Mathematics Weakest, National Achievement Survey Report Shocking

Mathematics Weakest, National Achievement Survey Report Shocking

1.गणित सबसे कमजोर, नेशनल अचीवमेंट सर्वे की रिपोर्ट चौंकाने वाली का परिचय (Introduction to Mathematics Weakest, National Achievement Survey Report Shocking)-

Mathematics Weakest, National Achievement Survey Report Shocking
Mathematics Weakest, National Achievement Survey Report Shocking
इस आर्टिकल में बताया गया है कि केन्द्र सरकार द्वारा बोर्ड परीक्षा से पहले लर्निंग आउटकम के लिए नेशनल अचीवमेंट सर्वे कराया गया था। इस सर्वे से यह बात सामने आई है कि देशभर के स्कूलों में दसवीं के विद्यार्थियों का गणित सबसे कमजोर है। स्पष्ट है कि जब नींव ही कमजोर है तो भवन कैसा होगा इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। जब नींव ही कमजोर होती है तो भवन कितना ही आलीशान हो कभी न कभी भरभराकर गिर ही जाएगा।कक्षा प्रथम से दसवीं तक की कक्षा में विद्यार्थियों को जिस प्रकार से तथा जिस ढंग से पढ़ाया जा रहा है उस तरीके से नींव कमजोर रहनी ही है। नींव कमजोर रहने के कई कारण हैं यदि उन कारणों को दूर कर दिया जाए तो नींव मजबूत हो सकती है।

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2.हमारे विचार से गणित में कमजोर होने के  निम्नलिखित कारण हैं -

(1.)प्रथम कारण तो यह है कि शिक्षक विद्यार्थियों को परम्परागत तरीके से पढ़ाया जाता  हैं। परम्परागत तरीके से पढ़ाने का मतलब यह है कि सभी विद्यार्थियों को लेक्चर मेथड से समझा दिया जाता है जबकि विद्यार्थियों का मानसिक स्तर भिन्न-भिन्न होता है इसलिए जो प्रखर विद्यार्थी होते हैं वे तो समझ जाते हैं परन्तु सामान्य तथा निम्न स्तर के विद्यार्थी नहीं समझ पाते हैं।
(2.)दूसरा कारण यह है कि सभी विद्यार्थियों को जिनका मानसिक स्तर भिन्न-भिन्न होता है एक ही कक्षा में बैठाकर पढ़ा दिया जाता है। इसलिए निम्न स्तर के विद्यार्थी प्रखर बालकों के साथ कदम मिलाकर आगे नहीं बढ़ सकते हैं। इसलिए प्रखर विद्यार्थियों को सामान्य तथा निम्न स्तर के विद्यार्थियों से अलग कक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए अर्थात् प्रखर विद्यार्थियों को अलग से ही पढ़ाया जाना चाहिए।
(3.)तीसरा कारण है कि एक ही कक्षा में बहुत अधिक संख्या में विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है इसलिए अध्यापक व्यक्तिगत रूप से किसी भी बालक की समस्या का समाधान नहीं कर पाता है।
(4.)चौथा कारण है कि योग्य तथा प्रशिक्षित गणित शिक्षकों का अभाव है। इस अभाव को दूर करने के लिए अन्य विषयों के शिक्षकों को गणित पढ़ानी पड़ती है। अन्य विषय के शिक्षक गणित को ठीक ढंग से नहीं पढ़ा पाते हैं केवल खानापूर्ति करते हैं।
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(5.)पाँचवा कारण है कि निजी स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षक ही गणित पढ़ाते हैं। बहुत कम निजी स्कूलों में प्रशिक्षित गणित अध्यापक पढ़ाते हैं।
(6.)छठवाँ कारण है कि सरकारी स्कूलों में नियुक्ति होने के बाद गणित शिक्षक रुचि व समर्पण भाव से नहीं पढ़ाते हैं।
(7.)सातवाँ कारण है कि आधुनिक युग में हर चीज जितनी तेज गति से परिवर्तित हो रही है उसके साथ शिक्षक अपने आपमें बदलाव नहीं करते हैं जबकि शिक्षक को आजीवन अध्ययनशील रहना चाहिए तथा अपडेट रहना चाहिए। शिक्षा में जो भी परिवर्तन हो रहे हों उनको आत्मसात करते रहना चाहिए। अध्यापक को आजीवन विद्यार्थी बने रहना चाहिए।
(8.)आठवाँ कारण है कि शिक्षा विभाग तथा शिक्षा विभाग की उच्च अथाॅरिटी स्कूलों का औचक निरीक्षण नहीं करते हैं कहीं कोई एक आध उदाहरण सामने आता है और फिर वही ढाक के तीन पात।
(9.)नवाँ कारण है कि विद्यार्थी के सफल होने या असफल होने पर शिक्षक का कोई दायित्व निर्धारित नहीं है। शिक्षकों का दायित्व निर्धारित करना चाहिए तथा परीक्षा परिणाम बहुत कम रहा हो तो शिक्षकों से स्पष्टीकरण के साथ-साथ एक्शन लेना चाहिए।
(10.)दसवाँ कारण है कि सरकार तथा राजनेताओं का एकमात्र उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना और सत्ता में बने रहना है। वे सत्ता का सुख भोगना चाहते हैं। वे कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहते हैं जिससे उन्हें कोई नया सिरदर्द मोल लेना पड़े। शिक्षा को प्रगतिशील तथा आधुनिक युग के परिवर्तन के अनुसार ढालने के लिए उचित तथा सख्त कदम उठाने पड़ते हैं और उसका विरोध भी होना स्वाभाविक है। इसलिए ठोस तथा प्रभावी कदम उठाए जाएं तो शिक्षा की दशा व दिशा दोनों सुधर सकते हैं।
(11.)ग्यारहवाँ कारण है कि स्कूलों में उचित भौतिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। अर्थात् कहीं पर स्कूल भवनों की तो कहीं पर शुद्ध पेयजल की कमी हैं। कहीं शौचालय नहीं है तो कहीं पर पुस्तकालय व पुस्तकों का अभाव है। इसलिए सरकारी अधिकारी तथा सरकार में सत्तारूढ़ राजनेता व सक्षम स्वयंसेवी संगठनों को उचित भौतिक साधनों की व्यवस्था करनी चाहिए तथा समय-समय पर निरीक्षण करते रहना चाहिए।
(12.)बारहवाँ कारण है कि प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों को उत्तीर्ण करने का प्रावधान होना। इसके कारण न तो विद्यार्थी, न अभिभावक और न ही शिक्षक विद्यार्थी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराते हैं व करते हैं। विद्यार्थियों का रिपोर्ट कार्ड स्कूल प्रशासन के पास ही होता है इसलिए कोई कुछ ऊँगली उठानेवाला नहीं होता है। अभिभावक बच्चों को स्कूलों में एडमिशन कराकर अपना कर्त्तव्य पूर्ण समझ लेते हैं जबकि उनको पूरे वर्ष अपने बच्चे का रिपोर्ट कार्ड समय-समय पर स्कूलों से प्राप्त करते रहना चाहिए। साथ ही अपने स्तर पर भी बालकों का परीक्षण करते रहना चाहिए। जबकि हालत यह है कि दसवीं के बालकों को वास्तविक रूप में परीक्षण किया जाए तो उनको जोड़, गुणा, भाग, बाकी भी ठीक से नहीं आते हैं। इसलिए अभिभावकों तथा शिक्षकों को चौकस, अलर्ट व सजग रहने की आवश्यकता है।
(13.)तेहरवाँ कारण है कि शिक्षा विभाग की मानिटरिंग करने की व्यवस्था ठीक नहीं है और थोड़ी बहुत है भी तो केवल खानापूर्ति कर दी जाती है, वास्तव में मानिटरिंग नहीं की जाती है।
(14.)चौदहवाँ और सबसे प्रमुख कारण है कि विद्यार्थियों को केवल भौतिक शिक्षा दी जाती है जबकि विभिन्न आयोगों तथा कमेटियों ने जाहिर किया है कि विद्यार्थियों को चारित्रिक शिक्षा भी दी जानी चाहिए। भारतीय स्कूलों में केवल सैद्धान्तिक शिक्षा दी जाती है जबकि प्राचीनकाल में सैद्धान्तिक शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षा भी दी जाती थी और आध्यात्मिक व चारित्रिक शिक्षा भी प्रदान की जाती थी। इसलिए आज की शिक्षा में पढ़े हुए विद्यार्थी या तो रोजगार का रोना रोते हुए मिलेंगे और जो विद्यार्थी उच्च पदों पर नियुक्त हो जाते हैं वे भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं क्योंकि उनका चारित्रिक विकास न के बराबर होता है और नियुक्ति के समय चारित्रिक मूल्यांकन नहीं किया जाता है। ये नवनियुक्त कर्मचारी इसलिए भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं क्योंकि सीनियर कर्मचारी नए कर्मचारी /अधिकारी को भी सीखा देते हैं। पुराने कर्मचारी/अधिकारी ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनकी पोल खुलने का डर रहता है।नवनियुक्त कर्मचारी भी बहती गंगा में हाथ धोने में ही अपनी भलाई समझते हैं "कहावत भी है कि राँड रँडापा तब काटे जब रँडवे काटन दे"। जब भ्रष्टाचार की नींव पहले से ही मजबूत है तो उससे टक्कर लेने के लिए सुदृढ़ संकल्पशक्ति का होना जरूरी है। संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष में दो ही काम होते हैं या तो संघर्ष करनेवाला टूटकर बिखर जाता है या चट्टान बन जाता है।
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(15.)पन्द्रहवाँ कारण है कि शिक्षा का व्यावसायीकरण होना। शिक्षा का व्यवसायीकरण होना तब बुरा नहीं है यदि विद्यार्थियों के हित व कल्याण का पूरा ध्यान रखा जाता हो अर्थात् गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करायी जाती हो। परन्तु केवल विद्यार्थियों तथा अभिभावकों से मोटी-मोटी रकम तो फीस के रूप वसूल कर ली जाए और उनको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध न करायी जाए तो ऐसा व्यवसायीकरण बुरा है। गलत है।
(16.)सोहलवाँ कारण है कि आधुनिक युग में धन को धर्म से ज्यादा महत्त्व देना। धन को प्रधानता देने के कारण लोग येन-केन प्रकारेण धन प्राप्त करना चाहते हैं। सरकारी कर्मचारी तथा निजी कंपनियों व संस्थाओं में कार्यरत कर्मचारी/अधिकारी अनैतिक तरीके से धन प्राप्त करते हैं क्योंकि ईमानदारी व उचित तरीके से सामान्य जीवन व्यापन किया जा सकता है। परन्तु ऐशोआराम की जिंदगी जीने की लालसा से लोग अधिक से अधिक धन का गबन करते हैं। व्यापारी चोर बाजारी और मुनाफाखोरी करते हैं। वस्तुओं के स्टाॅक को दबाकर बनावटी कमी पैदा कर देते हैं। खाने-पीने की चीजों में मिलावट करते हैं। टैक्स की चोरी करते हैं। इन सबका कारण यही है कि आज धन की प्रधानता है अर्थात् धर्म से ज्यादा धन को महत्त्व देने का यही परिणाम होता है।
(17.)सत्तरहवाँ कारण है कि धनवान मनुष्य की सब जगह प्रतिष्ठा होती है, भले ही वह घोर दुराचारी हो। धन के पीछे सारे ऐब छिप जाते हैं। इतना ही नहीं धनवान मनुष्य में अनेक गुणों का भी बखान किया जाता है। धनहीन, गुणवान मनुष्य को कोई नहीं पूछता है।
(18.)अठारहवाँ कारण है कि हमारे देश की केन्द्र और राज्यों की सरकारें ऐसे कामों पर धन खर्च करती रहती हैं, जिनकी कोई तात्कालिक उपयोगिता नहीं होती है। इस फिजूलखर्ची को पूरी करने के लिए घाटे की अर्थव्यवस्था अपनाई जाती है। इससे कीमते बढ़ती हैं और गरीब जनता को कष्ट उठाने पड़ते हैं। जबकि गणित शिक्षा और शिक्षा ऐसा क्षेत्र है जिस पर धन खर्च किया जाए तो भारत देश तथा युवाओं का भाग्योदय हो सकता है। भारत की तस्वीर ऐसी हो सकती है कि जिसको देखकर आश्चर्यचकित रह जाएं। प्राचीन भारत इसीलिए गौरवशाली और महान् था क्योंकि शिक्षा में ऐसे समर्पित ऋषि, महर्षि थे जो बिल्कुल निर्लोभी थे। वे सभी को समान रूप से शिक्षा प्रदान करते थे। राजा हो या निर्धन का लड़का हो सभी को समान रूप से एक ही गुरुकुल में शिक्षा प्रदान करते थे।
यदि उपर्युक्त कारणों को दूर कर दिया जाए तो भारत की तस्वीर बदल सकती है। ये सभी कारण हमने अपने अनुभव के आधार पर बताएं है। ऐसे ओर ंंअनेक कारण भी होगें जिनके कारण गणित शिक्षा की दुर्गति हो रही है, बच्चे गणित में कमजोर रह रहे हैं और जब नींव ही कमजोर होगी तो भवन का तो भगवान ही मालिक है।

3.गणित सबसे कमजोर, नेशनल अचीवमेंट सर्वे की रिपोर्ट चौंकाने वाली(Mathematics Weakest, National Achievement Survey Report Shocking)-

नई दिल्ली Tue, 29 May 2018
Mathematics Weakest, National Achievement Survey Report Shocking
Mathematics Weakest, National Achievement Survey Report Shocking
देशभर के स्कूलों में दसवीं कक्षा के छात्रों का गणित सबसे अधिक कमजोर है। केंद्र सरकार ने बोर्ड परीक्षा से पहले लर्निंग आउटकम के लिए नेशनल अचीवमेंट सर्वे करवाया था। साइंस, सोशल साइंस, इंग्लिश मेउत्तराखंड, हिमाचल,जम्मू, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब के छात्र 45 फीसदी अंक भी हासिल नहीं कर पाए हैं।
सबसे खराब प्रदर्शन जम्मू कश्मीर का है। जबकि चंडीगढ़ हर विषय में सबसे आगे हैं। खास बात है कि खराब प्रदर्शन के चलते केंद्र सरकार ने सभी मुख्यमंत्रियों और 797 सांसदों को उनके इलाके का रिपोर्ट कार्ड भेजते हुए सुधार का आग्रह किया है।
देशभर के सभी शिक्षा बोर्ड, सीबीएसई समेत आईसीएसई बोर्ड के 15.44 छात्रों ने इस परीक्षा में भाग लिया था। अमर उजाला के पास उपलब्ध नेशनल अचीवमेंट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारत में मैथ्मेटिक्स, साइंस व  सोशल साइंस, माडर्न इंडियन लैंग्वेज में सबसे खराब प्रदर्शन जम्मू कश्मीर के छात्रों का है।
जबकि हरियाणा के छात्र इंग्लिश में बेहद पिछड़े हैं, जिसमें उन्हें 31.71 फीसदी अंक मिले हैं। सोशाल साइंस में चंडीगढ़ पहले तो उत्तराखंड के छात्रों को दूसरा स्थान मिला है। चंडीगढ़ के छात्र मैथ्मेटिक्स,साइंस, सोशल साइंस, इंग्लिश समेत माडर्न इंडिया लैंग्वेज में सबसे अव्वल हैं।


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