंकगणित का मौलिक सिद्धांत: 1 से अधिक प्रत्येक पूर्णांक को अनिवार्य रूप से एक अपराध के उत्पाद के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
दूसरे शब्दों में, वे बिल्डिंग ब्लॉक्स हैं जिनसे सभी नंबर बनाए जाते हैं। शिक्षक कहना पसंद करते हैं, "प्राइम्स गणित के परमाणु हैं।"
इसलिए, यूक्लिड को जांचने की आवश्यकता है। क्या वह मुख्य गुणनखण्ड 2 हो सकता है? इसका उत्तर नहीं था क्योंकि वह संख्या किसी और संख्या से 2 गुना अधिक थी। 1. इसलिए उसे शेष छोड़ना पड़ा 1. क्या वह प्रमुख गु्णनखण्ड 3 हो सकता है? उत्तर फिर से नहीं था क्योंकि वह संख्या कुछ अन्य संख्याओं से 1 गुना 3 गुना अधिक है और यह शेष 1 छोड़ता है। क्या वह मुख्य कारक गुणनखण्ड हो सकता है? नहीं, क्योंकि वह संख्या कुछ अन्य संख्याओं से 5 गुना अधिक है और वह 1 शेष है। प्रत्येक अभाज्य के लिए, वही बात होने वाली थी।
जीनियस के यूक्लिड के कृत्य ने उनकी सूची में किसी भी अपराध से हमेशा के लिए अपना नया नंबर बदल दिया। यूक्लिड की संख्या हमेशा 1 शेष रह जाती है जब वह अपने द्वारा पाए गए किसी भी प्रमुख संख्या से विभाजित होती है। हालांकि, उस संख्या का एक मुख्य कारक होना चाहिए, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है। इस प्रकार, उनका तार्किक तर्क एक बेतुकेपन तक पहुंच गया कि ऐसा नहीं हो सकता। तो उसके समानांतर ब्रह्मांड में एक विरोधाभास था जो मौजूद नहीं हो सकता है - असीम रूप से कई प्राइम होने चाहिए।
यूक्लिड ने बहुत पहले जो किया था वह इतना सुंदर था क्योंकि हमारा परिमित दिमाग इस दृष्टिकोण के साथ अनंत तक पहुंच सकता था। उन्होंने हमारे ज्ञान के क्षितिज का विस्तार किया। जैसा कि मैंने पहले कहा था, यूक्लिड की खिड़की से दृश्य एक क्रांति थी जिसे अंतरिक्ष में बढ़ाया जाएगा। हमारे लिए, गणितीय सीमा के विस्तार की संभावनाएं रोमांचकारी होनी चाहिए।

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Six Mathematical Problems That Are Still Not Solved

Six Mathematical Problems That Are Still Not Solved

1.छः गणितीय समस्याएं जो अभी भी हल नहीं हुई हैं की भूमिका (Introduction of Six Mathematical Problems That Are Still Not Solved)-

इस आर्टिकल में बताया गया है कि गणित की ऐसी छ:समस्याएं हैं जिनका हल नहीं खोजा गया है। गणित की ये छ: ही नहीं बल्कि ऐसी बहुत सी समस्याएं हो सकती है जो अनसुलझी है। ये अनसुलझी समस्याएं अज्ञात हो सकती है अर्थात् गणितज्ञों के सामने प्रकट नहीं हुई हो क्योंकि ब्रह्मांड में जो कुछ है उसमें ज्ञात गणितीय समस्याओं से कई गुना विस्तृत अज्ञात है जिसको अभी तक हम नहीं जान सके हैं।
मनुष्य जीवन का यह भी एक मुख्य उद्देश्यों में है कि उसके जीवन में आनेवाली समस्याओं का समाधान करे और आगे बढ़ते रहें। संसार में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं एक वे जो समस्याओं का हिस्सा बनते हैं और दूसरे वे जो समाधान का हिस्सा बनते है। अब यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम समस्या का हिस्सा बनते हैं या समाधान का हिस्सा बनना चाहते हैं।
कुछ गणितीय समस्याएं ऐसी होती है जिनमें गणितज्ञों के द्वारा बहुत कोशिश करने पर भी हल नहीं होती है वे समय के साथ हल होती है, कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जिनका कोई समाधान नहीं होता है क्योंकि उनका व्यावहारिक धरातल पर वजूद नहीं होता है जैसे 3+5=10 सिद्ध करने की कोशिश करना अगर तर्क द्वारा सिद्ध भी करेंगे तो गलत होगा। कुछ गणितीय समस्याएँ ऐसी होती है जो व्यक्तिगत प्रयासों से हल हो जाती है तथा कुछ समस्याएं ऐसी होती है कि जिनके समाधान के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करना होता है।
जब हम समस्या और समाधान को अलग-अलग मान लेते हैं तो समस्या का समाधान मिलना मुश्किल होता है। भारतीय दर्शन में सत्य का एक ही प्रकार माना है वास्तविक सत्य। आकारिक सत्य को वास्तविक सत्य में सम्मिलित किया है। वास्तविक सत्य का अर्थ है कि जो बात सैद्धान्तिक हो यदि उसका कोई वजूद नहीं है तो ऐसी सत्यता वास्तविक सत्यता नहीं होती है। पाश्चात्य दर्शन में सत्यता के दो प्रकार माने गए हैं आकारिक सत्यता जिसका व्यावहारिक रूप से सत्य होना आवश्यक नहीं है तथा वास्तविक सत्यता जिसका व्यावहारिक रूप से सत्य  होना आवश्यक है।
गणित की इन अनसुलझी हुई समस्याओं पर भी विचार करें तो यदि इन समस्याओं में आकारिक सत्यता है और व्यवहार में उनका कोई अस्तित्व नहीं है तो ऐसी समस्याएं, समस्याएँ बनकर रहेंगी उनका समाधान नहीं खोजा जा सकता है (भारतीय दर्शन के अनुसार)। यदि अनसुलझी समस्याएं, वास्तविक सत्यता से सम्बन्धित है तो देर-सबेर इन गणितीय अनसुलझी समस्याओं का समाधान निश्चित रूप से हो सकता है।
हमारा मानना है कि भारतीय न्यायशास्त्र तथा पाश्चात्य तर्कशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन करें तो भारतीय न्याय-शास्त्र ज्यादा व्यापक, गहरा, व्यावहारिक, जनहितकारी है ।जबकि पाश्चात्य तर्कशास्त्र में इतनी गहराई नहीं है। इसलिए गणित इन अनसुलझी समस्याओं का हल करते समय इन बिंदुओं का ध्यान रखा जाए तो अन्ततः इनका समाधान निकाला जा सकता है। जो समस्याएं व्यावहारिक तथा जनहित में हो ऐसी समस्याओं को हल करने की सार्थकता भी है। गणित का उपयोग जीवन निर्माण के व्यावहारिक पक्षों से सम्बंधित करने की ओर आवश्यकता है। यह विषय जितना आमजन से जुड़ेगा उतन ही गणित के हक में और हमारे लिए लाभदायक व उपयोगी होगा।
इस आर्टिकल में इन छ:समस्याओं का वर्णन किया गया है। यदि यह आर्टिकल आपको पसन्द आए तो अपने मित्रो के साथ शेयर व लाईक करें ।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव हो तो कमेंट करके बताएं

2.छः  गणितीय समस्याएं जो अभी भी हल नहीं हुई हैं(Six Mathematical Problems That Are Still Not Solved)-

Six Mathematical Problems That Are Still Not Solved

Six Mathematical Problems That Are Still Not Solved

एक को हल करने का पुरस्कार 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर है
इन समस्याओं को सहस्राब्दी समस्याओं का नाम दिया गया है क्योंकि वे अभी भी हल नहीं हुए हैं 2000 का वर्ष बीत चुका है। वे दुनिया के सबसे उज्ज्वल दिमाग के लिए भी असंभव लगते हैं। इस दिन भी, कई शिक्षाविद हैं जो इन सवालों के जवाबों को समझने की कोशिश में अपना जीवन बिता रहे हैं। ये प्रश्न कैम्ब्रिज के क्ले मैथमेटिक्स इंस्टीट्यूट द्वारा प्रदान किया गया है, जो व्यक्ति को हल करने का प्रबंधन करता है, उसे 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का पुरस्कार मिलेगा। ये प्रश्न गणित के शिखर हैं और प्राचीन गणित के सबसे गहरे कोनों से आते हैं जो असंभव के करीब लगते हैं। आप पास क्यों पूछ सकते हैं, एक गणितज्ञ का दिमाग प्रदान करता है कि असंभव के पास एक संख्या है, इसलिए, कुछ भी असंभव नहीं है।

1. पी बनाम एनपी समस्या

यह दुनिया की सबसे कठिन और अनसुलझी कंप्यूटर समस्या है, सबसे सरल शब्दों में कहें तो P उन समस्याओं के लिए है जो एक कंप्यूटर के लिए हल करना आसान है और NP उन समस्याओं के लिए खड़ा है जो कंप्यूटर के लिए हल करना मुश्किल है लेकिन, जांचना आसान है एक कंप्यूटर। यह प्रश्न इतना कठिन क्यों है इसका कारण अनुमान लगाने वाला खेल है, यह आपको हर संभव संयोजन से गुजरता है और सही उत्तर खोजने के लिए 100 मिलियन से अधिक विभिन्न संयोजनों का प्रयास करना होता है। यह बहुत लंबा समय लगेगा क्योंकि गणित में पीएचडी वाले व्यक्ति के लिए भी संभावनाएं जटिल हैं, इसलिए, शिक्षाविद इस समीकरण को हल करने का एक अलग तरीका जानने की कोशिश कर रहे हैं।

2. रीमैन हाइपोथीसिस

यह एक सवाल है जो 1859 से अब भी अनसुलझा है। समस्या यह है कि शून्य के लिए शक्ति के साथ ज़ेटा फ़ंक्शन का उपयोग करना एक गैर-स्पष्ट उत्तर है। इसलिए आप जो कर रहे हैं वह अनिवार्य रूप से लगातार बढ़ती संख्याओं को जोड़ रहा है जिससे तार्किक रूप से आपको एक अनंत संख्या मिलनी चाहिए लेकिन आप नहीं करते। तो हम जो खोज रहे हैं वह यह समझाने का उत्तर है कि संख्याओं को जोड़ना और अनंत संख्या हमें अनंत परिणाम नहीं देती है।

3. यांग-मिल्स और मास गैप

यह एक प्रश्न है जो क्वांटम भौतिकी के नियमों का उपयोग करता है। प्राथमिक कणों की मजबूत बातचीत का वर्णन करने के लिए यांग-मिल्स सिद्धांत का उपयोग सूक्ष्म क्वांटम यांत्रिक गुणधर्म पर निर्भर करता है जिसे "मास गैप" कहा जाता है: क्वांटम कणों में सकारात्मक द्रव्यमान होते हैं, भले ही शास्त्रीय तरंगें प्रकाश की गति से यात्रा करती हों। जिस तरह से दो के संयोजन को समझाया जा सकता है वह एक नए ग्राउंडब्रेकिंग विचार के साथ है जो गणित के साथ-साथ भौतिकी के एक नए पक्ष का वर्णन करेगा।
Six Mathematical Problems That Are Still Not Solved

Six Mathematical Problems That Are Still Not Solved

4. नवियर-स्टोक्स समीकरण
नवियर स्टोक्स अपने पूरे जीवन को समझाने की कोशिश कर रहे थे जो उड़ते समय हवा में होने वाली हवा की गड़बड़ी की भविष्यवाणी थी। कई लोगों का मानना ​​है कि ये अशांति पिछले जेट के कारण हवा के उतार-चढ़ाव के कारण होती है जो एक ही अंतरिक्ष क्षेत्र में आए हैं। उन्होंने एक झील में नाव को हिट करने वाली लहरों का बेहतर पूर्वानुमान देने पर भी ध्यान दिया है। वह एक बहुत ही जटिल समीकरण के साथ आया है जो अभी भी शानदार दिमागों को अपने सिर पर खरोंच देता है।

5. हॉज अनुमान

यह शानदार आदमी जटिल वस्तुओं की आकृतियों की जांच करने और उन्हें मापने का एक तरीका देख रहा है। उनका विचार सरल था, वे यह देखना चाहते थे कि हम किसी भी वस्तु के आकार को सरल ज्यामितीय निर्माण खंडों के संयोजन से किस हद तक अनुमानित कर सकते हैं। समस्या यह है कि कुछ मामलों में कुछ वस्तुओं के आकार को अभी भी हर संभव कोशिश के साथ भी अनुमानित नहीं किया जा सकता है, इस सिद्धांत में अंतराल छोड़कर जो अभी भी हल करने की आवश्यकता है।

6. बर्च और स्विंटर्टन-डायर अनुमान

यह प्रश्न 6 में से question सबसे आसान ’में से एक हो सकता है, फिर भी इसे हल करने के तरीके पर कोई सुराग नहीं है, आपको यह अनुमान लगाने के लिए कि हम जिस समीकरण को देख रहे हैं, वह इस प्रकार है:
x2 + y2 = z2
इस छोटे समीकरण को 134 पृष्ठों में काम करने के लिए समाप्त कर दिया गया है और अभी भी एक उत्तर के करीब नहीं है। इन दो बुद्धिमानों के बारे में क्या किया गया है, यह सभी संख्याओं के साथ-साथ x, y, z से बीजगणित समीकरणों में सभी समाधानों का वर्णन करने का प्रयास कर रहा है।
कुल मिलाकर, मैंने ऊपर वर्णित प्रश्नों का एक सरल विवरण देने की कोशिश की, इन सवालों को पूर्वव्यापी रूप से समझाने और समझने के लिए पूरे दिन की आवश्यकता होती है। गणितीय क्षेत्र में 30 से 40 वर्षों के साथ शिक्षाविदों के पास अभी भी इन सवालों के साथ एक कठिन समय है। हम अब भी इंतज़ार कर रहे है

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Analyst's Pendulum (trigonometry)

Analyst's Pendulum (trigonometry)

1.विश्लेषक का पेंडुलम (त्रिकोणमिति का परिचय [Introduction of Analyst's Pendulum (trigonometry)]-

इस आर्टिकल में बताया गया है कि त्रिकोत्रमिति जो कोणों से सम्बन्धित है वह भाग ज्यामिति का उपसमुच्चय है। इस प्रकार जो सीखने के नियम ज्यामिति में लागू होते हैं वे त्रिकोत्रमिति में भी लागू होते हैं।
इस आर्टिकल में दो प्रमाणों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष का वर्णन किया गया है। पाश्चात्य दर्शन के अनुसार प्रमाण दो प्रकार के हैं - प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। पाश्चात्य तर्कशास्त्र के अनुसार अप्रत्यक्ष के अन्तर्गत अनुमान और शब्द प्रमाण माने गए हैं। इस प्रकार कुल तीन प्रमाणों की चर्चा की गई है - प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द प्रमाण। प्रत्यक्ष और शब्द प्रमाण का बहुत संक्षिप्त में वर्णन किया गया है। पश्चिमी विद्वानों के अनुसार अनुमान ही मुख्य प्रमाण है।
भारतीय दर्शन में भिन्न-भिन्न दर्शन ने प्रमाण माने गए हैं परन्तु प्रमाण पर विस्तृत और गहराई से विश्लेषण न्याय दर्शन ने किया है। न्याय के लिए वात्स्यायन ने बताया है कि "प्रमाणों के द्वारा प्रमेयों (object) का परीक्षण न्याय है। सामान्य तौर पर प्रमेय का अर्थ होता है - जो प्रमाणित किया जाये, जो निश्चय किया जाए, जो सिद्ध किया जाए। दर्शन में प्रमेय शब्द का प्रयोग प्रमा यानि कि यथार्थ ज्ञान के विषय के रूप में किया जाता है। न्याय दर्शन में प्रमेय का तात्पर्य उस प्रमा के विषय से है जिससे कि नि:श्रेयस की प्राप्ति में सहायता मिलती है। न्याय दर्शन में 12 प्रमेयों की चर्चा की गई है - आत्मा, शरीर, इन्द्रिय, अर्थ, बुद्धि, मन, प्रवृत्ति, दोष, प्रेत्याभाव, फल, दु:ख तथा अपवर्ग(मोक्ष) ।
सांसारिक वस्तुओं जिसमें गणित भी सम्मिलित है के ज्ञान के लिए भी पर्याप्त अनुभव व सधे हुए दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है और ज्ञान का विषय जब पारलौकिक हो अर्थात् आत्मा-परमात्मा हो तब तो फिर केवल ऋषियों, सन्तों के कोटि के मनीषियों की बात का महत्त्व ही स्वीकार किया जा सकता है। ऋषि-मुनियों का महत्त्व इसलिए होता है कि उनके द्वारा प्रणीत सिद्धान्त व्यावहारिक होता है अर्थात् सिद्धान्तों को व्यवहार में प्रयोग करने के पश्चात ही वे जनसाधारण को अमल करने हेतु बताते हैं। ऋषियों, सन्तों और मुनियों में भी पारस्परिक मतभेद सम्भव है। अतः अज्ञान के निवारण के लिए अर्थात् गणित सम्बन्धी हमारी अज्ञानता है उसे दूर करने के लिए अपने पूर्वजों ने अपने तप द्वारा जो ज्ञान बताया है उसमें विरोधाभास हो तो उस ज्ञान का सहारा लेते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सत्य या तत्त्वज्ञान गहराईयों में छुपा रहता है। उसका जिस ऋषि को जिस अंश का अनुभव हुआ वैसा ही उन्होंने वर्णन किया है। किन्तु इसका आशय यह नहीं है कि हमारा परिचय तत्त्वज्ञान के जिस रूप या अंश से है, उससे भिन्न उसका कोई रूप या अंश नहीं हो सकता है। विभिन्नता के इस मूलभूत सिद्धान्त को स्वीकार कर लेने पर यह बात समझ में आ सकती है कि भारत में दर्शनों की संख्या एक से अधिक क्यों है? प्रत्येक दर्शन के साधनों के स्वरूप विश्लेषण की आवश्यकता क्यों है और न्यायशास्त्र को सब विद्याओं का दीपक क्यों कहा गया है।

2.प्रमाणों का महत्त्व(Importance of Evidence) -

प्रमाणों के द्वारा अर्थ परीक्षण को न्याय कहा जाता है। प्रमेय, प्रमा(ज्ञान) और प्रमाण में ज्ञान की सारी प्रक्रिया सम्मिलित है। सामान्यतया कई लोग यह कह सकते हैं कि सांसारिक व्यवहार में उन्हें प्रमाण जैसे साधन की आवश्यकता नहीं होती है परन्तु सांसारिक जीवन में अन्य शास्त्रों के बिना भी काम चलता रहता है। परन्तु शास्त्रों के ज्ञान के बिना भी जो व्यवहार होता है वह गूंगे के गुड़ के समान, गूंगा वर्णन नहीं कर सकता है और शास्त्र ज्ञान सहित जो कार्य होता है वह विद्या सम्पन्न मनुष्य द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं के समान वर्णनीय होता है। मनुष्य एक चेतन सम्पन्न, विवेकयुक्त तथा सामाजिक प्राणी है। ये सब शक्तियाँ उसमें जन्मजात होती है किन्तु जिस रूप में इन शक्तियों का विकास हुआ उसमें उसके पूर्वानुभवों के सामान्यीकरण के आधार पर निश्चित किए नियमों का बड़ा हाथ है।
जिज्ञासा की प्रवृत्ति भी मनुष्य में जन्मजात होती है। जिज्ञासा की कई दिशाएँ व उद्देश्य हो सकते हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हम जगत् और जीवन के रहस्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करके लौकिक (वर्तमान जीवन) और अलौकिक (आगामी जीवन) को सुखी बनाना चाहते हैं। भौतिक दृष्टि से आम आदमी को ही नहीं बल्कि बुद्धिमान मनुष्यों को कभी-कभी कई मामलों में भ्रांतियां हो जाती है। इससे यह प्रश्न खड़ा होता है कि भ्रम के क्या कारण होते हैं और भ्रम के अभाव यानि ज्ञान के साधन क्या हैं? इसे नकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो प्रमाण भ्रम से बचाव का मार्ग भी सिद्ध होता है। शंकराचार्य ने तो स्पष्ट ही यह कहा है कि प्रमाण अज्ञान (अविद्या) को दूर करता है ज्ञान नहीं देता है। किन्तु अगर विचार किया जाए तो हम भाव और अभाव में से भाव पर अधिक ध्यान देते हैं क्योंकि उसका विश्लेषण करना अनुकूल होता है। यही कारण है कि प्रमाण मीमांसा पर लगभग सभी भारतीय दर्शनों ने कुछ न कुछ चर्चा अवश्य की है। वैसे यह बात भी स्पष्ट ही है कि प्रमाणों का महत्त्व दार्शनिक दृष्टि से अधिक है। दर्शनों का विषय प्रमुख रूप से ज्ञान का विश्लेषण रहा है अतः प्रमाणों को उनमें पर्याप्त स्थान मिलना स्वाभाविक ही था।

2.न्याय दर्शन के अनुसार प्रमाणों की परिभाषा(Equality and Inequality in Western Logic and Indian Jurisprudence -) -

(1.)प्रत्यक्ष(Evident) :-

इन्द्रिय और विषय के संयोग से उत्पन्न ऐसा ज्ञान प्रत्यक्ष है जो दोषरहित, निश्चित तथा शब्दों के द्वारा प्रकट न किया जा ओ।
इन्द्रिय - दो प्रकार की है कर्मेन्द्रिय तथा ज्ञानेन्द्रिय। प्रत्यक्ष का सम्बन्ध पाँच ज्ञानेन्द्रियों से होता है। सूंघना, चखना, स्पर्श करना, सुनना, देखना इन इन्द्रियों से गन्ध, रस, स्पर्श, शब्द व रूप का ज्ञान होता है। प्रत्यक्ष प्रमाण अपने अस्तित्व के लिए किसी प्रमाण पर आश्रित नहीं है जबकि अन्य प्रमाण अपने अस्तित्व के लिए प्रत्यक्ष पर आश्रित हैं। अन्य प्रमाणों की सत्यता के सम्बन्ध में संदेह उत्पन्न होने पर उसका निवारण भी प्रत्यक्ष से ही होता है। उसके अतिरिक्त कई अवसरों पर लोगों को जो भ्रम हुआ करता है उसके निवारण का एकमात्र उपाय भी प्रत्यक्ष ही है। ज्ञान को प्राय: अनुभव पर आधारित माना गया है परन्तु अनुभव भी प्रत्यक्ष पर ही निर्भर है।

(2.)अनुमान Estimate)-

पूर्वज्ञान के स्मरण होने के बाद वस्तु का ज्ञान होता है और वस्तुज्ञान से अप्रत्यक्ष वस्तु की जो जानकारी होती है उसी को अनुमान कहते हैं।

(3.)उपमान(Similar) -

ज्ञात वस्तु की सादृश्यता के आधार पर अज्ञात वस्तु के ज्ञान के साधन को उपमान कहा जाता है। जैसे गाय के आधार पर नील गाय का ज्ञान होना।

(4.)शब्द प्रमाण(Word proof)- -

जो वस्तु जैसी है, उसको वैसी ही बताने वाले (अर्थात् वस्तुओं का साक्षात ज्ञान कर उनकों वास्तविक रूप में दूसरे को बताने वाले) पुरुष के उपदेश को शब्द कहते हैं।

3.पाश्चात्य तर्कशास्त्र और भारतीय न्यायशास्त्र में समानता व असमानता(Equality and Inequality in Western Logic and Indian Jurisprudence -)- 

इस सम्बन्ध में सबसे विचारणीय बात तो यह है कि क्या संसार के विभिन्न क्षेत्रों में एक ही समय में विभिन्न लोग एक ही प्रकार की बात नहीं सोच सकते हैं? अनुभव बताता है कि इस बात के मना करने का कोई सर्वसम्मत प्रामाणिक आधार नहीं है बल्कि सभी महापुरुष एक जैसा ही सोचते हैं - जैसी कहावतें इस मत का समर्थन करती हैं कि एक ही समय में विभिन्न चिन्तक एक दूसरे से अपरिचित और अप्रभावित रहते हुए भी एक ही प्रकार की बात सोच सकते हैं। यदि इस दृष्टि से पूर्व मताग्रह को छोड़कर भारतीय न्याय और पाश्चात्य तर्कशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो हमारे सामने निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट होते हैं -
न्याय सूत्र जो कि भारतीय न्याय शास्त्र का आधार है, ऊपर से थोपा हुआ या एकाएक लिखा हुआ ग्रन्थ नहीं है अपितु भारतीय समाज में एक लम्बी परम्परा से चली आ रही सकारात्मक वाद-विवाद का परिणाम है।
भारत में तर्कशास्त्र और प्रमाणशास्त्र का विकास सम्मिलित रूप से हुआ है किन्तु पाश्चात्य दार्शनिकों ने इन दोनों शास्त्रों का विश्लेषण अलग-अलग किया है। न्यायशास्त्र 'यथार्थ' को उद्देश्य मानकर चलता है जबकि पाश्चात्य तर्कशास्त्र प्रयोजन 'सत्य' की प्राप्ति है। विचारों की संगति ही सत्य है। शुद्ध विचार के अनुकूल कोई वस्तु संसार में है या नहीं, इस पर पाश्चात्य तर्कशास्त्र विचार नहीं करता जबकि भारतीय न्यायशास्त्र के किसी विचार का सत्य होने के साथ यथार्थ होना आवश्यक है। सत्य की पहचान व्यावहारिक सफलता से होती है न कि मात्र विचारों की संगति से। तर्कशास्त्र में वाक्‍य की पुष्टि आगमन और निगमन द्वारा की जाती है जबकि न्यायशास्त्र इसके लिए अलौकिक प्रत्यक्ष का सहारा लेता है। तर्कशास्त्र का विषय मुख्यरूप से अनुमान है किन्तु न्यायशास्त्र प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों के विवेचन पर भी समान बल देता है। तर्कशास्त्र में प्रत्यक्ष, अनुमान तथा शब्द इन तीन प्रमाणों को स्वीकार किया है जबकि न्यायशास्त्र में उपमान को भी प्रमाण माना गया है।
पाश्चात्य तर्कशास्त्र में सत्य को दो भागों में बांटा गया है - आकारिक सत्यता और वास्तविक सत्यता। भारतीय न्याय में इस प्रकार का विभाजन स्वीकार नहीं है। 'सोने का पहाड़' इस वाक्य में पाश्चात्य तर्कशास्त्र के अनुसार आकारिक सत्यता है और 'पत्थर का पहाड़' इस वाक्य में वास्तविक सत्यता है। पर भारतीय नैयायिकों के अनुसार आकारिक सत्यता का व्यावहारिक जीवन में कोई उपयोग नहीं है। इसके अतिरिक्त वास्तविक सत्यता में आकारिक सत्यता भी रहती ही है। अतः सत्य के दो रूप मानने की आवश्यकता नहीं है। पाश्चात्य तर्कशास्त्र के निगमन और आगमन भेद जो क्रमशः आकारिक सत्यता और वास्तविक सत्यता को आधार मानकर चले हैं, भारतीय नैयायिकों को मान्य नहीं है क्योंकि इन दोनों में से कौन पहला है इसका निराकरण संभव नहीं है और इस प्रकार का विभाजन मानने से तर्क प्रक्रिया भी खंडित हो जाती है। पाश्चात्य तर्कशास्त्र के अनुसार ज्ञान की सत्यता की जाँच पूर्व अनुभूति के आधार पर होती है परन्तु न्यायशास्त्र के अनुसार ज्ञान की यथार्थता उसकी व्यावहारिक सत्यता पर निर्भर करती है। निष्कर्ष यह है कि भारतीय न्याय शास्त्र और पाश्चात्य तर्कशास्त्र का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है।
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4 .विश्लेषक का पेंडुलम (त्रिकोणमिति)[Analyst's Pendulum (trigonometry)]-

Analyst's Pendulum (trigonometry)

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अप्रत्यक्ष तरीकों के बारे में एक बहुत ही प्रत्यक्ष अवधारणा
कुछ भौतिक विज्ञान और जीआईएस के बाहर ज्यामिति और इसके त्रिकोणमिति उपसमुच्चय अक्सर एनालिटिक्स से संबंधित नहीं होते हैं। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से, वे सीधे संबंधित हैं। रुको क्या?
Analyst's Pendulum (trigonometry)

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मैंने कर्व फिटिंग के लिए पहले भी एनालिटिक्स में sin और cos का इस्तेमाल किया है, भले ही पीएचडी स्तर के समर्थन के बिना बहुत कम और न के बराबर। इसलिए यह लेख उन कार्यों के बारे में नहीं है। लेकिन त्रिकोणमिति त्रिकोणों से संबंधित ज्यामिति का सबसेट है और उन विशेषताओं को सीधे एनालिटिक्स में ... बहुत ही अप्रत्यक्ष तरीके से। और जबकि ज्यामिति वर्ग सबसे अधिक बार होता है जहां हम सीखने के प्रमाण याद करते हैं, वे त्रिकोणमिति में भी लागू होते हैं। उपयुक्त रूप से, प्रमाण दो प्रमुख प्रकारों में आते हैं:

5.प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष(Direct And Indirect)-

Analyst's Pendulum (trigonometry)

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एक बार फिर, हम एक द्विआधारी दुनिया में रहते हैं या एक पूर्ण से भरा (कम से कम खुले सिस्टम में नहीं)। एक उदाहरण के रूप में त्रिकोणमिति से अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष प्रमाणों का उपयोग करना समीचीन रूप से नहीं किया जा सकता है। ट्रिग एक बंद प्रणाली है।
लेकिन फिर, यह वास्तव में एक सबूत विकसित करने में सबक नहीं था, क्या यह था? इनडायरेक्ट और डायरेक्ट केवल रास्ते की यात्रा होती है। क्या आप कुछ साबित करने के लिए जाएंगे (खुले सिस्टम में अत्यधिक कठिन) या आप अधिक सर्किट में आएंगे? वास्तव में, यह सही कोणों के बारे में अधिक है ... या शायद:

6.त्रिकोणीयकरण(Triangulation)-

Analyst's Pendulum (trigonometry)

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ट्रिग सभी त्रिकोणों के बारे में है और इसलिए खुली प्रणालियों का विश्लेषण है। त्रिकोणासन को भी सीधे मत मानिए, लेकिन यह एक मान्य और उपयोगी उपमा है।
आगमनात्मक तर्क या अपहरण में - यदि आप पसंद करते हैं, तो त्रिकोणासन काफी महत्वपूर्ण है। इन परिदृश्यों में, डेटा अक्सर अपूर्ण होता है। हमें विभिन्न डेटा (पॉइंट), ट्रेंड (रेखाएं), और मेथडोलॉजी (कोण) का उपयोग करके एक अवधारणा (या त्रिकोण) की हमारी समझ विकसित करने की आवश्यकता है। देखें, क्या अब बहुत खिंचाव नहीं था? और जबकि किसी को खुले सिस्टम में आपके त्रिकोणासन को साबित करने की कोशिश करने के बारे में जाने की संभावना नहीं है (वे अभी तक बहुत खुले हुए हैं), इसका मतलब यह नहीं है कि यह संभव और वैध दोनों नहीं है (या अमान्य साबित होने में सक्षम)।
यह मान्यता कभी भी मामले की सच्चाई को साबित नहीं कर सकती है, केवल इस संभावना को बढ़ाएं कि यह गलत नहीं है। हमेशा कैविएट, धारणाएँ और अन्य परिसीमन होते हैं जो सिस्टम को "बंद" करने की कोशिश करते हैं - उच्च निश्चितता के लिए अनुमति देते हैं। यह कुछ हद तक मैला प्रक्रिया है। ज्यादातर ओपन सिस्टम हैं। और अप्रत्यक्ष प्रक्रियाएं - दोगुनी होती हैं।
Analyst's Pendulum (trigonometry)

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सफल विश्लेषणात्मक त्रिभुज में सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा उचित मानचित्रण को समझ रही है। दो अलग-अलग त्रिकोण समान कोण हो सकते हैं। समतुल्यता साबित करने के लिए आपको कम से कम एक पंक्ति की आवश्यकता है, केवल पहचान दें।
त्रिकोण हमें सिखाते हैं कि "समान" समतुल्य या समान नहीं है (न ही बधाई, लेकिन मैं पचाता हूं)। एक उदाहरण के रूप में, अलग-अलग आबादी, कार्यप्रणाली, या समय सीमा के साथ तीन अलग-अलग सर्वेक्षण परिणामों का उपयोग करना, किसी खोज को मान्य करने के लिए पर्याप्त नहीं है ... केवल परिणाम समान साबित होते हैं। फिर, कोई भी (जो मुझे मिला है) इसे औपचारिक रूप दे रहा है। ओपन सिस्टम ऐसी अवधारणा के अनुप्रयोग को बहुत कठिन बना देता है और जो इसे "साबित" करने में कठिनाई के लिए अतिरिक्त है।
अंत में, त्रिकोण स्विंग करने के लिए हमारे पेंडुलम के लिए एक अच्छा ढांचा है। यह खुले सिस्टम और अपहरण के तर्क के लिए विशेष रूप से सच है। तो त्रिकोणमिति से सबक लें और पढ़ने के लिए धन्यवाद!

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