The Toughest Competition Problem In The World And How You Can Solve It
The Toughest Competition Problem In The World And How You Can Solve It
भारतीय संस्कृति में समस्याओं का हल करने के लिए शास्त्रार्थ, वार्ता, वाद-विवाद का आयोजन किया जाता था। यह संस्कृति की अद्भूत और विशिष्ट देन है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में समस्या समाधान विधि का प्रयोग करके समस्याओं का हल ज्ञात किया जाता है।
हम चिंतन, मनन, तर्क-शक्ति का प्रयोग करके गणित की समस्याओं का समाधान ज्ञात कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति में चिंतन, मनन, विवेक और अन्त:प्रज्ञा के बल पर समस्याओं का समाधान किया जाता है। भारतीय ऋषियों और सन्तों ने इनका प्रयोग करके बहुत ही आश्चर्यजनक सिद्धान्त प्रस्तुत किया है और अपने चरित्र में उन सिद्धान्तों का पालन करके इस तरह के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं कि ये सिद्धान्त कोरी कल्पना मात्र नहीं है बल्कि यथार्थ में इनका पालन किया जा सकता है। हमारा अन्त:करण जितना पवित्र होता जाता है हम गणितीय समस्याओं का सटीक और सही समाधान करने में सक्षम होते जाते हैं।
मैथेमेटिक्स ओलम्पियाड की शुरुआत इसी भावना और उद्देश्य को लेकर की गई है जिसके अच्छे परिणाम भी प्राप्त हुए हैं। हमें ऐसे प्लेटफार्म का उपयोग अच्छी भावना और उद्देश्य के साथ करना चाहिए जिससे गणित जनहित व लोककल्याण के लिए किया जा सके। मानव मात्र की भलाई के लिए ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित व बढ़ावा देना चाहिए।
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IMO समस्या 6 हल करने वाले छात्रों में से एक ने फील्ड्स मैथ्स में सबसे प्रतिष्ठित पदक- फील्ड्स जीता! गणित में कुछ कठिन समस्याएं सदियों से अनसुलझी हैं। इस लेख में समस्या को दूर-दूर तक ज्ञात ओलंपियाड समस्याओं में से एक के रूप में जाना जाता है। इसके बावजूद, यह केवल साढ़े चार घंटे तक अनसुलझा रहा। वह भी, इसे 11 हाई स्कूलर्स द्वारा हल किया गया था।
अंतर्राष्ट्रीय गणितीय ओलंपियाड (IMO) दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित गणित ओलंपियाड में से एक है। 100 से अधिक देशों ने प्रतियोगिता में उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए 1-6 पूर्व-विश्वविद्यालय के छात्रों को भेजा, जिसमें दो दिनों के अंतराल में 6 समस्याओं का प्रयास किया जाता है। प्रतियोगिता में समस्याएं हाई स्कूल गणित पर आधारित हैं, और इस प्रकार "गणित की बुनियादी समझ के साथ किसी के लिए भी सुलभ है" - अगर आपको लगता है कि एएमसी कठिन था, तो ये प्रश्न आपके दिमाग को उड़ा देंगे।
IMO 1988 प्रश्न 6 एक प्रसिद्ध संख्या सिद्धांत समस्या है:
समस्या पहली बार में प्राथमिक लगती है, लेकिन अभिव्यक्ति के समाधानों की विशाल संख्या को देखने के बाद, आप महसूस करेंगे कि समस्या असहनीय है।
आज, उम्मीद है कि हम समस्या को हल करने में सक्षम होंगे और गणितज्ञों के छोटे समूह में शामिल होकर प्रश्न 6 को हरा सकते हैं!
समस्या के दृष्टिकोण के लिए, हमें समाधान की समरूपता पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि समाधान जोड़ी (ए, बी) समाधान जोड़ी (बी, ए) के समान ही मूल्यांकन करती है। इसका मतलब यह है कि हम मान सकते हैं कि एक assume बी।
अब, हमें दी गई जानकारी से एक समीकरण बनाने की जरूरत है:
निम्नलिखित संबंध भी उल्लेखनीय है:
इससे, हमारे पास एक दिलचस्प बीजगणितीय अभ्यास है। वो दिखाओ:
इसके साथ, हम एक असमानता बना सकते हैं जो हमें एक सामान्य प्रकार के फ़ंक्शन को खोजने की अनुमति देगा जो समस्या का समाधान उत्पन्न करता है। हम अनुमान लगा सकते हैं कि kb - b <kb, और kb - b <a: के बाद से
हमें इस असमानता को साबित करने की जरूरत है। हमने पहले ही बाईं ओर दिखाया है, अब हमें दाईं ओर साबित करने की आवश्यकता है। (संकेत: विरोधाभास और उपरोक्त समीकरणों द्वारा एक प्रमाण का उपयोग करें)
इसके साथ, हम एक समीकरण बना सकते हैं जो kb के साथ समीकरण बनाता है, एक प्राकृतिक संख्या शेष r को घटाता है:
इस से, बीजीय हेरफेर का एक और मुकाबला देता है:
इस प्रकार:
हमने जो किया है वह किसी दिए गए k के लिए एक और समाधान युग्म (r, b) है। यह देखते हुए कि समाधान सममित-युग्म हैं (a, b) एक ही चीज़ का मूल्यांकन करते हैं जैसे समाधान युग्म (b, a) - हम (a, b) के मानों को बदल सकते हैं और फिर से r = kb - जब तक r = 0 , चूंकि 0≤r <b≤a।
जब हम अंततः r = 0 पर पहुंच जाते हैं, तो हम इसे उपरोक्त अभिव्यक्ति में स्थानापन्न कर सकते हैं:
हमने दिखाया है कि k = b², इस प्रकार k एक वर्ग संख्या है!
हालांकि यह प्रमाण विधि "सही" प्रमाण नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से आपको 1988 में उस प्रश्न पर वापस अंक देगा। आशा है कि आपको गणित के साथ अनुसरण करने में मज़ा आया!
1.दुनिया में सबसे कठिन प्रतियोगिता समस्या है - और आप इसे कैसे हल कर सकते हैं का परिचय (Introduction of The Toughest Competition Problem In The World And How You Can Solve It)-
इस आर्टिकल में बताया गया है कि गणित की अनसुलझी हुई समस्याओं को मैथेमेटिक्स ओलम्पियाड में प्रस्तुत किया जाता है और उनके समाधान, मैथेमेटिक्स ओलम्पियाड में भाग लेने वाले प्रतिभागियों से करवाए जाते हैं।भारतीय संस्कृति में समस्याओं का हल करने के लिए शास्त्रार्थ, वार्ता, वाद-विवाद का आयोजन किया जाता था। यह संस्कृति की अद्भूत और विशिष्ट देन है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में समस्या समाधान विधि का प्रयोग करके समस्याओं का हल ज्ञात किया जाता है।
हम चिंतन, मनन, तर्क-शक्ति का प्रयोग करके गणित की समस्याओं का समाधान ज्ञात कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति में चिंतन, मनन, विवेक और अन्त:प्रज्ञा के बल पर समस्याओं का समाधान किया जाता है। भारतीय ऋषियों और सन्तों ने इनका प्रयोग करके बहुत ही आश्चर्यजनक सिद्धान्त प्रस्तुत किया है और अपने चरित्र में उन सिद्धान्तों का पालन करके इस तरह के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं कि ये सिद्धान्त कोरी कल्पना मात्र नहीं है बल्कि यथार्थ में इनका पालन किया जा सकता है। हमारा अन्त:करण जितना पवित्र होता जाता है हम गणितीय समस्याओं का सटीक और सही समाधान करने में सक्षम होते जाते हैं।
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2.भारत में परम्परागतअधिगम (Learning)-
(1.)सीखना (अधिगम) Learning :-
भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अनुसार बालक माता के गर्भ से ही सीखना प्रारंभ कर देता है और आजीवन यह सीखने की प्रक्रिया जारी रहती है. सीखने की कोई निश्चित उम्र नहीं होती है, न कोई समय तथा स्थान होता है. कोई भी मनुष्य कहीं भी, कभी भी और किसी से भी सीख सकता है. माता-पिता, भाई-बहन, मित्र-अमित्र, परिचित और अपरिचित आपस में सीख सकते हैं. अभिमन्यु ने अपनी माता सुभद्रा के गर्भ में ही चक्रव्यूह का भेदन सीख लिया था.
यहां तक कि हम मनुष्यों से ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों से भी सीख सकते हैं या कि सीखते हैं. शेर से आत्मनिर्भरता अर्थात् वह अपने बल पर ही शिकार करता है दूसरे के शिकार किये हुए का भक्षण नहीं करता है और शिकार करने के लिए पूरी शक्ति लगा देता है, बगुले से हम ध्यान सीख सकते हैं वह सरोवर के किनारे एकाग्रता से मछली की प्रतीक्षा करता है और शिकार कर लेता है इसी प्रकार हम बगुले से इन्द्रियों को वश में करके एकाग्रचित्त होकर अपने कार्य को सिद्ध कर सकते हैं ,चींटी से परिश्रम, मुर्गे से चार बाते यथासमय जागना, युद्ध के लिए तैयार रहना, बन्धुओं को उनका हिस्सा देना और आक्रमण करके भोजन करना सीख सकते हैं. छिपकर मैथुन करना, धृष्टता (ढीठपन), समय समय पर संग्रह करना, निरन्तर सावधान रहना और किसी पर विश्वास न करना इन पांच बातों को कोए से सीखना चाहिए. बहुत खाने की शक्ति रखना, न मिलने पर थोड़े में ही सन्तोष कर लेना, गाढ़ निद्रा में सोना, तनिक सी आहट से ही जाग जाना, स्वामी भक्ति और शूरवीरता ये छ: गुण कुत्ते से सीखना चाहिए. अत्यन्त थक जाने पर भी बोझ ढोते जाना, सर्दी-गर्मी की परवाह न करना और सदा सन्तोष से जीवन बिताना इन तीन गुणों को गधे से सीखना चाहिए.
दत्तात्रेय जी को ज्ञान प्राप्ति के लिए तप साधना करने के पश्चात् भी अन्तर्बोध नहीं हुआ. वे कई साधु सन्तों, गुरुओं के पास गये पर कहीं भी सन्तोष नहीं हुआ क्योंकि क्योंकि उनको आत्मज्ञान नहीं हुआ. अन्त में वे ब्रह्मा जी के पास गये तथा अपनी जिज्ञासा ब्रह्मा जी को बताई. ब्रह्मा जी ने दत्तात्रेय को कहा कि प्रकृति में प्रत्येक जीव तथा प्रकृति को देखकर अन्तर्ज्ञान हो सकता है, आवश्यकता है अपने अन्त:करण को पवित्र एवं शुध्द करने की. इसके पश्चात प्रकृति की छोटी-छोटी घटनाओं का निरीक्षण करने के पश्चात अध्यात्म ज्ञान की सिद्धि कर ली. पश्चात् सामान्य व्यक्ति से लेकर राजा तक प्रत्येक व्यक्ति को अध्यात्म का संदेश पहुंचाया.
एक बार राजा यदु ने दत्तात्रेय जी से पूछा महात्मन्! संसार के अधिकांश लोग काम, क्रोध, लोभ इत्यादि के वशीभूत होकर दु:खी है तो आपने जीवन्मुक्त की अवस्था कैसे प्राप्त की? तब दत्तात्रेय जी ने कहा कि चेतना की अनुभूति के लिए किसी अकेले गुरु से काम नहीं चलता उसके लिए व्यक्ति को अन्दर जो गुरु आत्मा के रूप में विराजमान है उसकी शरण में जाना होता है. इस सद्गुरु के माध्यम से मुझे 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त हुई.. उनमें पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, समुद्र, पतंग, भौंरा, हाथी, मधुमक्खी, हिरण, मछली, पिंगलावेश्या, कुरर पक्षी, बालक, कुमारी कन्या, बाग बनाने वाला, सर्प और भृंगी कीट है. महाराजा यदु ने कहा कि ये सब तो जड़ और निर्बुद्धि हैं, इनसे शिक्षा कैसे प्राप्त हुई. दत्तात्रेय जी ने बताया कि जड़ और निर्बुद्धि होते हुए भी प्रकृति उस परमात्मा की लीला ही तो है, आवश्यकता है अपने अन्त:करण को निर्मल करने की.
उन्होंने कहा कि पृथ्वी से मैंने धैर्य और क्षमा की शिक्षा ली.लोग पृथ्वी पर कितना उत्पात करते हैं और चोट पहुंचाते हैं पर वह न तो किसी से बदला लेती है और सहन करती है,, इसी प्रकार धीर पुरुष को को चाहिए कि दूसरों की मजबूरी को समझकर न तो क्रोध करें और न धैर्य खोए.
वायु से शिक्षा ली कि वह कहीं आसक्त नहीं होती और किसी का भी गुणदोष नहीं अपनाती. वैसे ही साधक को भी किसी का दोष ग्रहण न करे और न किसी से आसक्ति व द्वेष करें.
आकाश से मैंने यह जाना कि जितने भी चल-अचल पदार्थ है उनका आश्रय स्थान एक ही है आकाश. उसी प्रकार जितने भी चर-अचर जीव है उनमें आत्मा सर्वत्र व्याप्त है.
जल का स्वभाव स्वच्छ, मधुर और पवित्र है जिससे यह प्रेरणा प्राप्त की कि साधक को स्वभाव स्वच्छ, शुद्ध और पवित्र रखना चाहिए.
अग्नि तेजस्वी और ज्योतिर्मय है उसके तेज को कोई दबा नहीं सकता तथा उसके पास संग्रह के लिए कोई पात्र नहीं है, वह सब कुछ भस्म कर देती है. वह भले बुरे सभी पदार्थों को भस्म कर देने पर भी किसी दोष से लिप्त नहीं होती है. इसी प्रकार साधक को भी तेजस्वी व इंद्रियों को नियंत्रण में रखना चाहिए उनमें आसक्ति न रखें.
चन्द्रमा की गति काल के प्रभाव से घटती बढ़ती रहती है परन्तु वस्तुतः वह न तो घटता है, न बढ़ता है. वैसे ही जन्म से लेकर मृत्यु तक शरीर की अवस्थाएं बदलती है आत्मा का उससे कोई सम्बन्ध नहीं है.
सूर्य अपनी किरणों से पृथ्वी का जल सोखकर और समय पर बरसाता है. वैसे ही योगी पुरुष समय पर विषयों को ग्रहण और त्याग करते हैं किंतु सूर्य की भाँति आसक्त नहीं होते हैं.. अजगर से मैंने सीखा कि साधक को हर परिस्थिति में संतुष्ट रहना चाहिए. समुद्र, वर्षा ऋतु में नदियों की बाढ़ के कारण न तो बढ़ता है और न ही ग्रीष्म ऋतु में जब नदियां सूखने लगती है तो घटता ही है. उसी प्रकार साधक को सांसारिक पदार्थों के प्राप्त होने पर न तो खुश होना चाहिए और न ही उनके नष्ट हो जाने पर खिन्न होना चाहिए.
पतंगा दीपक के रूप पर मोहित होकर उस पर कूदता है और जल कर भस्म हो जाता है. वैसे ही जो व्यक्ति इंद्रियों को वश में नहीं रखता वह नाशवान पदार्थों में फँसा रहता है. वह अपनी विवेक बुद्धि खोकर पतंगें के समान ही नष्ट हो जाता है.
भौंरा पुष्पों से उनका सार ही ग्रहण करता है उसी प्रकार बुद्धिमान पुरुष सभी शास्त्रों से उनका सार मात्र ही ग्रहण करें.
हाथी काठ की हथिनी को देखकर ही शिकारियों द्वारा खोदे गए गड्ढे में गिरता है और मृत्यु को प्राप्त होता है. इसी प्रकार काष्ठ मूर्ति में भी साधक की आसक्ति उसके पतन का कारण बन जाती है.
लोभी मधुमक्खी प्रयत्नपूर्वक रस का संचय करती है जिसे अन्य लोग ही उपयोग में लेते है. उसी प्रकार लोभी व्यक्ति का संचित धन का दूसरे लोग ही उपभोग करते हैं.
हिरण सुरीली यंत्रों के कारण श्रवणेन्द्रिय के विषयों में आसक्त होकर अपने प्राण गँवाता है उसी प्रकार साधक को श्रवणेन्द्रिय की आसक्ति पतन की ओर ले जाती है.
मछली काँटें में फँसे हुए माँस के टुकड़े में अपने प्राण गँवा देती है वैसे ही स्वाद का लोभी मनुष्य भी अपनी जीभ के वश में होकर मारा जाता है.प्राचीनकाल में विदेह नगरी में पिंगला नाम की वेश्या थी. वह हमेशा धन प्राप्ति की कामना रखती थीं और सोचा करती थी कि कोई धनिक पुरुष आकर उसे अपना धन दे जायेगा. एक दिन वह आधी रात इसी तरह प्रतीक्षा करती रही और उसका मुँह सूख गया. उसे निराश होना पड़ा जिसके कारण उसे वैराग्य हो गया. इससे मैंने सीखा कि दूसरों से आशा करना दु:ख का कारण है. दूसरों से आशा न करके खुद के प्रयत्नों पर निर्भर रहना सबसे बड़ा सुख है. उस रात जब पिंगला ने दूसरों से आशा करना छोड़ दिया तो वह सुख की नींद सो सकी.
एक बार किसी कुमारी कन्या के घर, वर और उसके घर वाले पहुँचे. संयोग कन्या के घर वाले कहीं गये हुए थे. इसलिए कन्या ने स्वयं ही उनका सम्मान किया और उनको भोजन कराने के लिए धान कूटने लगी. धान कूटते समय उसकी कलाई की चूड़ियाँ बज रही थी जिससे उसे लज्जा महसूस हुई. उसने एक-एक करके सारी चूड़ियाँ उतार दी केवल एक ही रखी. मैंने यह शिक्षा ग्रहण की कि साधक के चित्त में बहुत सी वृत्तियां हों तो उसका मन चलायमान रहता है वह ठीक से कोई कार्य नहीं कर पाता है. इसलिए साधक को चित्त में एक ही ध्येय रखना चाहिए.
एक बार एक व्यक्ति बाण बनाने के अपने काम में इतना एकाग्र था कि उसके पास से ही राजा की सवारी निकल गई पर उसे पता ही नहीं चला. साधक भी संसार के कोलाहल तथा उथल पुथल से विचलित न होकर अपने लक्ष्य में एकाग्रचित्त रहे.
कोई पक्षी अपनी चोंच में माँस का टुकड़ा लिए बैठा था. दूसरे पक्षियों ने छीनने के लिए उसे चोंचों से मारना प्रारंभ कर दिया. जब उस पक्षी ने माँस का टुकड़ा फेंक दिया तो कष्ट से मुक्त हो गया. इससे मैंने यह शिक्षा ली कि समस्या के कारण को छोड़ देना चाहिए क्योंकि वह दूसरों के मन में ईर्ष्या को जन्म देता है.
साँप से मैंने यह शिक्षा ली कि मठ या मण्डली बनाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.
मकड़ी बिना किसी सहायक के अपने ही मुँह के तारों द्वारा जाला बना लेती है, उसी में घूमती फिरती है और फिर उसे ही निगल जाती है. परमात्मा भी बिना किसी सहायक के अपनी माया से इस ब्रह्मांड की रचना करते हैं और उसमें जीवरूप से भ्रमण करते हैं और अपने आपको ही लीन करके अंत में अकेले शेष रह जाते हैं. भृंगी किसी कीट को पकड़कर अपने रहने के स्थान में बन्द कर देता है और कीड़ा भय से उसी का चिन्तन करते करते उसके रूप का हो जाता है उसी प्रकार साधक को भी केवल परमात्मा का ही चिन्तन करके परमात्मा रूप हो जाना चाहिए.
विवेक और वैराग्य की शिक्षा देने के कारण यह शरीर भी एक गुरु है यद्यपि यह शरीर नष्ट होनेवाला है लेकिन इससे मोक्ष(मुक्ति) को उपलब्ध हुआ जा सकता है. यदि व्यक्ति जिज्ञासु हो और तीव्र लगन हो तो ज्ञान की प्राप्ति प्रकृति व इसमें रहनेवाले जीव-जंतुओं से हो सकती है.
समस्या समाधान तब सम्भव होता है जब जीवन में हमारे सामने कोई बाधा उत्पन्न होती है या एक रचना रहित क्षेत्र हमारे सम्मुख आता है तो समस्या का जन्म होता है ।जब हमें उस समस्या को हल करने का बोध हो तो जाता है तो उसे समस्या समाधान कहा जाता है ।
समस्या समाधान के प्रथम चरण में समस्या को समझने की आवश्यकता होती है कि आखिर समस्या क्या है और उसका कारण क्या है? इसके पश्चात समस्या को परिभाषित किया जाता है ।इसके पश्चात समस्या को हल करने की सामग्री एकत्रित की जाती है और उसका समाधान किया जाता है ।
गणित विषय की यह एक सर्वमान्य स्वीकृत एवं प्रचलित विधि है ।गणित अध्यापन में अध्यापक कक्षा में विद्यार्थियों के समक्ष समस्याओं को प्रस्तुत करता है तथा विद्यार्थी सीखे हुए नियमों, सिद्धान्तों, संकल्पनाओं तथा प्रत्ययों की सहायता से समस्याओं के हल ज्ञात करते हैं.
यदि अध्यापक विद्यार्थियों के जीवन से सम्बंधित समस्याओं को कक्षा में हल करने के लिए प्रस्तुत करता है तो विद्यार्थियों में हल ज्ञात करने हेतु उत्साह एवं तत्परता उत्पन्न होती है तथा सीखने की गति में वृद्धि होती है। प्रत्येक समस्या में नवीनता होनी चाहिए इससे विद्यार्थियों को हल ज्ञात करने हेतु प्रेरणा मिलती है।
एक कुशल अध्यापक स्वयं वास्तविक तथ्यों को इकट्ठा कर विद्यार्थियों की क्षमता को ध्यान में रखकर समस्याओं का निर्माण करता है। विद्यार्थी समस्या में दी हुई परिस्थिति का अध्ययन कर तथ्यों का विश्लेषण करते हैं तथा सूत्रों, नियमों, सिद्धान्तों, प्रमेयों आदि की सहायता से समस्या का समाधान करते हैं।
यदि समस्या जीवंत हो तथा विद्यार्थियों की आवश्यकताओं एवं रुचियों से संबंधित हो तो विद्यार्थियों में स्वत: समस्या का समाधान करने की जिज्ञासा होगी।
वस्तुतः गणित की पाठ्यपुस्तकों में परम्परागत, घिसीपिटी तथा काल्पनिक समस्याओं का समावेश होता है। ये समस्याएं विद्यार्थियों में समाधान करने हेतु कोई उत्साह पैदा नहीं करती हैं।
(2.)समस्या विद्यार्थी के जीवन से सम्बंधित होनी चाहिए। समस्या के तथ्यों से विद्यार्थी को परिचित होना चाहिए।
(3.)समस्या की भाषा सरल, स्पष्ट, ग्रहण करने योग्य तथा अर्थपूर्ण हो। अनावश्यक रूप से लम्बी तथा अर्थहीन शब्दाडम्बर से परिपूर्ण समस्याएं गणित विषय को कठिन व अरुचिकर बना देती है।
(4.)समस्या में क्या ज्ञात करना है? यह बात स्पष्ट रुप से विद्यार्थियों को दृष्टिगत होनी चाहिए
बहुधा ऐसी समस्याएं भी पाठ्यपुस्तकों में उपलब्ध हैं कि समस्या को पढ़ने के बाद भी यह ज्ञात नहीं किया जा सकता है कि समस्या में क्या है? कितना? कैसे? क्यों? ज्ञात करना है।
(5.)समस्याएं विद्यार्थियों द्वारा सीखे हुए सूत्रों, प्रमेयों, संकल्पनाओं आदि पर आधारित हो।
(6.)समस्याओं को सरल, स्पष्ट, सारपूर्ण तथा लघु आकार की बनाने हेतु स्पष्ट चित्र, अर्थपूर्ण सारणी, संकेत देने चाहिए।
(7.)समस्या को समझने के पश्चात् उन्हें हल करने की विधि का पूर्व ज्ञान होना चाहिए।
(8.)यदि अध्यापक विद्यार्थियों के वातावरण, स्थानीय परिस्थितियों एवं रुचियों को आधार बनाकर स्वयं ही समस्याओं को निर्माण कर कक्षा में प्रस्तुत करें तो गणित विषय रुचिपूर्ण हो सकेगा
(9.)यदि समस्या लम्बी हो तो उसके दो या तीन भाग कर देने चाहिए जिससे विद्यार्थियों में कोई अप्रत्याशित उलझन न हो।
(10.)समस्याओं के अपेक्षित उत्तर तर्कसंगत होने चाहिए जिससे विद्यार्थी स्वयं उनका समाधान कर सके।
(11.)कक्षा में समस्या बोर्ड पर लिखकर प्रस्तुत की जाये तथा रंगीन चाॅक द्वारा आवश्यक संकेत देना लाभप्रद है। यदि आकृति, चित्र, नक्शा, सारणी, ग्राफ आदि समस्या के साथ सम्मिलित हों तो समस्या को समझने में सहायता मिलेगी।
(12.)कक्षा में कम्प्यूटर, फिल्मों, विश्व समाचारों में प्रकाशित तथ्यों, पत्रिकाओं में प्रकाशित चित्रों आदि के माध्यम से यदि समस्याएं प्रस्तुत की जायें तो अध्यापन को वास्तविक बनाने में सहायता मिलेगी।
(13.)कक्षा में विद्यार्थियों से उनकी समस्याएं ज्ञात कर उन्हें संख्यात्मक प्रारूप देना भी एक उत्तम विधि है।
(14.)जीवन की वास्तविक घटनाओं, तथ्यों, विवरणों, प्रसंगों को गणित अध्यापन में विषयवस्तु बनाकर अध्यापन करना आधुनिक अधिगम का भाग है।
(15.)समस्या समाधान तथा आकलन में धैर्य रखना अत्यंत आवश्यक है।
(16.)विद्यार्थियों को स्वयं को समस्या पहचानकर हल ढूंढने की प्रेरणा देना गणित अध्यापक का कर्तव्य है।
3 (3.)चिंतन एवं समस्या समाधान -
चिंतन एवं समस्या समाधान में विशेष अंतर नहीं है। चिंतन ही समस्या का हल है। मनुष्य की विशेषता उसकी तर्क शक्ति है। तर्क शक्ति को कक्षा में प्रोत्साहन मिलना चाहिए। यदि विद्यार्थी चिंतन शक्ति और तर्क शक्ति को आधार बनाकर समस्या समाधान का प्रयास करते हैं तो उनके विकास का क्रम गतिशील होगा। कार्य सम्बन्धी चेतना तथा समस्याओं से जूझने की क्षमता का विकास गणित अध्ययन का महत्त्वपूर्ण भाग है।
समस्या को प्रस्तुत करने के बाद अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि कक्षा को इतना समय दे जिससे कि प्रत्येक विद्यार्थी समस्या का भलीभांति अध्ययन कर सके। इससे प्रत्येक विद्यार्थी को यह जानकारी प्राप्त हो सकेगी कि समस्या में क्या दिया हुआ है तथा क्या ज्ञात करना है।
(2.)समस्या का विश्लेषण -
कक्षा में समस्या को प्रस्तुत करने के बाद समस्या का प्रश्नोत्तर विधि द्वारा विश्लेषण करना चाहिए तथा विद्यार्थियों की सहायता से यह स्पष्ट करना चाहिए कि समस्या में दिए गए तथ्यों में परस्पर क्या सम्बन्ध है तथा सम्पूर्ण परिस्थिति में उनका क्या महत्त्व है? इस पद में विद्यार्थी यह समझ सकेंगे कि कौनसे तथ्य अनावश्यक है तथा कौनसे आवश्यक है। इस प्रकार विद्यार्थी में समस्या का विश्लेषण करने की आदत पड़ जाएगी जो समस्या को सफलतापूर्वक हल करने के लिए अनिवार्य है। जिन विद्यार्थियों में समस्या का विश्लेषण करने की क्षमता का विकास नहीं होता है, वे समस्या को अधिकांशतः आत्मविश्वास के साथ हल नहीं कर सकते हैं।
(3.)सम्भावित हल खोजना -
विश्लेषण के पश्चात विद्यार्थी यह भली प्रकार समझ सकेगा कि जो हल ज्ञात करना है उसे प्राप्त करने के लिए गणित के कौनसे नियम, सूत्र, सिद्धान्त आदि का प्रयोग आवश्यक है। यहां विद्यार्थी यह निर्णय कर सकेगा कि समस्या का समाधान प्राप्त करने के लिए किस विशेष विधि को काम में लेना चाहिए तथा यदि कोई वैकल्पिक विधि हो तो उस पर वह विचार करेगा।
(4.)हल को प्राप्त करने के लिए सही गणना करना -
कई बार विद्यार्थी हल करने की विधि को जानते हुए भी समस्या का सही उत्तर प्राप्त नहीं कर पाते हैं। वे गणना करने में बहुत साधारण सी त्रुटियां करते हैं। विद्यार्थियों में सही तथा शीघ्र करने की क्षमता का होना आवश्यक है। अध्यापक अलग से गणना करने का अभ्यास करा सकता है जिसमें गणना करने में विद्यार्थियों को कोई कठिनाई न हो। यह देखा गया है कि अधिकांश विद्यार्थी के गुणा तथा भाग करते समय त्रुटियां करते हैं।
(5.)समस्या का हल ज्ञात करना एवं पुन: जाँच करना :-
समस्या का हल ज्ञात करने के पश्चात प्रत्येक विद्यार्थी को उत्तर की पुन: जाँच करना चाहिए जिससे हल में गणना या विधि सम्बन्धी त्रुटियों को ठीक किया जा सके। विद्यार्थियों में उत्तर की पुन:जाँच करने की आदत होना आवश्यक है क्योंकि त्रुटियों को ढूँढ निकालना इसके बिना सम्भव नहीं है।।
3(5.)समस्या समाधान विधि के गुण -
(1.)समस्या के द्वारा हम विद्यार्थियों को जीवन से सम्बंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं। इस तरह गणित विषय के सामाजिक महत्त्व को हम कक्षा में प्रस्तुत कर सकते हैं
(2.)विद्यार्थी में समस्या का विश्ले विश्लेषण करने की क्षमता का विकास होता है तथा आवश्यक एवं अनावश्यक तथ्यों में विभेद कर सकता है। कभी-कभी समस्या में अपूर्ण तथ्य दिए होते हैं तथा इसका हल ज्ञात करना सम्भव नहीं। इसकी जानकारी समस्या के सही विश्लेषण पर निर्भर करती है।
(3.)बालकों में आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता का विकास होता है।
(4.)समस्या निवारण विधि के प्रयोग से विद्यार्थियों में समस्या से जूझने की आदत पड़ जाती है जो जीवन में सफलता की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
(5.)इस विधि से विद्यार्थियों में सही चिंतन तथा तर्क का समुचित प्रयोग करने की आदत पड़ जाती है।
(6.)उच्च गणित के अध्ययन में आवश्यक है।
Abhimanyu Uttara |
(2,)मनुष्य यहां तक कि पशु-पक्षियों तथा प्रकृति से सीखना(Human beings, even animals and birds, learn from nature)-
व्यक्ति सीखना चाहे तो कदम कदम कदम पर किसी भी व्यक्ति से चाहे वह छोटा या बड़ा यहां तक कि पशु-पक्षियों तथा प्रकृति से बहुत कुछ सीख सकता है. सीखने के लिए सद्गुरु विवेक के रूप में हमारे अन्दर मौजूद है. ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति में अन्त:करण विद्यमान है. परन्तु शर्त यही है कि अन्त:करण यदि काम, क्रोध आदि विकारों से मुक्त हो अथवा जिसने तप, साधना द्वारा अपने अन्त:करण को विकारों से मुक्त कर लिया हो. ऐसा व्यक्ति प्रकृति को देखकर भी धर्म, अध्यात्म का तत्त्व ज्ञान सीख सकता है. वस्तुतः यह सम्पूर्ण चराचर जगत् उस परमात्मा की लीला ही है.दत्तात्रेय जी को ज्ञान प्राप्ति के लिए तप साधना करने के पश्चात् भी अन्तर्बोध नहीं हुआ. वे कई साधु सन्तों, गुरुओं के पास गये पर कहीं भी सन्तोष नहीं हुआ क्योंकि क्योंकि उनको आत्मज्ञान नहीं हुआ. अन्त में वे ब्रह्मा जी के पास गये तथा अपनी जिज्ञासा ब्रह्मा जी को बताई. ब्रह्मा जी ने दत्तात्रेय को कहा कि प्रकृति में प्रत्येक जीव तथा प्रकृति को देखकर अन्तर्ज्ञान हो सकता है, आवश्यकता है अपने अन्त:करण को पवित्र एवं शुध्द करने की. इसके पश्चात प्रकृति की छोटी-छोटी घटनाओं का निरीक्षण करने के पश्चात अध्यात्म ज्ञान की सिद्धि कर ली. पश्चात् सामान्य व्यक्ति से लेकर राजा तक प्रत्येक व्यक्ति को अध्यात्म का संदेश पहुंचाया.
एक बार राजा यदु ने दत्तात्रेय जी से पूछा महात्मन्! संसार के अधिकांश लोग काम, क्रोध, लोभ इत्यादि के वशीभूत होकर दु:खी है तो आपने जीवन्मुक्त की अवस्था कैसे प्राप्त की? तब दत्तात्रेय जी ने कहा कि चेतना की अनुभूति के लिए किसी अकेले गुरु से काम नहीं चलता उसके लिए व्यक्ति को अन्दर जो गुरु आत्मा के रूप में विराजमान है उसकी शरण में जाना होता है. इस सद्गुरु के माध्यम से मुझे 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त हुई.. उनमें पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, समुद्र, पतंग, भौंरा, हाथी, मधुमक्खी, हिरण, मछली, पिंगलावेश्या, कुरर पक्षी, बालक, कुमारी कन्या, बाग बनाने वाला, सर्प और भृंगी कीट है. महाराजा यदु ने कहा कि ये सब तो जड़ और निर्बुद्धि हैं, इनसे शिक्षा कैसे प्राप्त हुई. दत्तात्रेय जी ने बताया कि जड़ और निर्बुद्धि होते हुए भी प्रकृति उस परमात्मा की लीला ही तो है, आवश्यकता है अपने अन्त:करण को निर्मल करने की.
उन्होंने कहा कि पृथ्वी से मैंने धैर्य और क्षमा की शिक्षा ली.लोग पृथ्वी पर कितना उत्पात करते हैं और चोट पहुंचाते हैं पर वह न तो किसी से बदला लेती है और सहन करती है,, इसी प्रकार धीर पुरुष को को चाहिए कि दूसरों की मजबूरी को समझकर न तो क्रोध करें और न धैर्य खोए.
वायु से शिक्षा ली कि वह कहीं आसक्त नहीं होती और किसी का भी गुणदोष नहीं अपनाती. वैसे ही साधक को भी किसी का दोष ग्रहण न करे और न किसी से आसक्ति व द्वेष करें.
आकाश से मैंने यह जाना कि जितने भी चल-अचल पदार्थ है उनका आश्रय स्थान एक ही है आकाश. उसी प्रकार जितने भी चर-अचर जीव है उनमें आत्मा सर्वत्र व्याप्त है.
जल का स्वभाव स्वच्छ, मधुर और पवित्र है जिससे यह प्रेरणा प्राप्त की कि साधक को स्वभाव स्वच्छ, शुद्ध और पवित्र रखना चाहिए.
अग्नि तेजस्वी और ज्योतिर्मय है उसके तेज को कोई दबा नहीं सकता तथा उसके पास संग्रह के लिए कोई पात्र नहीं है, वह सब कुछ भस्म कर देती है. वह भले बुरे सभी पदार्थों को भस्म कर देने पर भी किसी दोष से लिप्त नहीं होती है. इसी प्रकार साधक को भी तेजस्वी व इंद्रियों को नियंत्रण में रखना चाहिए उनमें आसक्ति न रखें.
चन्द्रमा की गति काल के प्रभाव से घटती बढ़ती रहती है परन्तु वस्तुतः वह न तो घटता है, न बढ़ता है. वैसे ही जन्म से लेकर मृत्यु तक शरीर की अवस्थाएं बदलती है आत्मा का उससे कोई सम्बन्ध नहीं है.
सूर्य अपनी किरणों से पृथ्वी का जल सोखकर और समय पर बरसाता है. वैसे ही योगी पुरुष समय पर विषयों को ग्रहण और त्याग करते हैं किंतु सूर्य की भाँति आसक्त नहीं होते हैं.. अजगर से मैंने सीखा कि साधक को हर परिस्थिति में संतुष्ट रहना चाहिए. समुद्र, वर्षा ऋतु में नदियों की बाढ़ के कारण न तो बढ़ता है और न ही ग्रीष्म ऋतु में जब नदियां सूखने लगती है तो घटता ही है. उसी प्रकार साधक को सांसारिक पदार्थों के प्राप्त होने पर न तो खुश होना चाहिए और न ही उनके नष्ट हो जाने पर खिन्न होना चाहिए.
पतंगा दीपक के रूप पर मोहित होकर उस पर कूदता है और जल कर भस्म हो जाता है. वैसे ही जो व्यक्ति इंद्रियों को वश में नहीं रखता वह नाशवान पदार्थों में फँसा रहता है. वह अपनी विवेक बुद्धि खोकर पतंगें के समान ही नष्ट हो जाता है.
भौंरा पुष्पों से उनका सार ही ग्रहण करता है उसी प्रकार बुद्धिमान पुरुष सभी शास्त्रों से उनका सार मात्र ही ग्रहण करें.
हाथी काठ की हथिनी को देखकर ही शिकारियों द्वारा खोदे गए गड्ढे में गिरता है और मृत्यु को प्राप्त होता है. इसी प्रकार काष्ठ मूर्ति में भी साधक की आसक्ति उसके पतन का कारण बन जाती है.
लोभी मधुमक्खी प्रयत्नपूर्वक रस का संचय करती है जिसे अन्य लोग ही उपयोग में लेते है. उसी प्रकार लोभी व्यक्ति का संचित धन का दूसरे लोग ही उपभोग करते हैं.
हिरण सुरीली यंत्रों के कारण श्रवणेन्द्रिय के विषयों में आसक्त होकर अपने प्राण गँवाता है उसी प्रकार साधक को श्रवणेन्द्रिय की आसक्ति पतन की ओर ले जाती है.
मछली काँटें में फँसे हुए माँस के टुकड़े में अपने प्राण गँवा देती है वैसे ही स्वाद का लोभी मनुष्य भी अपनी जीभ के वश में होकर मारा जाता है.प्राचीनकाल में विदेह नगरी में पिंगला नाम की वेश्या थी. वह हमेशा धन प्राप्ति की कामना रखती थीं और सोचा करती थी कि कोई धनिक पुरुष आकर उसे अपना धन दे जायेगा. एक दिन वह आधी रात इसी तरह प्रतीक्षा करती रही और उसका मुँह सूख गया. उसे निराश होना पड़ा जिसके कारण उसे वैराग्य हो गया. इससे मैंने सीखा कि दूसरों से आशा करना दु:ख का कारण है. दूसरों से आशा न करके खुद के प्रयत्नों पर निर्भर रहना सबसे बड़ा सुख है. उस रात जब पिंगला ने दूसरों से आशा करना छोड़ दिया तो वह सुख की नींद सो सकी.
एक बार किसी कुमारी कन्या के घर, वर और उसके घर वाले पहुँचे. संयोग कन्या के घर वाले कहीं गये हुए थे. इसलिए कन्या ने स्वयं ही उनका सम्मान किया और उनको भोजन कराने के लिए धान कूटने लगी. धान कूटते समय उसकी कलाई की चूड़ियाँ बज रही थी जिससे उसे लज्जा महसूस हुई. उसने एक-एक करके सारी चूड़ियाँ उतार दी केवल एक ही रखी. मैंने यह शिक्षा ग्रहण की कि साधक के चित्त में बहुत सी वृत्तियां हों तो उसका मन चलायमान रहता है वह ठीक से कोई कार्य नहीं कर पाता है. इसलिए साधक को चित्त में एक ही ध्येय रखना चाहिए.
एक बार एक व्यक्ति बाण बनाने के अपने काम में इतना एकाग्र था कि उसके पास से ही राजा की सवारी निकल गई पर उसे पता ही नहीं चला. साधक भी संसार के कोलाहल तथा उथल पुथल से विचलित न होकर अपने लक्ष्य में एकाग्रचित्त रहे.
कोई पक्षी अपनी चोंच में माँस का टुकड़ा लिए बैठा था. दूसरे पक्षियों ने छीनने के लिए उसे चोंचों से मारना प्रारंभ कर दिया. जब उस पक्षी ने माँस का टुकड़ा फेंक दिया तो कष्ट से मुक्त हो गया. इससे मैंने यह शिक्षा ली कि समस्या के कारण को छोड़ देना चाहिए क्योंकि वह दूसरों के मन में ईर्ष्या को जन्म देता है.
साँप से मैंने यह शिक्षा ली कि मठ या मण्डली बनाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.
मकड़ी बिना किसी सहायक के अपने ही मुँह के तारों द्वारा जाला बना लेती है, उसी में घूमती फिरती है और फिर उसे ही निगल जाती है. परमात्मा भी बिना किसी सहायक के अपनी माया से इस ब्रह्मांड की रचना करते हैं और उसमें जीवरूप से भ्रमण करते हैं और अपने आपको ही लीन करके अंत में अकेले शेष रह जाते हैं. भृंगी किसी कीट को पकड़कर अपने रहने के स्थान में बन्द कर देता है और कीड़ा भय से उसी का चिन्तन करते करते उसके रूप का हो जाता है उसी प्रकार साधक को भी केवल परमात्मा का ही चिन्तन करके परमात्मा रूप हो जाना चाहिए.
विवेक और वैराग्य की शिक्षा देने के कारण यह शरीर भी एक गुरु है यद्यपि यह शरीर नष्ट होनेवाला है लेकिन इससे मोक्ष(मुक्ति) को उपलब्ध हुआ जा सकता है. यदि व्यक्ति जिज्ञासु हो और तीव्र लगन हो तो ज्ञान की प्राप्ति प्रकृति व इसमें रहनेवाले जीव-जंतुओं से हो सकती है.
3.आधुनिक अधिगम (Learning)-
3(1.)समस्या समाधान विधि( Problem solving Method) :-
समस्या समाधान विधि के जनक हर्बर्ट, डीवी, टोलमेन, आंइनस्टीन जैसे महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक हैं ।समस्या समाधान तब सम्भव होता है जब जीवन में हमारे सामने कोई बाधा उत्पन्न होती है या एक रचना रहित क्षेत्र हमारे सम्मुख आता है तो समस्या का जन्म होता है ।जब हमें उस समस्या को हल करने का बोध हो तो जाता है तो उसे समस्या समाधान कहा जाता है ।
समस्या समाधान के प्रथम चरण में समस्या को समझने की आवश्यकता होती है कि आखिर समस्या क्या है और उसका कारण क्या है? इसके पश्चात समस्या को परिभाषित किया जाता है ।इसके पश्चात समस्या को हल करने की सामग्री एकत्रित की जाती है और उसका समाधान किया जाता है ।
गणित विषय की यह एक सर्वमान्य स्वीकृत एवं प्रचलित विधि है ।गणित अध्यापन में अध्यापक कक्षा में विद्यार्थियों के समक्ष समस्याओं को प्रस्तुत करता है तथा विद्यार्थी सीखे हुए नियमों, सिद्धान्तों, संकल्पनाओं तथा प्रत्ययों की सहायता से समस्याओं के हल ज्ञात करते हैं.
यदि अध्यापक विद्यार्थियों के जीवन से सम्बंधित समस्याओं को कक्षा में हल करने के लिए प्रस्तुत करता है तो विद्यार्थियों में हल ज्ञात करने हेतु उत्साह एवं तत्परता उत्पन्न होती है तथा सीखने की गति में वृद्धि होती है। प्रत्येक समस्या में नवीनता होनी चाहिए इससे विद्यार्थियों को हल ज्ञात करने हेतु प्रेरणा मिलती है।
एक कुशल अध्यापक स्वयं वास्तविक तथ्यों को इकट्ठा कर विद्यार्थियों की क्षमता को ध्यान में रखकर समस्याओं का निर्माण करता है। विद्यार्थी समस्या में दी हुई परिस्थिति का अध्ययन कर तथ्यों का विश्लेषण करते हैं तथा सूत्रों, नियमों, सिद्धान्तों, प्रमेयों आदि की सहायता से समस्या का समाधान करते हैं।
यदि समस्या जीवंत हो तथा विद्यार्थियों की आवश्यकताओं एवं रुचियों से संबंधित हो तो विद्यार्थियों में स्वत: समस्या का समाधान करने की जिज्ञासा होगी।
वस्तुतः गणित की पाठ्यपुस्तकों में परम्परागत, घिसीपिटी तथा काल्पनिक समस्याओं का समावेश होता है। ये समस्याएं विद्यार्थियों में समाधान करने हेतु कोई उत्साह पैदा नहीं करती हैं।
3(2.)समस्या प्रस्तुत करने के नियम -
(1.)समस्या में सम्मिलित सामाजिक परिस्थिति ऐसी हो जो विद्यार्थियों की रुचि एवं समझ के अनुसार हो।(2.)समस्या विद्यार्थी के जीवन से सम्बंधित होनी चाहिए। समस्या के तथ्यों से विद्यार्थी को परिचित होना चाहिए।
(3.)समस्या की भाषा सरल, स्पष्ट, ग्रहण करने योग्य तथा अर्थपूर्ण हो। अनावश्यक रूप से लम्बी तथा अर्थहीन शब्दाडम्बर से परिपूर्ण समस्याएं गणित विषय को कठिन व अरुचिकर बना देती है।
(4.)समस्या में क्या ज्ञात करना है? यह बात स्पष्ट रुप से विद्यार्थियों को दृष्टिगत होनी चाहिए
बहुधा ऐसी समस्याएं भी पाठ्यपुस्तकों में उपलब्ध हैं कि समस्या को पढ़ने के बाद भी यह ज्ञात नहीं किया जा सकता है कि समस्या में क्या है? कितना? कैसे? क्यों? ज्ञात करना है।
(5.)समस्याएं विद्यार्थियों द्वारा सीखे हुए सूत्रों, प्रमेयों, संकल्पनाओं आदि पर आधारित हो।
(6.)समस्याओं को सरल, स्पष्ट, सारपूर्ण तथा लघु आकार की बनाने हेतु स्पष्ट चित्र, अर्थपूर्ण सारणी, संकेत देने चाहिए।
(7.)समस्या को समझने के पश्चात् उन्हें हल करने की विधि का पूर्व ज्ञान होना चाहिए।
(8.)यदि अध्यापक विद्यार्थियों के वातावरण, स्थानीय परिस्थितियों एवं रुचियों को आधार बनाकर स्वयं ही समस्याओं को निर्माण कर कक्षा में प्रस्तुत करें तो गणित विषय रुचिपूर्ण हो सकेगा
(9.)यदि समस्या लम्बी हो तो उसके दो या तीन भाग कर देने चाहिए जिससे विद्यार्थियों में कोई अप्रत्याशित उलझन न हो।
(10.)समस्याओं के अपेक्षित उत्तर तर्कसंगत होने चाहिए जिससे विद्यार्थी स्वयं उनका समाधान कर सके।
(11.)कक्षा में समस्या बोर्ड पर लिखकर प्रस्तुत की जाये तथा रंगीन चाॅक द्वारा आवश्यक संकेत देना लाभप्रद है। यदि आकृति, चित्र, नक्शा, सारणी, ग्राफ आदि समस्या के साथ सम्मिलित हों तो समस्या को समझने में सहायता मिलेगी।
(12.)कक्षा में कम्प्यूटर, फिल्मों, विश्व समाचारों में प्रकाशित तथ्यों, पत्रिकाओं में प्रकाशित चित्रों आदि के माध्यम से यदि समस्याएं प्रस्तुत की जायें तो अध्यापन को वास्तविक बनाने में सहायता मिलेगी।
(13.)कक्षा में विद्यार्थियों से उनकी समस्याएं ज्ञात कर उन्हें संख्यात्मक प्रारूप देना भी एक उत्तम विधि है।
(14.)जीवन की वास्तविक घटनाओं, तथ्यों, विवरणों, प्रसंगों को गणित अध्यापन में विषयवस्तु बनाकर अध्यापन करना आधुनिक अधिगम का भाग है।
(15.)समस्या समाधान तथा आकलन में धैर्य रखना अत्यंत आवश्यक है।
(16.)विद्यार्थियों को स्वयं को समस्या पहचानकर हल ढूंढने की प्रेरणा देना गणित अध्यापक का कर्तव्य है।
3 (3.)चिंतन एवं समस्या समाधान -
चिंतन एवं समस्या समाधान में विशेष अंतर नहीं है। चिंतन ही समस्या का हल है। मनुष्य की विशेषता उसकी तर्क शक्ति है। तर्क शक्ति को कक्षा में प्रोत्साहन मिलना चाहिए। यदि विद्यार्थी चिंतन शक्ति और तर्क शक्ति को आधार बनाकर समस्या समाधान का प्रयास करते हैं तो उनके विकास का क्रम गतिशील होगा। कार्य सम्बन्धी चेतना तथा समस्याओं से जूझने की क्षमता का विकास गणित अध्ययन का महत्त्वपूर्ण भाग है।
3(4.)समस्या हल करने के पद -
(1.)समस्या में दिए गए तथ्यों तथा उनके सम्बन्धों को समझना -समस्या को प्रस्तुत करने के बाद अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि कक्षा को इतना समय दे जिससे कि प्रत्येक विद्यार्थी समस्या का भलीभांति अध्ययन कर सके। इससे प्रत्येक विद्यार्थी को यह जानकारी प्राप्त हो सकेगी कि समस्या में क्या दिया हुआ है तथा क्या ज्ञात करना है।
(2.)समस्या का विश्लेषण -
कक्षा में समस्या को प्रस्तुत करने के बाद समस्या का प्रश्नोत्तर विधि द्वारा विश्लेषण करना चाहिए तथा विद्यार्थियों की सहायता से यह स्पष्ट करना चाहिए कि समस्या में दिए गए तथ्यों में परस्पर क्या सम्बन्ध है तथा सम्पूर्ण परिस्थिति में उनका क्या महत्त्व है? इस पद में विद्यार्थी यह समझ सकेंगे कि कौनसे तथ्य अनावश्यक है तथा कौनसे आवश्यक है। इस प्रकार विद्यार्थी में समस्या का विश्लेषण करने की आदत पड़ जाएगी जो समस्या को सफलतापूर्वक हल करने के लिए अनिवार्य है। जिन विद्यार्थियों में समस्या का विश्लेषण करने की क्षमता का विकास नहीं होता है, वे समस्या को अधिकांशतः आत्मविश्वास के साथ हल नहीं कर सकते हैं।
(3.)सम्भावित हल खोजना -
विश्लेषण के पश्चात विद्यार्थी यह भली प्रकार समझ सकेगा कि जो हल ज्ञात करना है उसे प्राप्त करने के लिए गणित के कौनसे नियम, सूत्र, सिद्धान्त आदि का प्रयोग आवश्यक है। यहां विद्यार्थी यह निर्णय कर सकेगा कि समस्या का समाधान प्राप्त करने के लिए किस विशेष विधि को काम में लेना चाहिए तथा यदि कोई वैकल्पिक विधि हो तो उस पर वह विचार करेगा।
(4.)हल को प्राप्त करने के लिए सही गणना करना -
कई बार विद्यार्थी हल करने की विधि को जानते हुए भी समस्या का सही उत्तर प्राप्त नहीं कर पाते हैं। वे गणना करने में बहुत साधारण सी त्रुटियां करते हैं। विद्यार्थियों में सही तथा शीघ्र करने की क्षमता का होना आवश्यक है। अध्यापक अलग से गणना करने का अभ्यास करा सकता है जिसमें गणना करने में विद्यार्थियों को कोई कठिनाई न हो। यह देखा गया है कि अधिकांश विद्यार्थी के गुणा तथा भाग करते समय त्रुटियां करते हैं।
(5.)समस्या का हल ज्ञात करना एवं पुन: जाँच करना :-
समस्या का हल ज्ञात करने के पश्चात प्रत्येक विद्यार्थी को उत्तर की पुन: जाँच करना चाहिए जिससे हल में गणना या विधि सम्बन्धी त्रुटियों को ठीक किया जा सके। विद्यार्थियों में उत्तर की पुन:जाँच करने की आदत होना आवश्यक है क्योंकि त्रुटियों को ढूँढ निकालना इसके बिना सम्भव नहीं है।।
3(5.)समस्या समाधान विधि के गुण -
(1.)समस्या के द्वारा हम विद्यार्थियों को जीवन से सम्बंधित परिस्थितियों की सही जानकारी दे सकते हैं। इस तरह गणित विषय के सामाजिक महत्त्व को हम कक्षा में प्रस्तुत कर सकते हैं
(2.)विद्यार्थी में समस्या का विश्ले विश्लेषण करने की क्षमता का विकास होता है तथा आवश्यक एवं अनावश्यक तथ्यों में विभेद कर सकता है। कभी-कभी समस्या में अपूर्ण तथ्य दिए होते हैं तथा इसका हल ज्ञात करना सम्भव नहीं। इसकी जानकारी समस्या के सही विश्लेषण पर निर्भर करती है।
(3.)बालकों में आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता का विकास होता है।
(4.)समस्या निवारण विधि के प्रयोग से विद्यार्थियों में समस्या से जूझने की आदत पड़ जाती है जो जीवन में सफलता की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
(5.)इस विधि से विद्यार्थियों में सही चिंतन तथा तर्क का समुचित प्रयोग करने की आदत पड़ जाती है।
(6.)उच्च गणित के अध्ययन में आवश्यक है।
4.दुनिया में सबसे कठिन प्रतियोगिता समस्या है - और आप इसे कैसे हल कर सकते हैं(The Toughest Competition Problem In The World And How You Can Solve It)-
The Toughest Competition Problem In The World - And How You Can Solve It |
अंतर्राष्ट्रीय गणितीय ओलंपियाड (IMO) दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित गणित ओलंपियाड में से एक है। 100 से अधिक देशों ने प्रतियोगिता में उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए 1-6 पूर्व-विश्वविद्यालय के छात्रों को भेजा, जिसमें दो दिनों के अंतराल में 6 समस्याओं का प्रयास किया जाता है। प्रतियोगिता में समस्याएं हाई स्कूल गणित पर आधारित हैं, और इस प्रकार "गणित की बुनियादी समझ के साथ किसी के लिए भी सुलभ है" - अगर आपको लगता है कि एएमसी कठिन था, तो ये प्रश्न आपके दिमाग को उड़ा देंगे।
IMO 1988 प्रश्न 6 एक प्रसिद्ध संख्या सिद्धांत समस्या है:
समस्या पहली बार में प्राथमिक लगती है, लेकिन अभिव्यक्ति के समाधानों की विशाल संख्या को देखने के बाद, आप महसूस करेंगे कि समस्या असहनीय है।
आज, उम्मीद है कि हम समस्या को हल करने में सक्षम होंगे और गणितज्ञों के छोटे समूह में शामिल होकर प्रश्न 6 को हरा सकते हैं!
समस्या के दृष्टिकोण के लिए, हमें समाधान की समरूपता पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि समाधान जोड़ी (ए, बी) समाधान जोड़ी (बी, ए) के समान ही मूल्यांकन करती है। इसका मतलब यह है कि हम मान सकते हैं कि एक assume बी।
अब, हमें दी गई जानकारी से एक समीकरण बनाने की जरूरत है:
निम्नलिखित संबंध भी उल्लेखनीय है:
इससे, हमारे पास एक दिलचस्प बीजगणितीय अभ्यास है। वो दिखाओ:
इसके साथ, हम एक असमानता बना सकते हैं जो हमें एक सामान्य प्रकार के फ़ंक्शन को खोजने की अनुमति देगा जो समस्या का समाधान उत्पन्न करता है। हम अनुमान लगा सकते हैं कि kb - b <kb, और kb - b <a: के बाद से
हमें इस असमानता को साबित करने की जरूरत है। हमने पहले ही बाईं ओर दिखाया है, अब हमें दाईं ओर साबित करने की आवश्यकता है। (संकेत: विरोधाभास और उपरोक्त समीकरणों द्वारा एक प्रमाण का उपयोग करें)
इसके साथ, हम एक समीकरण बना सकते हैं जो kb के साथ समीकरण बनाता है, एक प्राकृतिक संख्या शेष r को घटाता है:
इस से, बीजीय हेरफेर का एक और मुकाबला देता है:
इस प्रकार:
हमने जो किया है वह किसी दिए गए k के लिए एक और समाधान युग्म (r, b) है। यह देखते हुए कि समाधान सममित-युग्म हैं (a, b) एक ही चीज़ का मूल्यांकन करते हैं जैसे समाधान युग्म (b, a) - हम (a, b) के मानों को बदल सकते हैं और फिर से r = kb - जब तक r = 0 , चूंकि 0≤r <b≤a।
जब हम अंततः r = 0 पर पहुंच जाते हैं, तो हम इसे उपरोक्त अभिव्यक्ति में स्थानापन्न कर सकते हैं:
हमने दिखाया है कि k = b², इस प्रकार k एक वर्ग संख्या है!
हालांकि यह प्रमाण विधि "सही" प्रमाण नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से आपको 1988 में उस प्रश्न पर वापस अंक देगा। आशा है कि आपको गणित के साथ अनुसरण करने में मज़ा आया!
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