K Sivan became chairman of ISRO on the basis of maths
December 11, 2019
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Found place on the strength of mathematics and K Sivan became ISRO chairman
1.बिना चप्पलों के गुजरा बचपन, पढ़ाई के दम पर पाया मुकाम और बन गए इसरो अध्यक्ष का परिचय(Childhood passed without slippers, found place on the strength of mathematics and became ISRO chairman) -
K Sivan became chairman of ISRO on the basis of maths |
सामन्यतः यह समझा जाता है कि सुख-सुविधाओं के अभाव में प्रतिभाएं दम तोड़ देती है या उनकी प्रतिभा सुप्त ही रह जाती है अर्थात् निखरती नहीं है। कहीं अँधेरे या अज्ञातवास में अपना जीवन काट रही होती हैं। परन्तु कुछ प्रतिभाएं ऐसी होती है जो अपने पूर्वजन्मों के संस्कार ऐसे लेकर आती है जो इस तरह की मान्यताओं को गलत सिद्ध कर देती है। हम आज आपको एक ऐसी ही गणितीय प्रतिभा का परिचय करा रहे हैं। तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के सराक्कल विलाई गाँव के एक किसान के बेटे कैलाश डीवू सिवन जिनको शाॅर्ट में के. सिवन के नाम से जाना जाता है, को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया है।
श्री के. सिवन ने अपना बचपन और युवावस्था घोर निर्धनता और अभावों में व्यतीत किया है। लेकिन वे बचपन से ही मेधावी थे। बीएससी(गणित) में टाॅप अंकों से उत्तीर्ण किया। इसके पश्चात उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और संघर्ष करते-करते सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए तथा उनका समाधान करते हुए इसरो के अध्यक्ष के पद तक पहुँच गए हैं।वस्तुतः कुछ प्रतिभाएं कठिनाइयों से टक्कर लेकर ओर ज्यादा निखरती है। ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे जिन्होंने काफी संघर्ष किया और अंत में शिखर पर पहुँचे। श्रीनिवास रामानुजन को भी अभावों और निर्धनता के कारण बीच में ही अध्ययन को छोड़कर क्लर्क(बाबू) की नौकरी करनी पड़ी थी। हालांकि नीति में भी कहा गया है कि जो पढ़ता है, देखता है, पूछता है, पंडितों का साथ करता है, उसकी बुद्धि का इस प्रकार विकास होता है जैसे सूर्य की किरणों में कमल का। विद्या चाहे गणित विद्या हो या अध्यात्म विद्या हो अथवा अन्य कोई विद्या हो, विद्या प्राप्त करने के लिए कष्ट उठाना पड़ता है। विद्या ग्रहण करने के लिए शुरू में बहुत कठिन तप और साधना करनी होती है। जैसे सुनार अग्नि में स्वर्ण को तपाकर उसके अन्दर के मेल को साफ करता है, उसी प्रकार गणित शिक्षा को अर्जित करने के लिए अग्निरूपी समस्याओं में तपना पड़ता है। विद्या ग्रहण करने के लिए शुरू में कष्ट उठाना पड़ता है, उसे बाद में सुख व आनन्द की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य अपने विद्यार्थी काल को ऐशोआराम व सुख सुविधाओं में गुजारता है उसे विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती है, उसे बाद में कष्ट व दु:ख उठाना पड़ता है। युवावस्था में दु:ख व कष्ट उठाना ज्यादा कष्टदायक नहीं होता है परन्तु वृद्धावस्था में दु:ख व कष्ट उठाना बहुत दु:खदायी तथा ज्यादा कष्टकारी और लम्बा प्रतीत होता है, असहनीय होता है क्योंकि वृद्धावस्था में शरीर क्षीण हो जाता है इसलिए कष्ट सहन करने योग्य नहीं होता है। दूसरी बात यह है कि शुरू में जो ऐशोआराम व आरामतलबी का जीवन व्यतीत करता है, उसे कष्ट उठाने का अभ्यास नहीं होता है।
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आधुनिक युग में विद्यार्थी माता-पिता से विद्या ग्रहण करने के लिए सुख-सुविधाओं की माँग करते रहते हैं। माता-पिता अपने बच्चों की फरमाइशें पूरी करने के लिए रात-दिन धन तथा सम्पत्ति अर्जन करने में जुटे रहते हैं। धन कमाने के चक्कर में माता-पिता का यह ध्यान ही नहीं रहता है कि उनका बच्चा किस रास्ते की ओर जा रहा है। अर्थात् दुष्प्रवृत्तियों जैसे शराब, नशाखोरी, आवारागर्दी, गुण्डागर्दी, चोरी, बेईमानी में लिप्त तो नहीं हो रहा है। परन्तु जब सच्चाई का पता चलता है तो उन्हें बहुत पीड़ा और पश्चात्ताप होता है। इसलिए बच्चों के लिए सुख-सुविधाएं जुटाने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि उनको चारित्रिक शिक्षा तथा सद्गुणों से सम्पन्न करें।
गणित शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी, इसरो के अध्यक्ष के. सिवन के जीवन से सीख ले सकते हैं कि अभावों में भी शिक्षा अर्जित की जा सकती है। अभावों व कष्टों से तपकर जो निखरता है वह विकाररहित हो जाता है। गणित शिक्षा के लिए खासतौर से इन बातों को ध्यान रखने के साथ-साथ, इनको अपने आचरण में उतारे तो विद्यार्थियों का खुद का, माता-पिता, समाज व देश का भला हो सकता है।
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2.बिना चप्पलों के गुजरा बचपन, पढ़ाई के दम पर पाया मुकाम और बन गए इसरो अध्यक्ष(Childhood passed without slippers, found place on the strength of mathematics and became ISRO chairman) -
बंगलूरू Updated Tue, 30 Jul 2019K Sivan became chairman of ISRO on the basis of maths |
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इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसिज (आईआईएससी) से इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। 2006 में उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। सिवन स्नातक करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य हैं। उनके भाई और बहन गरीबी के कारण अपनी उच्च शिक्षा पूरी नहीं कर पाए।
उन्होंने कहा, 'जब मैं कॉलेज में था तो मैं खेतों में अपने पिता की मदद किया करता था। यही कारण था कि पिता ने मेरा दाखिला घर के पास वाले कॉलेज में कराया था। जब मैंने 100 प्रतिशत अंकों के साथ बीएससी (गणित) पूरी कर ली तो उन्होंने अपना मन बदल लिया। मेरा बचपन बिना जूतों और सैंडल के गुजरा है। मैं कॉलेज तक धोती पहना करता था। जब मैं एमआईटी में गया तब पहली बार मैंने पैंट पहनी थी।'
सिवन 1982 में इसरो में शामिल हुए थे। यहां उन्होंने लगभग हर रॉकेट कार्यक्रम में काम किया है। जनवरी 2018 में इसरो अध्यक्ष का पदभार संभालने से पहले वह विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक थे। यह सेंटर रॉकेट बनाता है। उन्हें साइक्रोजेनिक इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और रियूसेबल लॉन्च व्हीकल कार्यक्रमों में योगदान देने के कारण इसरो का रॉकेट मैन कहा जाता है।
उन्होंने 15 फरवरी 2017 को भारत द्वारा एकसाथ 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में अहम भूमिका निभाई थी। यह इसरो का विश्व रिकॉर्ड भी है। रॉकेट विशेषज्ञ सिवन को खाली समय में तमिल क्लासिकल गाने सुनना और गार्डनिंग करना पसंद है। उनकी पसंदीदा फिल्म राजेश-खन्ना की 1969 में आई आराधना है। उन्होंने कहा, 'जब मैं वीएसएससी का निदेशक था तब मैंने तिरुवनंतपुरम स्थित अपने घर के बगीचे में कई तरह के गुलाब उगाए थे। अब बंगलूरू में मुझे समय नहीं मिल पाता है।'
15 जुलाई को जब चंद्रयान-2 अपने मिशन के लिए उड़ान भरने ही वाला था कि कुछ घंटों पहले तकनीकी कारणों से इसे रोकना पड़ा। इसके बाद सिवन ने एक उच्च स्तरीय टीम बनाई ताकि दिक्कत का पता लगाया जा सके और इसे 24 घंटे के अंदर ठीक कर दिया और सात दिनों बाद चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 घंटे में तकनीकी खामी को दूर करने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों की प्रशंसा की थी।
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