Why are students leaving large institutions like IITs?
Why are students leaving large institutions like IITs?
1.छात्र आईआईटी जैसे बड़े संस्थानों को क्यों छोड़ रहे हैं?(Why are students leaving large institutions like IITs?)-
IIT DELHI,Why are students leaving large institutions like IITs? |
आईआईटी में चयन होने के लिए बहुत से विद्यार्थी कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन फिर भी बहुत से विद्यार्थियों का चयन नहीं होता है।दूसरी ओर कुछ विद्यार्थी जिनका आईआईटी में सलेक्शन हो जाता है लेकिन बीच कोर्स में ही आईआईटी को छोड़ देते हैं।आईआईटी को छोड़ने के पीछे कई कारण होते हैं।इस आर्टिकल में आईआईटी छोड़ने के कारणों का उल्लेख किया गया है जिससे आप भी छोड़ने से पूर्व सीख ले सकें कि ऐसा करना कहां तक उचित है और यदि उचित नहीं है तो क्यों नहीं है।पिछले 5 सालों में 7248 विद्यार्थियों ने आईआईटी को छोड़ दिया है हालांकि यह कोई बड़ा आंकड़ा नहीं है।परंतु आईआईटी में चयन हेतु लाखों विद्यार्थी कठिन परिश्रम करते हैं और इस कोर्स का इतना ग्लैमर है कि हर कोई गणित का विद्यार्थी आईआईटी करना चाहता है। इसलिए यह आंकड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है और इसी वजह से हम यह आर्टिकल लिख रहे हैं,साथ ही इससे हम सीख भी ले सकते हैं।
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2.आईसीएस सेवाओं में चयन(Selection in ICS Services)-
कुछ विद्यार्थियों का चयन आईसीएस अर्थात आईएएस, आईपीएस में हो जाता है जिसके कारण आईआईटी छोड़ देते हैं।भारत में सरकारी सेवाओं का ग्लैमर तथा रुझान सबसे अधिक है ।इसलिए कोई भी आईआईटी करने वाला विद्यार्थी आईआईटी के बजाय आईएएस, आइपीएस जैसी सेवाओं को वरीयता देता है।आईएएस ऐसी प्रतिष्ठित सेवा है जिनका सरकार की नीति निर्धारण में अहम योगदान होता है।यदि यह कहा जाए कि आज के समय में सबसे अधिक प्रतिष्ठित सेवाएं कौन सी है ,तो स्वाभाविक है कि उत्तर आईएएस ही होगा।नीति निर्धारण के अलावा इन सेवाओं में विवेक से कार्य करने के अधिकार भी प्राप्त होते हैं। इन सेवाओं में अधिकारों का उचित उपयोग करने पर आईएएस की प्रतिष्ठा में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है अर्थात् अपार सम्मान मिलता है।आईएएस सेवाओं का वेतनमान और भत्ते भी आकर्षक है।Also Read This Article-GATE Exam 2020 Admit Card released and tips for Exam
3.गेट में चयन(Select in GATE)-
आईआईटी के बजाय गेट एग्जाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लिया जाता है। गेट क्वालीफाई करने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी मांग है।यह सबसे बड़ी ऑनलाइन परीक्षा है जो देश और विदेश में आयोजित होती है।इसको पास करने के बाद अभ्यर्थी इंजीनियरिंग की डिग्री अर्थात् एमटेक, एमई,पीएचडी के लिए एलिजिबल हो जाता है।इस टेस्ट को फॉरेन यूनिवर्सिटीज भी मान्यता देती है। इन सब कारणों की वजह से यदि किसी अभ्यर्थी का चयन गेट में हो जाता है तो वह आईआईटी के कोर्स को बीच में ही छोड़ देता है।4.ग्रामीण पृष्ठभूमि होने के कारण(Due to having a rural background)-
ग्रामीण पृष्ठभूमि के विद्यार्थी कड़ी मेहनत करने के कारण उनका चयन तो आईआईटी में हो जाता है।परंतु आईआईटी का कल्चर ग्रामीण पृष्ठभूमि के विद्यार्थी के माफिक नहीं होता है।इसलिए वे अपने आप को आईआईटी के कल्चर में मिसफिट पाते हैं फलस्वरूप ऐसे अभ्यर्थी आईआईटी को छोड़ देते हैं।5.भाषा की समस्या(Language problem)-
भारत में अधिकांश जनसंख्या हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषी है। आईआईटी में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना पड़ता है।इसलिए जो हिंदी भाषा तथा क्षेत्रीय भाषा के विद्यार्थी होते हैं उनको अंग्रेजी माध्यम माफिक नहीं होता है।इस कारण वे प्रथम सेमेस्टर में फेल हो जाते हैं ऐसी स्थिति में वे मानसिक दबाव में आ जाते हैं।घरवालों का आईआईटी को ठीक प्रकार से पास करने का दबाव रहता है।एक बार फेल होने के कारण उनको अपने से जूनियर विद्यार्थियों के साथ बैठकर पढ़ना पड़ता है ।ऐसे विद्यार्थी मानसिक तनाव में आ जाते हैं और अपने आप को संतुलित नहीं कर पाते हैं। परिणाम यह होता है कि वे आईआईटी कोर्स को बीच में ही छोड़ देते हैं।6.कमजोर बच्चों पर पास होने का दबाव(Pressure to pass on vulnerable children)-
आईआईटी में ऐसे बच्चे जो एक्स्ट्राऑर्डिनरी नहीं होते हैं उन पर पढ़ाई का अत्यधिक दबाव रहता है जैसे सेमेस्टर में पेपर ड्यू रहना,लैंग्वेज की समस्या,फेल होने पर अपने से जूनियर विद्यार्थियों के साथ बैठकर पढ़ना इत्यादि समस्याओं का प्रेशर सहन नहीं कर पाते हैं।ऐसी स्थिति में वे आईआईटी के कोर्स को बीच में छोड़ देते हैं।Also Read This Article-How to make India a leading country in mathematics?
7.समीक्षा(Review)-
Why are students leaving large institutions like IITs? |
उच्च सेवाओं तथा गेट में चयन होने पर आईआईटी के कोर्स को बीच में छोड़ना तो चिंता का विषय नहीं है परंतु जो विद्यार्थी कमजोर पृष्ठभूमि,लैंग्वेज तथा कल्चर के कारण छोड़ देते हैं,यह चिंता का विषय है।हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषा के जो विद्यार्थी हैं और जिनका शुरू से ही आईआईटी में जाने का इरादा है।ऐसे विद्यार्थियों को चाहिए कि अपने हिंदी मीडियम की पढ़ाई के साथ-साथ अंग्रेजी की पुस्तकें पढ़कर उस पर अपनी पकड़ मजबूत करें।आईआईटी में चयन बारहवीं कक्षा के बाद होता है ऐसी स्थिति में 12वीं क्लास तक किसी भी विद्यार्थी की अंग्रेजी पर पकड़ अच्छी हो सकती है।यदि आईआईटी में चयन नहीं होता है तो भी अंग्रेजी सीखने में कोई नुकसान नहीं है। लगभग हर किसी कॉम्पिटिशन में अंग्रेजी का पेपर होता है इसलिए उसमें भी अंग्रेजी मददगार साबित हो सकती है।यदि अन्य कॉम्पिटिशन में चयन नहीं होता है तो भी कोई भी सीखा हुआ हुनर व्यर्थ नहीं जाता है।आज तकनीकी का युग है और तकनीकी व प्रौद्योगिकी की रिसर्च अधिकतर अंग्रेजी में लिखी हुई मिलती है ।इसलिए यदि आप ऑनलाइन कोई जॉब करते हैं तो भी अंग्रेजी की जरूरत पड़ती है। सारांश यह है कि यदि बालकों को हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ाया जाए तो साथ में कोचिंग या घर पर स्वयं अभिभावक बालकों को अंग्रेजी भी पढ़ाएं जिससे वे आगे आने वाली समस्याओं का समाधान कर सके।
यदि लैंग्वेज नहीं भी सीखी है और आपकी पृष्ठभूमि कमजोर है तो भी आईआईटी को न छोड़ें।इन वजहो से आप हार मान कर कोर्स को करना न छोड़े।कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है,यदि आप कठिन परिश्रम करेंगे तो आईआईटी के कोर्स के साथ भी लैंग्वेज संबंधी समस्या व अपनी कमजोर पृष्ठभूमि को ठीक कर सकते हैं।सबसे बड़ा प्रभाव पड़ता है,मानसिकता का ।यदि मानसिक रूप से आप दबाव नहीं झेल पाएंगे या तनावग्रस्त हो जाएंगे तो आपको जो कुछ आता है उसे भी भूल जाएंगे। गणित विषय की गणना कठिन विषय के रूप में की जाती है।जब गणित विषय को चुनकर और इतना कठिन परिश्रम करके आप आईआईटी में सलेक्ट हो सकते हैं तो फिर आपको हार मानने की आवश्यकता नहीं है ।मन से यदि आप हार मान लेते हैं तो जीती हुई बाजी को भी आप खो देते हैं।आपकी आधी शक्ति में मानसिकता का योगदान है।मानसिकता को कमजोर न होने दें।हमेशा सकारात्मक सोचें, अपने दिमाग में नकारात्मकता को प्रवेश न होने दें।याद रखें सबसे बड़े सहायक अपने आपके आप खुद हैं।अपनी सहायता आप खुद कीजिए,किसी ओर की तरफ मुंह ताकने की बजाय आपको खुद को अपनी सहायता करनी होगी।अपनी सहायता का अर्थ है कि आप अपनी मानसिकता को सुदृढ़ करके कर सकते हैं। व्यक्ति का सबसे बड़ा मित्र खुद ही है और खुद ही सबसे बड़ा शत्रु है।
फीस की वजह से छोड़ रहे हैं तो यह कोई बड़ा मैटर नहीं है। इसके लिए आज कई विकल्प हैं।आपका आईआईटी में चयन हो जाता है तो सगे-संबंधी भी मदद कर देते हैं वरना बैंक वगैरह से भी ऋण लेकर फीस चुकाई जा सकती है।
आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित कोर्सेज को बीच में छोड़ देना समझदारी नहीं है बल्कि मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का समाधान करके और कोर्स को पूरा करने में ही समझदारी है।
8. साल में 7248 छात्रों ने IIT को कहा बाय, जानें-इतने बड़े संस्थानों को क्यों छोड़ रहे स्टूडेंट(7248 students said Bye to IIT in a year, know, why are students leaving such big institutes)-
Date:Mon, 09 Dec 2019स्टूडेंट्स कई सालों की मेहनत के बाद आईआईटी में प्रवेश ले पाते हैं। इसके बाद भी पांच साल में 7248 बच्चों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी जानें एक्सपर्ट की राय में इसके कारण......
नई दिल्ली, जेएनएन। देश के प्रतिष्ठित टेक्नोलॉजी संस्थान आईआईटी से पिछले पांच साल में 7,248 स्टूडेंट्स ड्रॉप आउट हो चुके हैं। सीधे शब्दों में कहें तो पिछले पांच साल में सात हजार से अधिक छात्रों ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। इस बात की जानकारी भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने लोकसभा में दी।
अब सवाल है कि आखिरी बच्चे ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश के बाद इन्हें छोड़ क्यों देते हैं? जिन संस्थानों में एडमिशन के लिए लाखों बच्चे साल दर साल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं, एडमिशन के बाद बीच कोर्स में ही साथ क्यों छोड़ देते हैं? इस सिलसिले में हमने आईआईटी गुवाहाटी के असिस्टेंट प्रोफेसर बृजेश राय से बात की।
कमजोर बच्चों पर दवाब- प्रोफेसर राय ने बताया कि बच्चों को छोड़ने के पीछे सबसे बड़ी वजह है एजुकेशनल प्रेशर यानी पढ़ाई का दबाव। जो बच्चे ग्रामीण परिवेश या पिछड़े बैकग्राउंड से आते हैं, उनके लिए प्रवेश बाद इस प्रेशर को संभालना मुश्किल होता है। वे फेल हो जाते हैं। पहले सेमेस्टर में फेल होने के बाद प्रेशर और बढ़ जाता है, ऐसे में वे छोड़ने का फैसला कर लेते हैं। आईआईटी में पहले ऐसे कमजोर बच्चों के लिए प्रोग्राम चलाए जाते थे। हालांकि, अब इन पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है
बढ़ता बैकलॉग- बैकलॉग भी इसके पीछे एक वजह है। जो बच्चा एक बार फेल हो जाता है, उसे फिर जूनियर्स के साथ बैठना पड़ता है। ऐसे में उन पर एक किस्म का मानसिक दबाव होता है। ऐसे में वह क्लास लेना बंद कर देते हैं। इसके बाद अनुपस्थिति भी एक वजह बन जाती है।
भाषा भी है वजह- स्टूडेंट्स के ड्राप आउट के पीछे भाषा भी एक बड़ी वजह है। कई बच्चे हिंदी मीडियम से आईआईटी में प्रवेश लेते हैं। जबकि, आईआईटी का कोर्स अंग्रेजी में है। विषय और लेक्चर दोनों ही अलग भाषा में होने की वजह से छात्रों काफी समस्या होती है। ग्रामीण परिवेश से आएं छात्रों के सामने कल्चर और लैग्वेंज का अंतर दोनों एक साथ सामने आता है, ऐसे में वह दबाव में आ जाते हैं।
फीस- हाल के दिनों में आईआईटी कैंपस में बढ़ी हुई फीस को लेकर प्रदर्शन भी हुए। हालांकि, प्रोफेसर बृजेश राय इसे बड़ी वजह नहीं मानते। उनका कहना है कि आरक्षित वर्ग के बच्चों की फीस माफ़ है। बाकि जो बच्चे फीस दे रहे हैं, उन्हें परिवार, रिश्तेदार और बैंक से आसानी से पैसे मिल जाते हैं। अभी तक इस ड्रॉप आउट में फीस बड़ी वजह नहीं है। हालांकि, इसके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।
गेट भी है बड़ी वजह- हालांकि जो छात्र इन संस्थानों से ग्रेजुएट होने के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन लेते हैं, उनकी राह में गेट की परीक्षा भी एक वजह बन जाती है। पब्लिक सेक्टर के कई बड़े संस्थान गेट परीक्षा के मार्क्स के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करते हैं। ऐसे में बच्चे पहले कोर्स में एडमिशन ले लेते हैं, इसके बाद जब उनका सिलेक्शन सरकारी नौकरी में हो जाता है, तो वे नौकरी को अक्सर पहली वरीयता देते हैं।
नहीं चौंकाते ये आंकड़े- प्रोफेसर बृजेश राय इस आंकड़े को चौंकाने वाला नहीं मानते हैं। उनके मुताबिक, देश में कुल 23 आईआईटी हैं। ऐसे में औसतन एक आईआईटी से करीब 315 बच्चे पांच साल में ड्रॉप आउट होते हैं। इस तरह एक साल में करीब 63 बच्चे कोर्स छोड़ देते हैं। बड़े आईआईटी में इन पांच सालों में आठ से 10 हजार बच्चे पढ़ाई करते हैं। ऐसे में 63 बच्चों के ड्रॉप आउट का आंकड़ा बहुत बड़ा नहीं है।
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