How is teaching mathematics an art?

How is teaching mathematics an art?

1.गणित शिक्षण एक कला है का परिचय(Introduction to How is teaching mathematics an art)-

How is teaching mathematics an art
How is teaching mathematics an art
भारतवर्ष 20वीं शताब्दी में गरीबी, गुलामी, राजनीतिक एवं मानसिक, अन्धविश्वास, साम्प्रदायिकता एवं रूढ़िवादिता से जूझता रहा है। आज भी ये राक्षसी प्रवृत्तियाँ मुँह खोले खड़ी हैं। किन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि 21वीं शताब्दी भारत के लिए एक ऐसे युग का सन्देश लाएगी जिसमें इन सब राक्षसी प्रवृत्तियों का संहार होगा और सम्पन्नता, सद्भाव,प्रगति, स्वतंत्रता विशेष रूप से मानसिक, वैज्ञानिकता, समानता, न्याय एवं बन्धुत्व का साम्राज्य स्थापित होगा। यह केवल झूठी अभिलाषा नहीं है, न ही केवल आदर्श स्वप्न है। यह तो वास्तविकता का पूर्व अनुमान है और इस पूर्व अनुमान को ठोस रूप देना हमारा सबका कर्त्तव्य है।हम कैसे इस कर्त्तव्य को सम्पन्न कर सकेंगे?इस प्रश्न का उत्तर है हमारी शिक्षा एवं गणित शिक्षण में। यह कारण ही है कि हमारे विचारक आज भविष्य की चुनौती को शिक्षा के सन्दर्भ में स्वीकार करने को लालायित हैं।
इस देश के निवासी जानते हैं कि 21वीं शताब्दी उनकी है और उसके लिए उन्हें अपनी आनेवाली पीढ़ी को तैयार करना है। इसके लिए शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा और उसमें मुख्य स्थान गणित शिक्षण का होगा।
गणित शिक्षण क्या है? यह एक कला है किन्तु यह एक विज्ञान भी है। यह कला इस रूप में है कि प्रत्येक गणित शिक्षक एक सृजनात्मक व्यक्ति होता है जो अपनी गणित शिक्षण विधि का स्वयं सृजन करता है और विज्ञान इसलिए कि आज इस सम्बन्ध में अनेक अनुसंधान हो रहे हैं जो हमें गणित शिक्षण सम्बन्धी विभिन्न पक्षों के सम्बन्ध में वस्तुनिष्ठ ज्ञान दे रहे हैं।
अनुसंधानों में वृद्धि, उनमें ओर अधिक निर्मलता, शुद्धता एवं सूक्ष्मता, गणित शिक्षण को विज्ञान का रूप देने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निबा रहे हैं।

2.गणित शिक्षण एक जटिल कार्य है(Teaching mathematics is a complex task)-

एक समय था जब विचार किया जाता था कि गणित शिक्षक बनना सबसे सरल कार्य है। माता-पिता बालक को जन्म देने के पश्चात् ही शिक्षण देने लगते हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति जिसके सन्तान होती है, गणित शिक्षक होता है और उसे गणित शिक्षण देना स्वयं ही आ जाता है। आज इस धारणा में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गए हैं। अब यह विचार किया जाने लगा है कि गणित शिक्षण देने के लिए विशेष तैयारी की आवश्यकता है। माता-पिता अपने बालक के विकास में कोई महत्त्वपूर्ण सहायता उस समय तक नहीं प्रदान कर सकते हैं जब तक कि उनका अपना गणित शिक्षण ठीक ढंग से नहीं हुआ हो। उन्हें यह पता न हो कि अपने बालकों को क्या सीखाना है एवं कैसे सिखाना है।
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वर्तमान में ज्ञान का विस्तार अत्यन्त तेजी से हुआ है। यह ज्ञान इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि प्रत्येक दशक में दुगुना, तिगुना होता जा रहा है। इस प्रकार आज ज्ञान की मात्रा इतनी अधिक है जितनी कि शायद हमारे पूर्वजों ने सोची भी नहीं होगी। इस विस्तृत ज्ञान को नई पीढ़ी को प्रदान करने के लिए प्रत्येक राष्ट्र विद्यालय खोलता है। इन विद्यालयों में न केवल यह चेष्टा की जाती है कि मानव द्वारा अर्जित ज्ञान से नई पीढ़ी को परिचित कराया जाए वरन् यह भी कि नई पीढ़ी को और ज्ञान अर्जन करने के लिए तैयार भी किया जाए और ज्ञान का सदुपयोग करना भी सिखाया जाए। यह सब विद्यालय के कार्य अध्यापकों द्वारा सम्पन्न होते हैं। अध्यापक अपने गणित शिक्षण द्वारा विद्यार्थियों को ज्ञान अर्जन, ज्ञान उत्पादन तथा ज्ञान का उपयोग सिखाते हैं। क्योंकि ये तीनों बातें सिखाना अत्यन्त कठिन है। हम गणित शिक्षण को एक जटिल कार्य ही कहते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि गणित शिक्षक का प्रोफेशन कार्य अन्य सब प्रोफेशन कार्यों से अधिक कठिन और अधिक मेहनत वाला है।
एक गणित शिक्षक जो किसी विद्यालय में गणित शिक्षण प्रदान करता है, उसका कार्य अधिक जटिल इस कारण भी है कि उसे निर्धारित पाठ्यक्रम एक ही समय में अनेक विद्यार्थियों को पढ़ाना होता है। ज्ञान इत्यादि प्रदान करने के लिए उनके पास, सीमित समय होता है, अनेक विद्यार्थी सीखना नहीं चाहते और गणित शिक्षक के कार्य का मूल्यांकन प्रशासनिक अधिकारी तथा अभिभावक करते रहते हैं। गणित शिक्षक अपना कार्य उत्तम ढंग से पूरा कर सके इसके लिए गणित शिक्षण में पारंगत होना आवश्यक है।

3.गणित शिक्षण एक कला है(Teaching mathematics is an art)-

गणित शिक्षण एक कला है। अन्य कलाओं की भाँति इस कला में पारंगत होने के लिए भी विशेष प्रकार के प्रयत्न करने की आवश्यकता है। एक गणित शिक्षक को जो इस कला को सीखना चाहता है, सावधानी तथा धीरज से काम लेना होगा। वह कक्षा में जाकर चाहे जैसे ढंग से बालकों को पढ़ाना आरम्भ नहीं कर सकता है। बालकों को पढ़ाने से पहले उन्हें उत्तम शिक्षा किस प्रकार प्रदान की जा सकती है, यह जानना नितान्त आवश्यक है। यह तो ठीक है कि गणित शिक्षक बहुत कुछ अभ्यास द्वारा सीखता है परन्तु गणित शिक्षण में वह उसी समय सफल हो सकता है, जब वह अभ्यास से पहले गणित शिक्षण-सिद्धान्तों को समझ ले। गणित शिक्षण-सिद्धान्तों का प्रयोग जब वह अभ्यास में कर सकता है उसी समय यह शिक्षा प्रदान करने के योग्य माना जा सकता है। कुछ समय पहले तक गणित अध्यापन से यह तात्पर्य यह माना जाता था कि थोड़ा-सा ज्ञान बालक को लिखने, पढ़ने एवं गणित में दे दिया जाए। यह ज्ञान भी अध्यापक बालकों की स्मृति पर बल देकर प्रदान करते थे। जो शिक्षण-विधि वे अपनाते थे, वह रटने की विधि थी। वे बालकों पर कड़ा अनुशासन रखकर डंडे के बल पर शिक्षा देना ही उत्तम समझते थे। उनका विश्वास था कि डंडे का उपयोग यदि न किया जाएगा तो बालक निश्चय ही बिगड़ जाएगा। एडम्स महोदय गणित शिक्षण के सम्बन्ध में एक वाक्य "अध्यापक ने जाॅन को गणित पढ़ाई।" का वर्णन करते हैं। इस वाक्यानुसार पुराने अध्यापक गणित पर अधिक बल देते थे जबकि नवीन शिक्षण गणित शिक्षण में जाॅन पर अधिक बल दिया जाता है। पुराने गणित अध्यापक हर बालक को एक ही लकड़ी से हाँकते थे, उन्हें केवल इस बात की चिन्ता थी कि बालक किसी तरह गणित के निश्चित पाठ्यक्रम को रट ले, इस बात पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं समझी जाती थी कि भिन्न-भिन्न बालकों की योग्यताओं में भी विभिन्नता हो सकती है, उनकी रुचियों और सामर्थ्यों में भी अन्तर हो सकता है।
रूसो, पेस्टालाॅजी, फ्राॅबेल, हर्बर्ट स्पेन्सर, डीवी आदि के विचारों ने इस पुरातन शिक्षण-सिद्धान्तों एवं विधियों में क्रांति ला दी। शिक्षा विषय-केन्द्रित से हटकर बाल-केन्द्रित होने लगी। एडम्स के उपर्युक्त वाक्य में जाॅन का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाने लगा। विभिन्न बालकों की योग्यता के अनुसार शिक्षा प्रदान करना ही उत्तम समझा जाने लगा।
उक्त शिक्षा शास्त्रियों ने इस बात पर बल दिया कि शिक्षा एक आनन्दपूर्ण प्रक्रिया है। बालक नई वस्तुओं को सीखने में आनन्दानुभव करता है। शिक्षा प्राप्त करने में आनन्द की इस वृद्धि का होना परम आवश्यक है। शिक्षा की प्रक्रिया में बालक एक सक्रिय कार्यकर्ता है। वह बहुत सी बातें स्वयं सीख सकता है। गणित अध्यापक तो एक सहायक और प्रदर्शक के रूप में होता है, वह नियम बनानेवाली मशीन नहीं होता है। विद्यालय और गणित अध्यापक का कार्य ऐसे अनुकूल वातावरण को उपस्थित करना है जहाँ बालक के व्यक्तित्व का विकास स्वतंत्र और पूर्ण रूप से हो सके।
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हमारे विचार से गणित अध्यापक जो कुछ भी कक्षा-शिक्षण में व्यक्तिगत शिक्षण में बालक के सर्वतोमुखी विकास के लिए करता है वह सब शिक्षण कला के ही अन्तर्गत आता है।गणित शिक्षण प्रदान करने में गणित अध्यापक गणित शिक्षण के अनेक सिद्धान्तों को ध्यान में रखना पड़ता है, अनेक समस्याओं का हल ढूँढ़ना पड़ता है तथा अनेक प्रकार के बालकों से सम्पर्क स्थापित करना पड़ता है। कितनी सुन्दरता से वह यह कार्य कर सकता है, यह उसके गणित शिक्षण-कला सम्बन्धी ज्ञान पर निर्भर करता है। यहाँ कला शब्द के प्रयोग में एक ओर अर्थ शामिल है। वही कलाकार उत्तम समझा जाता है जो कला सम्बन्धी प्राचीन एवं नवीन विचारधाराओं तथा शैलियों से पूर्णतया अवगत हो परन्तु अपनी कलाकृतियों को अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर प्रस्तुत करे। इसी प्रकार वह शिक्षक उत्तम समझा जाता है जो गणित शिक्षण-कला सम्बन्धी पुरातन और नवीन-सभी सिद्धान्तों एवं विधियों में पारंगत हो परन्तु कला के व्यवहारिक रूप में अपना व्यक्तिगत योगदान दे। वह नए सिद्धान्तों और नवीन प्रणालियों का आदर तो करता हो परन्तु उसका दास न हो। वह समय, स्थान और अपने अनुभवों के आधार पर गणित शिक्षण प्रदान करने में हेर-फेर करने की सामर्थ्य रखता हो। वह अपने व्यक्तित्व की शक्ति के आधार पर उस शिक्षण-विधि को अपनाने में सफल हो जो बालक के व्यक्तिगत विकास तथा सामाजिक समायोजन में लाभदायक सिद्ध होती है। वह विद्यार्थियों को इस प्रकार से शिक्षा दे सके कि वे भविष्य में आनेवाली चुनौतियों का सामना करने को तैयार रहें।
वर्तमान विचारधारा के अनुसार गणित शिक्षक एक प्रेरक है जो विद्यार्थी के सीखने में प्रोत्साहित करता है। यह न तो बुद्धि को प्रशिक्षित करनेवाला है, न मन को अनुशासित करनेवाला। प्रत्येक व्यक्ति अनुभव द्वारा सीखता है। शिक्षक अनुभवों को प्रदान करने और उनके व्यावहारिक प्रवृत्तियों में परिवर्तन लाने में अपना सहयोग देता है।

4.शैक्षिक तकनीकी(Educational technology)-

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वर्तमान काल में ज्ञान का बहुत प्रयोग हुआ है। गणित शिक्षण में भी इस ज्ञान में एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। अब शैक्षिक तकनीकी एक नवीन ज्ञान के रूप में उभर कर आयी है। शिक्षा प्रदान करने में इसने नए आयाम जोड़ दिए हैं। शैक्षिक तकनीकी से हमारा तात्पर्य शिक्षण प्रदान करने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना और गणित शिक्षण में विज्ञान द्वारा आविष्कारित उपकरणों का प्रयोग है। गणित शिक्षण में जिन उपकरणों का हम प्रयोग कर रहे हैं उनमें कुछ हैं - टेलीविजन, वीडियो, प्रोजेक्टर इत्यादि। यह सब वैज्ञानिक तकनीकी की ही देन है। 
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