Education And Training Of Mathematics Teacher
Education And Training Of Mathematics Teacher
1.गणित शिक्षक की शिक्षा और प्रशिक्षण का परिचय (Introduction of Education And Training Of Mathematics Teacher)-
इस आर्टिकल में बताया गया है कि पाठ्यक्रम और पुस्तक दोनों मृतप्राय होती है उनको सजीव शिक्षक ही करता है इसलिए शिक्षक के शिक्षण और प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। शिक्षक को व्यावहारिक ज्ञान भी होना चाहिए जैसे रिश्तेदारों से किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए, बाजार में लेन-देन करें तो किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, अपने से बड़ों के साथ किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए? जिससे वह विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान कर सके।
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2.वर्तमान स्थिति (Present Position) -
गणित शिक्षकों की वर्तमान व्यावसायिक (professional) और शैक्षिक (Academic) स्थिति के सम्बन्ध में निश्चयात्मक कथन अनुसंधान का विषय है, किन्तु अध्ययनों अनुभवों और सामान्य प्रेक्षणों के आधार पर एक सीमा तक विश्वसनीय अभिगृहीत तो प्रस्तुत किये ही जा सके हैं। अमेरिका में विशिष्ट विषय के रूप में गणित शिक्षा के विकास के लिए 'द मैथेमेटिक्स एसोसिएशन आॅफ अमेरिका, इन्क' तथा 'काउन्सिल आॅफ टीचर्स आॅफ मैटेमिटिक्स गत 5-6दशको से समय समय पर कमीशनों और कमेटियों के माध्यम से इसमें नियमित रूप से सुधार के प्रयास कर रहे हैं। भारत में अभी ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता है। यहाँ गणित शिक्षा की स्थिति पर कुछ प्रेक्षण बिन्दुगत रूप में प्रस्तुत है -(1.)गणित की विषयवस्तु प्रत्ययों, सम्बन्धों संक्रियाओं आदि के ज्ञान और बोध का भी शिक्षकों में अभाव है।
(2.)अपने व्यापक स्वरूप में शिक्षा 'समाज सेवा' है, किन्तु वर्तमान में यह एक व्यवसाय(profession) बन गया है। गणित शिक्षा में व्यावसायिकता (professionalism) ने नकारात्मक (Negative) स्वरूप ले लिया है। इसके संस्थागत स्वरूप को प्रोत्साहन देने वाले विरले ही हैं। इस पर द्रव्य-मान (Money value) का अधिकार हो गया है।
(3.)गणित शिक्षा का व्यवसाय में विकास होना बुरा नहीं है, किन्तु व्यावसायिकता के मानदण्डों का इसमें पराभव विचारणीय है। शिक्षा व्यवसाय के व्यावसायिक मूल्यों (professional values) का सामान्य शिक्षक और विशिष्ट रूप में गणित शिक्षक को कोई ज्ञान नहीं है।
(4.)गणित शिक्षण एक व्यक्तिगत(Individual) कर्म बनकर रह गया है। इससे शिक्षकों में सहयोगिता और सहभागिता का स्पष्ट पराभव है।
(5.)शिक्षकों में गणितीय कौशलों, मूल्यों एवं श्लाघा की पैठ नहीं दिखाई देती।
(6.)गणित का केवल सतही ज्ञान ही शिक्षकों को सार्थक लगता है। गणित की विषयवस्तु के परिमाण और क्षेत्र अवश्य ज्ञान (knowledge) स्तर पर बढ़ें हैं, किन्तु विषय की गहराई में बहुत कमी आई है। कह सकते हैं कि शिक्षकों में गणितीय ज्ञान के आयतन का निश्चित रूप से ह्रास हुआ है। यह चिन्ता का विषय होना चाहिए।
(7.)गणित शिक्षण की विधियों, तकनीकों, कौशलों के प्रति शिक्षकों की अनभिज्ञता और इनके उपार्जन के लिए उनमें जिज्ञासा का अभाव स्पष्ट है।
(8.)विद्यार्थी की अभिरुचि, अभिवृत्ति, अभियोग्यता से उनका कोई सम्बन्ध नहीं रहता। वे निर्धारित विषयवस्तु को पूरा करने की औपचारिकता पूरा करने मात्र में रुचि रखते हैं।
(9.)शिक्षण-अभिवृत्ति से शिक्षक के कार्य में कोई सम्बन्ध नहीं है एवं गणित के महत्त्व को समझने का प्रयास भी शिक्षक नहीं करते।
(10.)शिक्षक अपने शिक्षार्थी की कठिनाइयों और कमियों को जानना भी नहीं चाहता। उन्हें दूर करने में रुचि रखना तो कल्पना के परे की बात है।
(11.)कक्षा शिक्षण परम्परागत व्याख्यान प्रणाली पर ही पूरा किया जाता है।
(12.)शिक्षार्थियों को पर्याप्त अभ्यास,अनुरक्षण कार्य देने में शिक्षक रुचि नहीं लेते। अपने दस्तूरी कर्म (Routine job) के रूप में ये कार्य दिये भी जायें तो उनकी जाँच के लिए शिक्षक समय भी नहीं निकाल पाता, जिससे वह निरर्थक हो जाता है।
(13.)शिक्षकों में धैर्य का अभाव, अपने विद्यार्थियों को समझने में रुचि न लेना, स्वयं विषय के मूल सिद्धान्तों के ज्ञान की कमी, शिक्षण में कौशल की कमी आदि शिक्षक की ऐसी कमियां हैं, जिन्होंने गणित विषय को कठिन बना दिया है। इस विषय के प्रति विद्यार्थी में एक सामान्य भाव बना रहता है। इससे यह विषय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हुए भी विद्यार्थियों में लोकप्रिय नहीं है।
3.शिक्षकों के लिए प्रभावी शिक्षण की शर्त (Condition for Effective Teaching For Teachers) -
प्रभावी शिक्षण के लिए गणित सहित सभी विषयों के शिक्षकों को सम्बन्धित विषय में परिपूर्ण पारंगति(perfect Mastery) होनी चाहिए ।यह अनुदेशन की सफलता की पहली आवश्यक शर्त है। विषय-ज्ञान में पारंगत व्यक्ति उसके शिक्षण के लिए प्रभावी उपक्रम और युक्ति स्वयं ढूँढ लेता है। फिर गणित के सम्बन्ध में तो यह विदित ही है कि इसके अध्ययन और अध्यापन की विधियाँ एक ही हैं। अतः गणित में पारंगति उसके अध्ययन की विधियों में पारंगति सह-सम्बन्धित (Correlated) है।गणित ऐसा विषय है जो कि उसके शिक्षण की विधियों में व्यक्ति को स्वयं ही प्रशिक्षित कर देता है। अतः कह सकते हैं कि गणित का अध्ययन गणित शिक्षण की विधियों में आत्म प्रशिक्षण (Auto training) है। गणित विषय पर पूरी पकड़ के साथ-साथ शिक्षक को अनुदेशन तकनीकों (Instructional techniques) के उपयोग में भी महारथ होना जरूरी है। गणित में सफल अनुदेशन के लिए शिक्षक में विषय-ज्ञान और अनुदेशन तकनीकों के उपयोग में कौशल दोनों ही सन्तुलित रूप में विकसित होने चाहिए। इसका महत्त्व इस कथन में स्पष्ट होता है कि "हमे ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता नहीं है जिनके पास शिक्षण के लिए कुछ नहीं है (Teachers who have nothing to teach) और न ही उनकी जो कि मात्र ज्ञान की आपूर्ति तथा कौशल को प्रोन्नत वाले(Mere purveyors of knowledge and pro motors of skill) हों। गणित शिक्षक में विषय ज्ञान और अनुदेशन तकनीकों का सन्तुलित विकास महत्त्वपूर्ण बिन्दु है।4.ज्ञान की त्रिवेणी (Trichotomy of Knowledge) -
गणित शिक्षक सामान्य (General), व्यावसायिक (professional) और विशेषज्ञ (specialist) तीन ज्ञान वर्गो (classes) का संगम है। हम द्रुत गति से हो रहे परिवर्तनों में जी रहे हैं। विकास और भावी परिवर्तनों पर उसके निहितार्थों (Implications) की द्रुतता (Rapidity) जहाँ एक ओर कल्पना शक्ति (Imagination) का अंतरीकरण (staggering) करते हैं, वहीं दूसरी ओर सतही सूचनाओं (superficial Information) पर सन्तुष्टि (satisfaction) को प्रोत्साहित करते हैं। घटनाएँ इतनी द्रुत गति से हो रही हैं कि किसी मनुष्य के लिए इनका सूक्ष्म अध्ययन और इनको व्यवस्थित करना कठिन है, जिससे विकास प्रक्रिया को समझना सरल नहीं है। इसलिए विकास और परिवर्तन की किसी एक धारा से सम्बंधित सतही सूचनाएं ही हमारी सन्तुष्टि के लिए पर्याप्त सामग्री समझी जाने लगी है। यहाँ यह रेखांकित करना आवश्यक है कि ज्ञान की सतही मापें तो बढ़ी हैं, किंतु इसकी गहराइयाँ कम हो गई हैं। हमारा वर्तमान ज्ञान छिछला है। गणित शिक्षक को यहाँ विशेष सावधानी रखनी हैं।गणित शिक्षक की शैक्षिक पृष्ठभूमि व्यापक और इसका आधार वृहद होना चाहिए। अपने विषय ज्ञान से कभी भी सन्तुष्टि की अनुभूति न हो। वह सदाबहार ज्ञान-पिपासु बना रहे। गणित शिक्षक को सही मायने में ज्ञानानुरागी होना चाहिए। उसका विषय ज्ञान इतना व्यापक और गहन हो कि वह मानव विकास और आधुनिक संस्कृति के विकास को समझ सके। वह मानव-प्रगति और सामाजिक मूल्यों का गुण विवेचन(Appreciation) कर सके।
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गणित शिक्षक के लिए सांस्कृतिक पृष्ठभूमि हेतु शिक्षा के अतिरिक्त उसकी व्यावसायिक तैयारी भी आवश्यक है। इसके लिए उसमें जिन गुणों का विकास आधारभूत है उनमें से निम्नलिखित के विकास के लिए प्रावधानों पर प्रमुखता से बल देना चाहिए -
(1.)व्यवसाय के रूप में शिक्षण के प्रति पूर्ण निष्ठा (Devotion)
(2.) अपने कार्य-क्षेत्र में दायित्व और कर्त्तव्य ज्ञान के प्रति चेतना और उनके निर्वाह के लिए पत्नी छू।
(3.)गणित और गणित शिक्षा में योगदान हेतु उत्साह।
(4.)शिक्षार्थियों को समझने में अभिरुचि एवं इसमें प्रवीणता।
(5.)शिक्षण सामग्रियों, विधियों, तकनीकों, कौशलों के उपयोग में कुशलता।
(6.)आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग में पारंगति।
(7.)गणित को आकर्षक बनाने में सिद्धहस्त।
(8.)गणित के ज्ञान को स्थायित्व प्रदान करने का कौशल।
(9.)विषय-ज्ञान में अभिरुचि और उसके अधिगम के अनुरक्षण में प्रवीणता।
(10.)भारतीय समाज और संस्कृति का गणित के विकास में योगदान का बोध।
(11.)भारतीय गणित का आधुनिक प्रौद्योगिकी से सम्बन्ध स्थापित करने की जिज्ञासा।
(12.)गणित की आधुनिक दार्शनिक विचारधाराओं के परिप्रेक्ष्य में गणित के सम्प्रत्यय का पूर्ण बोध।
(13.)गणित शिक्षा को सहज और आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न युक्तियों को खोजना और उनकी उपयोगिता प्रयुक्ति में प्रवीणता।
(14.)वर्तमान कल्प (Present Era) में गणित के व्यावसायिक महत्त्व का बोध।
(15.)गणित के अनुदेशन में बहुसाधन उपागम (Multi media approach) का पूरा पूरा लाभ उठाने क बोध और कौशल।
(16.)शिक्षण-व्यवसाय के आधारभूत मूल्यों में परिपक्वता।
गणित शिक्षक में इस व्यावसायिक ज्ञान, बोध और कौशल के विकास के लिए कोर्स को इस प्रकार डिजाइन किया जाना चाहिए कि वह अपनी सामाजिक व्यवस्था में विषय के महत्त्व को समझ सके। वह वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में गणित के प्रकार्यों और निहितार्थों (lmplications) को समझ सके तथा विभिन्न व्यवसायों के पारस्परिक सम्बन्धों को समझते हुए गणित शिक्षा के साथ उनके सम्बन्धों को स्थापित कर सके। शिक्षार्थी के पारस्परिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक (Emotional) विकास क्रम में शिक्षक की अन्तर्दृष्टि विकसित हो सके। शिक्षक गणित की विषयवस्तु और उसके शिक्षण में पूर्ण जानकारी रखने में समर्थ हो। वह शिक्षण और अनुदेशन को प्रभावी बनाने में सभी युक्तियों का उपयोग करने में सक्षम हो सके, साथ ही शिक्षण की विधियों, तकनीकों एवं कौशलों में प्रशिक्षित हो तथा अपने कक्षा-अनुदेशन को प्रेक्षण (Observation) और अभ्यास (practice) के द्वारा प्रभावी और दक्ष बना सके।
5.गणित शिक्षक की नौकरी (Job of the Mathematics Teacher) -
विद्यालय के निर्बाध संचालन में सक्रिय सहयोग और सहभागिता, विद्यालय और समुदाय के मध्य सामंजस्यपूर्ण सम्बन्धों (Harmonious) और रचनात्मक पारस्परिक बोध (Mutual Understanding) के विकास (Development) और अनुरक्षण (Maintenance) में प्रभावी योगदान, सहपाठ्यचारी क्रिया-कलापों (Co-curricular activities) का प्रयोजन (sponsors), किसी भी शैक्षिक संगठन (Academic activities) का प्रायोजन (Sponsors), किसी भी शैक्षिक संगठन (Academic Organisation) के संचालन में सहयोग, मार्गदर्शन (Guidance) और परामर्श में सहभागिता, सम्बन्धित अभिलेखों (Records) का अनुरक्षण, वांछित प्रतिवेदन (Report) की तत्काल प्रस्तुति, सामुदायिक क्रियाओं में सहभागिता।
गणित शिक्षक की विशिष्ट भूमिका के तीन प्रमुख पक्ष सामने आते हैं - गणित विषय का शिक्षण, इकाई का शिक्षण और विशिष्ट गुण इकाई का अनुदेशन। जहाँ तक गणित के विशिष्ट विषय के रूप में शिक्षण का प्रश्न है, शिक्षक में अपेक्षित विशेषताएं इस प्रकार हैं -
(1.)वह यह महसूस करे कि गणित शिक्षण एक चुनौती है।
(2.)शिक्षक को गणित का विशद् ज्ञान होना चाहिए।
(3.)एक शास्त्र के रूप में गणित की अवधारणा, विकासक्रम, ज्ञान के अन्य क्षेत्रों में इसके महत्त्व, सांस्कृतिक विकास में इसकी भूमिका का स्पष्ट बोध गणित शिक्षक में अपेक्षित है।
(4.)सामान्य शिक्षा (General Education) के प्रमुख अंग के रूप में इसकी अनिवार्यता का बोध शिक्षक में होना चाहिए।
(5.)गणित के सामान्य सम्प्रत्ययों के विकास, सामान्यीकरणों को प्रयुक्ति से जोड़ने, मुख्य और गौण बिन्दुओं में विभेद, प्रमुख शिक्षण बिन्दुओं की पहचान तथा विद्यार्थी की कठिनाइयों के पूर्वाभास (Anticipation), इनके घटित होने के स्थलों की पूर्ण जानकारी तथा इन्हें दूर करने के लिए विद्यार्थियों को देने आदि में जिन कौशलों और तकनीकों की आवश्यकता है, उनमें गणित शिक्षक का पारंगत होना आवश्यक है।
किसी इकाई के शिक्षण के लिए शिक्षक में अपेक्षित ज्ञान, बोध, कौशल के पक्ष इस प्रकार हैं - विषयवस्तु (content) -सम्प्रत्यय (concepts), सूचना के मद (Items), इनके द्वारा विद्यार्थियों में विकसित कौशल, प्रभावी संगत अनुदेशन तकनीक और कौशल, विषयवस्तु का मनोवैज्ञानिक और तार्किक अनुक्रम (Psychological and logical sequence), व्यवहार परिवर्तनों के रूप में उद्देश्य, विभिन्न उप-इकाइयों की प्रस्तुति, शिक्षण सामग्रियों को एकत्रित करना और उनका कुशल उपयोग, व्यावहारिक शिक्षण आव्यूहों (Teaching strategies) का पूर्व निर्धारण, इकाई के कठिन स्थलों (Difficult Spot) का पूर्वाभास और उनके निराकरण के लिए युक्तियों का निर्धारण, विषय-वस्तु के अवशोषण (Assimilation), विकास और अनुरक्षण के लिए समुचित युक्तियों का निर्धारण, मूल्यांकन प्रक्रम।
उप इकाई के शिक्षण में सर्वप्रथम शिक्षक को इसके निर्धारित उद्देश्यों का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए। उसको विभिन्न अनुदेशन संस्थितियों के सृजन में पारंगत होना चाहिए। प्रस्तुतीकरण के अन्तर्गत विद्यार्थियों द्वारा अनुभव की जाने वाली कठिनाईयों का पूर्वाभास और उन्हें दूर करने के लिए सहज युक्तियों की जानकारी शिक्षक में अपेक्षित है। अपने अनुदेशन को प्रभावी (Effective) और दक्ष (Efficient) बनाने के लिए शिक्षक को अनुदेशन नियोजित करने में अग्रलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
(1.)क्रियाएँ (Activities) और अभ्यास (Exercises) जो कि निर्धारित बोधों और कौशलों को प्रभावी और दक्ष ढंग से उत्पादित करने में समर्थ हों।
(2.)अनुदेशन-अधिगम प्रक्रिया में शिक्षार्थियों की कठिनाइयों के पूर्वाभास से इनको दूर करने के लिए प्रभावी सामग्रियों, युक्तियों प्रक्रमों (procedures) का चयन।
(3.)अनुदेशन सामग्रियों के उपयोग के लिए आवश्यक शर्तों की पूर्ति एवं उनके उपयोग में पारंगति तथा उन्हें कक्षा की आवश्यकता से सहज रूप में जोड़ना।
(4.)नवीन विषय के ज्ञान हेतु वांछनीय अभिप्रेरणा का विकास (Emergence of desired motivation), अधिगम प्रक्रिया के अविरल प्रवाह हेतु आवश्यक प्रेरक चयन (stimulant selection), अधिगम प्रक्रिया में अभिरुचि अनुरक्षण एवं विकास कार्य हेतु स्पष्टीकरण (Explanation), विमर्श (Discussion), उदाहरण एवं उद्धरण - Examples and illustration) की प्रस्तुति में प्रवीणता (proficiency).
(5.)मूल्यांकन स्थानान्तरण, निदान एवं उपचार में दक्षता (proficiency).
इसके अतिरिक्त माध्यमिक गणित की किसी उप-इकाई के अनुदेशन में शिक्षक के पास निम्नलिखित प्रश्नों के लिए सहज उत्तर होने चाहिए -
(1.)विषय-वस्तु के अधिगम के लिए शिक्षार्थी में किन अनुभवों (Experiences) और बोधों (Understandings) की पूर्व पृष्ठभूमि आवश्यक है।
(2.)विषयवस्तु के अधिगम के पश्चात शिक्षार्थी में क्या-क्या व्यवहार परिवर्तन अपेक्षित है?
(3.)वांछित व्यवहार परिवर्तनों के लिए क्या-क्या प्रक्रियाएं, प्रक्रम और तकनीकें आवश्यक हैं?
(3.)वांछित बोध और क्षमता के उपार्जन में शिक्षार्थी को किन विशिष्ट कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है?
(4.)इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए किन युक्तियों का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है?
(5.)प्रभावी अनुदेशन के लिए अभिरुचि, अभिप्रेरणा एवं अधिगम के विकास एवं अनुरक्षण के लिए किन सामग्रियों एवं प्रक्रमों की आवश्यकता है।
5.गणित शिक्षक की शिक्षा और प्रशिक्षण (Education and Training of Mathematics Teacher) -
गणित शिक्षकों की शिक्षा और प्रशिक्षण की प्रभाविता के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक इस प्रकार हैं -
(1.)व्यवसायी आशार्थियों का चयन (selection of professional candidates), शिक्षक-शिक्षा प्रक्रिया (Teacher educational process), नौकरी में कार्य के लिए समुचित संस्थितियों की सम्भावनाएं (possibilities of appropriate working condition in the job), प्रभावी और दक्ष अनवरत शिक्षा और प्रशिक्षण के प्रावधान (Provisions of Effective and Efficient Continuous Education and Training) ।
(2.)शिक्षण को व्यवसाय के रूप में चुनना अन्तिम विकल्प माना जाता रहा है किन्तु अब ऐसी स्थिति नहीं रही। बेरोजगारी के बढ़ते रहने और रोजगार के अवसर कम होने की स्थिति में शिक्षण व्यवसाय का महत्त्व बढ़ा दिया है क्योंकि यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें जनसंख्या के बढ़ने के साथ-साथ शिक्षकों की मांग बढ़ती रहेगी। इसलिए इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की अपेक्षित सुगमता के कारण स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करते ही युवा वर्ग माध्यमिक शिक्षक प्रशिक्षण (बी. एड) प्राप्त करना चाहता है। देश में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (National Council of Teacher Education - NCTE) के गठन के साथ ही सारे देश में शिक्षक-शिक्षा को नई दिशा अवश्य मिली है। इसमें प्रवेश हेतु पूर्व परीक्षा अनिवार्य कर दी गई है। विश्वविद्यालय अपने स्तर पर सम्बद्ध महाविद्यालयों और अपने विभागों के लिए इस परीक्षा के परिणामस्वरूप मेरिट के आधार पर अभ्यर्थियों का चयन करते हैं। राजस्थान में यह परीक्षा राज्य स्तर पर होती है। बारी-बारी से विभिन्न विश्वविद्यालय इस परीक्षा का आयोजन करते हैं। यह परीक्षा पी. टी. ई. टी. (Pre Teacher Education Test) कहलाती है। परीक्षा आयोजित करने वाला विश्वविद्यालय निर्धारित नियमों के अनुसार राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के लिए मेरिट के आधार पर प्रशिक्षणार्थियों का चयन करता है। वर्तमान में तो राजस्थान में अपनाई जा रही व्यवस्था ठीक चल रही है। इसमें कुछ कमियां हो सकती हैं, किन्तु अनुभव से इन कमियों को धीरे-धीरे दूर किया जा सकता है।
(3.)इस व्यवस्था में गणित एवं विज्ञान के भावी शिक्षकों के रूप में आजीविका के लिए ही व्यक्ति शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त करता है। ऐसे युवक युवतियां जिनकी शिक्षण और गणित में वास्तव में अभिरुचि और अभिवृत्ति हो बहुत ही कम होते हैं। शिक्षक अभिवृत्ति और योग्यता का वर्तमान परीक्षण तो मात्र औपचारिकता है। इसमें अच्छे अंक उपलब्ध गाइड़ों के अध्ययन और कोचिंग लेने से प्राप्त किए जा रहे हैं। गणित विषय में शिक्षक प्रशिक्षण के लिए उन्हीं अभ्यर्थियों का चयन किया जाना चाहिए, जिनमें इस व्यवसाय और गणित दोनों में नैसर्गिक रुचि हो। ऐसे पात्रों का चयन सहज नहीं है। इसके लिए विद्यालय स्तर से ही विद्यार्थियों के अभिलेख तैयार करने होंगे। हर कक्षा में परीक्षणों, क्लब, परियोजना आदि की गतिविधियों में व्यक्तिगत विद्यार्थी से सम्बंधित प्रेक्षण अभिलेख तैयार करने होंगे। यही कार्य उच्च माध्यमिक, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय स्तर पर करना होगा। इन अभिलेखों के अध्ययन और विश्लेषण से ही गणित तथा विज्ञान विषयों के लिए भावी शिक्षकों का सही चयन किया जा सकता है।
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