Why Algebra is a Difficult Subject?

Why Algebra is a Difficult Subject?


    बीजगणित एक कठिन विषय क्यों है?(Why Algebra is a Difficult Topic?)

    Why Algebra is a Difficult Subject?
    Why Algebra is a Difficult Subject?
    विभिन्न परीक्षाओं तथा विद्यार्थियों को जब यह पूछा जाता है कि उनको सबसे अधिक किस विषय के प्रश्नों ने परेशान किया।कोई विद्यार्थी गणित को,कोई विद्यार्थी अंग्रेजी को,कोई विद्यार्थी हिंदी तथा अन्य विषयों को कठिन बताता है।इसका अर्थ यही समझा जाना चाहिए कि हर विद्यार्थी की प्रकृति अलग-अलग होती है।जो विद्यार्थी जिस विषय को रूचिपूर्वक पढ़ता है वह विषय उसके लिए सरल हो जाता है। जिस विषय को पसंद नहीं करता,रुचिपूर्वक नहीं पढ़ता, बार-बार अभ्यास व पुनरावृत्ति नहीं करता वह विषय उसके लिए कठिन हो जाता है।इस आर्टिकल में हम उन विद्यार्थियों के बारे में बात कर रहे हैं जिन विद्यार्थियों को बीजगणित कठिन प्रतीत होता है।अंकगणित का अभ्यास बालकों को शुरू से कराया जाता है इसलिए अंकगणित उनके लिए सरल विषय होता है।बीजगणित का अध्ययन प्राथमिक कक्षाओं से नहीं कराया जाता है तथा बाद में भी इस पर कम फोकस किया जाता है इसलिए बीजगणित उनको कठिन प्रतीत होता है। बीजगणित को विद्यार्थी बिना समझे, बीजगणित की क्रियाओं को रटकर इसकेे प्रश्नों को हल करने का प्रयास करते हैं।बीजगणित की समुच्चय भाषा एवं सूत्रों में शामिल सिद्धांतों को विद्यार्थी समझ नहीं पाते। अधिकांश विद्यार्थी बीजगणित को अंकगणित से एक अलग विषय मानते हैं तथा यह समझ नहीं पाते हैं कि बीजगणित अंकगणित का ही प्रसार है।बीजगणित चिंतन एवं तर्क की गहराई को अधिकांश विद्यार्थी समझ नहीं पाते इसलिए उनको यह विषय कठिन लगता है।बीजगणित को समझने के लिए विद्यार्थी में मानसिक परिपक्वता का एक स्तर होना आवश्यक है जिसके बिना इस विषय के प्रतीकों,संकेतों,सूत्रों,कथनों,वाक्यों या समीकरणों को भलीभांति नहीं समझा जा सकता।
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    बीजगणित निम्नलिखित कारणों से कठिन विषय लगता है-
    (1.)अंकगणित की विषय सामग्री के सिद्धांतों एवं प्रत्ययों के स्पष्ट ज्ञान के बिना बीजगणित के प्रतीकों एवं सूत्रों को नहीं समझा जा सकता।बीजगणित अंकगणित का ही एक विकसित सामान्यीकृत रूप है। अतः बीजगणित को समझने से पूर्व अंकगणित के सिद्धांतों की अधिक स्पष्ट जानकारी होना आवश्यक है।जैसे a+b=b+a,a×b=b×a इत्यादि।
    (2.)बीजगणित में अंकगणित की संख्या प्रणाली का प्रसार किया गया है।जिन विद्यार्थियों को संख्याओं की विशेषताओं का ज्ञान नहीं होता है वे बीजीय अक्षरों के प्रतिस्थापन का अर्थ एवं महत्व नहीं समझ सकते।
    (3.)बीजगणित में चिन्हित राशियों का प्रयोग होता है तथा धनात्मक एवं ऋणात्मक चिन्हों से राशियों के मान को प्रदर्शित किया जाता है। शून्य,धनात्मक राशियां, ऋणात्मक राशियां आदि के प्रयोग की दक्षता बिना इस प्रकार की संख्याओं का सही उपयोग संभव नहीं है।इन बीजीय पदों या अक्षरों पर चारों संक्रियाओं को करने का अभ्यास भी आवश्यक है।संख्या रेखा की संकल्पनाएं महत्वपूर्ण है। संख्या रेखा पर शून्य से बाएं तथा दाएं स्थित संख्याएं बीजगणित संकल्पनाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है।
    (4.)वस्तुतः बीजगणित अंकगणित की संक्षिप्त भाषा है।जिस अंकगणित के सिद्धांत को व्यक्त करने में लम्बे कथन की आवश्यकता होती है उसी सिद्धांत को बीजगणितीय भाषा में सूत्रों या प्रतीकों द्वारा संक्षिप्त रूप में प्रकट किया जा सकता है।ब्याज की गणना दर प्रतिशत,मूलधन और समय के गुणनफल द्वारा की जाती है।इसी बात को हम सूत्र एवं प्रतीकों द्वारा बीजगणित भाषा में निम्न प्रकार लिख सकते हैं-
    I=P×R×T/100
    जब तक विद्यार्थियों को बीजगणितीय समुच्चय भाषा एवं सूत्रों को भली-भांति समझने का अभ्यास नहीं कराया जाता तब तक वे इस विषय को कठिन मानकर इसमें रुचि नहीं लेंगे।
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    (5.) बीजगणित की विषय-सामग्री में संख्या रेखा, गुणनखंड,समीकरण,असमीकरण, रेखाचित्र एवं समुच्चय सिद्धांत के उप-विषय मुख्य हैं।इन उप-विषयों में प्रत्येक उप-विषय को पूर्णतया समझने के लिए इनसे सम्बन्धित अंकगणितीय प्रत्ययों की पूर्ण जानकारी आवश्यक है यहां पर विद्यार्थियों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि बीजगणित द्वारा समस्याओं को शीघ्रता से हल किया जा सकता है।समीकरण द्वारा समस्याओं के तथ्यों में परस्पर संबंध को प्रकट किया जा सकता है तथा समस्याओं के हल ज्ञात किए जा सकते हैं। समुच्चय सिद्धांत हमें संख्याओं, वस्तुओं आदि के अंकगणितीय पक्ष को समुच्चयों के रूप में प्रकट करने में सहायता करता है तथा इनके संख्यात्मक पक्ष को व्यक्त करने की एक विधि प्रदान करता है।इनके प्रत्ययों को समझने के लिए गूढ़ एवं सूक्ष्म विचारों एवं उनके तर्क को समझने की क्षमता का होना आवश्यक है। जो विद्यार्थी इन गूढ़ विचारों को समझने की क्षमता नहीं रखता है उन्हें बीजगणित एक कठिन विषय लगता है। समुच्चय की भाषा ही बीजगणित की भाषा है।
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    (6.) अधिकतर अध्यापकगण बीजगणित के प्रत्ययों को स्पष्ट करने के लिए अंकगणित की सहायता नहीं लेते।यदि वे इन दोनों में परस्पर सह-सम्बन्ध स्थापित कर पढ़ाएं तो विद्यार्थियों को बीजगणित को समझने में सहायता मिलेगी। बीजगणित सूत्रों की पुष्टि अंकगणित के उदाहरणों द्वारा करने से विद्यार्थियों को आधारभूत नियमों को समझने में सुविधा होगी।अधिकांश विद्यार्थी a^2तथा 2a में अंतर नहीं जानते।यदि हम उन्हें के a के स्थान पर संख्याएं लिखकर अर्थ स्पष्ट करें तो वे बीजीय पदों या राशियों को समझ सकते हैं।
    5 ^2=5 ×5, 2+3=3+2,a+b=b+a,3×2=2×3,a×b=b×a,4<5<6,
    x<x+1<x+2आदि द्वारा बीजीय राशियों के अर्थों को स्पष्ट किया जा सकता है।
    (7.) बीजगणित में समस्याओं को हल करना एक महत्वपूर्ण पक्ष है। समीकरण आदि समस्याओं को हल करने में सहायक होते हैं।यह देखा गया है कि विद्यार्थियों को समीकरण एक अलग उप-विषय के रूप में पढ़ाया जाता है तथा समस्याओं को हल करने की विधि के आधार के रूप में नहीं पढ़ाया जाता है।फल यह है कि विद्यार्थी समीकरण को यांत्रिक रूप से हल करना सीख जाते हैं किन्तु समस्याओं के आंकड़ों को समीकरण के रूप में व्यक्त नहीं कर सकते और न ही समीकरण की विवेचना कर उसके अर्थ को समझ सकते हैं।
    (8.)बीजगणित में सामान्यीकरण एक मुख्य प्रवृत्ति है जिसका विकास धैर्य और सावधानी से ही संभव है।अनेक उदाहरणों द्वारा विद्यार्थियों के चिंतन को दिशा प्रदान की जानी चाहिए जिनसे विद्यार्थी स्वयं निष्कर्ष निकाल सके तथा सिद्धांतों का सामान्यीकरण कर सके। अधिकांश विद्यार्थी इस प्रवृत्ति के विकास से वंचित रहते हैं और उच्च गणित को सीखने में कठिनाई का सामना पड़ता है।
    (9.) कुछ ऐसे उप-विषय हैं जिनको पढ़ाते समय अंकगणित ,बीजगणित तथा ज्यामिति के क्षेत्रों को सम्बन्धित कर पढ़ाया जा सकता है। ज्यामितीय आकृतियों के क्षेत्रफल के सूत्र ब्याज, लाभ-हानि,औसत आदि उप-विषयों के सिद्धांतों का सूत्रीकरण एवं इनके हलो के लिए समीकरणों का प्रयोग आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर गणित की तीनों शाखाओं को संबंधित कर पढ़ाया जाना चाहिए।समस्त बीजगणित एवं रेखागणित में समुच्चय भाषा का प्रयोग होता है।अंक गणित की संकल्पनाओं को ही समुच्चय भाषा में प्रकट किया जाता है।आयत,वर्ग आदि चतुर्भुज के उपसमुच्चय हैं तथा रेखाखंड,उसी रेखा का उपसमुच्चय। हमारे विद्यालयों में इस प्रकार के प्रयासों की कमी से विद्यार्थियों को बीजगणित में रूचि का विकास करने के कम अवसर मिलते हैं।
    (10.)बीजगणित की शब्दावली के अर्थों को स्पष्ट रूप से नहीं समझने के कारण विद्यार्थियों को बीजगणित सीखने में कठिनाईयां होती है।चर,अचर, चिन्हित राशि, समानता,असमानता ,व्यंजक,पक्षान्तर,समुच्चय ,रिक्त समुच्चय ,संगतता अवयव, संख्या फलन,संख्यात्मक संबंध,रिंग,ग्रुप,फील्ड आदि ऐसे अनेक शब्द है जिनको समझे बिना इनका प्रयोग संभव नहीं  है।
    (11)बीजगणित की पाठ्यपुस्तकों में  रटने तथा यांत्रिक रूप से पालन करने पर बल दिया जाता है।नतीजा यह है कि पाठ्यपुस्तकों द्वारा विद्यार्थियों को बीजगणित को संक्षिप्त भाषा एवं सामान्यीकरण की प्रवृत्ति के रूप में देखने और समझने के अवसर नहीं मिलते।
    (12.)कक्षा में विद्यार्थियों को यह बात स्पष्ट रूप से नहीं बताई जाती कि बीजगणित द्वारा ही अंकगणित की सामग्री का प्रसार हुआ है। यदि चिन्हित संख्याओं का प्रत्यय का विकास नहीं हुआ होता तो संख्या प्रणाली के नए आयामों की जानकारी नहीं हो पाती । समुच्चय सिद्धांतों के विकास के बिना वस्तुओं के समुच्चय की विशेषताओं पर आधारित बीजगणित का विकास नहीं होता।बहुधा विद्यार्थी सारी बीजगणित पढ़ने के बाद यह नहीं समझ पाते कि बीजगणित का अंकगणित के प्रसार में किस प्रकार महत्वपूर्ण योगदान है।
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    (13.)अध्यापक को इस बात को ध्यान में रखकर बीजगणित नहीं पढ़ाते कि बीजगणित के अध्यापन का आरंभ एक वह स्थिति है जहां सीखी हुई बातों को नई,संक्षिप्त एवं संकेतों को समुच्चय भाषा में व्यक्त किया जाता है।बीजगणित का अध्ययन एक नया स्थल है जहां से अंकगणित में सीखी हुई सामग्री को नए दृष्टिकोण से देखा जाता है तथा नई विधि से व्यवस्थित किया जाता है। बीजगणित संकेतों की संक्षिप्त भाषा है।

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