Why are the different levels of math in private and govt.?
January 20, 2020
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Why are the different levels of mathematics in private and Government Schools?
1.निजी और सरकारी स्कूलों में गणित के विभिन्न स्तर क्यों हैं?(Why are the different levels of mathematics in private and Government Schools?)-
Why are the different levels of math in private and govt.? |
सरकारी स्कूलों में गणित शिक्षकों पर सवाल उठाए जाते रहे हैं।सरकारी शिक्षण संस्थानों का गणित का परीक्षा परिणाम और कुल परिणाम निराशाजनक तथा बिल्कुल कमजोर रहता है।अधिकांश युवाओं की ख्वाहिश सरकारी सेवा प्राप्त करने की रहती है।ऐसी स्थिति में कड़ी स्पर्धा के द्वारा सरकारी सेवाओं में शिक्षकों का चयन किया जाता है वहीं दूसरी तरफ निजी शिक्षण संस्थाओं में गणित के वे शिक्षक पढ़ाते हैं जिनका चयन सरकारी सेवाओं में नहीं होता है।फिर ऐसी क्या बात है जिससे निजी शिक्षण संस्थाओं का परिणाम बेहतर रहता है और सरकारी शिक्षण संस्थाओं का परिणाम कमजोर रहता है।इस आर्टिकल में एक ऐसे अध्यापक का परिचय करा रहे हैं जो सरकारी सेवा में कार्यरत है परन्तु उनसे आसपास के निजी और सरकारी शिक्षण संस्थानों के अध्यापक तो प्रशिक्षण लेते ही हैं साथ ही वे अन्य गणित शिक्षकों के लिए प्रेरणास्पद भी है।यह एक विरोधाभास ही प्रतीत होता है कि सरकारी सेवाओं में होते हुए भी वे एक प्रेरक का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं तथा कई अवार्ड भी जीते हैं। इनका परिचय है किरणदीपसिंह टिवाणा। इनके बारे में पूरा इतिहास नीचे वर्णित किया गया है।यह वर्णन प्रस्तुत करने से पहले सरकारी सेवाओं में गणित तथा अन्य विषयों का परीक्षा परिणाम कमजोर क्यों रहता है इसके बारे में वर्णन कर रहे हैं।
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सरकारी शिक्षण संस्थानों का बेहतर परीक्षा परिणाम न होने का मुख्य कारण है उत्तरदायित्व का न होना। विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने में पाठ्यक्रम, पुस्तकों,शिक्षण संस्थान तथा माता-पिता की महती भूमिका होती है ।इन सबमें शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।सरकारी शिक्षण संस्थाओं में कमजोर परीक्षा परिणाम रहने पर शिक्षकों पर कोई उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किया जाता है।न संस्था प्रधान पर कोई जिम्मेदारी डाली जाती है।इसके परिणामस्वरूप शिक्षक तथा प्रधानाध्यापक लापरवाह होते हैं।उनको इससे कोई मतलब नहीं होता है कि पाठ्यक्रम पूरा हुआ है या नहीं।ठीक से विद्यार्थियों के समझ में आ रहा है या नहीं।प्रतिभाशाली शिक्षकों का चयन होने के बावजूद अपनी प्रतिभा का उपयोग नहीं किया जाएगा तो शिक्षण संस्थाओं का परिणाम अच्छा क्यों कर आएगा?इसके बजाय निजी शिक्षण संस्थानों में भले उच्च प्रतिभाशाली शिक्षक न हो तो भी उनको शिक्षण संस्थान से निकाले जाने का डर रहता है।इसलिए वे शिक्षक कड़ी मेहनत करके विद्यार्थियों को गणित शिक्षा प्रदान कराते हैं।प्रतिवर्ष अपने परीक्षा परिणाम को श्रेष्ठ तथा ओर अधिक श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं।कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है।कड़ी मेहनत से हमारी प्रतिभा निखरती है।इसलिए सरकारी सेवाओं के गणित शिक्षकों और अन्य शिक्षकों का उत्तरदायित्व निर्धारित नहीं किया जाएगा तब तक अच्छे परीक्षा परिणाम की कल्पना करना निरर्थक है।Also Read This Article-5 famous women mathematicians who changed the world
3.सरकारी सेवाओं में स्थायी चयन का होना(Permanent selection in government services)-
सरकारी सेवाओं में चयन होने के बाद शिक्षक स्थाई हो जाता है उसे सरकारी सेवा से हटाना मुश्किल है।सरकारी शिक्षक गुणवत्तापूर्ण गणित शिक्षा या अन्य विषयों की शिक्षा उपलब्ध कराएं या नहीं कराएं, उनकी सेवा पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है।अत्यधिक छुट्टियां मिलती हैं जिनका उपभोग करते रहते हैं। कुल मिलाकर सरकारी शिक्षक की पांचो उंगलीयां घी में है।दूसरी तरफ निजी शिक्षण संस्थानों में गणित शिक्षक का परीक्षा परिणाम कमजोर रहता है तो उसे कभी भी शिक्षण संस्थान से हटाया जा सकता है।निजी शिक्षण संस्थान में गणित शिक्षक तभी तक कार्यरत रहता है जब तक विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम बेहतर रहता है।निजी शिक्षण संस्थानों में सेवा स्थाई नहीं रहती है।यदि कोई शिक्षक अच्छा नहीं पढ़ाता है तो उसकी जगह दूसरे शिक्षक को नियुक्त कर दिया जाता है।4.वेतनमान निश्चित होना(Pay scale to be fixed)-
सरकारी शिक्षक का वेतनमान निश्चित होता है।गणित शिक्षक कड़ी मेहनत करके पढ़ाएगा तो भी उतना ही वेतन मिलेगा तथा निम्न स्तर की गणित शिक्षा प्रदान करेगा तो भी वेतन उतना ही मिलेगा।साथ ही सातवां वेतन आयोग के बाद सरकारी सेवाओं का वेतनमान जिस हिसाब से बढ़ा है उससे सरकारी शिक्षकों की रही-सही कर्मठता को भी लकवा मार गया है।उच्च वेतनमान के कारण गणित शिक्षक तथा अन्य शिक्षक बिल्कुल बेफिक्र हो गए हैं।दूसरी तरफ निजी शिक्षण संस्थानों में काम और परिणाम के आधार पर वेतन दिया जाता है और परिणाम बेहतर आने पर ही वेतन बढ़ाया जाता है।ऐसी स्थिति में निजी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों को कड़ी मेहनत करके बेहतर परिणाम देना होता है। सरकारी शिक्षकों को बेहतर परिणाम हो तो भी वेतन उतना ही मिलेगा तथा परिणाम कमजोर है तो भी वेतन में कोई कटौती नहीं होने वाली है।सरकारी शिक्षकों को उच्च वेतनमान भी एक कारण है जिसे परिणाम कमजोर रहता है।5.शिक्षा संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण का ढीलापन(Loosening of government control over educational institutions)-
सरकारी शिक्षण संस्थानों पर किसी व्यक्ति विशेष का स्वामित्व नहीं होता है।प्रधानाध्यापक हो अथवा शिक्षा अधिकारी उनकी मानसिकता यही होती है कि शिक्षण संस्थान उनका निजी शिक्षण संस्थान तो है नहीं इसलिए वे शिक्षण संस्थान के लिए कड़ी मेहनत नहीं करते हैं।उनको पता होता है कि साल-दो साल बाद उनका स्थानांतरण अन्यत्र हो जाएगा इसलिए वे कोई विशेष प्रयास नहीं करते हैं।निजी शिक्षण संस्थानों में ज्यादातर किसी निजी व्यक्ति के स्वामित्व में होती है इसलिए हमेशा तथा नियमित रूप से मॉनिटरिंग करते रहते हैं।जहां कहीं भी कमी दिखाई देती है उसको तत्काल दुरुस्त करते रहते हैं। माता-पिता,अभिभावकों तथा विद्यार्थियों की शिकायत पर गौर करके उनकी शिकायतों का निवारण करते रहते हैं। जबकि सरकारी शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों,माता-पिता व अभिभावकों की शिकायत का निवारण करना तो दूर की बात है उनकी शिकायत ठीक से सुनी ही नहीं जाती है।6.अनुशासन का ढीलापन(Loosening of discipline)-
सरकारी शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थी न तो अनुशासन में रहते हैं और न ही शिक्षक उनको अनुशासन में रखने का प्रयास करते हैं।सरकारी शिक्षण संस्थान में दोनों ओर से अनुशासन के ढीलेपन में यह भी एक कारण है कि सरकारी शिक्षण संस्थानों में निशुल्क पुस्तकें तथा शिक्षा प्रदान की जाती है। इसलिए माता-पिता,अभिभावकों की ओर से कोई विशेष दबाव नहीं रहता है जबकि निजी शिक्षण संस्थानों में अच्छी फीस वसूली जाती है इसलिए माता-पिता, अभिभावक व विद्यार्थी बिल्कुल भी ढिलाई नहीं बरतते हैं।वे कोशिश यही करते हैं कि उनकी फीस वसूल हो जाए।कोई भी कमी होती है तो तत्काल शिक्षण संस्थान के निदेशक को शिकायत करते हैं।7.समीक्षा(Review)-
उपर्युक्त विवरण में सरकारी शिक्षण संस्थानों तथा निजी शिक्षण संस्थानों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। इससे आपको ऐसा प्रतीत हो सकता है कि निजी शिक्षण संस्थानों का ढर्रा तथा अनुशासन व शिक्षा का स्तर बहुत बढ़िया है।वस्तुतः निजी शिक्षण संस्थान भी पाठ्यक्रम के अतिरिक्त बालकों को अपनी तरफ से चारित्रिक व नैतिक शिक्षा प्रदान नहीं कराते हैं।उनका एकमात्र लक्ष्य यह होता है कि निजी शिक्षण संस्थानों का परिणाम अच्छा रहे।परंतु किसी भी शिक्षण संस्थान का मूल्यांकन एकमात्र परीक्षा परिणाम नहीं होता है।गणित शिक्षण का सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ, जीवन से गणित का सम्बन्ध, गणित का व्यावहारिक ज्ञान,विद्यार्थियों का चारित्रिक व नैतिक विकास इत्यादि ऐसे फैक्टर है जिनके आधार पर शिक्षकों तथा शिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन किया जाता है।
सरकारी शिक्षण संस्थानों की ऐसी स्थिति में श्री किरणदीप सिंह टिवाणा जैसे शिक्षक का उपलब्ध होना एक विरोधाभास ही है वरना ऐसे शिक्षक सरकारी शिक्षण संस्थानों में कहां मिलते हैं? जुगनू के प्रकाश की तरह ऐसे गणित शिक्षक मिलते हैं।
काश अन्य सरकारी शिक्षक गणित शिक्षक किरणदीपसिंह टिवाणा से प्रेरणा ले तो भारत की दिशा और दशा दोनों परिवर्तित हो सकती है।आज का युग STEM अर्थात साइंस, टेक्नोलॉजी,इंजीनियरिंग तथा मैथमेटिक्स का युग है। जो देश इनमें बढ़-चढ़कर है वही विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा हो सकता है।ऐसी स्थिति में मैथमेटिक्स का अहम योगदान है।यदि गणित शिक्षक इस बात को समझेंऔर अपना उत्तरदायित्व को वहन करें तो देश का कायाकल्प हो सकता है।हम इसी उद्देश्य से इस आर्टिकल को पोस्ट कर रहे हैं कि वे इससे कुछ सीख ले सके और हमारे द्वारा किए गए परिश्रम को सार्थक कर सकें। गणित वास्तव में अद्भुत विषय है इसका आगे आनेवाले भविष्य में विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रहनेवाली है।
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8.सरकारी स्कूल का मास्टर बना रहा प्राइवेट स्कूलों के अध्यापकों को गणित का ‘मास्टर'(The master of government school continues to be the 'master' of mathematics to the teachers of private schools)- Ludhiana News Publish Date:Wed, 04 Sep 2019
40 वर्ष के किरणदीप सिंह टिवाणा से शहर के 17 प्राइवेट स्कूलों के टीचर इनसे ट्रेनिंग ले चुके हैं। इसके लिए वह कोई फीस तक भी नहीं लेते हैं।
जगराओं। एक तरफ जहां सरकारी स्कूलों के अध्यापकों की कार्यशैली पर आए दिन सवाल उठाए जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ जिले के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल सिहाड़ा के गणित के मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा अपने गणित के ज्ञान से मिसाल बन चुके हैं। टिवाणा ऐसे सरकारी मास्टर हैं जिन्हें प्राइवेट स्कूल अपने यहां ट्रेनिंग देने के लिए बुलाते हैं। शहर के डीएवी व बीसीएम जैसे स्कूलों समेत करीब डेढ़ दर्जन प्राइवेट स्कूलों के गणित अध्यापकों को मास्टर टिवाणा मुफ्त में ट्रेनिंग दे चुके हैं। 40 वर्ष के किरणदीप सिंह टिवाणा न सिर्फ सरकारी बल्कि बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों के गणित के अध्यापकों को भी ट्रेनिंग देकर मैथ्स का मास्टर बना रहे हैं। शहर के 17 प्राइवेट स्कूलों के टीचर इनसे ट्रेनिंग ले चुके हैं। इसके लिए मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा कोई फीस तक भी नहीं लेते हैं। कई प्राइवेट स्कूल मास्टर टिवाणा से ओरिएंटेशन प्रोग्राiम के लिए संपर्क साध रहे हैं।Why are the different levels of math in private and govt.? |
9.स्टेट व नेशनल अवार्ड मिले(State and National Awards)-
मास्टर टिवाणा ने एमए पोलिटिकल साइंस व बीएड गणित में पास की। वर्ष 2016 में स्टेट अवार्ड, माल्ती ज्ञान पीठ पुरस्कार-2017, नेशनल अवार्ड 2018 प्राप्त किया। वहीं स्कूल शिक्षा विभाग और जिला स्तर पर कई बार प्रशंसा पत्र मिले। मथुरा की संस्था ने आदर्श शिक्षा रत्न अवार्ड 2019 दिया। वह अपनी बेटियों गुरलीन व दिशनीत को भी गणित में एक्सपर्ट बनाना चाहते हैं। पत्नी ब्रहमजीत सरकारी स्कूल में हेड टीचर है।10.गणित विषय पर अब तक लिख चुके हैं सात किताबें, आठवीं है कतार में(Seven books have been written so far on maths topic, eighth is in line)-
सूबे में सभी सरकारी स्कूलों में जो ई-कंटेंट काम हो रहा है उसमें मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा का काफी योगदान है। इसके अलावा स्टेट को-रिसोर्स ग्रुप के जरिए सूबे में होने वाले सभी गणित वर्कशॉप, मेलों व टेनिंग प्रोग्रामों के लिए मास्टर टिवाणा सात मैन्युल किताबें लिख चुके हैं, जबकि उनकी आठवीं किताब कतार में है।11.अब तक तीन हजार अध्यापकों को दे चुके ट्रेनिंग(Three thousand teachers have been trained so far)-
मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा न सिर्फ शहर के बल्कि सूबे भर के गणित अध्यापकों को ट्रेनिंग दे रहे हैं। वह अब तक ती हजार गणित अध्यापकों को प्रशिक्षण दे चुके है। इतना ही नहीं उनके पढ़ाए 42 बच्चे तहसील स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके है। गणित अध्यापकों को दी जाने वाली ट्रेनिंग में मास्टर किरणदीप सिंह टिवाणा मैथ्स लैब, लाइब्रेरी, स्मार्ट रूम बताते हैं।
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