How do you Write an annotated bibliography for Mathematics article

Write an annotated bibliography for Mathematics article(गणित के लिए सन्दर्भ सूची लिखना )

सांराश -इस पोस्ट गणित का आर्टिकल लिखने का तरीका बताया गया है। गणित संदर्भ सूची तथा पोस्ट लिखते समय कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए। पोस्ट को लिखकर भविष्य के लिए सुरक्षित रख लेना चाहिए अर्थात पोस्ट की प्रतिलिपि कर लेनी चाहिए। पोस्ट लिखते समय  Heading,subheading तथा खण्डों में विभाजित करके लिखना चाहिए। आर्टिकल को लिखने में वैज्ञानिक तरीका अपनाना चाहिए। पोस्ट को अपने स्वयं की कल्पना और विचार के आधार पर तैयार करना चाहिए। महान व्यक्तियों के विचार तथा फुटनोट के रूप में उद्धरण का संदर्भ देना चाहिए। 
गणितीय आँकड़ों को तैयार करते समय तथा लिखते समय पोस्ट में अपना झुकाव प्रदर्शित नहीं करना चाहिए। गणितीय आँकड़ों से तात्पर्य यह है कि सूचनाए एकत्रित करना। गणितीय आँकड़ों को तैयार करने की दो विधियाँ -
(1.)गणितीय संभाव्यता नमूना  (2 .)गणितीय असंभाव्यता नमूना  
(1.)गणितीय संभाव्यता नमूना  :- गणितीय संभाव्यता यादृच्छिक नमूने तथा विचार विमर्श द्वारा तैयार किए जाते हैं। हालांकि किसी घटना की कल्पना करना आसान होता है परन्तु इसकी पालना करना बहुत कठिन होता है। इन्हें यादृच्छिक तरीके के साथ परिभाषित किया जाना चाहिए। व्यवस्थित तरीके से इसको प्राप्त करने में परेशानी है। जैसे किसी हॉस्पिटल रोगी का नर्सिंग स्टॉफ के साथ सकारात्मक व आरामदायक को निश्चित करना। यदि हम सभी रोगियों की सभी हॉस्पिटलों में निरीक्षण  करे तो एक यादृच्छिक नमूना तैयार होता है.गणितीय संभाव्यता नमूना  का चुनाव के लाभ है -स्तरीय नमूना उपयोगी है जब बहुत बड़ी जनसंख्या  को जानते है तथा हमारी इच्छा होती है कि उसका निष्कर्ष निकाला जाए। छात्र अनुभव करते है कि उनके उनके पर्याप्त मात्रा में हाईस्कूल के गणित के विषय में आंकिक विश्लेषण का अध्ययन किया जाता है। पुरुष और महिलाओं का अनुपात विषम होता है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है।
(2 .)गणितीय असंभाव्यता नमूना  -गणितीय असंभाव्यता नमूना  का अर्थ है ऊपर वर्णित स्तरीय नमूना का जो वर्णन किया गया है उससे विपरीत तरीका होता है। प्रत्येक समूह में पांच को अनुभव के बारे में प्रश्न पूछे जाते है या अन्त में सुविधा के अनुसार नमूना लेकर तैयार किए जाते हैं। 
गणितीय ऊपरी खोज या गणितीय नीचे की खोज के द्वारा सामान्य जानकारी प्राप्त की जाती है। 
वादविवाद के द्वारा भी गणितीय पोस्ट तैयार की जाती है। 
इस प्रकार कई तरीके से गणितीय पोस्ट तैयार की जाती है।   

Read ALL of the directions below carefully before you begin your paper. You are not writing a typical report-style essay for this mathematics assignment.
Review a description and sample of an APA style annotated bibliography. Save this article because you will be asked to write more annotated bibliographies in future modules.

1. Begin with an introduction that tells me what the hypothesis you developed for the Module 1 SLP is. If you received feedback asking you to improve it, please use the improved version.


2. Use ProQuest or Ebsco to search for 3 articles related to the area of interest you chose in the Module 1 SLP. They must be articles that would help you answer your research question. In other words, they have to be related to what you are trying to find out, as if

you were a researcher investigating this topic.

The articles must be from scholarly journals. They must be no more than 5 years old. Save the mathematics articles because you will use them in other mathematics assignments. Review the Background Information in this module regarding how to conduct a literature review.


3. Write an annotated bibliography for each mathematics article . Before you begin, please review a description and sample of an APA style annotated bibliography. Save this article because you will be asked to write more annotated bibliographies in future module .



Mathematics ASSIGNMENT EXPECTATIONS:

 Please read before completing the mathematics assignment.
Copy the actual mathematics assignment from this page onto the cover page of your paper (do this for all papers in all courses).
Assignment should be approximately 2 pages in length (double-spaced).
Please use major sections corresponding to the major points of the assignment, and where appropriate use sub-sections (with headings).
Remember to write in a Scientific manner (try to avoid using the first person except when describing a relevant personal experience).
Quoted material should not exceed 10% of the total paper (since the focus of these mathematics assignments is on independent thinking and critical analysis). Use your own words and build on the ideas of others.
When material is copied verbatim from external sources, it MUST be properly cited. This means that material copied verbatim must be

enclosed in quotes and the reference should be cited either within the text or with a footnote.

Use of peer-reviewed articles is required. Websites as references should be minimal and must meet guidelines noted above.
Cite all references in APA style. Part I
METHODS OF DATA COLLECTION & THEIR STRENGTHS AND WEAKNESSES

The ongoing struggle to avoid BIAS:

In every part of the enterprise of performing research in health science, a researcher needs to take great pains to avoid the dreaded

possibility of BIAS.

BIAS, or error, can come about in any number of ways during the process of defining the question, collecting the data and analyzing it.It can also happen from random causes; what I like to refer to the “stuff happens” effect. But this is by definition beyond

the researcher’s control.

In every way that can possibly be anticipated, there is a need to control for known sources of bias. If the data is BIASED towards a certain outcome that does not reflect reality, then a meaningful or useful answer to the original question has not been obtained.
Once the researcher has defined the question, the next step will be to find a way to obtain subjects that minimizes the potential for creating bias through the selection procedure.

Obtaining subjects for study –Mathematical data collection methods:

Mathematical Data is the word we use for the information that we collect in order to do our research (the singular for this word is datum but we rarely use it.)Mathematical Data collection is also known as sampling. It might not seem obvious, but HOW you go about obtaining your subjects can be as crucial to the validity of your outcome as the question you ask and the type of statistical procedure


Glossary:- 

annotated-टिप्पणी सहित  ,bibliography-ग्रन्थसूची ,सन्दर्भ सूची  ,cited-तलब करना ,उद्धरण देना  ,verbatim-अक्षरश:  ,peer-reviewed-सहकर्मी की समीक्षा  ,anticipated-पूर्वानुमानित  ,obvious-प्रत्यक्ष ,प्रकट  ,crucial- महत्त्वपूर्ण ,निर्णायक ,outcome-परिणाम,नतीजा  ,desirable-वांछनीय,आकर्षक   ,occur-घटित ,घटित होना  ,execute-पालन करना  ,systematic-व्यवस्थित  ,surveying-सर्वेक्षण  ,perceive-समझना ,देखना ,अनुभव करना  ,interactions-पारस्परिक विचारविमर्श  ,probabilistic-संभाव्यता  ,stratified-स्तरीय  ,curious-जिज्ञासु  ,adequately-पर्याप्त ,पर्याप्त मात्रा में  ,substantial-ठोस ,वास्तविक  ,subpopulation-उपजनसंख्या  ,contrasted-विषय  ,quota-हिस्सा ,भाग  ,botherपरेशानी ,झंझट ,तंग करना - ,convenience-सुविधा ,आराम  ,deliberately-जानबूझकर  ,distorted-दूषित ,विकृत  ,biased-पक्षपातपूर्ण  ,approach-पहुंच ,प्रवेश ,निकटता  ,conduct-आचार-व्यवहार  ,minimal-न्यूनतम  ,bottom-up searches -नीचे की खोज  ,top- down searches-ऊपर की खोज ,novice-नौसिखिया ,आरंभकरना  ,trident-त्रिशूल  ,skim-झाग ,मलाई निकालना  ,abstracts- ,outlines-अमूर्त भावात्मक  ,refining-विनय ,संशोधन  ,unusual-असामान्य  ,pertinent-प्रांसगिक   ,prior-प्रधान ,frivolous-हल्का ,बेहूदा  ,custom-रिवाज ,प्रथा  ,editing- संपादन ,revising-संशोधन ,दोहराना  ,complexities-जटिलताओं  ,perplexing-पेचीदा  ,merely-केवल ,सादे तौर पर  ,assumes-रूप बनाना  .

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Mathematics Education and Spiritualism in hindi

गणित शिक्षा और अध्यात्म(Mathematics Education and Spiritualism )

गणित शिक्षा(Mathematics Education) :-

Mathematics Education and Spiritualism

Mathematics Education and Spiritualism

(1.)भूमिका (Introduction) :-

शरीर, मन और आत्मा का संतुलित विकास ही व्यक्ति का विकास समझा जाता है जिसे कर्म, ज्ञान और भक्ति की संज्ञा दी जाती है।इसको मन, वचन और कर्म का समन्वय भी कह सकते हैं। गणित की शिक्षा(Mathematics Education) से बालक के चिन्तन, तर्क, विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता है जिससे व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा के संतुलित विकास में सहायता मिलती है। गणित के अध्ययन(Study of Mathematics) से अभ्यास, एकाग्रता और आत्म-संतुष्टि जैसे गुणों का विकास होता है। चिन्तन, तर्क, एकाग्रता, अभ्यास से सत्य और असत्य का निर्णय करने में सक्षम होता है. उसे सत्य का बोध होता है। आज का युग तकनीकी और वैज्ञानिक युग है तथा विज्ञान में गणित(Mathematics) एक प्रमुख विषय एवं मुख्य विषय है। यह विज्ञान की रीढ़ की हड्डी के समान है। जो व्यक्ति गणित(Mathematics) से परिचित नहीं है उसके लिए विज्ञानों और विश्व की जानकारी प्राप्त करना कठिन है।

(2.)महान् गणितज्ञ और अध्यात्म(Great Mathematician and Spiritualism) :-

भारत तथा विश्व में ऐसे गणितज्ञ हुए हैं जो महान् दार्शनिक एवं आद्यात्मिक (Spiritual)भी थे। भारत में आर्यभट्ट प्रथम, वराहमिहिर, आर्यभट्ट द्वितीय, ब्रह्मगुप्त, महावीराचार्य, भास्कराचार्य तथा आधुनिक काल में श्री निवास रामानुजम, डाॅ गणेश प्रसाद जैसे गणितज्ञ हुए हैं और पाश्चात्य शिक्षा शास्त्रियों में हर्बर्ट, फ्राबेल, पेस्टालाॅजी, डाॅ मेरिया माण्टेसरी, टी वी नन जिनका गणित(Mathematics) के क्षेत्र में स्तुत्य योगदान रहा है। इस प्रकार गणित और अध्यात्म(Mathematics and Spiritualism) का अन्योनाश्रय सम्बन्ध है। गणित पढ़ा हुआ व्यक्ति दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, वेद, उपनिषद् जैसे विषयों को आसानी से समझ सकता है।

(3.)गणित विषय का जीवन से सम्बन्ध(Relation of Mathematics Subject in Life) :-

गणित(Mathematics) का जीवन के विभिन्न विषयों से अन्त:संबंध होने के बावजूद यह प्रश्न उठाया जाता रहा है कि गणित विषय(Mathematics Subject) को पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए या फिर ऐच्छिक विषय के रूप में रखा जाए। गणित विषय(Mathematics Subject) का व्यावहारिक जीवन, आध्यात्मिक जीवन(Spiritual Life) तथा हमारे व्यवसाय में महत्वपूर्ण योगदान है। यह विषय इतना महत्वपूर्ण होते हुए भी इसको हटाने या ऐच्छिक करने की मांग क्यों उठ रही है इसका कारण है कि मानव की प्रकृति है कि उसके सम्मुख कोई कठिनाई या समस्या न आए। वह सरलतम मार्ग चुनने का प्रयास करता है। हमारे जीवन से धर्म(Religion) ,अध्यात्म (Spiritualism) जैसी बातें इसलिए ही लोप होती जा रही है। इसका दुष्परिणाम भी हमारे सामने आ रहे हैं। मानव तनावग्रस्त है, भाई-भाई में झगड़े, भ्रष्टाचार, दुराचार, नारी उत्पीड़न, चोरी, डकैती, बेईमानी अर्थात् चारों ओर असन्तोष पनप रहा है। जबकि अध्यात्म(Spiritualism) को जीवन में अपनाने से मानसिक संतोष प्राप्त होता है। इसलिए प्राचीन भारत में बुराई या बुरे कर्म बहुत ही कम मात्रा में थी। लोगों में स्नेह, सहयोग, भाईचारा, संवेदना, दया, करूणा, प्रेम, आत्मीयता होने के कारण शांति रहती थी परन्तु आज का मानव अशांत है।

(4.)जीवन में गणित की उपयोगिता तथा समस्याओं का समाधान(Usefulness of Mathematics In Life and Solution of Difficulties) :-

गणित विषय(Mathematics Subject) कठिन होते हुए भी इसका हमारे जीवन में उपयोग है इसलिए इसको हटाने के बजाय इसमें उपस्थित होने वाली समस्याओं तथा कठिनाईयों का हल करना है। यदि समस्याएं स्वयं के प्रयास करने पर भी हल नहीं होती है तो शिक्षक की सहायता से हल की जा सकती है। विद्यालय में हल करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता है तो कोचिंग सेंटर की सहायता या सोशल मीडिया की सहायता से अभ्यास का हल किया जा सकता है। चुनौतियां, मुसीबतें तथा समस्याएं एक दृष्टि से हमारे लिए अच्छी होती है क्योंकि विपत्ति में हम, हमारा मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है तथा एकाग्रता बढ़ती है उस समय हमें हर पल परमात्मा ही याद आता है। ऐसी स्थिति में विपत्ति या समस्याओं का समाधान कुछ न कुछ जरूर निकलता है। विपत्तियों में मनुष्य निखरता है जिस प्रकार सोने को बार बार तपाने और कूटने से उसकी अशुद्धता दूर होती है। उसी प्रकार विपत्तियों में हमारे अशुभ कर्मों का क्षय होता है और हमारा हृदय पवित्र और शुद्ध हो जाता है।

अध्यात्म (Spiritualism) :-

(1.)अध्यात्म(Spiritualism) का अर्थ :-

अध्यात्म(Spiritualism) से तात्पर्य आत्मा, परमात्मा, मोक्ष, जीवन मुक्ति, पुनर्जन्म का अध्ययन करना। इस प्रकार अध्यात्म (Spiritualism ) से तात्पर्य है कि व्यक्ति के अपने अस्तित्व, स्वभाव में अन्तर्बोध का होना।

(2.)अध्यात्म का महत्त्व (Importance of Spiritualism) :-

जिस व्यक्ति को अध्यात्म(Spiritualism) का ज्ञान नहीं है, वह न केवल खराब व्यक्ति होता है बल्कि एक मूढ़, अनुत्तरदायी और खतरनाक व्यक्ति हो सकता है।
अध्यात्म(Spiritualism) प्रत्येक व्यक्ति में उसमें अन्तर्निहित परमात्मा की न केवल अनुभूति कराने में सहायक होती है बल्कि इसका व्यावहारिक महत्त्व भी है। वस्तुतः शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक समस्याओं का क्षेत्र इतना विस्तृत है जिसे ठीक से समझे बिना कोई भी व्यक्ति ज्ञानवान या सभ्य नहीं बन सकता है। मनुस्मृति में भी श्रेष्ठ विद्या वाले को ही अधिक महत्त्व दिया गया है उसमें कहा गया है कि -
"धन, बंधु(कुटुंब, कुल), आयु, उत्तम कर्म, श्रेष्ठ विद्या ये पाँच मान के स्थान है परन्तु धन से उत्तम बन्धु, बन्धु से अधिक आयु, आयु से श्रेष्ठ कर्म और कर्म से पवित्र विद्या वाले अधिक माननीय है।

(3.)अध्यात्म शिक्षा मनुष्य का आभूषण(Spiritualism the Ornament of Man) :-

अध्यात्म शिक्षा तो व्यक्ति को इतने ऊँचे आसन पर बिठा देती है कि जिसके सामने सभी लोगों का मस्तक झुक जाता है। डिग्री अर्थात् प्रमाण पत्र प्राप्त करना ओर बात है परन्तु सच्ची प्रतिष्ठा तो शिक्षा से ही मिलती है। इस प्रकार संयम चरित्र की रक्षा करना, धर्म की भावना जागृत करना, अपने आपको सुधारना एवं चरित्रवान बनाना शिक्षा का ध्येय है।

(4.)गणित शिक्षा और अध्यात्म का समन्वय Coordination of Mathematics Education and Spiritualism) :-

विद्वानों की कमी अभी भी नहीं है फिर चारों ओर वैमनस्य, दुराग्रह, कलह, विघटन क्यों बढ़ता जा रहा है कारण यही है कि चरित्रवानों की कमी है। इसलिए शिक्षा के साथ अध्यात्म शिक्षा का समन्वय आवश्यक है। केवल शिक्षा प्राप्त करना जिसको दिशा का ज्ञान नहीं है वह किसी भी दिशा में जाकर सृजन या विनाश की ओर दौड़ सकता है। यदि उसे अध्यात्म का सहारा मिल जाए तो सृजन अन्यथा विनाश है।
जिन विद्यार्थियों के जीवन में उच्च आध्यात्मिक आदर्श नहीं होते हैं। अपनी आजीविका के लिए विद्याध्ययन करते हैं वे केवल वेतन या धन प्राप्त करने के लिए पढ़ते हैं। इस प्रकार के विद्यार्थियों का जीवन क्षेत्र में उतरने से पहले ही दीवाला निकल जाता है। वे जीवन में आनेवाली समस्याओं को ठीक से समझ नहीं पाते हैं तो उनका निवारण करना तो बहुत दूर है।

(5.)गणित शिक्षा तथा अध्यात्म दूसरे के पूरक (Mathematics Education and Spiritualism both are supplementry):-

विद्या अर्जित करने से तात्पर्य है आत्मज्ञान, धर्म और अध्यात्म। शिक्षा जीवन के बाह्य प्रयोजनों को पूर्ण करती है अर्थात् साहित्य, विज्ञान, कला, उद्योग, स्वास्थ्य, समाज आदि विषय शिक्षा की सीमा में आते हैं। अध्यात्म का क्षेत्र इससे आगे है - आत्मबोध, आत्मनिर्माण, कर्त्तव्यनिष्ठा, सदाचरण आदि इसी सीमा में आते हैं जो चिन्तन व दृष्टिकोण को उन्नत करती है।
अध्यात्म मनुष्य के गुण, कर्म, स्वभाव को उन्नत करके स्वार्थ से परमार्थ की ओर हमें ले जाती है। केवल शिक्षा अर्जित करना समय व धन की बर्बादी करना है जो दिन में बहुत सुंदर सुन्दर सपने दिखाती है जिसका परिणाम है संसार में भटकना। जिन्हें सचमुच में अध्यात्म से प्रेम है उन्हें बुद्धि, प्रतिभा, समय, श्रम और धन को अध्यात्म शिक्षा में लगाना चाहिए।

(6.)अध्यात्म शिक्षा के प्रति रूचि का अभाव और उसके परिणाम(Absence of Interest in Spiritualism and their effects)  :-

अध्यात्म शिक्षा के प्रति रूचि क्यों नहीं है क्योंकि इसका प्रत्यक्ष लाभ दिखाई नहीं देता है दूसरा कारण यह है कि विद्यार्थियों की मनोवृत्ति है कि पढ़ाई पूरी करते ही कोई ऊँची नौकरी मिलेगी और उसके लिए डिग्री की आवश्यकता है। वे यह भूल जाते हैं कि चाहे नौकरी ही प्राप्त करनी हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र हो उसे प्रतिभा की आवश्यकता पड़ती है साथ ही गुण, कर्म, स्वभाव की उत्कृष्टता की आवश्यकता होती है।
प्रमाण पत्र प्राप्त करने के के फेर में विद्यार्थियों की प्रतिभा छिपी हुई रह जाती है। संसार के प्रत्येक मनुष्य में महान पुरुष होने की योग्यता होती है यदि ऐसा न होता तो एक साधारण से अनपढ़ मजदूर का बेटा अब्राहम लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति कैसे हो सकता था, एक साधारण जिल्दबाज की नौकरी करनेवाला लड़का माइकल फैराडे वैज्ञानिक कैसे बनता। आवश्यकता है साधना, कठोर परिश्रम एवं अध्यवसाय द्वारा प्रतिभा को जगाने और काम में लाने की।

(7.)अध्यात्म में बाधा और उसका समाधान(Barrier in Spiritualism and his Solution) :-

अध्यात्म(Spiritualism) को प्राप्त करने में सबसे बड़ी रूकावट मन की है, मन को यदि यदि सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय हो तो मन को इसके लिए तैयार किया जा सकता है आलसी मन को कर्मठ बनाने के लिए इसको नियन्त्रण में करना होगा। दृढ़ता से जिसने मन को जीत लिया उसके लिए विद्या प्राप्त करना सरल हो जाता है। मनुष्य यदि प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा अभ्यास करता रहे तो कुछ ही समय में ज्ञान का भण्डार हो जाएगा।
आत्मिक प्रगति साधना, तप, स्वाध्याय, सत्संग, संयम, सेवा द्वारा संभव है। सत्संग का तात्पर्य यह नहीं कि बुरे लोगों से सम्पर्क न रखा जाए तथा अच्छे लोगों से सम्पर्क रखा जाए। संसार सागर में भलाई और बुराई दोनों आपस में गुँथी हुई है। वे इतनी दूरी पर नहीं है कि बुराई तथा भलाई को अलग-अलग पंक्तियों में खड़ा किया जा सके। सर्वथा सज्जन या दुर्जन कोई नहीं है। इसलिए न तो आत्मसमर्पण किया जाए और न सर्वथा किसी को अनुपयोगी ठहराया जाए। अति के दोनों सिरे खतरनाक है।हर सज्जन में कोई दुर्गुण हो सकता है और हर दुर्जन में कुछ न कुछ विशेषता होती है। अपने विवेक का प्रयोग करके इतना ही सोचना चाहिए कि बुराइयों के दुष्परिणाम समझे और अच्छाईयों की सुखद समभावनाओ का सही ढंग से मूल्यांकन कर उन्हें जीवन में अपनाए।
सारांश यह है कि यह है कि यह अध्यात्म (Spiritualism) का ही चमत्कार है कि जो मानव को प्रबुद्ध, प्रवीण और महामानव बनाती है। इसके अभाव में देखा जा सकता है कि वनवासी कबीले वर्तमान काल में भी निम्न परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं।

गणित शिक्षा और अध्यात्म(Mathematics Education and Spiritualism) :-

(1.)गणित शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षा(Mathematics Education and Spiritualism) :-

गणित शिक्षा वह शिक्षा वह है जो वर्तमान में स्कूल-काॅलेजों में पढ़ाई जाती है जिससे पढ़कर विद्यार्थी डिग्री हासिल करके वकील, इंजीनियर, प्रोफेसर, अफसर, क्लर्क आदि बनते हैं।यह जीविकोपार्जन तथा सांसारिक सम्बन्धों का निर्वाह करने के लिए आवश्यक है ।इसके बिना सांसारिक जीवन में विकास व उन्नति का मार्ग नहीं खुलता है।शिक्षा का उद्देश्य है व्यक्तित्व का सर्वागींण विकास इसमें सम्मिलित है सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक, नैतिक विकास एवं आत्मानुभूति।इस प्रकार गणित शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के एक पक्ष का ही विकास हो सकता है, व्यक्ति में पूर्णता के लिए अध्यात्म भी जरूरी है ।अध्यात्म से व्यक्ति में अपने अस्तित्व का बोध प्रेम, स्नेह, सोहार्द, सहिष्णुता, सहयोग, दया, करुणा जैसे गुणों का विकास होता है ।इन गुणों से ही व्यक्ति को आत्मिक सुख-संतोष प्राप्त होता है ।

(2.)वर्तमान स्थिति(Present Position) :- 

वर्तमान समय का अवलोकन करे तो भाई-भाई में लड़ाई-झगड़े, असंतोष, दँगें-फसाद, अशांति, लूटपाट, चोरी-डकैती, दुराचार, व्यभिचार, जैसी विकृतियां व्याप्त है।उक्त समस्याओं को देखते हुए अध्यात्म की आवश्यकता अधिक है ।अध्यात्म की प्राप्ति साधना, उपासना, सत्साहित्य का स्वाध्याय, सत्संग, मनन, चिन्तन द्वारा प्राप्त की जा सकती है ।आज गणित  शिक्षा के वृद्धि तो निरन्तर हो रही है परन्तु अध्यात्म-शिक्षा की उपेक्षा हो रही है ।वर्तमान युग के विद्वानों का विचार है कि व्यक्ति के लिए भौतिक शिक्षा  पर्याप्त है इसलिए शिक्षा संस्थानों का कार्य भी सीमित ही रह गया है ।शिक्षा संस्थान साक्षरता से प्रारम्भ करके स्नातक की डिग्री देकर अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं परन्तु विद्यार्थी की चेतना सुप्त ही रह जाती है जिसके अभाव में उक्त शिक्षा अधूरी ही है ।

(2.)गणित शिक्षा तथा आध्यात्मिक शिक्षा का अपना अपना महत्त्व(Importance of both Mathematics Education and Spiritualism) :- 

भौतिक सुख-साधन प्राप्त करने के लिए हमें भौतिक शिक्षा की जरूरत है जबकि आत्मिक शान्ति के लिए आध्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकता है ।भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करके मनुष्य धनवान्, गुणवान् बन सकता है परन्तु आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत करने का कितना महत्त्व है इसको समझने में हम असमर्थ हैं ।किसी समाज, देश की गरिमा केवल भौतिक उपलब्धियों से नहीं आँकी जा सकती है बल्कि वास्तविक सम्पदा वहाँ उस समाज, देश के चरित्रवान एवं आदर्शवादी नाग ही होते हैं
मनुष्य, मनुष्य इसलिए है कि उसमें आत्मा का निवास है, स्वतंत्र संकल्प शक्ति है जो कि परमात्मा की सर्वोत्कृष्ट कृति है ।अतः व्यक्ति का परम लक्ष्य आत्मानुभूति करना, चैतन्य का बोध होने में है ।इसी संकल्प शक्ति व चेतना के बल पर वह वातावरण को नियन्त्रित कर सकता है जबकि पशु वातावरण को विवशतापूर्वक स्वीकार करता है ।बालक में स्वतंत्र संकल्प शक्ति ही इस बात का प्रमाण है कि वह जो बनना चाहे बन सकता है।

(3.)मनुष्य का क्रमोत्तर विकास(Post Order Development of Man :-

बालक का निम्न स्तर पर शारीरिक तथा जैविक विकास होता है जो आत्मानुभूति की प्रथम सीढ़ी है ।दूसरी सीढ़ी सामाजिक हित के लिए त्याग करना सम्मिलित है ।तीसरी सीढ़ी में बालक का बौद्धिक विकास सम्मिलित है जिसमे सामाजिक स्वीकृति तथा अस्वीकृति के कारण बालक का व्यवहार नियन्त्रित नहीं होता है बल्कि तर्क और विवेक बुद्धि के द्वारा नियन्त्रित होता है ।उसका आचरण चिन्तन तथा विवेकपूर्ण हो जाता है ।चौथी सीढ़ी आध्यात्मिक अनुभूति करना है जिसमें सम्पूर्ण व्यक्तित्व का रूपान्तरण हो जाता है तथा बालक के क्रियाकलाप स्वाभाविक होते हैं वे शारीरिक सुख, सामाजिक स्वीकृति और बौद्धिक तृप्ति के लिए नहीं होते हैं ।आत्मानुभूति(Spiritualism) के द्वारा ही विश्वात्मा का अनुभव किया जाता है जिसे भारतीय शास्त्रों में सत्यम शिवम सुन्दरम के रूप में वर्णित किया गया है ।सत्य परिवर्तन में नहीं है अपूर्ण भौतिक जगत में नहीं है वह कालातीत, सार्वभौमिक, शाश्वत है, चरम है, अविनाशी है तथा सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है ।शिवम अर्थात् कल्याणकारी है परंतु भौतिक जगत में देखना कल्याण नहीं है बल्कि भ्रम है ।शिव तो परम शिव में है।इसी प्रकार सुन्दरता संसार के पदार्थों में दिखाई देती है तो व्यक्ति प्रसन्न होता है किन्तु सुन्दर पदार्थ तो नष्ट हो सकते हैं परन्तु सौंदर्य नष्ट नहीं होता है ।इस प्रकार शिक्षा का मूल उद्देश्य सत्यम शिवम सुन्दरम ही होना चाहिए ।


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How to develop Intelligence in hindi ||how to develop wisdom in hindi


How to develop Intelligence in hindi ||how to develop wisdom in hindi



via https://youtu.be/fIlcm0WLOfI

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Pondering Excellence in Teaching

Pondering Excellence in Teaching(अध्यापन में उत्कृष्ट चिन्तन )

इस पोस्ट में वर्णन किया गया है कि अध्ययन में उत्कृष्ट चिन्तन में पहचान के क्षेत्र में सार निकालना और विद्यार्थियों का चिन्तन शामिल है। शोध में इस प्रकार का निष्कर्ष निकला है कि ऐसा अध्ययन विद्यार्थियों में उद्देश्य केन्द्रित कार्य और कक्षा विचारविमर्श के लिए अभ्यास  द्वारा सम्भव हुआ है। विद्यार्थियों के पूर्ण कक्षा निर्देशन को सार्वजनिक  बनाने को कम समझा गया है।इस   बातचीत केन्द्रित में विद्यार्थियों का योगदान और पहचानना जो  निर्देशन को बढ़ाने का उत्तरदायित्व उपलब्ध कराता है।  लेखक द्वारा सैद्धान्तिक विचारविमर्श का निर्माण किया जाएगा। हमने सैकण्डरी स्कूल गणित निर्देशन का वीडियो का विस्तृत अनुभव से  विकसित  किया। 

(1.)Recognizing Teachable Moments

An Important Component of Excellent Teaching
Parking is free! Closest parking lots are the Treasures.
The field of education recognizes that excellent teaching involves eliciting and using student thinking.  Researchers have made progress on understanding aspects of such teaching, such as the role of high-cognitive-demand tasks and practices for orchestrating classroom discussion around students' written work.  Less understood is the in-the-moment process of productively using student thinking that is made public during whole-class instruction.  This talk focuses on these in-the-moment student contributions and recognizing which of them provide opportune moments to enhance instruction.  Specifically, I will discuss theoretical constructs we have developed from detailed empirical analysis of videos of secondary school mathematics instruction.  I will also share insights from this work for both recognizing and preparing to act on student contributions that provide opportunities for students to make sense of mathematics through engaging with their peers' mathematical thinking.


(2.)Empirical of a Professor

 A Professor of Mathematics Education in the Department of Mathematics at Western Michigan University. She focuses specifically on the process of becoming an effective mathematics teacher and ways university coursework and professional development can accelerate that process. Her research and teacher development practice are intertwined and have included investigating the effect of reform curriculum materials on teacher development, the use of practice-based materials in university methods courses, and the cultivation of productive norms in teacher education. Her current work focuses on identifying Mathematical Opportunities in Student Thinking (MOSTs) and supporting teachers in capitalizing on MOSTs.


Glossary:-


pondering-चिन्तन करना , parking-अड्डा  ,Treasures-कोषाध्यक्ष , eliciting-सार निकालना,orchestrating-योजना  बनाना , opportune-उपयुक्त, enhance-ज्यादा करना , opportunities-अवसर,engaging-दिलचस्प , peer-शिष्टजन , interwined- अंतर्ग्रथित ,capitalizing-पूंजी बनाना empirical-इंद्रियानुभव 
                                                 [Finish this Article]



This is a award council who is interested apply upto 30,april 2019.

Dr. Arthur Jorgensen Award
Dr. Arthur Jorgensen Chair Award
DR. ARTHUR JORGENSEN CHAIR AWARD
(MCATA Student Teacher Award)
This award is presented by the Mathematics Council of the Alberta Teachers' Association (MCATA), to encourage students enrolled in education programs in post-secondary institutions throughout Alberta to pursue and commit to mathematics education.
The award consists of
a one-year term on the MCATA Executive, with expenses paid to attend Executive meetings (as per article 3.4 of the MCATA handbook).
a one -year membership in MCATA and NCTM
an invitation to attend one MCATA Conference with appropriate expenses paid, subject to the approval of the executive committee. (eg . substitute teacher, one night accommodation, travel and meals not included in the conference registration)
The recipient of this award must be enrolled in a degree program in a Faculty of Education in Alberta. The recipient will be selected on the basis of demonstrated academic excellence and a clear commitment to mathematics education in either specialization in Mathematics at the secondary level; or a keen interest and desire to expand mathematics knowledge at the elementary level.
Applicants must apply by April 30 of the current year to: Dr. Arthur Jorgensen Chair Award c/o Director of Awards and Grants (carmenbt@telus.net ).
Applicants must submit a letter of reference from a faculty member in their school of education .
Applicants must complete MCATA application form and address each of the questions or statements found on the application form.
A selection committee of the Mathematics Council of the Alberta Teachers' Association will make the final choice of recipient for this award.
Dr. Arthur Jorgensen Chair Award Recipients
2018 Dale Block
2015 Matthew McDonald
2012 Bernadette McMechan
2011 Paul Bechtold

Glossary- 

pussue-पीछा करना  accommodation-निवास ,सुविधा recipient-प्रापक ,ग्रहण करनेवाला  enrolled-नामांंकित keen- इच्छुक ,उत्साही , desire-इच्छा,आकांक्षा 

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Changing Perceptions for Girls Learning Math.

Changing Perceptions for Girls Learning Math.

इस पोस्ट में एक घटना के माध्यम से यह बताया गया है कि किस प्रकार प्रारम्भिक कक्षा का एक लड़का गणित में अध्यापक द्वारा दिए गए कार्य को नहीं कर पाता है और गणित की उस समस्या का हल अपने सहपाठी से पूछता है। बाद में अध्यापिका द्वारा उसे दण्डित किया जाता है। इस कारण उसे गणित कठिन विषय लगने लगता है। बाद में धीरे-धीरे उसकी रूचि हो जाती और एक लड़की से परिचय हो जाता है और वह सोचता है कि लड़कियों की संख्या science,technology,Engineering,Mathematics (STEM) में बहुत कम होती है,अगर कहीं यह संख्या ज्यादा है तो यह आश्चर्यजनक बात होगी। लड़कियों को घरेलु कार्य करने के योग्य समझा जाता है। अगर इस विचारधारा को बदलना है तो  science,technology,Engineering,Mathematics (STEM) में कठिन परिश्रम करना होगा क्योंकि सबको समानता का अधिकार है तभी वे  इस विचारधारा को बदल सकती है। इस घटना  में कठिन शब्दों के अर्थ नीचे दिए गए है। 

Based on Making Sense of Mathematics for Teaching Girls in Grades primary

(1.)Our perception in primary classes


Sometimes it is strange how a situation turns out. With data on hand, we often think we can accurately anticipate what might happen. However, the twists and turns of life regularly lead us from uncomfortable challenges to pleasant surprises. When I was in fourth grade, I had a terrible experience during a mathematics class. I was called out. I was embarrassed. I was ashamed. I was driven to tears.

I was in class, and all of the students were seated in one of the front-facing rows. I was sitting next to a student I’ll call Summer. The teacher, who I’ll call sir , had given us an assignment to do. I think it was a fractions worksheet. I remember getting to an exercise that I didn’t really understand. The class was really quiet as always. The teacher instructed us not to work together; in fact, she said working together was against the rules. Well, I decided to take a chance anyway. I leaned over to Summer and asked her if she could help me.

Before Summer could even respond, she was upon us. She asked what we were doing, and I told her that I was asking Summer for help on one of the problems. Teacher reminded me that asking other students for help was against the rules. Teacher then went back to her desk. When she returned, she (teacher) was holding “the ruler of rules.” She instructed me to put out my hand and proceeded to give me five whacks with the ruler. My hand was hurt. My feelings were hurt.

I didn’t like that this thing called mathematics was confusing. I also associated the pain of corporal punishment with seeking help for my confusion. Later, when I saw other students “getting it,” I felt that perhaps mathematics just wasn’t for me, especially if I couldn’t even talk to anyone about mathematics. As it turns out, fourth grade was the beginning of what would be a tough relationship between me and mathematics for years to come.

(2.)Our Perception for Girls in Math.


Fast forward to today and, after many twists and turns, the little girl has grown up, and I am very fortunate to have a love for mathematics is that is unbreakable! This is what I want for all students.

When my coauthors and I conceived our new book, Making Sense of Mathematics for Teaching Girls in Grades primary, we were solely focused on contributing a voice to mathematics education that would inform everyone on how to strengthen girls’ experiences as learners of mathematics. Why girls? Well, because talk abounds about how girls lack interest in mathematics; how girls are underrepresented in science, technology, engineering, and mathematics (STEM) contexts such as high-level mathematics courses; and how, subsequently, females are underrepresented in STEM fields. Why girls? Because so many people perceive girls as not being as good at mathematics as boys.


(3.)Perceptions of Math Achievement



Let’s see what you think. Make a list of seven students you know to be good at mathematics. Now answer these questions:

What does “good at mathematics” mean to you?How many of the students you listed are girls?

If you have more girls than boys on that list, wonderful, but keep reading! If you have fewer girls than boys on the list, predictable, but keep reading! If you have no girls on the list, not surprising, and definitely keep reading!

As we facilitated professional development for teachers of mathematics across all grades and in districts across the nation, we heard comments about girls not being interested or motivated in mathematics or girls not being as good in mathematics as boys.

Of course, we have our own teaching experiences in various contexts to consider, but we also searched the literature and results from high-stakes tests on this topic. In some contexts, boys achieved higher than girls. In some contexts, girls achieved higher than boys. On some assessments, girls and boys performed similarly. So, pick a side, and you can find some support for your position.

My colleagues and I wondered about why girls sometimes “get the short end of the stick” when it comes to talking about mathematics achievement. What is happening is that the perception of boys being better at mathematics than girls overall, across the board (whether any evidence says so or not), is still very strong?

Unfortunately, when teachers—or even girls themselves—hold this perception, it influences the kind of experiences girls have in mathematics. Perceptions drive action. Therefore, we can expect that teachers who have a perception that girls can achieve in mathematics will give girls opportunities where they can achieve in mathematics. Girls who have a perception that they can achieve in mathematics will allow themselves to engage in risk-taking in the classroom to take advantage of opportunities to achieve in mathematics.


(4.)Perceptions about Girls Studying Math



So, what are your perceptions about girls studying mathematics? Here’s a little quiz for you: Select all of the statements you think are true:

Girls prefer reading over mathematics. Girls need to study harder than boys to be successful in mathematics. Girls who excel in mathematics usually have fathers who are good in mathematics. Girls do better in mathematics when the problems are about things girls like. Girls who excel in mathematics are usually less popular than others.

So, what do you think? What you think matters! Your perceptions will drive you in one direction or the other. We hope your perceptions will drive you to support actions that support girls to be successful in mathematics.

In Making Sense of Mathematics for Teaching Girls in Grades primary , we provide many possibilities for ways to positively impact girls studying mathematics. At the core of the possibilities is the idea that girls, like all students, need to be part of a community of learners that values the growth and achievement of each learner and provides meaningful content, high-quality instruction, and formative assessment so that learners can thrive. My coauthors and I also believe that girls benefit when priority is given to make sure equity is valued and sought in the learning environment, so girls and boys are given the opportunity and support needed to be successful in mathematics.

Not only do we need to consider our perceptions and to think of possibilities for things we might do to support girls (and all students) to be successful in mathematics, we also have to give attention to our priorities. For instance, do we design instruction so that girls are purposely given opportunities to be confirmed as risk-takers in the same ways that boys are confirmed as risk-takers? Are we committed to avoiding presenting certain kinds of mathematics as better for girls, such as tasks with contexts for cooking, and certain kinds of mathematics as better for boys, such as tasks with contexts for racing or building? Can we stand strong against ideas that girls just would rather do “girl” subjects like writing and literature while boys are promoted to do “boy” subjects such as science and mathematics?

Making Sense of Mathematics for Teaching Girls in Grades primary reflects our position that mathematics is for everyone and that each and every girl deserves an opportunity to be successful in mathematics.

Glossary-

perceptions-अनुभव , anticipate-पहले से सोच रखना,आशा रखना  , embarrassed-शर्मिन्दा whacks-जोर से चोट मारना ,corporal-शारीरिक ,conceived-कल्पना की गई ,underrepresented-कम दर्शायित perceive-महसूस करना ,देखना ,facilitated-सुगम बनाना ,stakes-दाँव ,colleasue-सहयोगी ,साथी ,influences-प्रभाव ,शक्ति ,असर ,excel-उत्तम होना ,deserves-अधिकार रखना। 


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Teaching & Learning Symposium in Mathematics

Teaching & Learning Symposium in Mathematics(गणित में अधिगम एवं अध्यापन परिसंवाद )

(1.) Symposium- Space for Voices

Podcast Pedagogy: The Power of Stories to Create Learning Connections:-

Podcasting takes listeners to a virtual ‘third place’, a shared imaginative listening space of narrative connection and allows for meaningful self-reflection and engagement. The popularity, variety and quality of podcasts has been increasing at an unprecedented rate. The Hart House Stories podcast team is a diverse group of students and staff that will explore how educators can use the storytelling medium of podcasts to foster holistic mathematics learning connections. We will discuss what skills and competencies students, educators and audiences can develop through digital storytelling and how might instructors consider podcasting as a method for mathematics learning? For example as means of reflection, assessment, engaging with under-presented narratives, democratizing research, building a deeper understanding of student experiences, use as a resource to spark conversations or as a new means of capturing lecture content. This discussion will also explore how creating/listening to podcasts fits into the rest of students’ undergraduate mathematics learning experience. Considering how podcasting connects with community engagement priorities, work integrated learning, work-study, and the reimagined undergraduate experience. This discussion will explore topics such as the intimacy of the hearing human voices in an age dominated by screens and isolation, and research findings from The Cultural Orientation Research Center that shows how retention rates from auditory learning are two times higher than reading and four times higher than attending a lecture. Finally, this will be an opportunity for educators interested in using podcasting as a pedagogy to consider “What innovative applications are still unexplored?”




(2.)Critical Pedagogies for Inclusive Spaces:-


Building inclusive mathematics learning spaces is not easy. Participatory teaching methods of mathematics do not always produce inclusion. Historical experiences of gender, sexuality, race, class and oppression structure students’ willingness and confidence to participate. Making the rhetoric of inclusion real in the classroom is subtle and often difficult. In this session we reflect on the dynamics and politics of inclusion in the classroom itself as a means to explore the wider complexities of critical inclusionary pedagogical practices. We provide examples from three fourth-year, seminar undergraduate classes from the Centre for Critical Development Studies, and the Interdisciplinary Centre for Health and Society, at the university.

We explore critical pedagogical practices related to three mathematics learning outcomes: empowered citizenship, critical hope and active learning through social technology. Mathematics lecturer will discuss how experiential exercises on everyday experiences of citizenship and power can foster a deeper level of participation and inclusion in the classroom. Mathematics teacher will share insights from the scholarship and her teaching practice about the importance of authentic caring and critical hope in our classrooms. He will highlight the intersection between critical pedagogy and open educational practices, showing examples of how students make use of social technology to take part in active learning and share their lived experience.

Guiding Questions:

How do power relations manifest themselves in the classroom? (from syllabus construction and assigned readings to participation practices and evaluation methods and assigned readings)
How do silences in the classroom speak to empowerment/disempowerment in the classroom?
How can experiential exercises foster deeper forms of inclusion in the classroom?
What is authentic caring and how can students and educators be empowered to develop critical hope in the classroom and beyond?


(3.)Interactive Workshop: Learning in Libraries – Students and their Use of Learning Spaces


When you think of academic libraries, what do you imagine? Satyam institutions that house knowledge? Interactive hubs of activity? Libraries have been mythologized in a variety of ways from intimidating, a “third space”, a “home away from home”, and ideally an inclusive environment. How an individual sees the library can be revealed through how they engage with the space.

We often imagine students engaged in solitary practices in the library and while quiet space is still crucial, increasingly we witness students engaged in collaborative information creation and sharing. In this workshop, librarians from three different libraries at U of T will explore the question, how do students use the library? We will discuss the ways in which students are engaging with library learning spaces and how recent library updates have impacted student use. Participants will be invited to engage in a creative design activity to consider features of their ideal learning space.

Outcomes – By the end of the session, participants will:

Recognize how different disciplinary studies influence how students use the mathematics library
Consider the study habits of undergraduates versus graduate students
Design an ideal learning space and analyze how that might influence the learning of their students


(4.)Interactive Workshop: When the City is a Classroom: Collaborative Learning with Community-Based Organizations

When students of urban studies collaborate with on the ground community‐based organizations around real‐world projects, theories about city‐building and inequality come alive. Abstract knowledge and concepts become tangible for students. In this session, we will present two models for this type of university‐community collaboration and discuss how to design such courses.

The first course model draws inspiration from concept of “contact zones”, which is a social space where multiple experiences and cultures clash and blend, and in which individuals learn from one another’s situated knowledge. This model takes the classroom outside of the university into a community‐based organization space, in which  University students and members of the organization learn from one another and produce new knowledge together . The course: Youth, Arts, Engagement, and the City did this by holding class at Regent Park Focus, a not‐for‐profit organization that media literacy and production programming for youth living in the area.

The second course model draws from  research, which found that students who volunteer with community‐based organizations “gained perspective on stereotyping and tolerance”  and thus developed their critical thinking skills. The course: Introduction to Urban Studies, provided 40 out of 80 students short‐term volunteer opportunities with various community‐based organizations throughout the city.

Outline of the Session:
I. Case study presentations of Model 1 and Model 2 course collaborations
II. Building relationships with community‐based organizations for classroom collaborations
III. Designing effective assignments to enhance learning in collaborative environments
IV. Workshop activity: addressing ethical dilemmas and challenges in implementation through small group simulations

By the end of this session, participants will be able to envision future community-university classroom experiences for their own fields and have the analytical tools to reflect on and troubleshoot the ethical dilemmas that inevitably arise in such collaborations.


(5.) Lightning Talks: Enabling Connections


Utilizing Best Practices in Online Learning for Healthcare Professionals on Patient/Medication Safety

Purpose: Evidence has shown that utilizing best practices in online learning will enhance learner engagement, satisfaction, and knowledge acquisition. The purpose of this presentation is to demonstrate the best practices in online learning, and how we applied these practices in the storyboarding of patient/medication safety online modules for healthcare professionals and students.

Outcomes: We will share themes identified from literature and through access to instructional design specialists and subject matter experts in online learning development as a result  Support Stream of the Instructional Technology Innovation Fund. We will discuss the overarching best practices in online mathematics training module development: (1) Make it Easy to Learn; (2) Engagement is Key; (3) Equal Learning Opportunity for Everyone; and (4) Content Matters. Within each best practice, actions that complement online learning theory, like avoiding learner overload, will be highlighted. These best practices are vital in ensuring the learner optimizes the learning potential and generates a positive attitude towards the mathematics learning experience. We will explain how to utilize and adopt them in the storyboarding of the various patient/medication safety online modules.

Facilitation: We hope our insights and illustrations of how patient/medication education can be delivered utilizing best practices in online learning may encourage others to consider applying these strategies in their curriculum delivery. With the increased uptake of e-learning platforms, this presentation will explain how to optimize mathematics learning with technological shifts in mathematics teaching.


(6.)In the later years of undergraduate study, we ask our students to read and evaluate primary literature within our fields. Shifting from textbooks – sources of packaged, contextualized knowledge – to vast amounts of peer-reviewed, yet otherwise unfiltered literature can be a tough transition for our students. Can they be taught to thoughtfully identify what findings are important and what will rarely be discussed again? How can we enhance our learners’ critical thinking skills that, while practiced in the classroom, will translate to critical evaluation of ideas outside of the classroom? The assignments detailed in this presentation will help support instructors in creating and implementing assessments of mathematics learning that tap into a range of student abilities, from describing ideas to critically evaluating them.


Several useful methods have been developed to guide students through reading scientific journal articles . This presentation will detail an innovative approach to helping students achieve a deeper understanding of primary literature, involving a series of sequential assignments based upon the levels of increasing cognitive complexity in  taxonomy . These assignments are designed to scaffold individual work outside of the classroom that will facilitate interactive engagement inside the classroom.

While this session will use scientific literature as a model, the framework discussed will translate into any field in which students struggle with interpreting and critiquing primary literature.

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question with solution by mathematical induction in hindi

Question with Solution by Mathematical Induction 

गणितीय आगमन (Mathematical Induction )सिद्धान्त की सहायता से  व्यापक से एक विशिष्ट परिणाम निकाला जाता है। इस प्रकार से प्राप्त गणितीय निष्कर्ष प्राप्त करना गणितीय निगमन है। परन्तु इस प्रकार से प्राप्त परिणाम हमेशा ही सत्य हो  यह  आवश्यक नहीँ हैं क्योंकि ये परिणाम  कुछ विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं।  अत : कुछ विशिष्ट परिणामों  को सत्य मानकर व्यापक परिणाम नहीं निकाला जा सकता हैं। इसके लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया का पालन करना होता हैं इसे ही हम  गणितीय आगमन  सिद्धान्त (principle of Mathematical Induction) कहते हैं। 
Question with Solution by Mathematical Induction

Question with Solution by Mathematical Induction


Question with Solution by Mathematical Induction (गणितीय आगमन  सिद्धान्त  की सहायता से प्रश्न का हल )

Question with Solution by Mathematical Induction

Question with Solution by Mathematical Induction


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solving linear equation [Method of elimination (By substitution)]

विलोपन विधि (प्रतिस्थापन द्वारा ) [Method of elimination (By substitution)]

युगपत`समीकरणों का बीजीय हल (Algebraic method of solving simultaneous linear equation)युगपत समीकरण दो चरों वाले रैखिक समीकरण वाला निकाय होता है। दोनों चरों के वह मान जो दोनों समीकरण निकाय को सन्तुष्ट करता है युगपत समीकरण का अद्वितीय हल कहलाता है। दो चरों के समीकरण निकाय को हल करने की निम्नलिखित तीन विधियां हैं -

(i)विलोपन विधि (प्रतिस्थापन द्वारा )[Method of elimination (By substitution)]
(ii)विलोपन विधि (किसी एक चर के गुणांकों को समान करके)[Method of elimination (By equating the co-efficient)]
(iii)वज्र गुणन विधि (व्यापक विधि )[Method of cross multiplication(General Method)]

(i)[Solving Linear Equation Method of elimination (By substitution)]

इस विधि में युगपत समीकरण निकाय के एक समीकरण से एक चर का मान दूसरे समीकरण में रखकर ,दूसरे समीकरण को एक चर में परिवर्तित कर लेते हैं। इस प्रकार एक चर के रूप में समीकरण परिवर्तित होने पर उस चर का मान ज्ञात कर लेते हैं। एक चर का मान ज्ञात होने पर उस चर का मान समीकरण निकाय के किसी समीकरण में रखकर दूसरे चर का मान ज्ञात कर लेते हैं। निम्नलिखित प्रश्न के हल से यह विधि स्पष्ट हो जाएगी। 

solving linear equation [Method of elimination (By substitution)]
solving linear equation [Method of elimination (By substitution)]

 

   

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Interesting and Effective Learning in Mathematics in hindi

Interesting and Effective Learning in Mathematics

गणित में रोचक और प्रभावी अधिगम ( Interesting and Effective Learning in Mathematics)

Interesting and Effective Learning in Mathematics

Interesting and Effective Learning in Mathematics

(1.)भूमिका (Introduction) :-

यह दुर्भाग्य ही है कि विद्यार्थियों और शिक्षित लोगों के मध्य गणित को अत्यंत रोचक विषय के बजाय एक कठिन विषय के रूप में जाना और समझा जाता है. इसका कारण यह है कि विद्यार्थियों की इस विषय में रूचि और जिज्ञासा की कमी, सीखने की ललक न होना और अध्यापकों द्वारा ठीक तरह से न पढ़ाना प्रमुख है. यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि विद्यार्थी की जिस विषय में रूचि व जिज्ञासा होती है और अध्यापक स्वेच्छा से अध्यापन के कार्य को चुनता है तो दोनों ही उस विषय में कठिन परिश्रम करते हैं. विद्यार्थी, अध्यापक द्वारा पढ़ाए गए पाठ से निरन्तर और ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाने की कोशिश करता है. यही बात गणित के सीखने(Learning of Mathematics) को स्थायित्व प्रदान करती है. इसलिए सर्वप्रथम अध्यापकों को यही चिन्तन करना है कि किस ढंग और युक्ति से गणित को रूचिकर और प्रभावी सीखने (Interesting and Effective Learning of Mathematics) का विषय बनाया जा सकता है.

(2.)गणित में रूचि को स्थायित्व प्रदान करना(Maintain Interest in Mathematics) :-

यह कटु सत्य है कि विद्यार्थी की रूचि (Interest) व लगन जिस विषय में होती है, विद्यार्थी उस विषय को निरन्तर पढ़ता है और निरन्तरता से स्थायित्व आता है. प्रारम्भिक कक्षाओं में अध्यापकों का यह कर्त्तव्य है कि विद्यार्थियों में गणित के प्रति रूचि (Interest in Mathematics) का निर्माण करना और उसमें स्थायित्व प्रदान करना सबसे प्रमुख कर्त्तव्य है. विद्यार्थियों की रूचि में स्थायित्व तभी आता है जबकि गणित शिक्षण में नवीनता का समावेश भी रहता है क्योंकि नवीनता के समाप्त हो जाने से रूचि व जिज्ञासा समाप्त हो जाती है.
सामान्यतः विद्यार्थी ऐसे विषय में रूचि रखने लगते हैं जो नवीन हो और उनके मस्तिष्क को सोचने व झकझोरने को प्रेरित करता है, साथ ही जो व्यावहारिक दृष्टि से भी उपयोगी और महत्वपूर्ण हो. इस प्रकार रूचि को बनाए रखने में नवीनता, उपयोगिता, जिज्ञासा और जीवन में उसकी व्यावहारिक महत्त्वता आधारभूत तत्त्व हैं. ये तत्त्व नहीं होते हैं तो विद्यार्थियों की रूचि (Interest) को बनाए रखना बहुत मुश्किल है. इसके साथ ही जिस विषय या पाठ को विद्यार्थी समझते हैं या उनके समझ में आ जाता है तो उस विषय या पाठ को सफलतापूर्वक सीख (Learning) सकते हैं और उनकी रूचि(Interest) निरन्तर बनी रहती है. इसके विपरीत जो विषय समझ में नहीं आता है या जिस विषय व पाठ को विद्यार्थी को ठीक से समझाया नहीं जाता है तो उस विषय से विद्यार्थी का ध्यान हट जाता है फलस्वरूप विद्यार्थियों की रूचि (Interest) उस विषय में कम हो जाता है.

(3.)गणित में अन्त:प्रेरणा और प्रोत्साहन का विश्लेषण(Analysis Intrinsic and Incentives):-

कुछ विद्यार्थियों में जन्मजात अन्त:प्रेरणा होती है जिसके आधार पर उनको थोड़ी सी भी मदद मिलती है या न भी मिले तो भी वे कठिनाईयों, विपत्तियों तथा समस्याओं को स्वत:प्रेरणा के आधार पर हल करते जाते हैं और आगे बढ़ते जाते हैं, इस प्रकार के विद्यार्थी आगे जाकर महामानव बनते हैं और जिस क्षेत्र में भी जाते हैं महान कार्य खड़ा कर देते हैं. जैसे महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम जो गणित में इतने तल्लीन रहते थे कि गणित के सिवाय किसी भी काम से उनको कोई मतलब नहीं था और अन्त में वे गणित में विश्वविख्यात हो गए.
कुछ विद्यार्थियों को बाहर से प्रेरित किया जाता है और उनकी अन्त:प्रज्ञा को जगाना पड़ता है. ज्यादातर विद्यार्थियों को प्रोत्साहन और प्रेरणा से तैयार करना होता है और इसमें अध्यापकों तथा अभिभावकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है. अन्त:प्रेरणा तथा प्रोत्साहन दोनों का उद्देश्य समान है अर्थात् गणित में रूचि (Interest in Mathematics) का निर्माण करना.
प्रोत्साहन तथा बाह्य प्रेरणा के आधार पर जिन विद्यार्थियों को तैयार किया जाता है यदि उनके सामने कोई कठिन समस्या आ जाती है और उस समय उनको कोई मदद नहीं मिलती है तो वे तनावग्रस्त हो जाते हैं और गणित उनका ध्यान भंग हो जाता है. सही समय पर उचित समाधान मिल जाए तो विद्यार्थियों में तनाव की स्थिति को समाप्त किया जा सकता है.
इस प्रकार सही ढंग से सीखाया जाए तो विद्यार्थियों में चिन्तन शक्ति का विकास होता है जिसके आधार पर विद्यार्थी समस्याओं के समाधान ढूँढ लेता है और समाधान मिलने से उनको सन्तुष्टि (satisfication) व आनन्द की अनुभूति होती है. गणित में रूचि (Interest in Mathematics) को बनाए रखने के लिए कई युक्तियां हैं जैसे गणितीय पहेलियां (Mathematics puzzles),  प्रतियोगिताएं, प्रसिद्ध गणितज्ञों के इतिहास का परिचय आदि.

(4.)सोशल मीडिया का गणित की रूचि में वृद्धि के लिए योगदान(Contribution of Social Media for Progress of Interest in Mathematics ) :-

आज का युग तकनीकी युग है अतः अध्यापन तथा शिक्षण में इतना परिवर्तन आ गया है कि जिसकी आज से पचास वर्ष पूर्व कोई कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. आज विद्यार्थी के शिक्षण हेतु केवल शिक्षा संस्थानों पर ही निर्भरता नहीं रह गई है बल्कि सोशल मीडिया जैसे यूट्यूब(youtube), फेसबुक (Facebook),वेबसाइट (website) ,लिंकडईन (LinkedIn), ट्विटर (twitter) जैसे अनेक माध्यम हैं जिनके आधार पर विद्यार्थी गणित को घर बैठे सीख(Learning) सकते हैं और अध्ययन कर सकते हैं. इस प्रकार गणित के शिक्षण में सोशल मीडिया का अपूर्व योगदान है इसलिए विद्यार्थियों को इनसे भरपूर लाभ उठाना चाहिए.

(5.)गणित अधिगम में अन्य विषयों की भूमिका(Role of Other Subjects in Learning Mathematics) :-

गणित अधिगम ( Learning Mathematics) का बहुत विस्तार हो चुका है. गणित के बिना आज भौतिक विज्ञान, रसायन शास्त्र, इंजीनियरिंग की विभिन्न शाखाओं में शिक्षण अधिगम (Learning) की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. आज स्थिति यह है कि जीव विज्ञान (Biology), शरीर विज्ञान(Physiology), चिकित्सा विज्ञान (Medical science)आदि भी गणित को अपना आधार बना चुके हैं. शिक्षा (Education), मनोविज्ञान (Psychology),दर्शनशास्त्र (Philosophy) आदि गणित के सहारे विकसित हो रहे हैं. यह गणित अधिगम (Learning Mathematics) के लिए अच्छी बात है क्योंकि इससे विद्यार्थियों में गणित के महत्त्व का पता चलता है और गणित के अधिगम (Learning Mathematics) में उनकी रूचि जाग्रत होती है.

(6.) गणित अधिगम में अन्य व्यवसायों का योगदान(Contribution of Other Profession in Learning Mathematics) :-

शिक्षा का लक्ष्य आधुनिक युग में आत्म-निर्भरता बन चुका है. इसके लिए विद्यार्थी अपने लिए किसी व्यवसाय का चयन करते हैं. गणित अधिगम (Learning Mathematics) में  रूचि के विकास के लिए जैसे कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि व्यापार गणित (Business Mathematics),विद्युत कर्मियों के लिए गणित (Mathematics of Electricians), कृषि के लिए गणित (Mathematics of Agriculture),बैंक, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, प्रशासन आदि सेवाओं में गणित की आवश्यकता सर्वविदित है. इलेक्ट्रॉनिकी और कम्प्यूटर गणित के महत्त्व तो स्वयंसिद्ध है.

(7.)गणित एक व्यवसाय के रूप में (Mathematics as a Career) :-

 व्यवसाय के रूप में गणित का आज बहुत महत्त्व बढ़ गया है. कोई भी Competition जैसे R. A. S, I. A. S., Accountant, SSC, Bank, Clerk इत्यादि सभी में गणित का Test लिया जाता है. इन तथा अन्य व्यवसाय जैसे व्यापार व उद्योग में गणित में प्रशिक्षित व्यक्तियों की माँग ( Demand),आपूर्ति (Supply)की अपेक्षा बढ़ती जा रही है. व्यावसायिक प्रशिक्षण गणित में रोचक और प्रभावी अधिगम ( Interesting and Effective Learning in Mathematics)वर्तमान समय तकनीकी का युग है इसलिए हर क्षेत्र में जीवन मूल्य तेजी से परिवर्तित हो रहे हैं. ये परिवर्तन हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं इसलिए हर विद्यार्थी को इन्हें समझना चाहिए हालांकि इनको समझना इतना आसान नहीं है क्योंकि शिक्षा में चारित्रिक व नैतिक शिक्षा का अभाव है, इनको हमारे पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है. विद्यार्थियों को बोध होना चाहिए कि इन सभी सांस्कृतिक और शैक्षिक मूल्यों में परिवर्तन की व्याख्या उन वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर की जा सकती है जो कि स्वयं गणित पर आधारित है.
दर्शन और तर्कशास्त्र, ज्ञान मीमांसा, मूल्य मीमांसा में गणित का उपयोग जाना जा सकता है. विद्यार्थी को इन सब बातों की जानकारी होनी चाहिए. इनकी अनभिज्ञता के कारण ही गणित जैसे तथ्यात्मक और तार्किक विषय को कठिन समझा जाता है.

(8.)प्रारम्भिक जिज्ञासा (Primary Curiosity) :-

वर्तमान शिक्षा प्रणाली, पाठ्यक्रम और शिक्षा संस्थानों की व्यवस्था में जिज्ञासा की उपेक्षा हो रही है. गणित विषय के प्रति आकर्षण जिज्ञासा के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है. कैसे, क्यों, क्या प्रश्न आवश्यक है. क्या, क्यों के उत्तर तो विज्ञान आसानी से देता है किन्तु 'कैसे' का उत्तर बहुत कठिन है, इसका उत्तर गणित के माध्यम से ही दिया जा सकता है.

(9.)समीक्षा (Review) :-

सामान्यतः गणित विषय को एक कठिन विषय के रूप में जाना और समझा जाता है. प्राथमिक स्तर से ही विद्यार्थियों के मस्तिष्क में ऐसी भावना बैठा दी जाती है और इसके लिए शिक्षक, माता-पिता और अभिभावक जिम्मेदार हैं. दूसरी ओर स्थिति यह है कि गणित विषय की ओर काफी संख्या में विद्यार्थी आकर्षित होते हैं. इस विरोधाभास का कारण यह है कि इसकी व्यावहारिक उपयोगिता (practical utility) है. जीवन में गणित के महत्त्व को सभी जानते और समझते हैं. फिर भी इसकी उपयोगिता इसको आकर्षक नहीं बना सकी है. गणित प्रतीकों का शास्त्र है तथा अमूर्त चिन्तन का विषय है. विद्यार्थी अन्य विषयों के ज्ञान को तो आसानी से जान लेता है और समझ भी जाता है किन्तु गणित जैसे अमूर्त विषय को समझना उसके लिए कठिन प्रतीत होता है. दूसरी बात यह है कि इसमें मनोरंजक सामग्री बहुत कम मिलती है. अतः गणित में आकर्षण और रूचि बढ़ाने के लिए इसमें मनोरंजक पहेलियों को शामिल किया जाना चाहिए.

वस्तुतः सभी विद्यार्थी खेलों और क्रीड़ाओं को पसन्द करते हैं जिनमें रहस्य, कौतूहल और आश्चर्य के तत्त्व मौजूद हो. गणितीय पहेलियों, कूट प्रश्नों और प्रतिस्पर्धाओं में ये तत्व मौजूद होते हैं. यदि विद्यार्थियों को इनका अधिगम (Learning) कराया जाए तथा पाठ्यक्रम में इनको शामिल किया जाए तो इनकी सहायता से विद्यार्थियों की जिज्ञासा और रूचि (Interest) को गणित में बढ़ाया जा सकता है.

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change of independent and dependent variables in math.

Change of Independent and Dependent Variables in math.

when it is required in differential equation to change both the variable independent and dependent variable into another variables with which they are connected by a given relation,e.g. if y be a function of x ,it may be desired to change  into r,𝞗 .we shall solve a question as follows 

change of independent and dependent variables in math.

change of independent and dependent variables in math.


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How to make Students practical in hindi || how to become practical by satyam coaching centre


How to make Students practical in hindi || how to become practical by satyam coaching centre



via https://youtu.be/5YnDk7cP83Y

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Direction cosines of the tangent principal normal and binormal

Direction cosines of the tangent principal normal and binormal

Definition:(1.)Principal Normal:The normal lying in the osculating plane at a point p of a given space curve is called the principal normal to the curve at the point p.

(2.)Binormal:The normal perpendicular to the principal normal of a given curve at a point p is called binormal of the curve at that point.

Direction cosines of the tangent,principal normal and binormal

Direction cosines of the tangent,principal normal and binormal


(3.)Angles between tangent and the given line,Angles between binormal and the given line 

Direction cosines of the tangent,principal normal and binormal

Direction cosines of the tangent,principal normal and binormal


(4.)The condition of the three directions are coplanar

Direction cosines of the tangent,principal normal and binormal

Direction cosines of the tangent,principal normal and binormal



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Mathematics Teacher in Hindi ||गणित अध्यापक

Mathematics Teacher 

गणित अध्यापक(Mathematics Teacher)

Mathematics Teacher

Mathematics Teacher 

आधुनिक युग में पाठ्यक्रम, विद्यार्थी तथा अध्यापक तीनों का शिक्षण कार्य में महत्वपूर्ण स्थान तथा महत्त्व है. परन्तु इन तीनों में अध्यापक का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि विद्यार्थी को पाठ्यक्रम व विषयवस्तु को समझाने और प्रस्तुत करने का दायित्व अध्यापक का ही होता है. प्रत्येक अध्यापक में कुछ न कुछ गुण व विशेषताएं अवश्य होनी चाहिए ताकि उस विषय को पढ़ने में विद्यार्थी रुचि ले सके. परन्तु गणित विषय अन्य विषयों की तुलना में अत्यधिक जटिल विषय है तथा उसको समझाने, समझने के लिए उच्च स्तर की तार्किक क्षमता, चिंतन, कल्पना शक्ति तथा निर्णय शक्ति की आवश्यकता होती है.
गणित एक ऐसा विषय है जिसके अध्ययन के लिए शिक्षक में उक्त गुणों के साथ साथ उच्च बौद्धिक क्षमता, धैर्य, एकाग्रता, समर्पण भाव की आवश्यकता होती है. गणित शिक्षक(Mathematics Teacher) में यदि सूझबूझ, विषय का गहराई से ज्ञान, छात्रों की कठिनाइयों से परिचित हो तो वह गणित को अत्यंत रोचक बना सकता है तथा छात्रों में तार्किक क्षमता एवं मानसिक शक्ति का विकास कर सकता है. इसके अतिरिक्त गणित के शिक्षक में सफल शिक्षण के लिए निम्न गुणों का होना आवश्यक है -

(1.)गणित विषय का गहराई से ज्ञान (Deep knowledge of Mathematics):- 

आज का युग तकनीकी युग है अतः विषय सामग्री में नयी नयी खोजे हो रही है तथा पाठ्यक्रमों में निरन्तर परिवर्तन कर दिया जाता है. अतः गणित अध्यापक को विषय का गहराई से तभी ज्ञान हो सकता है जबकि उसकी अध्ययन की प्रवृत्ति हो तथा नवीन ज्ञान सीखने की रूचि हो. इसलिए गणित अध्यापक को नई नई पुस्तकें, पत्रिकाओं को पढ़ते रहना चाहिए और ज्ञान व जानकारी में uptodate रहना चाहिए.
(2.) सकारात्मक दृष्टिकोण(Positive perspective): - 

यदि गणित के प्रति अध्यापक का सकारात्मक दृष्टिकोण होगा तो अध्यापक गणित को आवश्यक, उपयोगी एवं महत्वपूर्ण बना सकता है. विद्यार्थियों का सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर सकता है.
(3.)व्यावसायिक दृष्टिकोण(Professional perspective) :- 

आज का युग आर्थिक, तकनीकी और वैज्ञानिक युग है अतः गणित तथा विज्ञान का देश के आर्थिक, तकनीकी और विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है. अतः जो अथ्यापक गणित को पढ़ाना मजबूरी समझते हैं वे विद्यार्थियों की गणित विषय में रुचि जाग्रत नहीं कर सकते हैं जिन अध्यापकों की अपने व्यवसाय में निष्ठा होती है वे अपने कार्य को कर्मठता से करते हैं वे विद्यार्थियों में अध्ययन के प्रति रूचि उत्पन्न कर देते हैं.
(4.)गणित को पढ़ाने का अनुभव(Experience to Teach Mathematics) :-

जिन अध्यापकों को गणित पढ़ाने का अनुभव होता है वे गणित विषय को सरल रुप में विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं. यदि अध्यापक को अनुभव नहीं होता है तो तो अध्यापक की त्रुटियों का विद्यार्थियों के सीखने पर प्रभाव पड़ता है. इसलिए गणित के शिक्षक को व्यापक और गहरा ज्ञान होना चाहिए तथा हमेशा ज्ञान ग्रहण करते रहना चाहिए.
(5.)अन्य विषयों का ज्ञान(Knowledge of Other Subjects) :- 

गणित का सम्बन्ध अन्य विषयों से भी होता है. जैसे रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान इत्यादि. अतः विद्यार्थी अन्य विषयों से संबंधित प्रश्न पूछे तो उसका समाधान करना चाहिए. भौतिक विषयों के अतिरिक्त नैतिक, धार्मिक व आध्यात्मिक पुस्तकों का ज्ञान भी होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों के जीवन से सम्बंधित समस्याओं का समाधान कर सके.

(6.)मनोविज्ञान का ज्ञान (Knowledge of Psychology):-

गणित के शिक्षक को मनोविज्ञान का व्यावहारिक ज्ञान भी आवश्यक है क्योंकि एक ही कक्षा में विभिन्न बौद्धिक स्तर के विद्यार्थी होते हैं. किसी विद्यार्थी को संक्षेप में समझ में आ जाता है तथा किसी को विस्तृत रूप से समझाने पर समझ में आता है. प्रत्येक विद्यार्थी के सीखने की मानसिक क्षमता अथवा स्तर समान नहीं होता है. अतः अधिक मेधावी, मध्यम तथा मन्दबुद्धि बालकों की पढ़ने में रूचि का विकास तभी किया जा सकता है जबकि अध्यापक को मनोविज्ञान का ज्ञान होगा.
(7.)सदाचार युक्त जीवन(Life containing Virtue) :- 

गणित के शिक्षक का जीवन सदाचार युक्त होगा अर्थात् शिक्षक का जीवन पवित्र, शुद्ध, विनम्रता युक्त, धैर्यवान्, साहसी, विवेकवान इत्यादि गुण होंगे तो विद्यार्थियों को प्रभावी ढंग से शिक्षण कार्य करायेगा. यो ये गुण अन्य विषय के अध्यापक में भी मौजूद होते हैं परन्तु गणित जैसे जटिल विषय के पढ़ाने वाले अध्यापक में ये गुण आवश्यक रूप से होने चाहिए विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए प्रेरणा मिले.

(8.)गणित के व्यावहारिक ज्ञान की जानकारी(Practical Knowledge of Mathematics) :-

गणित का व्यवहार में कहाँ-कहाँ किस रूप में प्रयोग किया जाता या किया जा सकता है। जैसे घर का बजट बनाने, आय, मजदूरी, वस्तुओं के तौलते समय, घड़ी में समय देखते समय, बस का किराया देते समय, गणना करने में या अनुपात औसत निकालते समय इत्यादि विभिन्न कार्यों में गणित का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार का ज्ञान होने से छात्रों को उसकी व्यावहारिक उपयोगिता बताई जा सकती है।

(9.)नवीन तकनीकी का ज्ञान (Knowledge of new Technology):-

विश्व के नागरिकों को निकट लाने में तकनीकी ज्ञान की आज के युग में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। आज तकनीकी ज्ञान के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती है। गणित के ज्ञान के प्रसार का लैपटॉप, मोबाइल, कम्प्यूटर व इंटरनेट के माध्यम से आसानी से हो तथा तीव्र गति से हो रहा है। शिक्षक घर बैठे कई समस्याओं का समाधान इनके माध्यम से छात्रों को आसानी से कभी भी, कहीं पर भी उपलब्ध करा सकता है। आज समाज की आर्थिक प्रगति तकनीकी ज्ञान पर निर्भर करती है जिसके कारण हमें जीवन में आनन्द, सुख और समृद्धि उपलब्ध हो सकता है। भावी जीवन में भी गणित के अधिक उपयोग की सम्भावना है।

(10.)गणित की शिक्षण विधियों का ज्ञान(Knowledge of Mathematics Teaching Method) :- 

गणित के अध्यापक को गणित के ज्ञान के साथ-साथ गणित की अध्यापन विधियों जैसे आगमन-निगमन विधि ( Inductive-Deductive method), संश्लेषण-विश्लेषण (synthetic-analytic method), अनुसंधान विधि (Heuristic method), प्रयोगशाला विधि ( Laboratory method), समस्या निवारण विधि (problem solving method) का ज्ञान होना आवश्यक है. अक्सर गणित की विषय सामग्री का ज्ञान तो होता है परन्तु विधि का ज्ञान न होने से गणित का अध्यापक पारम्परिक तरीके से गणित को पढ़ाते हैं. गणित के अध्यापक को यह ज्ञात होना चाहिए कि किस गणित तथा किस समस्या में कौनसी विधि का प्रयोग उचित होगा. यदि इसका ज्ञान होगा और उसका प्रयोग करेगा तभी वह शिक्षण में सफल हो सकेगा.







वस्तुतः गणित की अनेक शाखाएं जैसे बीजगणित, अंकगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति इत्यादि इन सभी का गणित के अध्यापक को अध्यापन कराना होता है परन्तु इनकी विषय सामग्री में आपस में ज्यादा समानता नहीं है.इसलिए उसको समझना होगा कि गणित की किस शाखा में कौनसी विधि उपयुक्त रहेगी. गणित के अध्यापक(Mathematics Teacher) को यह ध्यान रखना होगा कि विद्यार्थियों के मस्तिष्क में यह विचार पैदा नहीं होने देना चाहिए कि इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है बल्कि उसे यह अनुभव कराना चाहिए कि इनका आपस में सम्बन्ध है तथा इन सभी का ज्ञान आवश्यक है.


(11.)मूल्यांकन विधि(Evaluation method):-


गणित के अध्यापक को मूल्यांकन विधियों का भी ज्ञान होना आवश्यक है. शिक्षण तथा मूल्यांकन का आपस में गहरा सम्बन्ध है. मूल्यांकन विधियों यथा वस्तुनिष्ठ, निबन्धात्मक, लघुत्तरात्मक व अतिलघुत्तरात्मक विधियों से विद्यार्थियों का समय-समय पर मूल्यांकन करते रहना चाहिए.




(12.)कक्षा अध्यापन((Class Teaching):-

 गणित के अध्यापक को यह ध्यान रखना चाहिए कि अन्य विषयों का तो विद्यार्थी घर पर भी अध्ययन कर सकता है तथा बिना किसी सहायता के अध्ययन के लिए सहायक की जरूरत होती है. वह सहायक शिक्षक ही हो सकता है. अतः गणित के अध्यापक को गणित की समस्याओं का अभ्यास भली प्रकार करा देना चाहिए उसे घर के भरोसे नहीं छोड़ देना चाहिए. क्योंकि गणित केवल गणना करने का कार्य नहीं है बल्कि इसमें अमूर्त चिंतन की आवश्यकता होती है, बिना चिंतन के गणित को सीखना कठिन है.






(13.)गणित का व्यावहारिक ज्ञान(Practical Knowledge of Mathematics) :-

 गणित ज्ञान का एक साधन है, साध्य नहीं. पूर्व में गणित का व्यावहारिक प्रयोग जोड़, बाकी, गुणा और भाग तक ही सीमित था परन्तु आधुनिक युग में तकनीकी तथा गणित का इतना विकास हो चुका है कि हमे ब्याज, लाभ-हानि, समय, मजदूरी, अनुपात-समानुपात, बीमा इत्यादि की गणना करने की व्यावहारिक आवश्यकता होती है. गणित के अध्यापक से यह अपेक्षा की जाती हैं कि वह विद्यार्थियों को इनका समुचित ज्ञान कराए जिससे गणित का व्यावहारिक समस्याओं को हल करने में विद्यार्थी उपयोग कर सके.







(14.)गणित के अध्यापक का चरित्र(Character of Mathematics Teacher) :- 

गणित के अध्यापक की गणित में गहरी निष्ठा होना आवश्यक है क्योंकि इसका प्रभाव विद्यार्थी पर पड़ता है. विद्यार्थियों को गणित सीखने तथा रूचि पैदा करने के लिए गणित के अध्यापक में धैर्य, समय का पाबन्द, शुद्धता, सरलता, परिश्रमी, एकाग्रता जैसे गुणों का होना आवश्यक है.
(15.)प्रसिद्ध गणितज्ञों की जानकारी(Information of famous Mathematicians) :- 

गणित के अध्यापक को भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञों जैसे आर्यभट्ट (प्रथम), आर्यभट्ट (द्वितीय), वराहमिहिर, 

महावीराचार्य, भास्कराचार्य तथा विश्व के महान गणितज्ञ पाइथागोरस, यूक्लिड, रिनि डिकार्टी के बारे बारे में 

ज्ञान होना चाहिए. भारतीय गणितज्ञों ने शून्य, अनन्त, दशमलव प्रणाली, समाकलन गणित, लघुगुणक व संख्या पद्धति का ज्ञान कराया. "इससे विद्यार्थियों को प्रेरणा मिलती है.


(16.)अन्य ज्ञान(Other Knowledge) :-
(1.)वर्तमान पाठ्यक्रम को नवीन विधियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार विद्यार्थियों को गणित का अध्यापन कराया जाना चाहिए.
 (2.)गणित पढ़ने वाले प्रतिभाशाली विद्यार्थी अक्सर इंजीनियरिंग, कंप्यूटर टेक्नोलाॅजी, भौतिकशास्त्र जैसे क्षेत्रों में चले जाते हैं और गणित में मध्यम दर्जे के विद्यार्थी रह जाते हैं. अतः गणित के शिक्षक को अपने प्रयासो द्वारा विद्यार्थियों को अनुसंधान (खोज) एवं नवीन चिंतन की ओर प्रेरित करे.
 (3.)गणित के अध्यापक को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उसका अध्यापन का ढंग ऐसा हो जिससे भावी गणितज्ञ तैयार हो सके और हमारी तकनीकी व गणित सम्बन्धी विकास में अपना योगदान दे सकें.






(17.)समीक्षा(Criticism) :- 

गणित का सफल अध्यापक वही हो सकता है जिसमें ज्ञान की हमेशा प्यास हो, जीवन में सादगी हो। अध्यात्म, नैतिकता व सदाचरण से युक्त जीवन हो। वस्तुतः अध्यात्म व गणित (विज्ञान) एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों के ज्ञान से व्यक्ति में पूर्णता आती है। ऐसा अध्यापक ही छात्रों को गणित विषय में रूचि का विकास कर सकता है व प्रेरित कर सकता है शर्त यही है कि अध्यापक के सिद्धांत और व्यवहार में अन्तर न हो। कई शिक्षकों को गणित का गहरा और विशद ज्ञान होता है परन्तु उनका चरित्र उज्ज्वल नहीं होता है, छात्रों पर ऐसे अध्यापक का विपरीत प्रभाव पड़ता है। अध्यापक का शुद्ध व पवित्र आचरण छात्रों को वैसा ही करने को प्रेरित करता है।

(18.)निष्कर्ष(Conclusion and suggestion) :- 

वर्तमान में गणित अध्यापकों की दशा बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है. वैसे तो वर्तमान दृश्य को देखकर कहा जा सकता है कि आज की स्थिति में कोई भी अध्यापक स्वेच्छा से बनने के लिए तैयार नहीं होता है. वह अध्यापक तभी बनता है जब अन्य व्यवसाय जैसे इंजीनियर, डाॅक्टर, प्रशासनिक अधिकारी (R.A.S,I.AS)तथा इसी प्रकार की अन्य सेवाओं में उसका चयन नहीं होता है. इस प्रकार अधिक योग्य प्रतिभाएं अन्य क्षेत्रों में चली जाती है और निम्न स्तर की प्रतिभाएं अध्यापक व्यवसाय का चयन करती हैं. इस प्रकार जो मनुष्य अनिच्छा से अध्यापक व्यवसाय का चयन करता हैं तो वह विद्यार्थियों को रुचिपूर्वक नहीं पढ़ाता है और न ही उसमें उस विषय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है. इसके अलावा महानगरों में जो गणित के अध्यापक नियुक्त हैं वे गाँवों में जाना पसन्द ही नहीं करते हैं क्योंकि नगरों तथा महानगरों में प्राइवेट ट्यूशन कराकर वे और अधिक धन कमाने की लालसा रखते हैं. अतः इसका समाधान यह हो सकता है कि अध्यापक व्यवसाय विशेषकर गणित में योग्य तथा इच्छुक अभ्यर्थियों की ही नियुक्ति की जाए. इसके साथ ही गणित अध्यापक का वेतनमान सरकार तथा शिक्षा संस्थानों को उनकी योग्यता के अनुसार दिया जाना चाहिए जिससे वे ट्यूशन की ओर ध्यान न देकर कक्षा में ही विद्यार्थियों को पूर्ण समर्पण, एकाग्रता तथा परिश्रम के साथ अध्ययन कराएँ.
 


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