Mathematics Is More Interesting Subject Than Any Other Subject

Mathematics Is More Interesting Subject Than Any Other Subject

1.गणित अन्य विषयों की तुलना में अधिक रूचिकर विषय है का परिचय  (Introduction to Mathematics Is More Interesting Subject Than Any Other Subject)-

इस आर्टिकल में बताया गया है कि गणित विषय अन्य विषयों की अपेक्षा सरल है। हम अपनी पोस्ट में बार-बार यही अपील करते रहते हैं कि यदि गणित में रुचि, जिज्ञासा और लगन के साथ-साथ धैर्य भी रखें तो उन विद्यार्थियों के लिए गणित सरल हो सकता है। आपको अन्य विषयों में विषय-सामग्री को याद करना होता है परन्तु गणित में बारहवीं (senior secondary) कक्षा तक विद्यार्थियों को सूत्र ठीक से याद हों और उनका ठीक से प्रयोग करना आता हो तो साथ-साथ ही उनमें रुचि, जिज्ञासा, लगन, धैर्य और एकाग्रता का अभ्यास हो तो उनके गणित विषय सरल हो जाता है।

2.गणित में रुचि (Interest in Mathematics) -

गणित में रुचि जाग्रत करने के लिए आवश्यक है कि बालकों को पहाड़े, गिनती को कविता व संगीत के माध्यम से सीखाएं। धीरे-धीरे जब बालकों को गिनती, पहाडे़ व अंकों का ज्ञान हो जाए तो गणित के शब्दों का अर्थ जानने की कोशिश करनी चाहिए इसके लिए समय और अभ्यास दोनों की आवश्यकता है। बोलना सीखने के साथ मस्तिष्क का साथ हो तो बालक में परिपक्वता आने लगती है। गणित के कुछ माॅडल प्रस्तुत करके उनको बोलने तथा शुद्ध रूप से उच्चारण करने में मदद करनी चाहिए। धीरे-धीरे बालकों में रुचि जाग्रत होने लगेगी।

3.गणित में जिज्ञासा(Curiosity in Mathematics) -

जिस प्रकार कोई नई वस्तु, चीज या पुस्तक लाने पर बालक बार-बार उसको उपयोग में लाने, देखने व उसको पढ़ने की कोशिश करता है। इसी प्रकार बालक की गणित में जिज्ञासा बढ़ाने के लिए उसके सामने नए-नए गणित के टाॅपिक प्रस्तुत करना चाहिए जिससे उनमें जिज्ञासा की वृत्ति पैदा हो सके। जैसे पहले अंकों का ज्ञान, गिनती, पहाड़े, जोड़, बाकी, गुणा, भाग इत्यादि को क्रमशः बालकों के सामने प्रस्तुत करना चाहिए जिससे उनमें जिज्ञासा पैदा हो सके।

4.गणित में अभ्यास (Drill in Mathematics) -

बालकों को गणित का अभ्यास कराने के लिए प्रारम्भ में कुछ छोटे-छोटे प्रश्न अभ्यास के रूप में देने चाहिए। इसके अतिरिक्त नवीन ढंग से प्रश्नों को हल करते समय बीच-बीच में अभ्यास के लिए कुछ प्रश्न करा देना चाहिए। जब किसी एक विधि पर पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर ले तो बीच-बीच में स्मृति की जाँच के लिए प्रश्न किए जाने लाभदायक सिद्ध होते हैं और वह सदा लाभप्रद सिद्ध होता है। किसी निश्चित अवधि में करायी गई विधि की जाँच करने के लिए अध्यापक को बालक की स्थिति का ज्ञान हो जाता है तथा इनसे विद्यार्थियों की स्मृति फिर से जाग्रत हो जाती है। साधारण प्रश्न-पत्रों तथा उदाहरणों द्वारा पूर्व अवधि के कार्य को दोहराया जा सकता है।
एक अध्यापक यदि बालक के किए हुए कार्य पर ध्यान नहीं देता है तो इसका तात्पर्य यह है कि अगली कक्षा में बालक को उसे स्वयं नहीं पढ़ाना है। उस अध्यापक का शिक्षण केवल उसी स्तर तक सीमित रहता है। इस दशा में बालक के भविष्य पर वह ध्यान नहीं देता है। इस दशा में सुधार हेतु गणित के प्रमुख अध्यापक को सतर्क रहना चाहिए। उसको यह ध्यान रखना चाहिए कि गणित के प्रत्येक अध्यापक को नवीन ढंग के प्रश्नों के प्रारम्भ में बालक की परीक्षा ले लेनी चाहिए। जिस विद्यालय में एक ही अध्यापक बालकों को पढ़ाता हो, वहाँ यह सम्भव है ही परन्तु जहाँ बालक एक विद्यालय की पढ़ाई समाप्त करके दूसरे विद्यालय में प्रवेश करते हैं, वहाँ अध्यापक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं। छोटी कक्षाओं में बालकों को बिना किसी नवीन विधि में पूर्ण अभ्यास कराने से पहले ही दूसरी कक्षा में भेज दिया जाता है। इसके कारण ऐसे बालकों की नींव कमजोर पड़ जाती है और नवीन विधि को समझने में बालक को कठिनाई प्रतीत होती है। इसलिए अभ्यास का महत्त्व इस स्तर पर भी उतना ही है जितना कि ओर स्तरों पर होता है। अध्यापक को नवीन विधियों का प्रयोग करना अच्छा लगता है परन्तु इससे बालकों का अहित होता है। उनको किसी नवीन विधि आरंभ कराने से पहले पूर्व विधि को पूर्णरूप से सयझ लेना आवश्यक होता है। यह तभी सम्भव है जबकि प्रत्येक नवीन विधि का पर्याप्त अभ्यास कक्षा में कराया जाए। स्कूल में ऐसे विद्यार्थी भ होते हैं जो कि उच्च विधि के प्रश्न तो हल कर सकता है उसके अन्तर्गत आनेवाले साधारण विधि के प्रश्न को हल नहीं कर सकता है। इसका एकमात्र कारण उन विधियों में अभ्यास की कमी होती है। इसके कारण विद्यार्थी उन सरल प्रश्नों को पूर्णरूप से नहीं समझ पाते हैं। इस तरह विद्यार्थी जब किसी परीक्षा में बैठते हैं तो वे साधारण प्रश्नों को हल करने में असफल होते हैं और इस असफलता के कारण उनकी रुचि गणित की ओर से हट जाती है। इस तरह वे विद्यार्थी जो कि गणित के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण अभ्यास करते हैं उनको सदा सफलता प्राप्त होती है।
गणित का अभ्यास इतना महत्त्वपूर्ण होते हुए भी कुछ कारणों से आँखों में खटकता है। इससे कामचोर अध्यापक को बहानेबाजी की खूब गुंजाइश मिल जाती है जबकि अन्य विषयों के अध्यापक गला फाड़ते-फाड़ते थक जाते हैं। गणित अध्यापक अपने अभ्यास कार्य की छाया में चैन की बंशी बजाया करते हैं। इसकी आड़ में काम नहीं होता है। इस कारण अभ्यास पद्धति बदनाम हो गयी है। परन्तु वास्तव में गणित जैसे महत्त्वपूर्ण एवं श्रमसाध्य विषय को बिना अभ्यास के पढ़ाया जाना अच्छा नहीं है। यह पद्धति तो उपयोग में लानी ही है परंतु उसमें अध्यापक को अपने कर्त्तव्य से भलीभाँति परिचित भी होना चाहिए। उसको चाहिए कि जब बालक अभ्यास करे तो वह कक्षा में सब बालकों का निरीक्षण करे तथा बालक जहाँ अटके, वहीं उसकी कठिनाईयां दूर कर दे। ऐसा करने से सब बालक अभ्यास कार्य में रुचिपूर्वक लगे रहेंगे और पूरा लाभ उठा सकेंगे।

(4.)धैर्य और ध्यान ( Patience And Meditation) -

रुचि, जिज्ञासा तथा अभ्यास के साथ धैर्य व ध्यान का होना भी आवश्यक है। यदि हमारे जीवन में धैर्य और ध्यान नहीं होगा तो रुचि व जिज्ञासा तथा अभ्यास के सहारे ज्यादा लम्बे समय तक नहीं ठीक सकेंगे। अब प्रश्न यह उठता है कि धैर्य के साथ ध्यान का होना क्यों आवश्यक है यदि धैर्य नहीं होगा तो हम जल्दबाज़ होंगे और जल्दबाजी में कोई भी सवाल हल करेंगे तो गलती कर बैठेंगे। ध्यान इसलिए आवश्यक है कि यदि हम ध्यान नहीं करेंगे तो मन एकाग्र नहीं होगा और मन एकाग्र नहीं होगा तो गणित के सवाल व अभ्यास को हल करने में मन नहीं लगेगा अर्थात् मन चलायमान होगा।। इसलिए धैर्य के साथ ध्यान का होना आवश्यक है। जैसे गाड़ी के दोनों पहिए हो तो ही गाड़ी चल सकेगी, इसी प्रकार धैर्य और ध्यान दोनों आवश्यक है। धैर्य के बिना हम कोई गणित का सवाल या कार्य सफलतापूर्वक नहीं कर सकेंगे। विधिवत ढंग से गणित के सवाल करें और उसे पूरा होने तक पूर्णरूप से सक्रिय रहें, बीच में न छोड़ दें। इसके लिए धैर्य का होना जरूरी है। धैर्य नहीं होगा तो अधबीच में भाग खड़े होंगे, काम को छोड़ देंगे। हम किसी भी अच्छे नियम का पालन करना शुरू करते हैं पर धैर्य न होने से निरन्तर नहीं कर पाते। बिना धैर्य के ध्यान भी नहीं कर पाते और ध्यान टूट जाने पर काम भी ढंग से नहीं हो पाता है। आज हमारे जीवन में गणित की अपूर्णता है, अस्तव्यस्ता है उसका मूल कारण धैर्य और ध्यान की कमी होना है। जैसे पौधे लगाते ही उसमें फल नहीं आते हैं बल्कि फल आने तक धैर्य रखना जरूरी है। समय पर ही फल आते हैं जितने समय बाद फल आते हैं उतने समय तक धैर्य धारण करना होता है चाहे एक साथ कितना ही पानी व खाद डालें। धैर्यवान और ध्यानी की एक विशेषता ओर होती है कि वह आलसी ,
निष्क्रिय और निठल्ला नहीं होता है बल्कि सजग, सक्रिय और कर्मठ होता है। पुरुषार्थ करते रहता है।
धैर्य और ध्यान को जीवन का अंग बनाने के लिए प्रातःकाल का शुभारम्भ ध्यान से ही किया जाना चाहिए। प्रातःकाल नित्यकर्मो से निवृत्त होकर थोड़ी देर तक मन को एकाग्र करके प्रकाश स्वरूप सूर्य का या दीपक अथवा ॐ के ज्योति स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। शुरू शुरू में मन इधर-उधर भटकेगा परन्तु धैर्य धारण करके सतत अभ्यास करते रहेंगे, नियमित व रोज करेंगे तो ध्यान का अभ्यास होता जाएगा। सुदृढ़ संकल्प से शुरुआत करने की आवश्यकता है। ज्यों-ज्यों अभ्यास बढ़ता जाएगा, मन एकाग्र और शान्त होता जाएगा। साथ ही धैर्य को धारण करते रहना जरूरी है। आप धैर्य धारण करेंगे तो ही रुचि, जिज्ञासा बनी रहेगी और सुदृढ़ होगी अन्यथा तत्काल रुचि और जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी। धैर्य धारण करने से ही आप अन्य गुणों का उपयोग कर सकेंगे।

(5.)गणित में लगन और जुनून(Passion in Mathematics)-

गणित जैसे विषय में पारंगत होने के लिए लगन और जुनून का होना आवश्यक है। आप पूरी तरह से अपने आपको झोंक दें। अन्ततः आपको उसका सही परिणाम देखने को मिलेगा। यदि जुनून व लगन न होगा तथा किसी भी कार्य को जब मनमर्जी आए तब करोगे और जब मनमर्जी न हो तो नहीं करोगे। इसलिए लगन व जुनून का होना भी आवश्यक है तभी आपको गणित जैसे विषय का ठीक से व अच्छा अभ्यास हो पाएगा।
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6.गणित अन्य विषयों की तुलना में अधिक रूचिकर विषय है (Mathematics Is More Interesting Subject Than Any Other Subject)-

Mathematics Is More Interesting Subject Than Any Other Subject

Mathematics Is More Interesting Subject Than Any Other Subject

Sat, 29 Jul 2017 को डीएवी बरकाकाना में दो दिवसीय सीनियर क्लास के शिक्षकों का साइंस और गणित विषय पर कार्यशाला शनिवार को शुरू हो गया। मौके पर बतौर मुख्य अतिथि डीएवी निदेशक सह प्राचार्या डॉ उर्मिला सिंह, प्राचार्य एचके झा, प्राचार्य यूके राय, प्राचार्या रानी जायसवाल, प्राचार्य एसआर प्रसाद आदि मौजूद थे। अतिथियों का स्वागत बुके भेंट कर किया गया। इसके बाद सामूहिक रूप से दीप जलाकर और डीएवी गान के साथ कार्यशाला का विधिवत उद्घाटन किया गया। डॉ सिंह ने कहा कि गणित से ज्यादा रुचिकर कोई दूसरा विषय नहीं है। एक बार इसके प्रति रुचि पैदा हो जाए तो स्टूडेंट इसके प्रति पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं। जरूरी यह है कि स्टूडेंट्स में इसके प्रति रुचि पैदा हो, क्योंकि गणित के प्रति अरुचि पर स्टूडेंट्स इससे पीछा छुड़ाने के लिए दिन गिनने लगते हैं। इसलिए टीचर्स को चाहिए कि वह स्टूडेंट्स में गणित के प्रति रुचि पैदा करने का प्रयास करें। मंच संचालन शिक्षक हिमाद्री विश्वास ने किया। रिसोर्स पर्सन के रूप में मैथ-एचजी तिवारी, डी पांडेय, मनोज कुमार, एके दूबे, एसआर प्रसाद, कमेस्ट्री-यूके राय, रवि कुमार, वीएन पांडेय, एएन पाठक, अरविंद सिंह, बायो-आलोक कुमार, आरडी मुख्योपध्याय, डॉ कुमार आनंद, गजेंद्र कुमार, मो आशिफ, सुधीर मिश्रा आदि मौजूद थे। दो दिवसीय कार्यशाला में डीएवी कोडरमा, बचरा, हजारीबाग, उरीमारी, तापीन नोर्थ, केदला, घाटो, आरा, भरेचनगर, रजरप्पा, बरकाकाना आदि के फिजीक्स, कमेस्ट्री, बायो और मैथ के टीचर मौजूद थे।

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