What Types of Mistakes do Students Make in Math and How to Correct?

What Types of Mistakes do Students Make in Mathematics and How to Correct Them?

1.गणित में विधार्थी किस प्रकार की गलतियाँ करते हैं और उन्हें कैसे सुधारे का परिचय ?(Introduction to What Types of Mistakes do Students Make in Mathematics and How to Correct Them?)-

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What Types of Mistakes do Students Make in Math and How to Correct?
What Types of Mistakes do Students Make in Math and How to Correct?
बालकों की अशुद्धियों का संशोधन करना बहुत आवश्यक होता है। अध्यापक प्रत्येक अशुद्धि को काटकर उसको सही कर देता है तथा अशुद्धि के स्थान पर एक नोट भी लिख देता है ।इससे बालक को अपनी गलती का ज्ञान हो जाता है और वह उसको सुधारने की कोशिश करता है। परन्तु यदि बालक उस अशुद्धि का संशोधन घर के कार्य में नहीं करता है तो अध्यापक की मेहनत बेकार हो जाती है। यदि बालक दुबारा उस अशुद्धि को नहीं करता है तब तो अध्यापक का परिश्रम सफल समझा जाता है, वरना नहीं। इस कार्य को इस तरह किया जा सकता है -
कक्षा में कुछ अशुद्धियाँ ऐसी है जो कि अधिकतर विद्यार्थी करते हैं। इस प्रकार की अशुद्धियों का संशोधन कक्षा में सभी विद्यार्थियों के सम्मुख किया जाना चाहिए। इस तरह से अधिक संख्या में अशुद्धियों का संशोधन किया जा सकता है परन्तु अध्यापक को इतना ज्ञान अवश्य होना चाहिए कि कौन-सी अशुद्धियाँ सामान्यतया अधिकतर विद्यार्थी करते हैं और जिनके सुधार में उनकी रुचि है ।यदि अशुद्धियाँ सामान्य रुचि की न होगी तो बालक जिन्होंने अशुद्धियाँ नहीं की है अध्यापक के शिक्षण में कोई रुचि नहीं लेंगे तथा उनका समय भी कक्षा में व्यर्थ नष्ट होगा। व्यक्तिगत अशुद्धियों का निवारण छोटे-छोटे समूहों तथा व्यक्तिगत रूप से करना चाहिए। कुछ अशुद्धियाँ अध्यापक द्वारा विद्यार्थी की कापी पर ही दूर की जा सकती है। जिस स्थान पर अशुद्धि हो , वहाँ पर 'पूछो' शब्द लिखकर अध्यापक अपनी स्मृति हेतु कक्षा में अशुद्धि के बारे में बालकों को बता सकता है। इस तरह व्यक्तिगत अशुद्धि के लिए कुछ और निशान रखा जा सकता है।
स्कूल में यदि विद्यार्थी किसी एक प्रश्न में गलती करता है तो उस सम्पूर्ण प्रश्न का हल फिर से दोहराया जाता है। इस तरह के प्रश्नों को पूरा दोहराने में अनुशासनीय महत्त्व होता है।
सवालों को हल करने में मुख्य रूप से दो प्रकार की अशुद्धियाँ होती है-एक तो सिद्धान्त की और दूसरी जोड़, घटाने आदि।
प्रथम प्रकार की गलती अधिक हानिकारक होती है क्योंकि एक बार यदि बालक किसी सिद्धान्त को ठीक प्रकार नहीं समझता है तो इस प्रकार की गलती होने की सदा सम्भावना होती है। इस प्रकार की अशुद्धि को कक्षा में उन सभी बालकों को भली-भाँति समझा देना चाहिए जो कि उक्त सिद्धान्त को ठीक से न समझें हों। अध्यापक को उनकी जाँच हेतु कुछ प्रश्न अभ्यास के लिए तथा गृह-कार्य के लिए दे देने चाहिए। प्रत्येक सिद्धान्त का पूर्ण निवारण होने पर दूसरे सिद्धान्त को कक्षा में बालकों को बताना मनोवैज्ञानिक होता है।
दूसरी प्रकार की अशुद्धि वह है जो कि बालक सवाल सही सिद्धान्त के आधार पर हल करने में जोड़ने, घटाने आदि में करते हैं। इस प्रकार की गलती दो रूपों में पायी जाती है - एक तो वह कि बालक सदा एक ही प्रकार की गलती, दूसरी वह जो भूल में किसी पद में गलती हो जाए। दूसरे प्रकार की गलती भयंकर नहीं होती है ।इस तरह भूल से गलती करने के लिए बालकों को चेतावनी देना ही पर्याप्त होता है। परन्तु प्रथम प्रकार की गलती जो कि बार-बार दोहरायी जाती है, भयंकर होती है। इस प्रकार की गलती की ओर अध्यापक को विशेष ध्यान देना चाहिए। पहले अध्यापक को इस प्रकार की गलती ढूँढ लेनी चाहिए और फिर उसके निवारण हेतु उस प्रकार के प्रश्नों का पूर्णरूप से अभ्यास कराने में उपर्युक्त गलती दूर की जा सकती है। घटाने आदि में जो गलती हो , उसको लिखित तथा मौखिक विधियों से अभ्यास करने पर दूर किया जा सकता है।
अशुद्धियाँ करने के कारण हैं -
(1.)किसी नवीन विधि को समझाते समय विद्यार्थी ध्यान नहीं देते हैं।
(2.)प्रश्न के हल करने से पहले पर्याप्त संख्या में अभ्यास नहीं कराया जाता है।
(3.)किसी विशेष कठिन विधि को बालक ठीक रूप से कक्षा में नहीं समझ पाते हैं।
(4.)पिछली कक्षाओं में विषय के सही प्रत्ययों का ज्ञान नहीं हो पाया हो ।

.गणित में विधार्थी किस प्रकार की गलतियाँ करते हैं और उन्हें कैसे सुधारे?(What Types of Mistakes do Students Make in Mathematics and How to Correct Them?)- 

What Types of Mistakes do Students Make in Math and How to Correct?
What Types of Mistakes do Students Make in Math and How to Correct?

2.छात्रों द्वारा गणित में की जाने वाली त्रुटियाँ और सुधार(Common mistakes by students in mathematics)-

(1.)गणित विषय एक अमूर्त विषय है। अतः छात्रों द्वारा की समस्याओं का हल करते समय चिन्तन, तर्क करने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। गणित विषय इतना कठिन नहीं जितना समझ लिया जाता है। यह कठिन इसलिए हो जाता है कि जो त्रुटियां या कमियाँ रह जाती है उनके सुधार का हम प्रयास नहीं करते हैं।
(2.)कई बार हम प्रश्न को नोटबुक में लिखते समय ही प्रश्न को गलत उतार लेते हैं। जोड़ की जगह बाकी या बाकी की जगह जोड़, कुछ भाग एक प्रश्न का तथा कुछ भाग दूसरे प्रश्न का। ऐसा इसलिए होता है कि या तो हम साथी छात्र से बात कर रहे होते हैं या हमारा ध्यान कहीं ओर जगह होता है। अतः प्रश्न को लिखते समय तथा हल करते समय मन को एकाग्र रखना चाहिए। नित्यप्रति मन को एकाग्र करने का निरन्तर अभ्यास करना चाहिए।
(3.)प्रश्न को एक बार हल करने के बाद, पुनरावृत्ति करते समय प्रश्न को हल नहीं कर पाते। यदि प्रश्न को अध्यापक या साथी छात्र की सहायता से हल किया गया है तो उस प्रश्न को चिन्हित कर लेना चाहिए तथा घर जाकर एक बार फिर से बिना सहायता के हल करना चाहिए। ऐसे प्रश्नों को अलग नोट बुक में उतार लेना चाहिए तथा खाली समय में हमें उसकी पुनरावृत्ति कर लेना चाहिए या पुनरावृत्ति के लिए समय न हो तो स्मरण कर लेना चाहिए।

3.कठिन प्रश्नों को छोड़ देना(Skip the hard questions):- 

कठिन प्रश्नों को छोड़ते रहने से हर कक्षा में सरल प्रश्नों को हल करने की प्रवृत्ति बन जाती है तथा धीरे-धीरे आगे की कक्षाओं में गणित विषय कठिन लगने लगता है। यदि हर कक्षा में गणित के कठिन प्रश्नों को हल करते रहें तथा उन कठिन प्रश्नों को फिर कभी करने के बहाने न छोड़ें तो गणित विषय कठिन नहीं लगेगा।


    4.पाठ्यक्रम के अलावा अन्य प्रश्नों को हल न करना(Do not solve questions other than syllabus) :- 

    हमारी वृत्ति परीक्षा केन्द्रित हो गई है अतः पाठ्यक्रम के अलावा अन्य प्रश्नों को हल नहीं करते हैं जिससे हमारी बौद्धिक क्षमता तथा चिन्तन करने की क्षमता का विकास नहीं होता है। छुट्टियों में या सत्रारंभ से ही कुछ पाठ्यपुस्तक के अलावा प्रश्नों को को भी हल करना चाहिए। इसके लिए हमें पुस्तकालय से सन्दर्भ पुस्तक लेकर अन्य प्रश्न भी हल करना चाहिए।

    5.परीक्षा के समय ही गणित का अभ्यास करना(Practicing mathematics at the time of exam) :- 

    कई छात्र सत्रारंभ के से ही गणित का अभ्यास नहीं करते हैं तथा परीक्षा के समय ही हल करते हैं, ऐसे छात्र परीक्षा के दृष्टिकोण से ही पढ़ते हैं और चुने हुए सवाल हल करते हैं। सम्पूर्ण पाठ्यपुस्तक को हल न करने तथा पुनरावृत्ति न करने से गणित विषय उनके लिए कठिन हो जाता है।

    6.छोटी-छोटी त्रुटियों पर ध्यान न देना(Ignoring minor errors) :- 

    कुछ छात्र दशमलव के गुणा, भाग, वर्गमूल, घनमूल में त्रुटियाँ करते हैं। उच्चत्तर कक्षाओं में जाने के बाद इस प्रकार त्रुटियों को सुधारना उन्हें अपने स्टेट्स के अनुकुल नहीं लगता है। ऐसे छात्रों को छुट्टियों में या फिर सत्रारंभ होते ही अपनी इन छोटी-छोटी त्रुटियों को सुधार लेना चाहिए।

    7.जानबूझकर गलतियाँ करना (Knowingly making mistakes):- 

    कुछ छात्र जानबूझकर गलतियाँ करते हैं, धीरे-धीरे गलतियाँ करने की उनकी आदत हो जाती है। एक बार जो आदत हो जाती है वह मुश्किल से ही छूटती है। अतः छात्रों को जानबूझकर गलतियाँ नहीं नहीं करना चाहिए आखिर में इसका नुकसान उनको स्वयं को ही उठाना पड़ता है।

    8.प्रश्न की जाँच ठीक प्रकार से न करना(Do not check the question properly) :

    कुछ विद्या प्रश्न का हल गलत कर देते हैं और उसकी जाँच ठीक प्रकार से नहीं करते हैं जो विद्यार्थी गलती अपनी गलती को स्वयं पकड़ लेता है वह प्रखर हो जाता है। अतः एकाग्रता, अभ्यास, स्वयं का निरीक्षण करते रहने से स्वयं की गलतियां पकड़ी जा सकती है।
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    9.क्रियाशील न रहना(. Not working) :

    कुछ छात्र प्रश्न को हल करते समय ज्योहि कठिनाई आती है त्योही अध्यापक से हल करवा लेते हैं, स्वयं प्रयास नहीं करते हैं, न मस्तिष्क पर जोर डालते हैं। कई विद्यार्थियों की तो बार बार कठिन प्रश्नों को अध्यापक या साथी छात्रों से हल करवाने की आदत होती है। ऐसे छात्रों की या तो सोच ये होती है कि गणित को ऐच्छिक विषय के रूप में तो लेना नहीं है बस उत्तीर्ण होना है। परन्तु ऐसा करने से छात्रों में कठिनाईयों से जुझने की आदत का विकास नहीं होता है तथा किसी भी विषय में पिछड़े हुए ही रहते हैं।

    10.सम्पूर्ण पाठ्यक्रम की पुनरावृति करना(Revisiting the entire syllabus) :-

     कई छात्रों की सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को पुनरावृति करने की आदत होती है। सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को होशियार छात्र तो हल कर लेते हैं परन्तु साधारण छात्रों को हल करने का समय नहीं मिलता है और उनकी पुनरावृत्ति पूरी नहीं हो पाती है। इसके बजाय शुरू से ही कठिन प्रश्नों को चिन्हित कर लिया जाए तथा उनकी पुनरावृत्ति कर ली जाए तो समय की बचत हो सकती है।

    11.उच्चतर कक्षाओं में भी गणना मौखिक रूप हल न करना(Do not solve computation verbal form even in higher classes) :- 

    कुछ छात्र जोड़, बाकी इत्यादि गणनाएं उच्च कक्षाओं में जाने के बाद भी जो मौखिक रूप से ज्ञात की जा सकती है, उनका मौखिक रूप से हल न करने से कमजोरी रह जाती है। अतः जो जोड़, गुणा, बाकी, भाग मौखिक रूप से ज्ञात किये जा सकते हैं उन्हें मौखिक रूप से ही हल करना चाहिए।

    12.उच्चतर कक्षाओं में गुणनखण्ड, वर्गमूल जैसी छोटी कक्षाओं की समस्याओं को हल न कर पाना(Unable to solve problems of small classes like factor, square root in higher classes.):- 

    छोटी कक्षाओं में गुणनखण्ड, वर्गमूल, घनमूल, लघुत्तम समापवर्त्य, महत्तम समापवर्त्य का ठीक से अभ्यास न कर पाने के कारण छात्र प्रश्नों को हल नहीं कर पाते हैं। अतः इनका ठीक से अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास का अर्थ है कि बार बार उस टाॅपिक लगातार करते रहना जब तक कि उससे सम्बन्धित प्रश्नों को ठीक से हल न कर पाए।

    13.अध्यापक पर अत्यधिक निर्भर रहना(Heavily dependent on teacher)- :

    कुछ छात्र प्रश्नों को अध्यापक की सहायता के बिना हल नहीं कर पाते हैं। कारण यह है कि छोटी कक्षाओं में अधिक परिश्रम नहीं करते  हैं जो आगे चलकर उनके लिए समस्या बन जाती है। बोर्ड की कक्षाओं को एक चुनौती के रूप में लेते हैं परन्तु अन्य कक्षाओं में को हल्के में लेते हैं या नजरअंदाज करते हैं। अतः छात्रों तथा अभिभावकों को गम्भीरता से हर कक्षा को लेना चाहिए।

    14.समीक्षा (Analysis):-

     छात्रों को प्रत्येक कक्षा में गणित को गम्भीरता से लेना चाहिए। जितना अधिक स्वयं हल करने की कोशिश करेगें उतना ही लाभ होगा।वस्तुतः उपर्युक्त वर्णित त्रुटियां इसलिए करते हैं कि छात्रों में परिश्रम करने की आदत, नियमितता, शुद्धता, धैर्य, सत्य के प्रति निष्ठा, एकाग्रता, ध्यान, योग जैसे गुणों के विकास में रूचि नहीं लेते हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इनको शामिल नहीं किया गया है। अतः अभिभावकों, माता-पिता, अध्यापकों को इन गुणों का विकास छात्रों में करना चाहिए। यदि उपर्युक्त दिए गए सुझावों पर अमल किया जाए तो गणित विषय जिनको नीरस व कठिन लगता है उनको गणित विषय आनंददायक लगेगा।


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