How to Teach Effective Mathematics
How to Teach Effective Mathematics
गणित का प्रभावी अध्यापन कैसे? (How to Teach Effective Mathematics?) -
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How to Teach Effective Mathematics |
(2.)गणित विषय का प्रभावी ज्ञान प्राप्त करने हेतु विषयवस्तु के प्रमुख घटकों को पृथक-पृथक कर विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाए तथा विद्यार्थियों को इसका प्रशिक्षण भी दिया जाए। तदुपरान्त जीवन की वास्तविक परिस्थितियों के तथ्यों को आधार बनाकर समस्त घटकों को संश्लेषित कर समस्याएँ हल करायी जायें।
(3.)गणित को केवल तथ्यों एवं सूत्रों के रूप में न पढ़ाया जाय। इस विषय को एक विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया जाय जिसमें तथ्यों के परस्पर सम्बन्धों का दिग्दर्शन हो तथा तथ्यों के क्रम एवं महत्त्व का उपयोगी प्रदर्शन हो।
(4.)गणित को संक्षिप्त विधियों के माध्यम से सिखाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए । प्रभावी विधियों के माध्यम से विद्यार्थियों में स्व-निर्भरता का विकास तथा गणित की सुन्दरता एवं शक्ति को पहचानने की क्षमता में वृद्धि होनी चाहिए ।
(5.)गणित के क्रमिक विकास के इतिहास एवं सम्बन्धित उप-विषयों के व्यावहारिक उपयोग को भी अध्यापन विधि का भाग बनाया जाय जिससे कि विद्यार्थियों को वांछित उत्प्रेरणा मिल सके।
(6.)गणित की संरचना, क्रम, माॅडल निर्माण आदि को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाय।
(7.)कक्षा के विद्यार्थियों में वैयक्तिक भेदों को ध्यान में रखकर विषयवस्तु को प्रस्तुत किया जाय।
(8.)गणितीय सम्बन्धों एवं संकल्पनाओं के स्पष्टीकरण एवं उपयोजन पर बल दिया जाए।
(9.)गणित की प्रकृति तथा गणित की भाषा को भी अध्यापन विधियों में उपयुक्त स्थान दिया जाय। समुच्चय भाषा को अभिव्यक्ति का आधार बनाया जाय। बीजगणितीय भाषा का प्रयोग किया जाए।
(10.)पाठ्यक्रम, अध्यापन विधियों तथा मूल्यांकन को एकीकृत कर सीखने की प्रक्रिया को व्यापक तथा समन्वित बनाया जाय।
(11.)इस बात को स्पष्ट किया जाय कि भौतिक जगत वस्तुतः अ-गणितीय नहीं है । हम एक गणितीय जगत् में रहते हैं। गणित हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण आधार है।
(12.)विद्यार्थियों को प्रणालियों की स्वयं सिद्धता तथा निगमन के प्रभाव को स्पष्ट करना आवश्यक माना जाय।
(13.)विश्लेषण एवं संश्लेषण विधियों के द्वारा गणितीय संकल्पनाओं एवं प्रक्रियाओं को क्रियाशील एवं उपयोगी बनाया जाए। प्रत्येक समस्या का व्यापक विश्लेषण करने का प्रशिक्षण कक्षा में दिया जाए। प्रत्येक समस्या का व्यापक विश्लेषण करने का प्रशिक्षण कक्षा में दिया जाए जिससे कि वे Why? तथा How? के पक्षों को समझकर हल ढूँढे़ं।
(14.)माॅडल, सही ज्यामितीय चित्र, ग्राफ, प्रयोग, प्रमाणीकरण आदि को गतिशील अध्यापन विधियों का भाग बनाया जाए।
(15.)विद्यार्थियों की गणित में रुचि उत्पन्न की जाए जिससे कि वे अधिक गणित सीखने के लिए आतुर रहें। अमूर्त चिंतन को गणित सीखने की प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण भाग माना जाए तथा स्व-प्रेरणा का विकास किया जाए।
(16.)विद्यार्थियों में गणित के नए सिद्धान्तों, संकल्पनाओं, आयामों, प्रक्रियाओं, सम्बन्धों आदि को खोजने की क्षमता का विकास हो।
(17.)प्रभावी अध्यापन विधियाँ मूलतः समय-साध्य तो होती हैं किन्तु विद्यार्थियों की गणितीय उपलब्धियों की आवश्यकताओं के संदर्भ में इनका मनोवैज्ञानिक प्रभाव हितकर होता है ।अतः विधियों का चयन विषयवस्तु की आवश्यकतानुसार किया जाए।
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जब तक कि साहसी अध्यापकों अथवा स्कूलों द्वारा विकसित उपयोगी क्रियाएँ समूची प्रणाली में व्यापक रूप से प्रसारित नहीं की जाती तब तक स्कूल प्रणाली में लचीलेपन का स्पष्टतः कोई महत्त्व नहीं है। दुर्भाग्यवश शिक्षा के क्षेत्र में यह एक स्वयं गतिशील प्रक्रिया नहीं है। वहाँ तो सफल प्रयोग प्रायः उन स्त्रियों और पुरुषों के साथ ही समाप्त हो जाते हैं जिन्होंने उनका श्रीगणेश किया तथा अधिक जीवनक्षम प्रयोगों के प्रसार की स्वाभाविक गति भी वर्षों की अपेक्षा दशकों में मापी जाती है। तथापि पर्याप्त रूप से उपयोगी सिद्ध हो चुकी सबल नवीन शिक्षण पद्धतियों को भी सामान्य तथा निम्न सामान्य कोटि के अध्यापक वर्ग के मनों में बैठाने एवं स्वीकृत करवाने के लिए काफी प्रशासनिक कौशल एवं अथक प्रयत्नों की आवश्यकता होती है।
(1.)गणित के शिक्षण में आधारभूत सिद्धान्तों को समझने पर अधिक ध्यान देना चाहिए और गणितीय संगणना को यंत्रवत सिखाने पर कम।
(2.)स्कूल शिक्षा के सुधार से सम्बन्धित किसी भी कार्यक्रम में गणित शिक्षण को आधुनिक बनाना परमावश्यक है। लेकिन नयी पाठ्यचर्या और आधुनिक प्रणाली को हम अपने स्कूलों में धीरे-धीरे ही शुरू कर सकते हैं। इसकी गति इस बात पर निर्भर करती है कि नये गणित-शिक्षकों के प्रशिक्षण जो गणित शिक्षक पहले से ही स्कूलों में काम कर रहे हैं उनके (पुनश्चर्या और पत्राचार पाठ्यक्रम के द्वारा) पुन: प्रशिक्षण और नयी पाठ्य-सामग्रियों को तैयार करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है।
(3.)विज्ञान और गणित के पाठ्यक्रमों में और स्कूल-शिक्षा की सारी अवस्थाओं पर प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की विशेष और विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस विषय के शिक्षण की पद्धतियों में हेर-फेर की पर्याप्त गुंजाइश रखनी चाहिए।
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