Mathematician Saints Professor Mahan Maharaj
Mathematician Saints Professor Mahan Maharaj
1.गणितज्ञ संन्यासी प्रोफेसर महान महाराज (Mathematician Saints Professor Mahan Maharaj)-
Mathematician Saints Professor Mahan Maharaj |
(1.)भूमिका (Introduction) :-
इस आर्टिकल में बताया गया है कि एक योगी (संन्यासी) महान महाराज को गणित में विशिष्ट योगदान के लिए (मुबंई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट फंडामेंटल रिसर्च संस्थान में नियुक्त) इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। महान महाराज के बारे में संक्षिप्त विवरण तो इस आर्टिकल में बताया गया है और अधिक जानने के लिए गूगल पर सर्च करके जाना जा सकता है। हमारे लिए विचारणीय बात यह है कि एक योगी का अध्यात्म से सम्बन्ध होता है तो फिर अध्यात्म और गणित का मेल कैसे हो सकता है?
गणित और अध्यात्म को एक-दूसरे का विरोधी और अलग-अलग समझा जाता है जबकि वास्तविकता ऐसी नहीं है। अध्यात्म का मूल उद्देश्य सत्य को प्राप्त होना है और गणित का मौलिक उद्देश्य भी सत्य को प्राप्त करना है । जब साध्य समान है तो दोनों में विरोध कैसे हो सकता है? इनका रास्ता, तरीका व ढंग अलग हो सकता है परन्तु ध्येय समान है ।इसलिए दोनों एक दूसरे की विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। भारतीय दर्शन के अनुसार जब तक अध्यात्म को व्यवहार में नहीं लाया जाता है तब तक उसका कोई महत्त्व नहीं है इस प्रकार अध्यात्म यदि सैद्धान्तिक है तो गणित शिक्षा जीवन का व्यावहारिक पक्ष है। व्यवहार की दिशा व दशा को सही रखना अध्यात्म है।
शरीर, मन और आत्मा का संतुलित विकास ही व्यक्ति का विकास समझा जाता है जिसे कर्म, ज्ञान और भक्ति की संज्ञा दी जाती है।इसको मन, वचन और कर्म का समन्वय भी कह सकते हैं। गणित की शिक्षा (Mathematics Education) से बालक के चिन्तन, तर्क, विश्लेषण करने की योग्यता का विकास होता है जिससे व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा के संतुलित विकास में सहायता मिलती है। गणित के अध्ययन(Study of Mathematics) से अभ्यास, एकाग्रता और आत्म-संतुष्टि जैसे गुणों का विकास होता है। चिन्तन, तर्क, एकाग्रता, अभ्यास से सत्य और असत्य का निर्णय करने में सक्षम होता है. उसे सत्य का बोध होता है। आज का युग तकनीकी और वैज्ञानिक युग है तथा विज्ञान में गणित(Mathematics) एक प्रमुख विषय एवं मुख्य विषय है। यह विज्ञान की रीढ़ की हड्डी के समान है। जो व्यक्ति गणित(Mathematics) से परिचित नहीं है उसके लिए विज्ञानों और विश्व की जानकारी प्राप्त करना कठिन है।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए ।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
(2.)महान् गणितज्ञ और अध्यात्म(Great Mathematician and Spiritualism) :-
भारत तथा विश्व में ऐसे गणितज्ञ हुए हैं जो महान् दार्शनिक एवं आद्यात्मिक (Spiritual)भी थे। भारत में आर्यभट्ट प्रथम, वराहमिहिर, आर्यभट्ट द्वितीय, ब्रह्मगुप्त, महावीराचार्य, भास्कराचार्य तथा आधुनिक काल में श्री निवास रामानुजम, डाॅ गणेश प्रसाद जैसे गणितज्ञ हुए हैं और पाश्चात्य शिक्षा शास्त्रियों में हर्बर्ट, फ्राबेल, पेस्टालाॅजी, डाॅ मेरिया माण्टेसरी, टी वी नन जिनका गणित(Mathematics) के क्षेत्र में स्तुत्य योगदान रहा है। इस प्रकार गणित और अध्यात्म(Mathematics and Spiritualism) का अन्योनाश्रय सम्बन्ध है। गणित पढ़ा हुआ व्यक्ति दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, वेद, उपनिषद् जैसे विषयों को आसानी से समझ सकता है।(3.)गणित विषय का जीवन से सम्बन्ध(Relation of Mathematics Subject in Life) :-
गणित(Mathematics) का जीवन के विभिन्न विषयों से अन्त:संबंध होने के बावजूद यह प्रश्न उठाया जाता रहा है कि गणित विषय(Mathematics Subject) को पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए या फिर ऐच्छिक विषय के रूप में रखा जाए। गणित विषय(Mathematics Subject) का व्यावहारिक जीवन, आध्यात्मिक जीवन(Spiritual Life) तथा हमारे व्यवसाय में महत्वपूर्ण योगदान है। यह विषय इतना महत्वपूर्ण होते हुए भी इसको हटाने या ऐच्छिक करने की मांग क्यों उठ रही है इसका कारण है कि मानव की प्रकृति है कि उसके सम्मुख कोई कठिनाई या समस्या न आए। वह सरलतम मार्ग चुनने का प्रयास करता है। हमारे जीवन से धर्म(Religion) ,अध्यात्म (Spiritualism) जैसी बातें इसलिए ही लोप होती जा रही है। इसका दुष्परिणाम भी हमारे सामने आ रहे हैं। मानव तनावग्रस्त है, भाई-भाई में झगड़े, भ्रष्टाचार, दुराचार, नारी उत्पीड़न, चोरी, डकैती, बेईमानी अर्थात् चारों ओर असन्तोष पनप रहा है। जबकि अध्यात्म(Spiritualism) को जीवन में अपनाने से मानसिक संतोष प्राप्त होता है। इसलिए प्राचीन भारत में बुराई या बुरे कर्म बहुत ही कम मात्रा में थी। लोगों में स्नेह, सहयोग, भाईचारा, संवेदना, दया, करूणा, प्रेम, आत्मीयता होने के कारण शांति रहती थी परन्तु आज का मानव अशांत है।(4.)जीवन में गणित की उपयोगिता तथा समस्याओं का समाधान(Usefulness of Mathematics In Life and Solution of Difficulties) :-
गणित विषय(Mathematics Subject) कठिन होते हुए भी इसका हमारे जीवन में उपयोग है इसलिए इसको हटाने के बजाय इसमें उपस्थित होने वाली समस्याओं तथा कठिनाईयों का हल करना है। यदि समस्याएं स्वयं के प्रयास करने पर भी हल नहीं होती है तो शिक्षक की सहायता से हल की जा सकती है। विद्यालय में हल करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता है तो कोचिंग सेंटर की सहायता या सोशल मीडिया की सहायता से अभ्यास का हल किया जा सकता है। चुनौतियां, मुसीबतें तथा समस्याएं एक दृष्टि से हमारे लिए अच्छी होती है क्योंकि विपत्ति में हम, हमारा मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है तथा एकाग्रता बढ़ती है उस समय हमें हर पल परमात्मा ही याद आता है। ऐसी स्थिति में विपत्ति या समस्याओं का समाधान कुछ न कुछ जरूर निकलता है। विपत्तियों में मनुष्य निखरता है जिस प्रकार सोने को बार बार तपाने और कूटने से उसकी अशुद्धता दूर होती है। उसी प्रकार विपत्तियों में हमारे अशुभ कर्मों का क्षय होता है और हमारा हृदय पवित्र और शुद्ध हो जाता है।2.अध्यात्म (Spiritualism) :-
(1.)अध्यात्म(Spiritualism) का अर्थ :-
अध्यात्म(Spiritualism) से तात्पर्य आत्मा, परमात्मा, मोक्ष, जीवन मुक्ति, पुनर्जन्म का अध्ययन करना। इस प्रकार अध्यात्म (Spiritualism ) से तात्पर्य है कि व्यक्ति के अपने अस्तित्व, स्वभाव में अन्तर्बोध का होना।(2.)अध्यात्म का महत्त्व (Importance of Spiritualism) :-
जिस व्यक्ति को अध्यात्म(Spiritualism) का ज्ञान नहीं है, वह न केवल खराब व्यक्ति होता है बल्कि एक मूढ़, अनुत्तरदायी और खतरनाक व्यक्ति हो सकता है।अध्यात्म(Spiritualism) प्रत्येक व्यक्ति में उसमें अन्तर्निहित परमात्मा की न केवल अनुभूति कराने में सहायक होती है बल्कि इसका व्यावहारिक महत्त्व भी है। वस्तुतः शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक समस्याओं का क्षेत्र इतना विस्तृत है जिसे ठीक से समझे बिना कोई भी व्यक्ति ज्ञानवान या सभ्य नहीं बन सकता है। मनुस्मृति में भी श्रेष्ठ विद्या वाले को ही अधिक महत्त्व दिया गया है उसमें कहा गया है कि -
"धन, बंधु(कुटुंब, कुल), आयु, उत्तम कर्म, श्रेष्ठ विद्या ये पाँच मान के स्थान है परन्तु धन से उत्तम बन्धु, बन्धु से अधिक आयु, आयु से श्रेष्ठ कर्म और कर्म से पवित्र विद्या वाले अधिक माननीय है।
(3.)अध्यात्म शिक्षा मनुष्य का आभूषण(Spiritualism the Ornament of Man) :-
अध्यात्म शिक्षा तो व्यक्ति को इतने ऊँचे आसन पर बिठा देती है कि जिसके सामने सभी लोगों का मस्तक झुक जाता है। डिग्री अर्थात् प्रमाण पत्र प्राप्त करना ओर बात है परन्तु सच्ची प्रतिष्ठा तो शिक्षा से ही मिलती है। इस प्रकार संयम चरित्र की रक्षा करना, धर्म की भावना जागृत करना, अपने आपको सुधारना एवं चरित्रवान बनाना शिक्षा का ध्येय है।(4.)गणित शिक्षा और अध्यात्म का समन्वय Coordination of Mathematics Education and Spiritualism) :-
विद्वानों की कमी अभी भी नहीं है फिर चारों ओर वैमनस्य, दुराग्रह, कलह, विघटन क्यों बढ़ता जा रहा है कारण यही है कि चरित्रवानों की कमी है। इसलिए शिक्षा के साथ अध्यात्म शिक्षा का समन्वय आवश्यक है। केवल शिक्षा प्राप्त करना जिसको दिशा का ज्ञान नहीं है वह किसी भी दिशा में जाकर सृजन या विनाश की ओर दौड़ सकता है। यदि उसे अध्यात्म का सहारा मिल जाए तो सृजन अन्यथा विनाश है।जिन विद्यार्थियों के जीवन में उच्च आध्यात्मिक आदर्श नहीं होते हैं। अपनी आजीविका के लिए विद्याध्ययन करते हैं वे केवल वेतन या धन प्राप्त करने के लिए पढ़ते हैं। इस प्रकार के विद्यार्थियों का जीवन क्षेत्र में उतरने से पहले ही दीवाला निकल जाता है। वे जीवन में आनेवाली समस्याओं को ठीक से समझ नहीं पाते हैं तो उनका निवारण करना तो बहुत दूर है।
(5.)गणित शिक्षा तथा अध्यात्म दूसरे के पूरक (Mathematics Education and Spiritualism both are supplementry):-
विद्या अर्जित करने से तात्पर्य है आत्मज्ञान, धर्म और अध्यात्म। शिक्षा जीवन के बाह्य प्रयोजनों को पूर्ण करती है अर्थात् साहित्य, विज्ञान, कला, उद्योग, स्वास्थ्य, समाज आदि विषय शिक्षा की सीमा में आते हैं। अध्यात्म का क्षेत्र इससे आगे है - आत्मबोध, आत्मनिर्माण, कर्त्तव्यनिष्ठा, सदाचरण आदि इसी सीमा में आते हैं जो चिन्तन व दृष्टिकोण को उन्नत करती है।अध्यात्म मनुष्य के गुण, कर्म, स्वभाव को उन्नत करके स्वार्थ से परमार्थ की ओर हमें ले जाती है। केवल शिक्षा अर्जित करना समय व धन की बर्बादी करना है जो दिन में बहुत सुंदर सुन्दर सपने दिखाती है जिसका परिणाम है संसार में भटकना। जिन्हें सचमुच में अध्यात्म से प्रेम है उन्हें बुद्धि, प्रतिभा, समय, श्रम और धन को अध्यात्म शिक्षा में लगाना चाहिए।
(6.)अध्यात्म शिक्षा के प्रति रूचि का अभाव और उसके परिणाम(Absence of Interest in Spiritualism and their effects) :-
अध्यात्म शिक्षा के प्रति रूचि क्यों नहीं है क्योंकि इसका प्रत्यक्ष लाभ दिखाई नहीं देता है दूसरा कारण यह है कि विद्यार्थियों की मनोवृत्ति है कि पढ़ाई पूरी करते ही कोई ऊँची नौकरी मिलेगी और उसके लिए डिग्री की आवश्यकता है। वे यह भूल जाते हैं कि चाहे नौकरी ही प्राप्त करनी हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र हो उसे प्रतिभा की आवश्यकता पड़ती है साथ ही गुण, कर्म, स्वभाव की उत्कृष्टता की आवश्यकता होती है।प्रमाण पत्र प्राप्त करने के के फेर में विद्यार्थियों की प्रतिभा छिपी हुई रह जाती है। संसार के प्रत्येक मनुष्य में महान पुरुष होने की योग्यता होती है यदि ऐसा न होता तो एक साधारण से अनपढ़ मजदूर का बेटा अब्राहम लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति कैसे हो सकता था, एक साधारण जिल्दबाज की नौकरी करनेवाला लड़का माइकल फैराडे वैज्ञानिक कैसे बनता। आवश्यकता है साधना, कठोर परिश्रम एवं अध्यवसाय द्वारा प्रतिभा को जगाने और काम में लाने की।
(7.)अध्यात्म में बाधा और उसका समाधान(Barrier in Spiritualism and his Solution) :-
अध्यात्म(Spiritualism) को प्राप्त करने में सबसे बड़ी रूकावट मन की है, मन को यदि यदि सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय हो तो मन को इसके लिए तैयार किया जा सकता है आलसी मन को कर्मठ बनाने के लिए इसको नियन्त्रण में करना होगा। दृढ़ता से जिसने मन को जीत लिया उसके लिए विद्या प्राप्त करना सरल हो जाता है। मनुष्य यदि प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा अभ्यास करता रहे तो कुछ ही समय में ज्ञान का भण्डार हो जाएगा।आत्मिक प्रगति साधना, तप, स्वाध्याय, सत्संग, संयम, सेवा द्वारा संभव है। सत्संग का तात्पर्य यह नहीं कि बुरे लोगों से सम्पर्क न रखा जाए तथा अच्छे लोगों से सम्पर्क रखा जाए। संसार सागर में भलाई और बुराई दोनों आपस में गुँथी हुई है। वे इतनी दूरी पर नहीं है कि बुराई तथा भलाई को अलग-अलग पंक्तियों में खड़ा किया जा सके। सर्वथा सज्जन या दुर्जन कोई नहीं है। इसलिए न तो आत्मसमर्पण किया जाए और न सर्वथा किसी को अनुपयोगी ठहराया जाए। अति के दोनों सिरे खतरनाक है।हर सज्जन में कोई दुर्गुण हो सकता है और हर दुर्जन में कुछ न कुछ विशेषता होती है। अपने विवेक का प्रयोग करके इतना ही सोचना चाहिए कि बुराइयों के दुष्परिणाम समझे और अच्छाईयों की सुखद समभावनाओ का सही ढंग से मूल्यांकन कर उन्हें जीवन में अपनाए।
सारांश यह है कि यह है कि यह अध्यात्म (Spiritualism) का ही चमत्कार है कि जो मानव को प्रबुद्ध, प्रवीण और महामानव बनाती है। इसके अभाव में देखा जा सकता है कि वनवासी कबीले वर्तमान काल में भी निम्न परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं।
3.गणित शिक्षा और अध्यात्म(Mathematics Education and Spiritualism) :-
(1.)गणित शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षा(Mathematics Education and Spiritualism) :-
गणित शिक्षा, वह शिक्षा है जो वर्तमान में स्कूल-काॅलेजों में पढ़ाई जाती है जिससे पढ़कर विद्यार्थी डिग्री हासिल करके वकील, इंजीनियर, प्रोफेसर, अफसर, क्लर्क आदि बनते हैं।यह जीविकोपार्जन तथा सांसारिक सम्बन्धों का निर्वाह करने के लिए आवश्यक है ।इसके बिना सांसारिक जीवन में विकास व उन्नति का मार्ग नहीं खुलता है।शिक्षा का उद्देश्य है व्यक्तित्व का सर्वागींण विकास इसमें सम्मिलित है सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक, नैतिक विकास एवं आत्मानुभूति।इस प्रकार गणित शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के एक पक्ष का ही विकास हो सकता है, व्यक्ति में पूर्णता के लिए अध्यात्म भी जरूरी है ।अध्यात्म से व्यक्ति में अपने अस्तित्व का बोध प्रेम, स्नेह, सोहार्द, सहिष्णुता, सहयोग, दया, करुणा जैसे गुणों का विकास होता है ।इन गुणों से ही व्यक्ति को आत्मिक सुख-संतोष प्राप्त होता है ।(2.)वर्तमान स्थिति(Present Position) :-
वर्तमान समय का अवलोकन करे तो भाई-भाई में लड़ाई-झगड़े, असंतोष, दँगें-फसाद, अशांति, लूटपाट, चोरी-डकैती, दुराचार, व्यभिचार, जैसी विकृतियां व्याप्त है।उक्त समस्याओं को देखते हुए अध्यात्म की आवश्यकता अधिक है ।अध्यात्म की प्राप्ति साधना, उपासना, सत्साहित्य का स्वाध्याय, सत्संग, मनन, चिन्तन द्वारा प्राप्त की जा सकती है ।आज गणित शिक्षा के वृद्धि तो निरन्तर हो रही है परन्तु अध्यात्म-शिक्षा की उपेक्षा हो रही है ।वर्तमान युग के विद्वानों का विचार है कि व्यक्ति के लिए भौतिक शिक्षा पर्याप्त है इसलिए शिक्षा संस्थानों का कार्य भी सीमित ही रह गया है ।शिक्षा संस्थान साक्षरता से प्रारम्भ करके स्नातक की डिग्री देकर अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं परन्तु विद्यार्थी की चेतना सुप्त ही रह जाती है जिसके अभाव में उक्त शिक्षा अधूरी ही है ।
(2.)गणित शिक्षा तथा आध्यात्मिक शिक्षा का अपना अपना महत्त्व(Importance of both Mathematics Education and Spiritualism) :-
भौतिक सुख-साधन प्राप्त करने के लिए हमें भौतिक शिक्षा की जरूरत है जबकि आत्मिक शान्ति के लिए आध्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकता है ।भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करके मनुष्य धनवान्, गुणवान् बन सकता है परन्तु आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत करने का कितना महत्त्व है इसको समझने में हम असमर्थ हैं ।किसी समाज, देश की गरिमा केवल भौतिक उपलब्धियों से नहीं आँकी जा सकती है बल्कि वास्तविक सम्पदा वहाँ उस समाज, देश के चरित्रवान एवं आदर्शवादी नाग ही होते हैं
मनुष्य, मनुष्य इसलिए है कि उसमें आत्मा का निवास है, स्वतंत्र संकल्प शक्ति है जो कि परमात्मा की सर्वोत्कृष्ट कृति है ।अतः व्यक्ति का परम लक्ष्य आत्मानुभूति करना, चैतन्य का बोध होने में है ।इसी संकल्प शक्ति व चेतना के बल पर वह वातावरण को नियन्त्रित कर सकता है जबकि पशु वातावरण को विवशतापूर्वक स्वीकार करता है ।बालक में स्वतंत्र संकल्प शक्ति ही इस बात का प्रमाण है कि वह जो बनना चाहे बन सकता है।
(3.)मनुष्य का क्रमोत्तर विकास(Post Order Development of Man) :-
बालक का निम्न स्तर पर शारीरिक तथा जैविक विकास होता है जो आत्मानुभूति की प्रथम सीढ़ी है ।दूसरी सीढ़ी सामाजिक हित के लिए त्याग करना सम्मिलित है ।तीसरी सीढ़ी में बालक का बौद्धिक विकास सम्मिलित है जिसमे सामाजिक स्वीकृति तथा अस्वीकृति के कारण बालक का व्यवहार नियन्त्रित नहीं होता है बल्कि तर्क और विवेक बुद्धि के द्वारा नियन्त्रित होता है ।उसका आचरण चिन्तन तथा विवेकपूर्ण हो जाता है ।चौथी सीढ़ी आध्यात्मिक अनुभूति करना है जिसमें सम्पूर्ण व्यक्तित्व का रूपान्तरण हो जाता है तथा बालक के क्रियाकलाप स्वाभाविक होते हैं वे शारीरिक सुख, सामाजिक स्वीकृति और बौद्धिक तृप्ति के लिए नहीं होते हैं ।आत्मानुभूति(Spiritualism) के द्वारा ही विश्वात्मा का अनुभव किया जाता है जिसे भारतीय शास्त्रों में सत्यम शिवम सुन्दरम के रूप में वर्णित किया गया है ।सत्य परिवर्तन में नहीं है अपूर्ण भौतिक जगत में नहीं है वह कालातीत, सार्वभौमिक, शाश्वत है, चरम है, अविनाशी है तथा सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है ।शिवम अर्थात् कल्याणकारी है परंतु भौतिक जगत में देखना कल्याण नहीं है बल्कि भ्रम है ।शिव तो परम शिव में है।इसी प्रकार सुन्दरता संसार के पदार्थों में दिखाई देती है तो व्यक्ति प्रसन्न होता है किन्तु सुन्दर पदार्थ तो नष्ट हो सकते हैं परन्तु सौंदर्य नष्ट नहीं होता है ।इस प्रकार शिक्षा का मूल उद्देश्य सत्यम शिवम सुन्दरम ही होना चाहिए ।
4.गणितज्ञ संन्यासी प्रोफेसर महान महाराज (Mathematician Saints Professor Mahan Maharaj)-
Mathematician Saints Professor Mahan Maharaj |
Updated: 22 नवम्बर, 2015
गणित के लिए 65 लाख का इनाम जीतने वाले इस संन्यासी के लिए 'विज्ञान ही है धर्म'
मुंबई:
कुछ दिनों पहले तक इस तपस्वी साधु प्रोफेसर महान महाराज के पास बस एक बैंक खाता था, जिसमें कुछ हजार रुपये पड़े थे, लेकिन आज ज्यामिति में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए 65 लाख रुपये के पुरस्कार से नवाजा गया है।
अभी हाल ही में मुंबई स्थित प्रसिद्ध टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च संस्थान में नियुक्त हुए इस बेहद सम्मानित प्रोफेसर को गणित के क्षेत्र में इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ये पुरस्कार उन्हें 'ज्यामितीय समूह सिद्धांत, न्यून आयामी टोपोलॉजी और जटिल ज्यामिति के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए' दिया गया है।
पीएचडी करने के दौरान बन गए संन्यासी
साल 1998 में प्रोफेसर महान 47 साल की उम्र में संन्यासी बन रामकृष्ण मिशन के मठ से जुड़ गए। उस वक्त वह कैलिफोर्निया में पीएचडी कर रहे थे।
एक ही वक्त में विज्ञान और आस्था दोनों को साथ लेकर चलने वाले प्रोफेसर महान को इसमें कुछ भी बेतुका नहीं लगता। वह कहते हैं, 'मेरे गणितीय जीवन के संदर्भ में बात करें तो इसमें बिल्कुल कोई विरोधाभास नहीं है।' वह कहते हैं कि वह गेरुआ वस्त्र इसलिए पहनते हैं कि यह उन्हें तपस्वी जीवन शैली की याद दिलाता है और इसका धर्म से ना के बराबर नाता है। वह कहते हैं, 'मैं किसी संगठित धर्म का पालन नहीं करता। अगर आप मेरे सिर पर बंदूक रख कर (मेरा धर्म) पूछेंगे तो शायद मैं विज्ञान कहूं।'
साल 2011 में भारत के सर्वोच्च विज्ञान सम्मान शांति स्वरूप भटनागर अवार्ड जीत चुके इस संन्यासी प्रोफेसर की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं। वह कहते हैं, 'हम बिल्कुल अराजनीतिक हैं। विज्ञान स्वभाव से ही अराजनैतिक है।'
वंचितों तक विज्ञान ले चाहते हैं प्रोफेसर महान
प्रोफेसर महान, जिनका एक गणितज्ञ के रूप में पसंदीदा शगल अमूर्त आवर्ती आकारों के साथ खेलना है, एक चैरिटेबल ट्रस्ट स्थापित करना चाहते हैं, जिसका मकसद वंचित तबके के छात्रों को मौलिक विज्ञान पढ़ाना होगा।
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