How is the Science of Solving Mathematics Problems?
How is the Science of Solving Mathematics Problems?
1.गणित समस्याओं के समाधान का विज्ञान कैसे है?(How is the Science of Solving Mathematics Problems?)-
How is the Science of Solving Mathematics Problems? |
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बहुत से लोग या विद्यार्थी गणित के केवल सवाल हल करने को गणित मान लेते हैं। गणित को सवाल हल करने तक सीमित करने तक मानने का अर्थ है कि हमने गणित को ठीक से समझा ही नहीं है। किसी भी विषय को पढ़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जीवन में आनेवाली परिस्थितियों से सम्बन्धित है या नहीं। विद्यार्थी उन विषयों को सरलता से सीख लेते हैं जो उनके जीवन से सम्बन्धित होते हैं अर्थात् जीवन में आनेवाली समस्याओं का समाधान कर पाते हैं या नहीं। यदि गणित को इस प्रकार से पढ़ाया जाएगा कि वह विद्यार्थी के जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान नहीं कर पाता तो विद्यार्थी गणित को सीखने में रुचि नहीं लेंगे।
बहुधा ऐसा होता है कि गणित में हम ऐसे प्रश्नों के हल करने पर बल देते हैं जिनका विद्यार्थी के जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। गणित की शिक्षा इस प्रकार से देना दोषपूर्ण है। विद्यार्थी का सम्यक विकास इस प्रकार की शिक्षा से बिल्कुल सम्भव नहीं और न उसके अन्दर रुचि ही जाग्रत हो सकती है। इन्हीं कारणों से एक अध्यापक के लिए आवश्यक है कि वह जो कुछ भी शिक्षा दे, उसे विद्यार्थी के जीवन से सम्बन्धित करने की चेष्टा करे। अध्यापक को गणित शिक्षण कराते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
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2.गणित शिक्षण उद्देश्यपूर्ण हो(Mathematics Teaching Should be Purposeful)-
पहली बात तो यह ध्यान रखना चाहिए कि गणित शिक्षण उद्देश्यपूर्ण हो। बिना उद्देश्य के गणित शिक्षण सफल नहीं हो सकता है। गणित के प्रत्येक पाठ का पृथक उद्देश्य होता है। अध्यापक को यह ध्यान में रखकर ही शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। उनके शिक्षण की सफलता इसी बात से आँकी जा सकती है कि जो उद्देश्य लेकर गणित का शिक्षण आरम्भ किया गया उसे वह प्राप्त कर सका या नहीं।Also Read This Article-Job for the Post Postdoctoral Fellow Mathematics Sciences
3.पाठ्यक्रम चुनाव का सिद्धान्त(.Theory of Curriculum Selection)-
दूसरी बात यह ध्यान में रखनी चाहिए कि अध्यापक पाठ्यक्रम का चुनाव इस प्रकार से करे कि गणित शिक्षा(Mathematics Education) के जो उद्देश्य हैं उन्हें प्राप्त करने में सफल हो। अनेक विषयों में से उस विषय को और उन विषयों में से उन प्रकरणों का चुनाव करे जो विद्यार्थी के लिए उपयोगी हो और उसे उद्देश्य प्राप्त करने में सहायता प्रदान करे।3.विभाजन का सिद्धान्त(The Principle of Division)-
तीसरी बात यह ध्यान में रखनी चाहिए कि पाठ्यक्रम को ऐसे पाठों में बाँटा जाए कि विद्यार्थी सरलता से एक स्तर से दूसरे स्तर पर बढ़ता चला जाए। विद्यार्थी एक पाठ समाप्त करके दूसरे पाठ पर स्वाभाविक रूप से आ जाय, यही पाठ्यक्रम का उत्तम विभाजन माना जाता है।4.पुनरावृत्ति का सिद्धान्त(The principle of Repetition)-
विद्यार्थी को जब तक पाठ को बार-बार दोहराने का अवसर न दिया जाएगा तो वह पाठ को भूल जाएगा। अतएव अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह पाठ को पढ़ाने के बाद बिल्कुल न छोड़ दे बल्कि अनेक बार पुनरावृत्ति करने का अवसर विद्यार्थी को प्रदान करे।इन बातों का ध्यान रखा जाए तो गणित विषय जीवन की समस्याओं के समाधान में सहायक होगा और विद्यार्थी गणित को हल करने में रुचि लेंगे। यदि इन बातों की अवहेलना की जाएगी तो गणित विषय जीवन की समस्याओं को समाधान करने में सहायक नहीं होगा।
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