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Why are the different levels of math in private and govt.?

Why are the different levels of mathematics in private and Government Schools?


    1.निजी और सरकारी स्कूलों में गणित के विभिन्न स्तर क्यों हैं?(Why are the different levels of mathematics in private and Government Schools?)-

    Why are the different levels of math in private and govt.?

    Why are the different levels of math in private and govt.?

    सरकारी स्कूलों में गणित शिक्षकों पर सवाल उठाए जाते रहे हैं।सरकारी शिक्षण संस्थानों का गणित का परीक्षा परिणाम और कुल परिणाम निराशाजनक तथा बिल्कुल कमजोर रहता है।अधिकांश युवाओं की ख्वाहिश सरकारी सेवा प्राप्त करने की रहती है।ऐसी स्थिति में कड़ी स्पर्धा के द्वारा सरकारी सेवाओं में शिक्षकों का चयन किया जाता है वहीं दूसरी तरफ निजी शिक्षण संस्थाओं में गणित के वे शिक्षक पढ़ाते हैं जिनका चयन सरकारी सेवाओं में नहीं होता है।फिर ऐसी क्या बात है जिससे निजी शिक्षण संस्थाओं का परिणाम बेहतर रहता है और सरकारी शिक्षण संस्थाओं का परिणाम कमजोर रहता है।इस आर्टिकल में एक ऐसे अध्यापक का परिचय करा रहे हैं जो सरकारी सेवा में कार्यरत है परन्तु उनसे आसपास के निजी और सरकारी शिक्षण संस्थानों के अध्यापक तो प्रशिक्षण लेते ही हैं साथ ही वे अन्य गणित शिक्षकों के लिए प्रेरणास्पद भी है।यह एक विरोधाभास ही प्रतीत होता है कि सरकारी सेवाओं में होते हुए भी वे एक प्रेरक का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं तथा कई अवार्ड भी जीते हैं। इनका परिचय है किरणदीपसिंह टिवाणा। इनके बारे में पूरा इतिहास नीचे वर्णित किया गया है।यह वर्णन प्रस्तुत करने से पहले सरकारी सेवाओं में गणित तथा अन्य विषयों का परीक्षा परिणाम कमजोर क्यों रहता है इसके बारे में वर्णन कर रहे हैं।
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    2.उत्तरदायित्व का ना होना(Lack of responsibility)-

    सरकारी शिक्षण संस्थानों का बेहतर परीक्षा परिणाम न होने का मुख्य कारण है उत्तरदायित्व का न होना। विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने में पाठ्यक्रम, पुस्तकों,शिक्षण संस्थान तथा माता-पिता की महती भूमिका होती है ।इन सबमें शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।सरकारी शिक्षण संस्थाओं में कमजोर परीक्षा परिणाम रहने पर शिक्षकों पर कोई उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किया जाता है।न संस्था प्रधान पर कोई जिम्मेदारी डाली जाती है।इसके परिणामस्वरूप शिक्षक तथा प्रधानाध्यापक लापरवाह होते हैं।उनको इससे कोई मतलब नहीं होता है कि पाठ्यक्रम पूरा हुआ है या नहीं।ठीक से विद्यार्थियों के समझ में आ रहा है या नहीं।प्रतिभाशाली शिक्षकों का चयन होने के बावजूद अपनी प्रतिभा का उपयोग नहीं किया जाएगा तो शिक्षण संस्थाओं का परिणाम अच्छा क्यों कर आएगा?इसके बजाय निजी शिक्षण संस्थानों में भले उच्च प्रतिभाशाली शिक्षक न हो तो भी उनको शिक्षण संस्थान से निकाले जाने का डर रहता है।इसलिए वे शिक्षक कड़ी मेहनत करके विद्यार्थियों को गणित शिक्षा प्रदान कराते हैं।प्रतिवर्ष अपने परीक्षा परिणाम को श्रेष्ठ तथा ओर अधिक श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं।कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है।कड़ी मेहनत से हमारी प्रतिभा निखरती है।इसलिए सरकारी सेवाओं के गणित शिक्षकों और अन्य शिक्षकों का उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किया जाएगा तब तक अच्छे परीक्षा परिणाम की कल्पना करना निरर्थक है।
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    3.सरकारी सेवाओं में स्थायी चयन का होना(Permanent selection in government services)-

    सरकारी सेवाओं में चयन होने के बाद शिक्षक स्थाई हो जाता है उसे सरकारी सेवा से हटाना मुश्किल है।सरकारी शिक्षक गुणवत्तापूर्ण गणित शिक्षा या अन्य विषयों की शिक्षा उपलब्ध कराएं या नहीं कराएं, उनकी सेवा पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है।अत्यधिक छुट्टियां मिलती हैं जिनका उपभोग करते रहते हैं। कुल मिलाकर सरकारी शिक्षक की पांचो उंगलीयां घी में है।दूसरी तरफ निजी शिक्षण संस्थानों में गणित शिक्षक का परीक्षा परिणाम कमजोर रहता है तो उसे कभी भी शिक्षण संस्थान से हटाया जा सकता है।निजी शिक्षण संस्थान में गणित शिक्षक तभी तक कार्यरत रहता है जब तक विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम बेहतर रहता है।निजी शिक्षण संस्थानों में सेवा स्थाई नहीं रहती है।यदि कोई शिक्षक अच्छा नहीं पढ़ाता है तो उसकी जगह दूसरे शिक्षक को नियुक्त कर दिया जाता है।

    4.वेतनमान निश्चित होना(Pay scale to be fixed)-

    सरकारी शिक्षक का वेतनमान निश्चित होता है।गणित शिक्षक कड़ी मेहनत करके पढ़ाएगा तो भी उतना ही वेतन मिलेगा तथा निम्न स्तर की गणित शिक्षा प्रदान करेगा तो भी वेतन उतना ही मिलेगा।साथ ही सातवां वेतन आयोग के बाद सरकारी सेवाओं का वेतनमान जिस हिसाब से बढ़ा है उससे सरकारी शिक्षकों की रही-सही कर्मठता को भी लकवा मार गया है।उच्च वेतनमान के कारण गणित शिक्षक तथा अन्य शिक्षक बिल्कुल बेफिक्र हो गए हैं।दूसरी तरफ निजी शिक्षण संस्थानों में काम और परिणाम के आधार पर वेतन दिया जाता है और परिणाम बेहतर आने पर ही वेतन बढ़ाया जाता है‌।ऐसी स्थिति में निजी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों को कड़ी मेहनत करके बेहतर परिणाम देना होता है। सरकारी शिक्षकों को बेहतर परिणाम हो तो भी वेतन उतना ही मिलेगा तथा परिणाम कमजोर है तो भी वेतन में कोई कटौती नहीं होने वाली है।सरकारी शिक्षकों को उच्च वेतनमान भी एक कारण है जिसे परिणाम कमजोर रहता है।

    5.शिक्षा संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण का ढीलापन(Loosening of government control over educational institutions)-

    सरकारी शिक्षण संस्थानों पर किसी व्यक्ति विशेष का स्वामित्व नहीं होता है।प्रधानाध्यापक हो अथवा शिक्षा अधिकारी उनकी मानसिकता यही होती है कि शिक्षण संस्थान उनका निजी शिक्षण संस्थान तो है नहीं इसलिए वे शिक्षण संस्थान के लिए कड़ी मेहनत नहीं करते हैं।उनको पता होता है कि साल-दो साल बाद उनका स्थानांतरण अन्यत्र हो जाएगा इसलिए वे कोई विशेष प्रयास नहीं करते हैं।निजी शिक्षण संस्थानों में ज्यादातर किसी निजी व्यक्ति के स्वामित्व में होती है इसलिए हमेशा तथा नियमित रूप से मॉनिटरिंग करते रहते हैं।जहां कहीं भी कमी दिखाई देती है उसको तत्काल दुरुस्त करते रहते हैं। माता-पिता,अभिभावकों तथा विद्यार्थियों की शिकायत पर गौर करके उनकी शिकायतों का निवारण करते रहते हैं। जबकि सरकारी शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों,माता-पिता व अभिभावकों की शिकायत का निवारण करना तो दूर की बात है उनकी शिकायत ठीक से सुनी ही नहीं जाती है।

    6.अनुशासन का ढीलापन(Loosening of discipline)-

    सरकारी शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थी न तो अनुशासन में रहते हैं और न ही शिक्षक उनको अनुशासन में रखने का प्रयास करते हैं।सरकारी शिक्षण संस्थान में दोनों ओर से अनुशासन के ढीलेपन में यह भी एक कारण है कि सरकारी शिक्षण संस्थानों में निशुल्क पुस्तकें तथा शिक्षा प्रदान की जाती है। इसलिए माता-पिता,अभिभावकों की ओर से कोई विशेष दबाव नहीं रहता है जबकि निजी शिक्षण संस्थानों में अच्छी फीस वसूली जाती है इसलिए माता-पिता, अभिभावक व विद्यार्थी बिल्कुल भी ढिलाई नहीं बरतते हैं‌।वे कोशिश यही करते हैं कि उनकी फीस वसूल हो जाए।कोई भी कमी होती है तो तत्काल शिक्षण संस्थान के निदेशक को शिकायत करते हैं।

    7.समीक्षा(Review)-

    उपर्युक्त विवरण में सरकारी शिक्षण संस्थानों तथा निजी शिक्षण संस्थानों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। इससे आपको ऐसा प्रतीत हो सकता है कि निजी शिक्षण संस्थानों का ढर्रा तथा अनुशासन व शिक्षा का स्तर बहुत बढ़िया है।वस्तुतः निजी शिक्षण संस्थान भी पाठ्यक्रम के अतिरिक्त बालकों को अपनी तरफ से चारित्रिक व नैतिक शिक्षा प्रदान नहीं कराते हैं।उनका एकमात्र लक्ष्य यह होता है कि निजी शिक्षण संस्थानों का परिणाम अच्छा रहे।परंतु किसी भी शिक्षण संस्थान का मूल्यांकन एकमात्र परीक्षा परिणाम नहीं होता है।
    गणित शिक्षण का सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ, जीवन से गणित का सम्बन्ध, गणित का व्यावहारिक ज्ञान,विद्यार्थियों का चारित्रिक व नैतिक विकास इत्यादि ऐसे फैक्टर है जिनके आधार पर शिक्षकों तथा शिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन किया जाता है।
    सरकारी शिक्षण संस्थानों की ऐसी स्थिति में श्री किरणदीप सिंह टिवाणा जैसे शिक्षक का उपलब्ध होना एक विरोधाभास ही है वरना ऐसे शिक्षक सरकारी शिक्षण संस्थानों में कहां मिलते हैं? जुगनू के प्रकाश की तरह ऐसे गणित शिक्षक मिलते हैं।
    काश अन्य सरकारी शिक्षक गणित शिक्षक किरणदीपसिंह टिवाणा से प्रेरणा ले तो भारत की दिशा और दशा दोनों परिवर्तित हो सकती है‌।आज का युग STEM अर्थात साइंस, टेक्नोलॉजी,इंजीनियरिंग तथा मैथमेटिक्स का युग है। जो देश इनमें बढ़-चढ़कर है वही विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा हो सकता है।ऐसी स्थिति में मैथमेटिक्स का अहम योगदान है।यदि गणित शिक्षक इस बात को समझेंऔर अपना उत्तरदायित्व को वहन करें तो देश का कायाकल्प हो सकता है।हम इसी उद्देश्य से इस आर्टिकल को पोस्ट कर रहे हैं कि वे इससे कुछ सीख ले सके और हमारे द्वारा किए गए परिश्रम को सार्थक कर सकें। गणित वास्तव में अद्भुत विषय है इसका आगे आनेवाले भविष्य में विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रहनेवाली है।
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    8.सरकारी स्कूल का मास्टर बना रहा प्राइवेट स्कूलों के अध्यापकों को गणित का ‘मास्टर'(The master of government school continues to be the 'master' of mathematics to the teachers of private schools)- Ludhiana News Publish Date:Wed, 04 Sep 2019
    Why are the different levels of math in private and govt.?

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    40 वर्ष के किरणदीप सिंह टिवाणा से शहर के 17 प्राइवेट स्कूलों के टीचर इनसे ट्रेनिंग ले चुके हैं। इसके लिए वह कोई फीस तक भी नहीं लेते हैं।
    जगराओं। एक तरफ जहां सरकारी स्कूलों के अध्यापकों की कार्यशैली पर आए दिन सवाल उठाए जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ जिले के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल सिहाड़ा के गणित के मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा अपने गणित के ज्ञान से मिसाल बन चुके हैं। टिवाणा ऐसे सरकारी मास्टर हैं जिन्हें प्राइवेट स्कूल अपने यहां ट्रेनिंग देने के लिए बुलाते हैं। शहर के डीएवी व बीसीएम जैसे स्कूलों समेत करीब डेढ़ दर्जन प्राइवेट स्कूलों के गणित अध्यापकों को मास्टर टिवाणा मुफ्त में ट्रेनिंग दे चुके हैं। 40 वर्ष के किरणदीप सिंह टिवाणा न सिर्फ सरकारी बल्कि बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों के गणित के अध्यापकों को भी ट्रेनिंग देकर मैथ्स का मास्टर बना रहे हैं। शहर के 17 प्राइवेट स्कूलों के टीचर इनसे ट्रेनिंग ले चुके हैं। इसके लिए मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा कोई फीस तक भी नहीं लेते हैं। कई प्राइवेट स्कूल मास्टर टिवाणा से ओरिएंटेशन प्रोग्राiम के लिए संपर्क साध रहे हैं।

    9.स्टेट व नेशनल अवार्ड मिले(State and National Awards)-

    मास्टर टिवाणा ने एमए पोलिटिकल साइंस व बीएड गणित में पास की। वर्ष 2016 में स्टेट अवार्ड, माल्ती ज्ञान पीठ पुरस्कार-2017, नेशनल अवार्ड 2018 प्राप्त किया। वहीं स्कूल शिक्षा विभाग और जिला स्तर पर कई बार प्रशंसा पत्र मिले। मथुरा की संस्था ने आदर्श शिक्षा रत्न अवार्ड 2019 दिया। वह अपनी बेटियों गुरलीन व दिशनीत को भी गणित में एक्सपर्ट बनाना चाहते हैं। पत्नी ब्रहमजीत सरकारी स्कूल में हेड टीचर है।

    10.गणित विषय पर अब तक लिख चुके हैं सात किताबें, आठवीं है कतार में(Seven books have been written so far on maths topic, eighth is in line)-

    सूबे में सभी सरकारी स्कूलों में जो ई-कंटेंट काम हो रहा है उसमें मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा का काफी योगदान है। इसके अलावा स्टेट को-रिसोर्स ग्रुप के जरिए सूबे में होने वाले सभी गणित वर्कशॉप, मेलों व टेनिंग प्रोग्रामों के लिए मास्टर टिवाणा सात मैन्युल किताबें लिख चुके हैं, जबकि उनकी आठवीं किताब कतार में है।
    11.अब तक तीन हजार अध्यापकों को दे चुके ट्रेनिंग(Three thousand teachers have been trained so far)-
    मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा न सिर्फ शहर के बल्कि सूबे भर के गणित अध्यापकों को ट्रेनिंग दे रहे हैं। वह अब तक ती हजार गणित अध्यापकों को प्रशिक्षण दे चुके है। इतना ही नहीं उनके पढ़ाए 42 बच्चे तहसील स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके है। गणित अध्यापकों को दी जाने वाली ट्रेनिंग में मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा मैथ्स लैब, लाइब्रेरी, स्मार्ट रूम बताते हैं।


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    How to make mathematics question papers?

    How to make mathematics question papers?


      1.गणित के प्रश्न पत्रों का निर्माण कैसे करें?(How to make mathematics question papers?)-

      How to make mathematics question papers?

      How to make mathematics question papers?

      गणित में भिन्न-भिन्न स्तर के विद्यार्थी अध्ययन करते हैैं। विशिष्ट(प्रखर), मध्यम और निम्न स्तर के विद्यार्थियों के लिए एक ही तरह का गणित प्रश्न पत्र का निर्माण करना उचित नहीं है।गणित का प्रश्न पत्र तैयार करते समय इन तीनों स्तर के विद्यार्थियों के विद्यार्थियों का ध्यान रखना चाहिए।गणित का प्रश्न पत्र प्रखर बुद्धि वाले विद्यार्थियों के आधार पर तैयार किया जाए तो मध्यम और निम्न स्तर के बालकों द्वारा हल करना असंभव है।मध्यम स्तर के विद्यार्थियों के आधार पर गणित का प्रश्न पत्र तैयार किया जाए तो प्रखर बुद्धि के बालकों के लिए हल करना तो आसान होगा परंतु उनकी बौद्धिक क्षमता का ठीक से मूल्यांकन नहीं हो पाएगा।निम्न स्तर के विद्यार्थियों के अनुसार गणित का प्रश्न पत्र तैयार किया जाए तो प्रखर व मध्यम स्तर के विद्यार्थियों के लिए हल करना तो आसान होगा परंतु उनकी बौद्धिक क्षमता का ठीक-ठीक मूल्यांकन नहीं हो पाएगा। इस आर्टिकल में बताया गया है कि गणित के प्रश्न पत्र को तैयार करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, गणित के प्रश्न पत्र को तैयार करने के क्या उद्देश्य हैं?गणित के प्रश्न पत्र में किन-किन बातों को सम्मिलित किया करना चाहिए और एक आदर्श गणित का प्रश्न पत्र कैसा होता है?
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      2.गणित के प्रश्न-पत्रों के निर्माण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए(Following things should be kept in mind in the construction of Mathematics papers)-

      (1.)गणित के प्रश्न-पत्रों के निर्माण करने में विशेष परिश्रम एवं प्रयासों की आवश्यकता होती है। प्रश्न-पत्र के निर्माण करने वाले को गणित का अच्छा ज्ञान होना चाहिए तथा अध्यापन के उद्देश्यों की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए।
      (2.)यदि अध्यापक ,गणित का अध्यापन कराते समय अर्थात पाठ पढ़ाते समय भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्नों का निर्माण कर ले तो उनको प्रश्न-पत्रों के निर्माण के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हो जाएगी।
      (3.)प्रश्नों के निर्माण में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्नों की विशेषताओं की जानकारी उपयोगी सिद्ध होगी।
      (4.)प्रत्येक प्रश्न-पत्र बनाते समय नए प्रश्नों का निर्माण करना चाहिए। पिछले वर्षों के प्रश्न-पत्रों में प्रश्न उठाकर ले लेना ,विद्यार्थियों के लिए लाभप्रद नहीं माना जा सकता है।
      (5.)प्रश्न-पत्रों में ऐसे प्रश्नों को विशेष स्थान दिया जाना चाहिए जिनके द्वारा विद्यार्थियों के गणितीय चिंतन,समझ एवं सोच के स्तर का मापन होता है।
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      (6.)गणित की समस्याओं में जीवन की परिस्थितियों के तथ्यों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
      (7.)प्रश्न-पत्रों में गणना संबंधी प्रश्नों को कम तथा प्रयोग सम्बन्धी प्रश्नों को अधिक स्थान देना चाहिए।
      (8.) आधुनिक गणित में अंकगणित,बीजगणित तथा ज्यामिति का एकीकरण किया गया है।एकीकृत संकल्पनाओं का परीक्षण भी किया जाना चाहिए।
      (9.)गणित के प्रश्न भाषा की दृष्टि से अधिक लंबे नहीं होने चाहिए।
      (10.)प्रश्न का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि विद्यार्थी प्रश्न को देखते ही समझ जाए कि प्रश्न में क्या पूछा गया है तथा परीक्षार्थी से क्या अपेक्षाएं हैं?
      (11.)प्रश्न-पत्र में ऐसे प्रश्न भी हों जो प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की पहचान करने में मदद करें।बीजगणित भविष्य की गणितीय भाषा है। ज्यामिति तथा अंकगणित को बीजगणित के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन का आधार बनाया जाना चाहिए।
      (12.)गणित के प्रश्न-पत्र इस प्रकार के हों जिन्हें विद्यार्थी हल कर अपनी समर्थता को सिद्ध करते हों। प्रत्येक प्रश्न द्वारा विद्यार्थी की क्षमता का वस्तुनिष्ठ मापन हो।
      (13.)ऐसे प्रश्न न दिए जाएं जो विद्यार्थियों की क्षमता,योग्यता तथा पाठ्यक्रम से बाहर हों। इस प्रकार के प्रश्नों को देखकर विद्यार्थी संतुलन खो बैठते हैं तथा इसका कुप्रभाव अन्य प्रश्नों को हल करने की क्षमता पड़ता है।
      (14.)कभी-कभी गणित ज्यामितीय प्रश्नों के चित्र भी प्रश्न के साथ देने से विद्यार्थियों को प्रश्नों को समझने में सुविधा होती है। इससे विद्यार्थी स्वयं गलत चित्र खींचने की सम्भावना से बच जाते हैं।यह सब उस प्रश्न के उद्देश्य पर निर्भर करता है।
      (15.)प्रश्नों में आंकड़े अनावश्यक रूप से बड़ी संख्याओं में नहीं दिए जाएं तो उत्तम रहेगा। अरबों एवं करोड़ों की संख्याओं के आंकड़े दुविधाएं पैदा करते हैं।
      (16.)गणित के प्रश्नों को जीवन की वास्तविकताओं के तथ्यों के आधार पर निर्माण करना उपयुक्त है। प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने पर विद्यार्थी यह जान सकें कि प्राप्त उत्तर प्रश्न के परिस्थितियों के अनुसार संभावित एवं सही लगता हो। कहीं प्राप्त उत्तर असंभव तो नहीं है।
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      (17.)प्रत्येक प्रश्न का निर्माण करते समय यह भी स्पष्ट हो कि इस प्रश्न को किस विशेष योग्यता के विद्यार्थी सफलता के साथ हल कर सकते हैं।
      (18.)प्रश्न-पत्र के निर्माण करते समय यह भी ध्यान रखा जाए कि प्रश्न देखकर विद्यार्थी घबरा न जाए।जो कक्षा में प्रभावी ढंग से पढ़ाया गया है उसी को प्रश्न-पत्र में सम्मिलित किया जाए। बहुधा परीक्षक प्रश्न-पत्र बनाते समय अपने कठोर हृदय एवं निरंकुश प्रवृत्ति के कारण ऐसे प्रश्नों को प्रश्न-पत्र में सम्मिलित कर लेते हैं जिन्हें पढ़कर विद्यार्थियों को उस प्रश्न के सिर-पैर का पता नहीं लगता है।ऐसा करना मूल्यांकन सिद्धांतों के विपरीत है।
      (19.)प्रश्न-पत्रों में हिंदी के कठिन शब्दों के साथ-साथ समान अर्थ वाले अंग्रेजी शब्दों को भी कोष्टक में लिख दिया जाए तो विद्यार्थियों को सुविधा होगी। उदाहरणार्थ-एकीकरण,अधिकतम,परिमेय,सम्मिश्र,द्विधारी,रिक्त आदि।
      (20.)विद्यार्थियों के उत्तरों का अध्ययन कर इस बात की जानकारी एकत्रित की जाए कि ऐसे कौन से प्रश्न हैं जिन्हें विद्यार्थी समझ नहीं सके तथा उनके उत्तर संभावनाओं से हटकर दिए। साथ ही ऐसे कौन से प्रश्न है जिन्हें विद्यार्थियों ने हल किया ही नहीं क्योंकि प्रश्न के निर्माण में कोई गंभीर त्रुटि थी।
      (21.)आधुनिक गणित में संक्षिप्त बीजगणितीय भाषा के उपयोग के कारण गणित की पाठ्य-सामग्री अधिक अमूर्त, गूढ़, कठिन,सारपूर्ण तथा संवेदनशील हो गई है।जो बालक गणितीय भाषा को स्पष्टता एवं सहजता से नहीं समझते वे परीक्षा में गणित को जानते हुए भी प्रश्न को सही प्रकार से हल नहीं कर सकते क्योंकि गणितीय भाषा संबंधी कठिनाइयां उनके लिए बाधक होती है।

      3.आधुनिक गणित तथा मूल्यांकन(Modern Mathematics and Assessment)-

      How to make mathematics question papers?

      How to make mathematics question papers?

      आधुनिक गणित में समुच्चयों, संकल्पनाओं, प्रतीकों, संक्रियाओं एवं बीजगणितीय भाषा का प्रयोग किया जाता है इसलिए मूल्यांकन में भी आधुनिक गणित की आवश्यकताओं के अनुसार नियोजन अपेक्षित है‌।पारंपरिक गणित में अवकलन संबंधी दक्षताओं का बाहुल्य था किंतु आधुनिक गणित अमूर्त संकल्पनाओं तथा अंतर्ज्ञान के द्वारा सीखने को महत्व दिया जाता है।कक्षा में किए गए प्रयास शत-प्रतिशत प्रभावी नहीं होते क्योंकि कक्षा में संदेश की प्रक्रिया में शोरगुल के कारण व्यवधान पैदा होता है।इसी प्रकार परीक्षा में पूर्ण उपलब्धि नहीं होने के कारण परीक्षार्थी तथा परीक्षक के बीच शोरगुल का व्यवधान बना रहता है।
      विद्यार्थियों में भूलने की गति तेज होती है तथा वे स्मृति पर निर्भर रहते हैं तथा परीक्षा पास करने के लिए ही पढ़ते हैं। इन सब बातों का उनकी उपलब्धि पर प्रभाव पड़ता है।इस व्यवधान को कम करने के लिए अधिक उद्देश्य परख प्रश्नों को प्रश्नपत्र में स्थान दिया जाना चाहिए।धीरे-धीरे विद्यार्थियों में परीक्षा के भय को समाप्त करने की आवश्यकता है।प्रोफेसर जे.एन.कपूर ने लिखा है -"गणित को सीखने की सर्वोत्तम विधि गणित को पुनः खोजना है। गणित अध्यापन की सर्वोत्तम विधि है कि स्वयं विद्यार्थी गणित को पुनः खोजे".

      4.निष्कर्ष(Conclusion)-

      उपयुक्त विश्लेषण स्पष्ट है कि प्रश्न-पत्र का निर्माण विद्यार्थियों में भय पैदा करना नहीं है बल्कि विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता तथा सीखने का मूल्यांकन करना है।सही मूल्यांकन तभी हो सकता है जबकि विद्यार्थी सहर्ष परीक्षा देने हेतु तैयार हो।वर्तमान में गणित का प्रश्न-पत्र तैयार किया जाता है उनमें समस्याओं अर्थात् प्रश्नों का संबंध जीवन से संबंधित तथ्यों पर आधारित नहीं है।केवल परंपरागत तरीके से घिसी-पिटी समस्याओं को प्रश्नपत्र में शामिल किया जाता है।प्रश्न-पत्र से परीक्षार्थी में किसी प्रकार का व्यवहारगत परिवर्तन का मूल्यांकन नहीं होता है। विद्यार्थियों में रटने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है।यदि ऊपर बताई गई बातों को अमल में लेकर प्रश्न पत्र का निर्माण किया जाए तो ऐसा प्रश्न-पत्र प्रगतिशील व आधुनिक होगा । परीक्षार्थी प्रश्न-पत्र को हल करने में रुचि व जिज्ञासा प्रकट करेंगे।
      गणित की परीक्षाओं में औपचारिकता का पुट अधिक नहीं होना चाहिए।प्रश्न-पत्र ऐसे गणितज्ञों द्वारा तैयार किया जाना चाहिए जिन्हें व्यावहारिक ज्ञान होने के साथ-साथ विद्यार्थियों से जुड़े हुए हो।
      गणित विषय से विद्यार्थियों का भय खाने का कारण यही है कि परीक्षा प्रश्न पत्र में यथोचित बातों का ध्यान नहीं रखा जाता है। हालांकि वर्तमान प्रश्न-पत्रों में पिछले समय की अपेक्षा कुछ सुधार हुआ है परंतु इसमें सुधार की ओर आवश्यकता है।

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      how to recognize talent in children in hindi।how do I find my child's passion


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        विभिन्न परीक्षाओं तथा विद्यार्थियों को जब यह पूछा जाता है कि उनको सबसे अधिक किस विषय के प्रश्नों ने परेशान किया।कोई विद्यार्थी गणित को,कोई विद्यार्थी अंग्रेजी को,कोई विद्यार्थी हिंदी तथा अन्य विषयों को कठिन बताता है।इसका अर्थ यही समझा जाना चाहिए कि हर विद्यार्थी की प्रकृति अलग-अलग होती है।जो विद्यार्थी जिस विषय को रूचिपूर्वक पढ़ता है वह विषय उसके लिए सरल हो जाता है। जिस विषय को पसंद नहीं करता,रुचिपूर्वक नहीं पढ़ता, बार-बार अभ्यास व पुनरावृत्ति नहीं करता वह विषय उसके लिए कठिन हो जाता है।इस आर्टिकल में हम उन विद्यार्थियों के बारे में बात कर रहे हैं जिन विद्यार्थियों को बीजगणित कठिन प्रतीत होता है।अंकगणित का अभ्यास बालकों को शुरू से कराया जाता है इसलिए अंकगणित उनके लिए सरल विषय होता है।बीजगणित का अध्ययन प्राथमिक कक्षाओं से नहीं कराया जाता है तथा बाद में भी इस पर कम फोकस किया जाता है इसलिए बीजगणित उनको कठिन प्रतीत होता है। बीजगणित को विद्यार्थी बिना समझे, बीजगणित की क्रियाओं को रटकर इसकेे प्रश्नों को हल करने का प्रयास करते हैं।बीजगणित की समुच्चय भाषा एवं सूत्रों में शामिल सिद्धांतों को विद्यार्थी समझ नहीं पाते। अधिकांश विद्यार्थी बीजगणित को अंकगणित से एक अलग विषय मानते हैं तथा यह समझ नहीं पाते हैं कि बीजगणित अंकगणित का ही प्रसार है।बीजगणित चिंतन एवं तर्क की गहराई को अधिकांश विद्यार्थी समझ नहीं पाते इसलिए उनको यह विषय कठिन लगता है।बीजगणित को समझने के लिए विद्यार्थी में मानसिक परिपक्वता का एक स्तर होना आवश्यक है जिसके बिना इस विषय के प्रतीकों,संकेतों,सूत्रों,कथनों,वाक्यों या समीकरणों को भलीभांति नहीं समझा जा सकता।
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        बीजगणित निम्नलिखित कारणों से कठिन विषय लगता है-
        (1.)अंकगणित की विषय सामग्री के सिद्धांतों एवं प्रत्ययों के स्पष्ट ज्ञान के बिना बीजगणित के प्रतीकों एवं सूत्रों को नहीं समझा जा सकता।बीजगणित अंकगणित का ही एक विकसित सामान्यीकृत रूप है। अतः बीजगणित को समझने से पूर्व अंकगणित के सिद्धांतों की अधिक स्पष्ट जानकारी होना आवश्यक है।जैसे a+b=b+a,a×b=b×a इत्यादि।
        (2.)बीजगणित में अंकगणित की संख्या प्रणाली का प्रसार किया गया है।जिन विद्यार्थियों को संख्याओं की विशेषताओं का ज्ञान नहीं होता है वे बीजीय अक्षरों के प्रतिस्थापन का अर्थ एवं महत्व नहीं समझ सकते।
        (3.)बीजगणित में चिन्हित राशियों का प्रयोग होता है तथा धनात्मक एवं ऋणात्मक चिन्हों से राशियों के मान को प्रदर्शित किया जाता है। शून्य,धनात्मक राशियां, ऋणात्मक राशियां आदि के प्रयोग की दक्षता बिना इस प्रकार की संख्याओं का सही उपयोग संभव नहीं है।इन बीजीय पदों या अक्षरों पर चारों संक्रियाओं को करने का अभ्यास भी आवश्यक है।संख्या रेखा की संकल्पनाएं महत्वपूर्ण है। संख्या रेखा पर शून्य से बाएं तथा दाएं स्थित संख्याएं बीजगणित संकल्पनाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है।
        (4.)वस्तुतः बीजगणित अंकगणित की संक्षिप्त भाषा है।जिस अंकगणित के सिद्धांत को व्यक्त करने में लम्बे कथन की आवश्यकता होती है उसी सिद्धांत को बीजगणितीय भाषा में सूत्रों या प्रतीकों द्वारा संक्षिप्त रूप में प्रकट किया जा सकता है।ब्याज की गणना दर प्रतिशत,मूलधन और समय के गुणनफल द्वारा की जाती है।इसी बात को हम सूत्र एवं प्रतीकों द्वारा बीजगणित भाषा में निम्न प्रकार लिख सकते हैं-
        I=P×R×T/100
        जब तक विद्यार्थियों को बीजगणितीय समुच्चय भाषा एवं सूत्रों को भली-भांति समझने का अभ्यास नहीं कराया जाता तब तक वे इस विषय को कठिन मानकर इसमें रुचि नहीं लेंगे।
        Why Algebra is a Difficult Subject?
        Why Algebra is a Difficult Subject?
        (5.) बीजगणित की विषय-सामग्री में संख्या रेखा, गुणनखंड,समीकरण,असमीकरण, रेखाचित्र एवं समुच्चय सिद्धांत के उप-विषय मुख्य हैं।इन उप-विषयों में प्रत्येक उप-विषय को पूर्णतया समझने के लिए इनसे सम्बन्धित अंकगणितीय प्रत्ययों की पूर्ण जानकारी आवश्यक है यहां पर विद्यार्थियों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि बीजगणित द्वारा समस्याओं को शीघ्रता से हल किया जा सकता है।समीकरण द्वारा समस्याओं के तथ्यों में परस्पर संबंध को प्रकट किया जा सकता है तथा समस्याओं के हल ज्ञात किए जा सकते हैं। समुच्चय सिद्धांत हमें संख्याओं, वस्तुओं आदि के अंकगणितीय पक्ष को समुच्चयों के रूप में प्रकट करने में सहायता करता है तथा इनके संख्यात्मक पक्ष को व्यक्त करने की एक विधि प्रदान करता है।इनके प्रत्ययों को समझने के लिए गूढ़ एवं सूक्ष्म विचारों एवं उनके तर्क को समझने की क्षमता का होना आवश्यक है। जो विद्यार्थी इन गूढ़ विचारों को समझने की क्षमता नहीं रखता है उन्हें बीजगणित एक कठिन विषय लगता है। समुच्चय की भाषा ही बीजगणित की भाषा है।
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        (6.) अधिकतर अध्यापकगण बीजगणित के प्रत्ययों को स्पष्ट करने के लिए अंकगणित की सहायता नहीं लेते।यदि वे इन दोनों में परस्पर सह-सम्बन्ध स्थापित कर पढ़ाएं तो विद्यार्थियों को बीजगणित को समझने में सहायता मिलेगी। बीजगणित सूत्रों की पुष्टि अंकगणित के उदाहरणों द्वारा करने से विद्यार्थियों को आधारभूत नियमों को समझने में सुविधा होगी।अधिकांश विद्यार्थी a^2तथा 2a में अंतर नहीं जानते।यदि हम उन्हें के a के स्थान पर संख्याएं लिखकर अर्थ स्पष्ट करें तो वे बीजीय पदों या राशियों को समझ सकते हैं।
        5 ^2=5 ×5, 2+3=3+2,a+b=b+a,3×2=2×3,a×b=b×a,4<5<6,
        x<x+1<x+2आदि द्वारा बीजीय राशियों के अर्थों को स्पष्ट किया जा सकता है।
        (7.) बीजगणित में समस्याओं को हल करना एक महत्वपूर्ण पक्ष है। समीकरण आदि समस्याओं को हल करने में सहायक होते हैं।यह देखा गया है कि विद्यार्थियों को समीकरण एक अलग उप-विषय के रूप में पढ़ाया जाता है तथा समस्याओं को हल करने की विधि के आधार के रूप में नहीं पढ़ाया जाता है।फल यह है कि विद्यार्थी समीकरण को यांत्रिक रूप से हल करना सीख जाते हैं किन्तु समस्याओं के आंकड़ों को समीकरण के रूप में व्यक्त नहीं कर सकते और न ही समीकरण की विवेचना कर उसके अर्थ को समझ सकते हैं।
        (8.)बीजगणित में सामान्यीकरण एक मुख्य प्रवृत्ति है जिसका विकास धैर्य और सावधानी से ही संभव है।अनेक उदाहरणों द्वारा विद्यार्थियों के चिंतन को दिशा प्रदान की जानी चाहिए जिनसे विद्यार्थी स्वयं निष्कर्ष निकाल सके तथा सिद्धांतों का सामान्यीकरण कर सके। अधिकांश विद्यार्थी इस प्रवृत्ति के विकास से वंचित रहते हैं और उच्च गणित को सीखने में कठिनाई का सामना पड़ता है।
        (9.) कुछ ऐसे उप-विषय हैं जिनको पढ़ाते समय अंकगणित ,बीजगणित तथा ज्यामिति के क्षेत्रों को सम्बन्धित कर पढ़ाया जा सकता है। ज्यामितीय आकृतियों के क्षेत्रफल के सूत्र ब्याज, लाभ-हानि,औसत आदि उप-विषयों के सिद्धांतों का सूत्रीकरण एवं इनके हलो के लिए समीकरणों का प्रयोग आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर गणित की तीनों शाखाओं को संबंधित कर पढ़ाया जाना चाहिए।समस्त बीजगणित एवं रेखागणित में समुच्चय भाषा का प्रयोग होता है।अंक गणित की संकल्पनाओं को ही समुच्चय भाषा में प्रकट किया जाता है।आयत,वर्ग आदि चतुर्भुज के उपसमुच्चय हैं तथा रेखाखंड,उसी रेखा का उपसमुच्चय। हमारे विद्यालयों में इस प्रकार के प्रयासों की कमी से विद्यार्थियों को बीजगणित में रूचि का विकास करने के कम अवसर मिलते हैं।
        (10.)बीजगणित की शब्दावली के अर्थों को स्पष्ट रूप से नहीं समझने के कारण विद्यार्थियों को बीजगणित सीखने में कठिनाईयां होती है।चर,अचर, चिन्हित राशि, समानता,असमानता ,व्यंजक,पक्षान्तर,समुच्चय ,रिक्त समुच्चय ,संगतता अवयव, संख्या फलन,संख्यात्मक संबंध,रिंग,ग्रुप,फील्ड आदि ऐसे अनेक शब्द है जिनको समझे बिना इनका प्रयोग संभव नहीं  है।
        (11)बीजगणित की पाठ्यपुस्तकों में  रटने तथा यांत्रिक रूप से पालन करने पर बल दिया जाता है।नतीजा यह है कि पाठ्यपुस्तकों द्वारा विद्यार्थियों को बीजगणित को संक्षिप्त भाषा एवं सामान्यीकरण की प्रवृत्ति के रूप में देखने और समझने के अवसर नहीं मिलते।
        (12.)कक्षा में विद्यार्थियों को यह बात स्पष्ट रूप से नहीं बताई जाती कि बीजगणित द्वारा ही अंकगणित की सामग्री का प्रसार हुआ है। यदि चिन्हित संख्याओं का प्रत्यय का विकास नहीं हुआ होता तो संख्या प्रणाली के नए आयामों की जानकारी नहीं हो पाती । समुच्चय सिद्धांतों के विकास के बिना वस्तुओं के समुच्चय की विशेषताओं पर आधारित बीजगणित का विकास नहीं होता।बहुधा विद्यार्थी सारी बीजगणित पढ़ने के बाद यह नहीं समझ पाते कि बीजगणित का अंकगणित के प्रसार में किस प्रकार महत्वपूर्ण योगदान है।
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        (13.)अध्यापक को इस बात को ध्यान में रखकर बीजगणित नहीं पढ़ाते कि बीजगणित के अध्यापन का आरंभ एक वह स्थिति है जहां सीखी हुई बातों को नई,संक्षिप्त एवं संकेतों को समुच्चय भाषा में व्यक्त किया जाता है।बीजगणित का अध्ययन एक नया स्थल है जहां से अंकगणित में सीखी हुई सामग्री को नए दृष्टिकोण से देखा जाता है तथा नई विधि से व्यवस्थित किया जाता है। बीजगणित संकेतों की संक्षिप्त भाषा है।

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        If you are afraid of mathematics then follow this formula

        If you are afraid of mathematics, then follow this formula, learn the tricks of mathematics in a pinch


          1.मैथमैटिक्स से डर लगता है तो ये फॉर्मूला अपनाएं, गणित के गुर चुटकियों में सीखें(If you are afraid of mathematics, then follow this formula, learn the tricks of mathematics in a pinch)

          If you are afraid of mathematics then follow this formula

          If you are afraid of mathematics then follow this formula

          समय के साथ कदमताल मिलाते हुए गणित में भी नवीन अनुसंधान,रिसर्च तथा तरीके खोजे जा रहे हैं जिससे गणित को सीखना आसान हो।हर व्यक्ति की प्रकृति भिन्न-2 होती  है।इस दृष्टिकोण के कारण गणित को सीखने के नए-नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं।गणित में इस प्रकार की विविधता से गणित का सौंदर्य बढ़ता है और गणित को सीखने में रुचि व जिज्ञासा जागृत होती है।इस आर्टिकल में हम आपका परिचय एक ऐसी संस्था से करा रहे हैं जिसने गणित का भय बालकों में दूर करने के लिए थिएटर अर्थात नाटक का प्रयोग किया गया है।
          इससे पूर्व गणित में रुचि व जिज्ञासा जागृत करने के लिए कविता,पहेलियों,मॉडल्स,संगीत के बारे में पढ़ चुके हैं।किसी बालक की कविता में रुचि होती है तो वह गणित को कविता के माध्यम से सीख सकता है।किसी बालक की पहेलियां में रुचि होती है तो उसको पहेलियों के माध्यम से गणित को सिखाया जा सकता है।इस प्रकार की विविधता से गणित का सौंदर्य निखरता है।बच्चों को जब हम इनके माध्यम से पढ़ाते हैं तो उनकी रुचि बढ़ती है।किसी भी विषय में महारत हासिल करने के लिए आत्म-विश्वास, रुचि व जिज्ञासा सबसे प्रथम फैक्टर होता है।
          थिएटर एजुकेशन का यह नया फाॅर्मूला चंडीगढ़ में लेकर आई है जिसका परिचय है" चिल्ड्रन थिएटर अकादमी आर्ट फितूर",इसकी निदेशक है मालविका भास्कर। मालविका भास्कर को जब लगा कि बच्चे गणित विषय से घबराते हैं और दूर भागते हैं तो उनके दिमाग में यह आइडिया आया कि क्यों न थिएटर के माध्यम से बच्चों को गणित विषय प्रस्तुत किया जाए।इसके दो फायदे हैं बच्चा थिएटर में तो प्रवीण होता ही है साथ में गणित भी सीखता है।बच्चों को बच्चे के तरीके से सिखाया जाए,बच्चों के तरीके से सिखाने का तात्पर्य है कि बच्चों की स्वाभाविक रुचि खेलकूद ,संगीत, पहेलियों, मॉडल्स,कविता,थिएटर इत्यादि में होती है।इसलिए इनके जरिए सिखाया जाए तो बालक गणित में जल्दी से पकड़ कर लेते हैं।गणित से उनका धीरे-धीरे भय खत्म होता जाता है।एक बार भय खत्म हो जाए और गणित में नींव लग जाए तो आगे की कक्षाओं में बालकों की गणित में रुचि बढ़ती जाती है।परंतु जब नींव ही कमजोर हो तो आगे की कक्षाओं में ज्यादा कुछ सुधार नहीं किया जा सकता है।नींव जितनी मजबूत होती है भवन उतना ही मजबूत और दीर्घजीवी होता है।इसी प्रकार बच्चों की गणित में नींव पक्की हो तो फिर आगे की कक्षाओं में ऐसा कोई कारण नहीं है कि बच्चा गणित में कमजोर रह जाए।बच्चों की परवरिश में शुरू में ज्यादा मेहनत करने तथा ध्यान देने की जरूरत होती है।यदि बच्चों को शुरू में बिल्कुल स्वच्छन्द छोड़ दिया जाए तो उनमें गणित की नींव कमजोर रह जाती है।इसलिए गणित में बच्चों को शुरू से ही प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
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          अक्सर देखने में आता है कि माता-पिता तथा अभिभावक बच्चों को शुरू से ध्यान नहीं देते हैं तथा बड़ा हो जाता है तब उसकी पढ़ाई व अध्ययन के प्रति चिंतित रहते हैं।शुरू में बालक समझकर उसकी कमजोरियों पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं।हम यह सोचते हैं कि अभी तो बच्चा है बाद में सीख जाएगा।हमारी यह लापरवाही अत्यंत घातक होती है।
          मालविका भास्कर ने थिएटर के माध्यम से यह उदाहरण प्रस्तुत किया है कि बालकों को इस विधि से भी गणित में कमजोरी दूर की जा सकती है,उनको पढ़ाया जा सकता है।वे अंकगणित की किसी भी समस्या पर ऑन द स्पॉट लाइव करैक्टर स्टोरी बनाती है जिससे विद्यार्थी खुद उसमें शामिल हो जाता है और आसानी से हल निकाल लेता है।गणित जैसे विषय को सरल करने के भिन्न-भिन्न तरीके  विभिन्न व्यक्तियों ने अपने अपने तरीके से सरल करने के प्रयास किए हैं।आप यदि इनका इस्तेमाल ही नहीं करेंगे तो वह तरीके आपके लिए किस काम के हैं? फिर आप यह शिकायत करते फिरे कि क्या करें हमारे बच्चे को गणित विषय कठिन लगता है उस की कठिनाई को कैसे दूर करें?
          आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें ।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके ।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए ।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
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          2.मैथमैटिक्स से डर लगता है तो ये फॉर्मूला अपनाएं, गणित के गुर चुटकियों में सीखें(If you are afraid of mathematics, then follow this formula, learn the tricks of mathematics in a pinch)-

          Fri, 26 May 2017
          Malvika Bhaskar,If you are afraid of mathematics then follow this formula

          Malvika Bhaskar

          अगर गणित कठिन विषय लगता है तो अब परेशान होने की आवश्यकता नहीं। बस एक ये फॉर्मूला अपनाएं, गणित के गुर चुटकियों में सीखें। न केवल गणित ही नहीं अन्य विषय भी ऑन द स्पॉट नाटक के रूप में अब स्टूडेंट्स के लिए सहज हो चुके हैं। थिएटर एजूकेशन का यह नया फार्मूला चंडीगढ़ में लेकर आई है चिल्ड्रेन थिएटर अकादमी आर्ट फितूर। आर्ट फितूर चंडीगढ़ में समर वर्कशॉप की शुरुआत करने जा रहा है। जिसमें बच्चों के लिए एजुकेशन के साथ पैरेंट्स के लिए भी सेशन होता है।
          आर्ट फितूर की निदेशक मालविका भास्कर ने बताया कि देखा यह जाता है कि ज्यादातर बच्चे गणित के साथ ही कई अन्य विषय से घबराते हैं। इन विषयों को ही नाटक के रूप में तैयार करके जब बच्चों को सिखाया जाता है तो बच्चे अपने विषय को समझते ही हैं साथ ही थिएटर में भी माहिर हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि आमतौर पर देखा जाता है कि अंकगणित के सवालों में बच्चे उलझ जाते हैं।
          ऐसे में अंकगणित के सवाल की आन द स्पाट लाइव कैरेक्टर स्टोरी बना दिया जाता है जिससे स्टूडेंट खुद उसमें शामिल हो जाता है और आसानी से हल निकाल लेता है। मालविका भास्कर ने बताया कि लिविंग और नान लिविंग, सोलर सिस्टम और सामाजिक विज्ञान के लिंगानुपात, स्वच्छता, माइग्रेशन जैसे चैप्टरों पर उन्होंने काम किया और उसके अच्छे रिजल्ट सामने आए। मालविका भास्कर के साथ ही नवप्रीत नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के पास आउट हैं।
          पांच जून से लगेगी वर्कशॉप
          मालविका भास्कर ने बताया श्री गुरु ग्रंथ साहब भवन सेक्टर-28 ए में पांच जून से वर्कशॉप का आयोजन किया जाएगा। इस वर्कशॉप के दौरान बच्चों को क्रिएटिविटी, इमेजिनेशन, एक्टिंग के साथ ही एजूकेशन फ्रेंडली सेशन होंगे। इसमें संस्कृत थिएटर के युवा और इमर्जिंग थिएटर डायरेक्टर मनोज मिश्रा और एनएसडी पासआउट मंदीप सिंह विजिटिंग फैकल्टी होंगे।


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          5 famous women mathematicians who changed the world

          5 famous women mathematicians who changed the world


            1.5 प्रसिद्ध महिला गणितज्ञ जिन्होंने दुनिया को बदल दिया(5 famous women mathematicians who changed the world)-

            5 ऐसी गणितज्ञ महिलाएं जिन्होंने अभूतपूर्व कार्य किया। गणित के क्षेत्र में माता-पिता ,अभिभावक तथा लोग महिलाओं को आने से रोकते थे।गणित के क्षेत्र में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता था परंतु विश्व इतिहास की पांच महिलाओं क्रमशः हाइपेटिया,सोफी जर्मेन एडा लवलेस, सोफिया कोवालेवस्काया और एमी नोथेर ने गणित के क्षेत्र में कार्य करके महिलाओं के लिए न केवल प्रवेश का द्वार खोला बल्कि एक क्रांति ला दी। महिलाओं का गणित के क्षेत्र में प्रवेश करने तथा महिलाओं का गणित में किए गए कार्य का अधिकार दिलवाने में इन महिलाओं ने बहुत संघर्ष किया तथा समस्याओं का सामना किया। इसके अलावा ओर भी प्रसिद्ध महिलाएं हो सकती हैं परन्तु हमारी नजर में जो महिलाएं आई है हमने उनका वर्णन किया है।आप लोगों की नजर में इस प्रकार की ओर महिलाएं हों तो अवगत कराएं।
            हाइपेटिया गणितज्ञ महिला को तो आखिर गाड़ी से खींचकर पीटा,जला दिया और मार दिया।लेकिन इस तरह से दुखद अंत होने के बावजूद महिलाओं के लिए गणित में नए अवसर और संघर्ष का मार्ग खोल दिया।उनके जीवन पर कई पुस्तकें प्रकाशित की गई है जिनका उल्लेख नीचे आर्टिकल में किया गया है। जो व्यक्ति हाइपेटिया के बारे में और अधिक जानकारी पाना चाहते हैं इन पुस्तकों को खरीद कर तथा अध्ययन करके जान सकते हैं।
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            सोफी जर्मेन मध्यवर्गीय परिवार से थी। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान उनको घर के अंदर एक तरह से नजरबंद होकर रहना पड़ा था।उनके पिता की लाइब्रेरी में गणित की पुस्तके थी।एक दिन वह आर्किमिडिज की मृत्यु के बारे में पढ़ रही थी।उसने आर्किमिडीज़ के बारे में पढ़ा कि वे गणित से इतना प्रेम करते थे कि गणित के प्रेम के कारण आर्किमिडिज को मौत की सजा मिली।सोफी जर्मेन ने सोचा कि कोई व्यक्ति गणित से इतना प्रेम करता है जिसके कारण उसे मौत की सजा मिली और उस सजा को उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया।तब सोफी जर्मेन ने सोचा कि गणित में कुछ तो ऐसा है जिसकी वजह से उन्होंने मौत की सजा का वरण किया।उसके पश्चात सोफी जर्मेन की गणित में अत्यधिक रुचि हो गई। सोफी जर्मेन ने भी बहुत से कष्टों का सामना किया।अपना विश्लेषण प्रस्तुत करने के लिए अपना छद्म नाम रखा।सोफी जर्मेन से संबंधित अनेक पुस्तकें प्रकाशित की गई है।अधिक जानकारी के लिए नीचे वर्णित पुस्तकें पढ़ी जा सकती है।
            इसके पश्चात नाम आता है एडा लवलेस।एडा लवलेस के माता-पिता ने गणित की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया परंतु उनके पति ने चाहा कि एडा लवलेस,पत्नी और बच्चों की मां बन कर रहे।लेकिन उसको यह मंजूर नहीं था, उन्होंने अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल गणित के क्षेत्र में किया।पहला कंप्यूटर प्रोग्राम उन्होंने ही विकसित किया था,ऐसा माना जाता है।एडा लवलेश के बारे में जानने के लिए उनके जीवन से संबंधित पुस्तकें नीचे दी गई जिन्हें पढ़कर ओर अधिक जाना जा सकता है।
            एडा लवलेस के बाद नाम आता है सोफिया कोवलेवस्काया। इनका जन्म मास्को में हुआ था।इनके पिता नहीं चाहते थे कि सोफिया कोवालेवस्काया गणित पढ़ें इन्होंने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर अपने चाचा की सहायता से गणित का अध्ययन किया।महिला होने के कारण उनको भी काफी विरोध का सामना करना पड़ा परंतु तमाम विरोधों को धता बताकर उन्होंने अपना रास्ता बनाया, बाद में वह स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में गणित की प्रोफेसर बनी।वह महिला अधिकारों की पक्षधर थी।सोफिया कोवालेवस्काया से संबंधित पुस्तकों को पढ़कर उनके बारे में जाना जा सकता है। पुस्तकें नीचे लिखी गई है।
            अंत में महिला गणितज्ञ का नाम आता है एमी नोथेर।इसके भाई और पिता दोनों एलार्गेन विश्वविद्यालय में गणितज्ञ थे। इसके बावजूद महिला होने के नाते गणित की कक्षा में नामांकन से वंचित कर दिया गया। दो साल के बाद उनकी परीक्षा ली गई और उसमें सफल होने पर उनको गणित पढ़ने की स्वीकृति मिली।
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            उक्त उदाहरणों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।महिलाओं को अबला, कमजोर और बुद्धि में पुरुष से कमतर आंका जाता है।परंतु इन महिलाओं ने गणित विषय में अपना मुकाम किसी के सहारे से नहीं बल्कि अपने बलबूते और अपनी प्रतिभा के द्वारा हासिल किया।गणित में अन्य महिलाओं के लिए ये महिलाएं प्रेरणा के रूप में स्मरण की जाती है।आगे आने वाली महिलाओं को गणित में आने के लिए कठिन संघर्ष व प्रतिभा के द्वारा रास्ता बनाने की दिशा प्रदान की ।आज महिलाओं का गणित में प्रवेश है जो इन महिलाओं की त्याग और तपस्या का फल है। आगे गणित के क्षेत्र में आने वाली महिलाओं के लिए ये प्रेरक का कार्य करती है।
            आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें ।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके ।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए ।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

            2.5 प्रसिद्ध महिला गणितज्ञ जिन्होंने दुनिया को बदल दिया(5 famous women mathematicians who changed the world)-

            कई महिलाएं सीमित थीं कि वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा का उपयोग कैसे कर सकती हैं। वे पढ़ाना चाहते थे लेकिन अपने लिंग के कारण ऐसे अवसरों से वंचित थे। विभिन्न परिस्थितियों और अवधि के माध्यम से, इन महिलाओं के लिए आज तक अधिक संभावनाएं दिखाई दीं।
            "अधिकांश इतिहास के लिए, बेनामी एक महिला थी।" वर्जीनिया वूल्फ
            18,000 ईसा पूर्व के गणितीय चिंतन का सबूत है: खोजों और विस्तार के माध्यम से, यह अब तक केवल एक सुरुचिपूर्ण विषय के रूप में जटिल हो गया है। गणित के अध्ययन के दौरान, कुछ परिचित नामों द्वारा क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है। ज्यादातर पुरुष योगदानकर्ता, जैसे कि आइजैक न्यूटन, गॉटफ्रीड लीबनीज, रेने डेकार्टेस को नोट किया जाता है, लेकिन इस विषय में कई बुद्धिमान और प्रभावशाली महिलाएं भी शामिल हैं।
            जीवन अजीब है।
            हम जानते हैं कि बहुत सारे पुरुषों ने गणित पर काम किया है, लेकिन महिलाओं के बारे में क्या? जबकि क्षेत्र में महिलाओं को सेक्सिस्ट आदर्शों के कारण कम जाना जाता था, कुछ लोग कैरियर और उस विषय के निर्माण में इन बाधाओं को दूर करने में सक्षम थे जो उन्हें पसंद थे। इन उल्लेखनीय महिलाओं में से कुछ में हाइपेटिया, सोफी जर्मेन, एडा लवलेश, सोफिया कोवालेवस्काया और एमी नोथेर शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक महिला ने गणित के क्षेत्र में आवश्यक योगदान दिया है।
            हाइपेटिया(Hypatia)
            हाइपेटिया का जन्म 4 वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था, और वह अलेक्जेंडरियन दार्शनिक और गणितज्ञ थॉन की बेटी थी। Theon उस समय सबसे सफल शिक्षाविदों में से एक था और अलेक्जेंड्रिया में पुस्तकालय के अंतिम सदस्यों में से एक था। उच्च श्रेणी के दार्शनिक की बेटी होने के नाते, उन्होंने अपने सामाजिक वर्ग में लड़कों के समान शिक्षा प्राप्त की।
            Hypatia,5 famous women mathematicians who changed the world

            Hypatia

            जैसे-जैसे वह एक किशोर बनती गई, हाइपेटिया ने अपने पिता की तुलना में गणित में खुद को अधिक सक्षम साबित किया। और किसी समय, वह अपने पिता की छात्रा होने से पहले से ही उनकी सहकर्मी थी। 13 साल की उम्र तक, उसने खुद को अलेक्जेंड्रिया में एक दुर्जेय बौद्धिक शक्ति के रूप में स्थापित कर लिया था। उसने एक शिक्षक और प्रशिक्षक के रूप में अपने पिता की भूमिका निभाई। बहुत से लोग उसकी बुद्धिमत्ता से प्रभावित थे और काफी युवा लोग जो उसके आध्यात्मिक और बौद्धिक उपहारों से प्रभावित थे और उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया। तब छात्रों का एक घेरा उसके आस-पास और उसके आसपास जमा हो गया था और उनमें से कई लोग रोमन साम्राज्य में उच्च स्थानों पर कब्जा करने के लिए आए जैसे कि गणमान्य व्यक्ति और बिशप बनना।
            उसने इन विषयों में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों जैसे एस्ट्रोलाबे के बारे में भी दूसरों को सिखाया।
            Astrolabe ,5 famous women mathematicians who changed the world

            Astrolabe (एस्ट्रोलाबे - पूर्वजों का शानदार कंप्यूटर)


            गणित के क्षेत्र में, उन्होंने अपने काम के साथ शंकु वर्गों पर कई प्रगति की, ऑनॉल के कॉन्फिक्स ऑफ एपोलोनियस के संपादन से और हाइपरबोलस, परवल और ईलिप्स के विचारों को विकसित किया। इन विचारों को विभिन्न तरीकों से समतलों के साथ एक शंकु को विभाजित करके स्थापित किया गया था। गणित के पूरे इतिहास में एक फैशनेबल विचार।
            Conic sections by Hypatia,5 famous women mathematicians who changed the world

            Conic sections by Hypatia(हाइपोटिया द्वारा शंकु वर्गों)

            उसके समय के दौरान, मिस्र में ईसाई धर्म इष्ट धर्म बन गया। अफवाहें फैलाई गई थीं कि हाइपेटिया अपने सार्वजनिक दार्शनिक व्याख्यानों के कारण विश्वास के खिलाफ थे जो गैर-ईसाई माने जाते थे। दुर्भाग्य से, ईसाई उत्साह ने इन अफवाहों को बहुत गंभीरता से लिया और वर्ष 415 में अपनी बहुत दुखद मौत के लिए हाइपेटिया को लाया। उसे अपनी गाड़ी से खींच लिया गया, उसे मार डाला गया और पीटा गया, और जला दिया गया।
            Death of Hypatia,5 famous women mathematicians who changed the world

            Death of Hypatia(हाइपेटिया की मृत्यु)

            यद्यपि उनके जीवन को एक दर्दनाक और अनावश्यक अंत में लाया गया था, लेकिन यह गणित और विज्ञान में उच्च उपलब्धि और उन्नति से भरा एक प्रेरणादायक था।
            हाइपोटिया के बारे में किताबें:
            हाइपेटिया: द लाइफ एंड लेजेंड ऑफ ए एन प्राचीन दार्शनिक
            नंबरों और सितारों की
            द विजडम ऑफ हाइपेटिया: प्राचीन आध्यात्मिक अभ्यास एक अधिक सार्थक जीवन के लिए
            हाइपैटिया: एक्सप्लोरर ऑफ़ ज्योमेट्री
            हाइपेटिया: रोमन ऑस डे अल्टरटम
            अलेक्जेंड्रिया का हाइपेटिया: गणितज्ञ और शहीद
            सोफी जर्मेन(Sophie Germain)
            एक और महान महिला गणितज्ञ चर्चा करने के लिए सोफी जर्मेन थी। सोफी का जन्म 1776 में पेरिस में हुआ था। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती थी। उनके पिता एक व्यापारी थे और बाद में बैंक ऑफ फ्रांस के निदेशक बने।
            Sophie Germain,5 famous women mathematicians who changed the world

            Sophie Germain(सोफी जर्मेन)

            सोफी जर्मेन की अपने पिता की लाइब्रेरी में कई शैक्षिक संसाधनों तक पहुँच थी। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान, उसे अपनी सुरक्षा के लिए घर के अंदर रहने के लिए मजबूर किया गया था। एक दिन, वह आर्किमिडीज की मृत्यु की कथा के बारे में एक पुस्तक से रूबरू हुई, जो गणित के प्रति इस प्रेम के कारण मौत की सजा पा गई थी। गणित के कारण आर्किमिडीज के अंत ने गणित में उसकी रुचि जगाई, और उसने सोचा:
            यदि कोई गणित से इतना प्यार कर सकता है कि वे इसके लिए मरना चाहते हैं, तो यह एक बहुत ही अच्छा विषय होना चाहिए!
            Death of Archimedes,5 famous women mathematicians who changed the world

            Death of Archimedes(आर्किमिडीज की मृत्यु)

            और इस तरह, गणित विषय में उसकी रुचि शुरू हुई। उसने अपना समय पढ़ने और खुद को गणित पढ़ाने में बिताया, जिसमें डिफरेंशियल कैलकुलस भी शामिल था। हालाँकि, इस दौरान उनका ध्यान महिलाओं के लिए अनुपयुक्त माना जाता था।उसके माता-पिता ने उसके सारे कपड़े, मोमबत्तियाँ, किताबें उसके कमरे को बहुत ठंडा बनाने के लिए और उसके अध्ययन के लिए बहुत दूर ले गए। हालाँकि, इसने सोफी को विचलित नहीं किया। उसके भीतर एक क्रांतिकारी की भावना थी और इन बाधाओं को दूर करने के लिए उसने कड़ी मेहनत की। उसने पुस्तकालय में गणित पर हर किताब पढ़ी और खुद को लैटिन और ग्रीक भी पढ़ाया ताकि वह यूलर और न्यूटन के कामों को पढ़ सके।
            जब सोफी 18 साल की थी, तो पेरिस में इकोले पॉलिटेक्निक नामक एक नया स्कूल स्थापित किया गया था। इस स्कूल का उद्देश्य गणितज्ञों और वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित करना था। हालांकि, महिलाओं को भाग लेने की अनुमति नहीं थी। अपने माता-पिता की अस्वीकृति और सामाजिक भेदभाव के बावजूद, उसने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे, वह कुछ पाठ्यक्रमों से व्याख्यान नोट्स प्राप्त करने और अध्ययन करने में सक्षम है।
            एक दिन, सोफी ने छद्म नाम एम. लेब्लैंक का इस्तेमाल किया और लीजेंड्रे, जे. एल. लैगरेंज, और एल. पांससोट के लिए एक गणितीय विश्लेषण पत्र प्रस्तुत किया, जो स्कूल में संकाय सदस्य थे। लैग्रेंज लेखन से बहुत प्रभावित थे और उनसे मिलने वाले छात्र से मिलना चाहते थे।
            सोफी जर्मेन ने जो पत्र लीजेंड्रे, जे. एल. लैगरेंज और एल. पॉन्सोट को लिखे थे
            जब वह सोफी से मिला, तो लेखक के एक महिला होने के बाद भी वह और अधिक प्रभावित हुआ। बाद में, लेग्रेंज ने सोफी का उल्लेख किया और उसे पुरुष-प्रधान गणितीय समाज में पेश किया।
            सोफी जर्मेन ने नंबर थ्योरी में अपने कुछ कामों को उस समय के सबसे प्रसिद्ध गणितज्ञ कार्ल फ्रेडरिक गॉस के नाम पर भेजा था, जो उसी छद्म नाम एम. लेब्लैंक का इस्तेमाल कर रहे थे। तीन वर्षों के बाद, गॉस ने पाया कि लेखक एक महिला थी, और वह पूरी तरह से रोमांचित और प्रभावित थी। और उसने चार साल तक उसका मार्गदर्शन किया। एक उत्तर पत्र में गॉस ने कहा:
            जिन वैज्ञानिक नोटों से आपके पत्र इतने समृद्ध हैं, उन्होंने मुझे एक हजार सुख दिए हैं। मैंने उन्हें ध्यान से अध्ययन किया है, और मैं उस सहजता की प्रशंसा करता हूं जिसके साथ आप अंकगणित की सभी शाखाओं में प्रवेश करते हैं, और जिस ज्ञान के साथ आप सामान्य और परिपूर्ण होते हैं। यदि मैं आपके अंतिम पत्र पर टिप्पणी जोड़ने का साहस करूँ तो मैं आपसे इसे अपने ध्यान के प्रमाण के रूप में लेने के लिए कहता हूँ।
            सोफी जर्मेन के जन्म की 240 वीं वर्षगांठ
            सोफी रेमेन को भी भौतिक विज्ञान में रुचि थी। 1816 में उसने अपना पेपर, मेमोरियल ऑन द वाइब्रेशन्स ऑफ इलास्टिक प्लेट्स पूरा किया और फ्रेंच अकैडमी ऑफ साइंसेज की प्रतियोगिता में अपना लेख जमा किया और जीत हासिल की। लोच और संख्या सिद्धांत में उनका काम उनके संबंधित क्षेत्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
            सोफी रेमन का गणित में सबसे महत्वपूर्ण योगदान फर्मेट के अंतिम प्रमेय का प्रयास था। गॉस के पत्र में, उसने फ़र्मेट के अंतिम प्रमेय के सामान्य प्रमाण के लिए एक रणनीति तैयार की। उनके पत्र में 200 वर्षों में साक्ष्य की दिशा में पहली पर्याप्त प्रगति थी।
            गणित और विज्ञान में उनके योगदान के लिए, गोटिंगेन विश्वविद्यालय ने एक महिला होने के बावजूद सोफी को मरणोपरांत मानद उपाधि से सम्मानित करने का फैसला किया था। हालांकि, 1831 में स्तन कैंसर के साथ एक लड़ाई से उनकी मृत्यु हो गई, और उन्हें कभी डिग्री से सम्मानित नहीं किया गया।
            सोफिया जर्मेन के बारे में किताबें:
            नथिंग स्टॉप्ड सोफी: द स्टोरी ऑफ अनकशेबल मैथमेटिशियन सोफी जर्मेन
            प्रधान रहस्य: सोफी जर्मेन का जीवन और गणित
            सोफी की डायरी: ए हिस्टोरिकल फिक्शनशोफी जर्मेन: एन एसेय इन द हिस्ट्री ऑफ़ एलैसिटी
            ऐडा लवलेस(Ada Lovelace)
            Ada Lovelace को कई लोग कंप्यूटर प्रोग्राम का पहला लेखक मानते हैं - आधुनिक कंप्यूटर के आविष्कार से पहले एक सदी रहने के बावजूद। उसका जन्म 1815 में हुआ था; उसकी माँ ने सुनिश्चित किया कि उसे गणित और संगीत में ट्यूशन मिले।
            Ada Lovelace,5 famous women mathematicians who changed the world

            Ada Lovelace(ऐडा लवलेस |)

            1834 में, Ada Lovelace ने एक डिनर पार्टी में भाग लिया जहाँ वह अन्य गणितज्ञों और वैज्ञानिकों में शामिल थीं। लोग एक विश्लेषणात्मक इंजन की क्षमताओं का विश्लेषण करने के साथ एक गणना मशीन के लिए एक विचार पर चर्चा कर रहे थे।
            उनके पिता ने भी अडा को विज्ञान में अपना करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गणित के प्रोफेसर चार्ल्स बैबेज से मिलवाया, जिन्हें आज कंप्यूटर के पिता के रूप में पहचाना जाता है। यहां तक ​​कि अदा लवलेस 17 थी; वह बौद्धिक रूप से बैबेज की सहकर्मी थी। जब उसने शादी की है, तो उसका पति चाहता था कि वह सिर्फ एक रईस की पत्नी और माँ बने, लेकिन उसने अपना करियर जारी रखा।
            Charles Babbage, a mathematician, and an engineer.,5 famous women mathematicians who changed the world

            Charles Babbage, a mathematician, and an engineer(चार्ल्स बैबेज, एक गणितज्ञ, और एक इंजीनियर.)

            एक दिन, चार्ल्स बैबेज ने एक इतालवी गणितज्ञ द्वारा Ada Lovelace को इस तरह के उपकरण के बारे में एक लेख के अनुवाद का कार्य नियुक्त किया। उसने अपने नोट्स के साथ लंबाई में तीन बार एक काम का उत्पादन किया। लेख जे में उनके योगदान में रेखांकन बनाने और अन्य वैज्ञानिक उपयोगों के लिए संगीत की रचना करने के लिए उपकरण का उपयोग करने के विचार शामिल थे।
            वह बर्नौली संख्याओं की गणना करने के लिए मशीन का उपयोग करने की योजना के पीछे मास्टरमाइंड भी था, जिसे पहला कंप्यूटर प्रोग्राम माना जाता है। एक सॉफ्टवेयर भाषा है जिसे 1979 में उनके सम्मान में नामित किया गया था।
            दुर्भाग्य से, एक बीमारी के कारण, Ada Lovelace का 1852 में निधन हो गया। अपने छोटे जीवन के बावजूद, उन्होंने हमारी आधुनिक-दिन की कंप्यूटर भाषा और एक प्रेरणादायक शैक्षणिक और रोल मॉडल के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उसने ऐसी मशीनों की कल्पना की जो सिर्फ संख्याओं के बजाय प्रतीकों में हेरफेर कर सकती हैं।जबकि कुछ दुनिया के पहले प्रोग्रामर के रूप में उनके खिताब पर बहस करेंगे, एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ के रूप में उनके प्रभाव को नकारने वाला कोई नहीं है जो अपने समय से पहले भी थे।
            एडा लवलेस के बारे में किताबें:
            एडा लवलेस, विज्ञान के कवि: पहला कंप्यूटर प्रोग्रामर
            एडा बायरन लवलेस और थिंकिंग मशीन
            कोडिंग में सपना देखना: एडा बायरन लवलेस, कंप्यूटर पायनियर
            एडा लवलेस (छोटे लोग, बड़े सपने)
            लवलेस एंड बैबेज का रोमांचक रोमांच: (ज्यादातर) पहला कंप्यूटर की सच्ची कहानी
            एडा के विचार: दुनिया की पहली कंप्यूटर प्रोग्रामर एडा लवलेश की कहानी
            कौन कहता है कि महिलाएं कंप्यूटर प्रोग्रामर नहीं हो सकती हैं ?: एडा लवलेस की कहानी
            सोफिया कोवालेवस्काया(Sofya Kovalevskaya)
            एक और प्रेरणादायक और आकांक्षी गणितीय महिला सोफिया कोवालेवस्काया थी, जो 1850 में मास्को में पैदा हुई थी। अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध, उन्होंने अपने चाचा की सहायता से गणित का अध्ययन किया। जब वह 11 साल की थी, तो उसने अवकलन की किताब से पाठ्यपुस्तक के पन्नों को वॉलपेपर के रूप में इस्तेमाल किया और वॉलपेपर का उपयोग डेरिवेटिव्स और इंटीग्रल्स का अध्ययन करने के लिए किया। एक बार जब उसके पिता को पता चला कि सोफिया इस विषय में बहुत प्रतिभाशाली है, तो उसने उसे निजी सबक लेने की अनुमति दी।
            Sofya Kovalevskaya,5 famous women mathematicians who changed the world

            Sofya Kovalevskaya(सोफिया कोवालेवस्काया )

            बाद में वह अपने लिंग के कारण विशेष अनुमति के साथ हीडलबर्ग विश्वविद्यालय में व्याख्यान में भाग लिया। सार सोच के लिए महिलाओं की क्षमता पर हर्बर्ट स्पेंसर के साथ उनकी बहस हुई। उस बहस में हर्बर्ट ने उससे पूछा:
            क्या आप रसोई की सफाई से परे कुछ सोच सकते हैं?
            तब सोफिया ने साबित किया कि हर्बर्ट शनि के छल्ले, अण्डाकार इंटीग्रल और आंशिक अवकल समीकरणों की गतिशीलता के बारे में तीन शोधपत्र गलत लिख रहा था। तब विश्वविद्यालय ने फैसला किया कि सोफिया कोवालेवस्काया ने गणित के उप-सह-प्रशंसा में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। वह गणित में डॉक्टरेट हासिल करने वाली आधुनिक यूरोप की पहली महिला थीं। हालांकि, उसका लिंग अभी भी उसके और अन्य सभी महिलाओं के लिए काफी बाधा था।
            वर्ष 1880 में, सोफा कोवालेवस्काया को गोस्टा मिताग-लेफ़लर द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग में एक अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था। Mittag-Leffler भी उनके विरोध को दूर करने में कामयाब रहा, और उन्होंने सोफिया को स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर बनने में मदद की इस तथ्य के बावजूद कि वह एक महिला थी।
            उसने कलन का अध्ययन किया।
            बाद के वर्षों में, वह एक गणित पत्रिका, एक्टा मैथमेटिका के संपादक बन गए। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था जब उन्होंने फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंस द्वारा एक प्रतियोगिता में एक निश्चित बिंदु के आसपास एक ठोस शरीर के रोटेशन पर अपने पेपर में प्रवेश किया और जीता। इस प्रकाशन में उनके काम को बहुत माना गया।
            सोफ़िया ने अपने जीवन के अधिकांश समय में एक आदमी के समान शैक्षणिक विशेषाधिकार प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया, लेकिन अपनी लगातार रुचि और कड़ी मेहनत के साथ, वह एक महिला शिक्षक और गणित के रूप में बड़े पैमाने पर कदम उठाने में सक्षम रही। वह महिलाओं के अधिकारों की हिमायती थीं।
            सोफिया कोवालेवस्काया के बारे में किताबें:
            सोन्या कोवालेवस्की; बचपन की उसकी यादें
            एक रूसी बचपन
            एमी नोथेर
            एमी नोथेर का जन्म 1882 में जर्मनी में हुआ था, और वह शायद अब तक की सबसे प्रभावशाली महिला गणितज्ञ थीं। वह इन अन्य उल्लेखनीय महिलाओं के रूप में गणित में तुरंत दिलचस्पी नहीं ले रही थी। इसके बजाय, वह फ्रेंच और अंग्रेजी जैसी भाषाओं के अध्ययन और शिक्षण में शामिल थी। उसने खाना पकाने, सफाई आदि जैसे पारंपरिक गृहिणी कार्य भी सीखे।
            Emmy Noether,5 famous women mathematicians who changed the world

            Emmy Noether(एमी नोथेर)

            चूँकि उसके भाई और पिता दोनों एर्लांगेन विश्वविद्यालय में गणितज्ञ थे, उसने 18 वर्ष की उम्र में गणित की कक्षा लेने का फैसला किया था। उसे नामांकन से वंचित कर दिया गया और उसे केवल इसलिए ऑडिट करने की अनुमति दी गई क्योंकि वह एक महिला थी। दो साल के अध्ययन के बाद, एमी ने एक परीक्षा ली, जिसने उन्हें विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट कार्यक्रम और गणित की अनुमति दी, जहां वह तब गणित में डिग्री हासिल करने वाली दूसरी महिला बन गईं।
            एमी नोथेर की इस पसंद के कारण, अब हम नोथर के प्रमेय के बारे में जानते हैं, जिसने गणित और आधुनिक भौतिकी के रोमांचक चौराहे की खोज की। दूसरे शब्दों में, यह प्रकृति में समरूपताओं के लिए प्रकृति के संरक्षण कानूनों से संबंधित एक मौलिक प्रमेय है। उसके सिद्धांत का प्रभाव बहुत बड़ा था। प्रमेय ने हमारे ब्रह्मांड के कामकाज में बहुत गहन अंतर्दृष्टि दी। एमी नोथर्स प्रमेय कहा गया था:
            एक अंतर्दृष्टि जो भौतिकी में गणितीय समरूपता और संरक्षण कानूनों को जोड़ती है।
            नॉथर्स प्रमेय
            1918 में युद्ध की समाप्ति के बाद, उन्हें फेलिक्स क्लेन और डेविड हिल्बर्ट को अपने शोध और कार्य में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, जो गोटिंगेन विश्वविद्यालय में आइंस्टीन के सिद्धांतों में से एक को परिभाषित करता है। वह सज्जन के साथ काम करने के लिए सहमत हो गई और खुद को मुआवजे के साथ एक शिक्षण पद के लायक साबित कर दिया।
            एमी की शिक्षण शैली ने उन्हें अन्य शिक्षकों से अलग और आगे खड़ा कर दिया। उसने अपने छात्रों को अपने स्वयं के विचारों को विकसित करने के लिए चुनौती दी, मुख्य रूप से उन्हें खुद को पढ़ाने के लिए सिखाया।
            उनकी मृत्यु के बाद, 1935 में, बीमारी के कारण अल्बर्ट आइंस्टीन ने उनके सम्मान में न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादक को एक अत्यंत प्रशंसनीय नोट लिखा।
            पिछले कुछ दिनों के भीतर, एक प्रतिष्ठित गणितज्ञ, प्रोफेसर एमी नोथेर, जो पूर्व में गोट्टिंगन विश्वविद्यालय से जुड़े थे और ब्रायन मावर कॉलेज में पिछले दो वर्षों से, अपने तीसरे वर्ष में निधन हो गया। सबसे सक्षम जीवित गणितज्ञों के निर्णय में, फ्रूलेइन नोथेर सबसे महत्वपूर्ण रचनात्मक गणितीय प्रतिभा थी, इस प्रकार महिलाओं की उच्च शिक्षा शुरू होने के बाद से अब तक का उत्पादन किया गया था। बीजगणित के दायरे में, जिसमें सबसे अधिक प्रतिभाशाली गणितज्ञ सदियों से व्यस्त रहे हैं, उसने उन तरीकों की खोज की जो गणितज्ञों की वर्तमान युवा पीढ़ी के विकास में काफी महत्व साबित हुए हैं। शुद्ध गणित, अपने तरीके से, तार्किक विचारों की कविता है। एक ऑपरेशन के सबसे सामान्य विचारों की तलाश करता है जो सरल, तार्किक और एकीकृत रूप में औपचारिक रिश्तों के सबसे बड़े संभावित चक्र को एक साथ लाएगा। तार्किक सौंदर्य की ओर इस प्रयास में, प्रकृति के नियमों में गहरी पैठ के लिए आध्यात्मिक सूत्र आवश्यक हैं।
            उसका सिद्धांत समरूपता से संबंधित है
            अपने व्यक्ति और अपने शिक्षण में इन विशेषताओं का प्रदर्शन करके, वह अपने पूरे करियर में कई लोगों के लिए एक प्यारी शिक्षक बन गई। उसने बहुत सी महिलाओं को सीखने और खोजने के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित किया। और इसलिए उसके कई छात्रों ने उसके पथ का अनुसरण किया।
            एमी नोथर के बारे में किताबें:
            द नॉएथर थ्योरीज़: बीसवीं शताब्दी में अविवेकी और संरक्षण कानून
            एमी नोथर्स का अद्भुत सिद्धांत
            ब्यूटीफुल सिमेट्री: द स्टोरी ऑफ़ एमी नूथर
            ये पांच गणितज्ञ इतिहास के सभी उन्नत और महत्वपूर्ण महिला योगदानकर्ताओं के गणित के केवल एक छोटे से प्रतिनिधित्व हैं। एक महिला होने के कारण, इनमें से कई अकादमिक नेता सीमित थे कि वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा का उपयोग कैसे कर सकते हैं। बहुतों ने पढ़ाने की इच्छा की थी लेकिन अपने लिंग के कारण ऐसे अवसरों से वंचित थे। इन विभिन्न स्थितियों और अवधियों के माध्यम से, इन महिलाओं के लिए आज तक अधिक संभावनाएं दिखाई दीं। गणित और विज्ञान में अपने काम के माध्यम से, समाज महिलाओं द्वारा पूरी की जा रही इन भूमिकाओं को स्वीकार कर रहा है और तब से महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
            तो यह केवल एक गणितज्ञ के रूप में महिलाओं के लिए एक झलक है। मुझे आशा है कि आप रास्ते में अन्य प्रसिद्ध महिला गणितज्ञों का पता लगा सकते हैं।


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            How to succeed in career?

            How to succeed in career?


              1.केरियर में सफलता कैसे हासिल करें?(How to succeed in career?)-

              How to succeed in career?

              How to succeed in career?

              केरियर में सफलता हर विद्यार्थी चाहता है लेकिन एक स्पष्ट रणनीति ना होने के कारण सफलता नहीं मिल पाती है।एक सही केरियर योजना से आपको सफलता मिलने के अवसर बढ़ जाते हैं।कैरियर में सफलता के लिए विद्यार्थी की दिशा सही होने के साथ-साथ उसमें दूर दृष्टि भी होनी चाहिए। योजना,सही दिशा और दूरदृष्टि का केरियर की सफलता में अहम भूमिका और योगदान होता है। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि कैरियर में सफलता के लिए किन-किन बातों पर ध्यान रखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए।कई युवा अपनी स्पष्ट रणनीति और उनका अभाव में भटक जाते हैं,उनको आगे कोई रास्ता नजर नहीं आता है कि क्या करें क्या न करें?
              आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें ।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके ।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए ।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

              2.कैरियर में दूरदृष्टि की भूमिका(Role of vision in career)-

              यदि आपमें दूरदृष्टि है तो आपको एक सही कैरियर में सफलता की ओर तेजी से बढ़ने का मौका मिलता है।दूरदृष्टि से तात्पर्य है कि आप अपने कैरियर में आगे 10-15 साल तक की सोच रखकर फैसले और निर्णय लेते हैं तो उससे सफलता के चांस बढ़ जाते हैं। आज के समय में कोई भी मनुष्य तथा विद्यार्थी कैरियर के मामले में किसी तरह का समझौता नहीं करना चाहता हैं।लोग20-30 साल आगे की सोच लेकर चलते हैं। जहां तक महिलाओं का प्रश्न है तो महिलाओं पर दोहरी भूमिका होती है।महिलाओं का घर-गृहस्थी का कार्य भी सम्हालना होता है।घर-गृहस्ती की जिम्मेदारी से महिलाएं बच नहीं सकती है।घर-गृहस्थी का कार्य उन्हें उठाना ही पड़ता है।ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत जीवन और व्यावसायिक जीवन में सही तालमेल और सामंजस्य बिठाना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है।इसे मैनेज करने की स्थिति में रास्ते ओर आसान हो जाते हैं।इसलिए कैरियर प्लानिंग के स्मार्ट तरीकों से परिचित होना चाहिए।ये तरीके काफी लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।इनके जरिए अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
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              3.अपना लक्ष्य निश्चित करें(Set your goal)-

              जीवन के चाहे छोटे कार्य हों या बड़े कार्य हों,जब तक आप अपना लक्ष्य निर्धारित नहीं करेंगे तब तक कुछ भी करना मुश्किल है।अपना लक्ष्य तय नहीं करना एक तरह से अंधेरे में तीर चलाना है जो कहीं भी लग सकता है। यदि आप अपना लक्ष्य तय कर लेते हैं तो निशाना लगाना आसान हो जाता है।आपको पता है कि आपका लक्ष्य क्या है और उस तक कैसे पहुंचना है? यदि लक्ष्य ही तय न हो तो किस दिशा में,किस गति,किस ढंग से चलना है, कार्य करना है यह आप तय ही नहीं कर पाओगे। इसलिए किसी भी कार्य को करने की सबसे पहली शर्त है कि अपना लक्ष्य तय करें। लक्ष्य तय करने पर आपको मालूम हो जाएगा कि किन-किन चीजों की जरूरत है और उस लक्ष्य को कैसे हासिल कर सकते हैं? याद रखिए किसी भी अच्छे कार्य को सफलतापूर्वक करने का कोई शॉर्टकट नहीं होता है।लक्ष्य तय करने के लिए एक्शन प्लान तैयार कीजिए।यदि आपके पास अनुभव नहीं है तो अनुभवी व्यक्तियों से सुझाव लें। इसके अलावा आज ऑनलाइन बहुत से माध्यम हैं जहां से आप जानकारी हासिल कर सकते हैं।गूगल पर सर्च करें,यूट्यूब वीडियो देखिए तो आपको घर बैठे उचित मार्गदर्शन प्राप्त हो जाएगा। इसके पश्चात ठोस एक्शन प्लान तैयार कीजिए। एक्शन प्लान में सभी काम सही समयानुसार तय करें।इस एक्शन प्लान के अनुसार कार्य करने के लिए अपना 100% योगदान दें। ढुलमुल नीति व आधे अधूरे मन से किया गया कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता है।

              4.सीखना जारी रखें(Keep learning)-

              जीवन का ऊंचा लक्ष्य तय किया गया हो तो यह ध्यान में रखने की बात है कि लंबी दूरी तय करने के लिए अधिक प्रतिबद्धता दिखाने की आवश्यकता होती है।किसी भी लक्ष्य और कार्य से संबंधित सारी बातें सीखकर फिर कोई कार्य प्रारंभ नहीं किया जाता है। बहुत सी बातें आपको अपने लक्ष्य पर चलते समय सीखनी होती है।इसलिए हमेशा आपमें सीखने की ललक होनी चाहिए। अपने लक्ष्य से सम्बन्धित छोटी-छोटी बारीक बातों को भी सीखें।कैरियर प्लानिंग के दौरान सही दिशा में पहल करने से आप काफी कुछ सीख सकते हैं।सीखते रहने की आदत से आपमें आत्मविश्वास आता है क्योंकि सीखने से आपके अंदर अपने कैरियर से संबंधित कोई न कोई स्किल का निर्माण हो जाता है।जब आप लक्ष्य पर चलते हैं तो बहुत सी कठिनाईयां आपके सम्मुख प्रस्तुत होती है जिनका आपको समाधान करके आगे बढ़ना होता है।इससे आपके अंदर लचीलापन आता है और आप अपने कैरियर से जुड़े फैसले को आसानी से अमल में ला सकते हैं।

              5.लक्ष्य में क्या-क्या करना है इसकी लिस्ट तैयार करें(Make a list of what to do in the goal)-

              यदि लक्ष्य बहुत बड़ा है तो उस लक्ष्य को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट लें।एक साथ लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं होता है।एक साथ लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं होता है।उसके लिए आप उसको छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट लें जिन्हें आप कर सकते हैं तथा जो आपके लक्ष्य तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं ।जिनको आप नहीं कर सकते हैं लेकिन लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कार्य करने जरूरी है उसके लिए अपने मित्रों से सहायता लें।याद रखें किसी भी कार्य की सफलता में एक अकेला व्यक्ति शामिल नहीं होता है।उस सफलता में कई लोगों का योगदान होता है। सहायता लेने में यह बात अवश्य ध्यान रखनी चाहिए कि वे आपके करीबी हो तथा आप तथा आपके कार्य को प्रोत्साहित करने वाले हों। जो लोग आपको हतोत्साहित करते हो हमेशा उनसे दूर ही रहें।
              लक्ष्य को जिन छोटे-छोटे कार्य में बांट लिया है उनको एक-एक करके हासिल करने की कोशिश करें।अपने लक्ष्य को हासिल करते समय आप सीखते रहें और आगे बढ़ते रहें। लक्ष्य के बीच में जो भी कठिनाइयां आती हैं उनको हल करते जाएं। बहुत सी बातें आप कार्य करते करते ही सीखते जाएंगे।अपने दिमाग व विवेक का प्रयोग करेंगे तो काम से काम सीखते जाएंगे ।कार्य करते समय कई अनचाही तथा ऐसी समस्याएं भी आती हैं जिनकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी।अपने आप को विद्यार्थी बनाए रखें अर्थात् हमेशा सीखने के लिए तत्पर रहें।
              लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं होता है।आप लक्ष्य तक एक साथ नहीं पहुंच सकते हैं। धीरे-धीरे लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहें।कार्य की बारीकियां समझें। नई-नई रिसर्च करते रहे। अपने क्षेत्र से जुड़ी हुई नई चीजें सीखते रहें। अपने क्षेत्र से संबंधित नॉलेज को बढ़ाते रहेंगे तो आप आगे से आगे तरक्की करते जाएंगे और आपकी परफॉर्मेंस काफी अच्छी होती जाएगी। इससे आपके भीतर आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा, आत्मविश्वास किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है।
              Akso Read This Article-Great opportunities to make a career in mathematics

              6.व्यावहारिक ज्ञान(practical knowledge)-

              How to succeed in career?

              How to succeed in career?

              कैरियर में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यावहारिक ज्ञान भी होना चाहिए यदि नहीं है तो व्यावहारिक ज्ञान भी साथ-साथ अर्जित करते जाएं। किन-किन लोगों से आपका व्यावसायिक काम पड़ेगा ऐसे लोगों से व्यक्तिगत व्यवहार व मेलजोल बढ़ाएं। उनसे केवल औपचारिक बात ही नहीं करें बल्कि कुछ अनौपचारिक संबंध भी कायम करें।ऐसा करने से आपस में बनावटीपन नहीं रहेगा। मनुष्य एक सामाजिक और चेतनशील प्राणी है।इसलिए हर एक मनुष्य की कुछ आकांक्षाएं होती है। व्यावसायिक और कैरियर को मजबूती देने के लिए आपसी मेलजोल,मधुर व्यवहार,शिष्टाचार,एक-दूसरे का आदर करना, आगे बढ़कर पहल करना जैसे कई गुणों की आवश्यकता होती है। केवल प्रोफेशनल बनकर आप अपने कैरियर को आगे तक तथा सफलतापूर्वक नहीं कर सकते हैं। इसलिए कैरियर की सफलता के लिए प्रोफेशनल ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिए।अपना प्रोफेशनल तथा व्यावहारिक ज्ञान बढ़ाने के लिए सबसे बढ़िया,सरल,सुगम व श्रेष्ठ तरीका है कि आप अपने ज्ञान को साझा करते रहें। धन का साझा करने अर्थात् बांटने पर घटता है जबकि नाॅलेज को साझा करने अर्थात् बांटने पर बढ़ता जाता है। आज के युग में कैरियर में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है इसलिए अब परंपरागत तरीकों से कैरियर में सफलता प्राप्त करने के दिन लद गए हैं।अब आप स्मार्ट और आधुनिक तरीके अपनाएंगे तो आगे बढ़ते जाएंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी पुरानी बातें गलत है और नई बातें सभी सही है ।कठिन परिश्रम,लगन ,उत्साह,आत्मविश्वास की पहले भी जरूरत थी और आज भी जरूरत है ।नवीन तकनीकी,नई-नई रिसर्च, प्रौद्योगिकी आज की आवश्यकता है इसलिए इनका भी समावेश करें।

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