Importance of Mathematics part-2

Importance of Mathematics

गणित का महत्त्व (Importance of Mathematics) -

इस आर्टिकल में गणित का महत्त्व बताया गया है। इसमें विस्तृत रूप से यह बताया गया है कि गणित का क्षेत्र बहुत विस्तृत है और अन्य विषयों में भी अपनी पैठ बना ली है। गणित के प्रवेश से अन्य विषय समृद्ध हुए हैं और उनका दायरा बढ़ा है। इसके पहले पार्ट में बहुत ही संक्षिप्त विवरण पोस्ट की थी। परन्तु इस पार्ट में पिछले पार्ट को शामिल करते हुए विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की जा रही है। आशा है पिछले पार्ट की तरह इसे आप लोग पसन्द करेंगे। आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर व लाईक करे और यदि आपका कोई सुझाव हो या कोई समस्या हो तो कमेंट करके बताएं। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें। 

1.भूमिका गणित का महत्त्व (Introduction of Importance of Mathematics) -

आज का युग विज्ञान का युग है। जितनी भी भौतिक एवं तकनीकी प्रगति विज्ञान के कारण हुई है उसका श्रेय गणित को दिया जाना चाहिए। गणित की प्रगति के साथ-साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई है और भविष्य में विज्ञान की प्रगति गणित पर ही निर्भर करती है। यदि हम संसार के प्रगतिशील देशों में गणित के पाठ्यक्रमों का अध्ययन करें तो हम देखेंगे कि वहाँ की प्राइमरी एवं माध्यमिक शालाओं में गणित की अध्ययन सामग्री का स्तर अत्यन्त प्रगतिशील है एवं विद्यार्थियों को गणित के अध्ययन द्वारा विज्ञान को सीखने में अभूतपूर्व सहायता मिलती है। वहाँ सामाजिक प्रगति के साथ-साथ गणित के पाठ्यक्रमों के स्तरों में भी सुधार किया जा रहा है तथा वहां के शिक्षाशास्त्री इस दिशा में आज भी क्रियाशील हैं। जिन देशों में गणित के पाठ्यक्रम प्रगतिशील नहीं रहै है ,वहाँ पर भौतिक प्रगति भी अपेक्षाकृत कम हो सकी है। कोठारी आयोग ने विज्ञान और गणित के महत्त्व पर लिखा है, "विज्ञान को महत्त्वपूर्ण विषय बनाया जाय। इसलिए हम सिफारिश करते हैं कि विज्ञान और गणित स्कूल शिक्षण के पहले दस सालों में सभी विद्यार्थियों को सामान्य शिक्षा के एक भाग के रूप में अनिवार्यत: पढ़ाये जायें। इसके अतिरिक्त औसत योग्यता से अधिक योग्यता वाले विद्यार्थियों के लिए, माध्यमिक अवस्था में इन विषयों में विशेष पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जाए। ये कार्यक्रम तभी उपयोगी हो सकते हैं जब विज्ञान पाठ्यचर्याओं को पुनः संगठित कर आधुनिकतम बनाया जाय, शिक्षण पद्धति में पुनः शक्ति का संचार किया जाए और विषय के शिक्षण के लिए उचित सुविधाएं दी जायें।
आयोग ने गणित का आधुनिक शिक्षा में महत्त्वपूर्ण स्थान का उल्लेख करते हुए लिखा है -
वैज्ञानिक दृष्टि अपनाने का मुख्य लक्षण वस्तुओं को मात्रात्मक दृष्टि से अभिव्यक्त करना है। इसलिए आधुनिक शिक्षा में गणित का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। भौतिक विज्ञान की प्रगति में इसका महत्त्वपूर्ण हाथ है, साथ ही जैविक विज्ञानों के विकास में भी अधिकाधिक रूप से इसका उपयोग किया जा रहा है। इस शताब्दी में स्वचालन विज्ञान और साइबरनैटिक्स के आगमन से नई वैज्ञानिक औद्योगिक क्रांति का जन्म हुआ है और गणित के अध्ययन पर विशेष ध्यान देना और भी अनिवार्य हो गया है। इस विषय के ज्ञान का उचित आधार स्कूलों में रखा जाना चाहिए।
गणित को विज्ञान की आत्मा कहा जा सकता है। गणित के बिना विज्ञान अपना अस्तित्व बनाए रखने में असमर्थ सिद्ध होगा। आधुनिक युग, क्योंकि वैज्ञानिक युग है अतः इस युग की नींव गणित पर ही आधारित है। तकनीकी युग की आवश्यकताओं की पूर्ति में गणित के महत्तवपूर्ण योगदान की व्यापक जानकारी होना आवश्यक है।
आज गणित के सिद्धान्तों का भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र,जीवशास्त्र, वनस्पतिसशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, भूगोल, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, वाणिज्य, संगीत तथा अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। गणित के उपयोग से इन क्षेत्रों की विषय-सामग्री में वस्तुनिष्ठता एवं व्यावहारिकता को सम्भव हो सका है तथा इस कारण समाज में भौतिक एवं समृद्धि का विकास हुआ है।

2.व्यक्तित्व का विकास (Personality Development)-

(1.)बुद्धि का विकास :- गणित के अलावा अन्य कोई ऐसा विषय नहीं है जो गणित की तरह विद्यार्थियों को क्रियाशील रख सके।गणित की किसी भी समस्या को हल करने के लिए विद्यार्थियों को मानसिक कार्य करना होता है ।गणित ही ऐसा विषय है जो विद्यार्थियों में रचनात्मक एवं सृजनात्मकता का विकास कर सकती है ।गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में तर्कशक्ति, स्मरणशक्ति, एकाग्रता, विचार एवं चिन्तन शक्ति आदि सभी मानसिक क्रियाओं का विकास होता है ।
(2.)संस्कृति का विकास :-गणित के अध्ययन से छात्र-छात्राओं को समानता, नियमितता तथा क्रमबद्धता का ज्ञान होता है जो कि संस्कृति के प्रमुख अंग हैं।संस्कृति से हमारा तात्पर्य यह है कि अपने पूर्वजों द्वारा जो अच्छी व कल्याणकारी बातें हैं वे सम्मिलित होती हैं ।इसके अलावा समाज से गरीबी, अज्ञानता, बीमारी,अशिक्षा,अन्धविश्वास को हटाने में गणित का योगदान है ।

(3.)अनुशासन :- विद्यार्थियों को गणित अध्ययन कराने से नियमितता, शुद्धता, मौलिकता, क्रमबद्धता, ईमानदारी, एकाग्रता, कल्पना, आत्मविश्वास, स्मृति, शीघ्र समझने की शक्ति जैसी मानसिक शक्तियों का विकास होता है जिससे उनका मस्तिष्क अनुशासित होता है ।
Importance of Mathematics part-2

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(4.)सामाजिकता का विकास :- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा विद्यार्थियों को भी आगे जाकर समाज का अंग बनना है ।सामाजिक जीवन के गणित के ज्ञान की आवश्यकता है क्योंकि समाज में भी लेन-देन, व्यापार, हिसाब किताब रखने की आवश्यकता है जो कि गणित के ज्ञान पर निर्भर है ।समाज के विभिन्न अंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने तथा समाज के विभिन्न अंगों को निकट लाने में विभिन्न आविष्कारों, आवश्यकताओं में सहायता देने में गणित का बहुत बड़ा योगदान है ।
(5.)वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास :- गणित का अध्ययन करने के लिए विद्यार्थियों में एक विशेष प्रतिभा की आवश्यकता होती है जिसके आधार पर विद्यार्थी अपना नियमित कार्य करते हैं इसे ही हम वैज्ञानिक ढंग कहते हैं ।गणित के अध्ययन में सबसे पहले देखते हैं कि समस्या क्या है? क्या ज्ञात करना है? तथा उसके उद्देश्य क्या है? इन पदों का समाधान करने के लिए समस्या पर विशेष चिन्तन की आवश्यकता है जिससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास विकास होता है ।
(6.)व्यावहारिकता का ज्ञान :- घर का बजट बनाने, मापने, घड़ी में समय देखने, कार्यालय में जाते समय, थर्मामीटर लगाते समय, परीक्षा में पर्चे बाँटते समय गणना करने की आवश्यकता पड़ती है ।इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में मूलभूत क्रियाओं जैसे गिनना, जोड़ना, भाग देना, घटाना, तौलना, मापना, खरीदना, गुणा करना आदि की हमारे जीवन में बहुत आवश्यकता होती है जिनकी गणना गणित के ज्ञान के आधार पर ही सम्भव है ।मनुष्य को आनन्द व सुख देने वाली वस्तुएं जैसे रेड़ियों, टेलीविजन, मोबाईल फोन, बिजली के पंखें, कुलर आदि सभी का आविष्कार गणित के ज्ञान के बिना संभव न था ।इस प्रकार विज्ञान को व्यावहारिक बनाने में गणित का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है .(
(7.)जीविकोपार्जन का साधन :- आधुनिक युग में जीविकोपार्जन करना भी शिक्षा का एक उद्देश्य है ।अन्य विषयों की अपेक्षा आज हर प्रतियोगिता परीक्षा में जैसे बैंकिंग, क्लर्क, एकाउन्टेन्ट, कांस्टेबल तथा अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं में गणित का test लिया जाता है ।गणित के बिना इन प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होना मुश्किल है ।वर्तमान समय में इंजीनियरिंग, बैंकिंग, तकनीकी व्यवसायों का ज्ञान एवं प्रशिक्षण गणित के द्वारा ही सम्भव है ।गणित में पढ़ा लिखा विद्यार्थी को जीविकोपार्जन में कोई समस्या नहीं आती है ।गणित का विद्यार्थी आसानी से वर्तमान युग में आसानी से जीविकोपार्जन कर सकता है ।

गणित का अन्य विषयों में उपयोग 

3.गणित और भौतिक शास्त्र (Mathematics and physics) -

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इस कथन में तनिक भी सन्देह नहीं है कि भौतिक विज्ञान के विकास के कारण ही आज समाज में लोगों का जीवन स्तर ऊँचा हुआ है। वर्तमान युग में विज्ञान उन्नति के इस शिखर पर नहीं पहुंचता यदि उसे गणित का योगदान प्राप्त नहीं होता। गणित की सहायता से वैज्ञानिकों ने अणु का भार ज्ञात किया। वर्तमान युग में अणुशक्ति के प्रयोग से विज्ञान में एक उथल-पुथल मच गई है तथा एक नए प्रकार की ऊर्जा का जीवन के विभिन्न पक्षों में उपयोग सम्भव हुआ है। यदि गणित की सहायता से अणु का भार एवं मात्रा का ज्ञान न हुआ होता तो सम्भवतः आज अणुशक्ति का उपयोग सम्भव नहीं होता। संसार के शक्तिशाली राष्ट्र आज अणुशक्ति के सफल प्रयोग पर ही अपने देश को शक्तिशाली एवं समृद्ध बनाने में सफल हुए हैं। यह सब गणित का ही चमत्कार है। गणित के कारण इस विषय में सही एवं सफल मापन एवं मूल्यांकन सम्भव हुआ है। जब एक वैज्ञानिक किसी प्रयोगशाला में काम करता है तो विभिन्न भौतिक तथ्यों का अध्ययन वह गणित की सहायता से ही करता है तथा गणित के सूत्रों द्वारा नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है। न्यूटन एवं आइन्स्टीन जिन्होंने पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के विभिन्न सिद्धान्तों को गणित के सूत्रों में अभिव्यक्त किया, स्वयं दोनों महान् गणितज्ञ थे। आज भी भौतिकशास्त्र के क्षेत्र में जो नई खोजें हो रही हैं तथा उनका सूक्ष्म रूप से प्रतिपादन गणित के द्वारा किया जाता है जिसे सारे संसार के सम्बन्धित वैज्ञानिक समझ लेते हैं। गणित के कारण ही भौतिक तथ्यों के विभिन्न सम्बन्धों को सूक्ष्म रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है।
भौतिक शास्त्र का पाठ्यक्रम दो भागों में विभक्त किया जा सकता है - (1.)प्रायोगिक कार्य (2.)सैद्धान्तिक पक्ष। जहाँ तक प्रायोगिक कार्य का सम्बन्ध है, यह कहना युक्तिसंगत होगा कि बिना गणित के अच्छे ज्ञान के प्रायोगिक कार्य का सम्बन्ध है, यह कहना युक्तिसंगत होगा कि बिना गणित के अच्छे ज्ञान के प्रायोगिक कार्य सफलतापूर्वक किया जाना सम्भव नहीं है। किसी प्रयोग के प्रमुख तीन अंग होते हैं -
(1.)प्रेक्षण (2.)गणना (3.)परिणाम
प्रेक्षण के अन्तर्गत दूरी का माप, परिमाण का माप, सही स्थिति को वर्नियर, आप्टिकल बैंच आदि पर पढ़ना सम्मिलित किए जाते हैं, गणना के सही सूत्र का चयन करना, सही मूल्य का प्रतिस्थापन करना आदि क्रियाएं करनी पड़ती हैं। इसी प्रकार परिणाम में प्रतिशत ज्ञात करना पड़ता है, औसत ज्ञात करना पड़ता है, इकाइयों को परिवर्तित करना पड़ता है आदि।
अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि गणित का अच्छा ज्ञान प्रायोगिक कार्य की सफलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
भौतिक विज्ञान में सैद्धान्तिक पक्ष का एक महत्त्वपूर्ण भाग है संख्यात्मक पक्ष। संख्यात्मक पक्ष में गणित का अधिकाधिक प्रयोग होता है। दशमलव का ज्ञान, घातांक नियम, तथा प्रतिलोम का ज्ञान, समय-अन्तराल का ज्ञान, इकाई परिवर्तन का ज्ञान आदि संख्यात्मक पक्ष के लिए अत्यन्त आवश्यक है। विविध सिद्धान्तों, सम्बन्धों, निष्कर्षों आदि को लेखाचित्र द्वारा प्रभावी ढंग से समझाया जा सकता है। अंतराणविक बल का स्वभाव, सरल रेखीय गति, गति के समीकरण आदि लेखाचित्र द्वारा भलीभाँति समझाए जा सकते हैं। आकार का सही अनुमान लगाने में त्रिभुज तथा चतुर्भुज से सम्बन्धित अनेक प्रमेयों का उपयोग किया जाता है। बलों के त्रिभुज एवं समान्तर चतुर्भुज के नियम से सम्बन्धित अनेक प्रमेयों का उपयोग किया जाता है। बलों के त्रिभुज एवं समान्तर चतुर्भुज के नियम भौतिक शास्त्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं। त्रिकोत्रमिति के अनुपातों के नियम भौतिकशास्त्र में प्रचुरता से उपयोग में लाये जाते हैं। किरणों की दिशाएं, प्रतिबिम्ब का अनन्त आदि भी वस्तुतः गणितीय संकल्पनाएं हैं।
इस प्रकार भौतिक शास्त्र के सभी क्षेत्रों में अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोत्रमिति, सांख्यिकी, मेन्सुरेशन का उपयोग होता है। गणित के कारण ही भौतिक शास्त्र वर्तमान स्वरूप में उपयोगी हो सका है। भौतिकशास्त्र में प्रयोगों के परिणामों का शुद्ध होना अत्यन्त आवश्यक है। गणित की सहायता से हम जान सकते हैं कि प्रयोगों के परिणाम किस सीमा तक शुद्ध हैं तथा अशुद्धता किस सीमा तक शुद्ध हैं तथा अशुद्धता किन विधियों द्वारा कम की जा सकती है। गणित के सूत्र, सिद्धान्त, सम्बन्ध आदि हमें इस दिशा में महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करते हैं। भौतिकशास्त्र के महत्त्वपूर्ण उप-विषयों जैसे घनत्व, नाप, विद्युतधारा, आपेक्षिक ताप, दबाव, चुम्बकत्व, ध्वनि आदि में गणित के माध्यम से सूत्रीकरण, सामान्यीकरण एवं प्रस्तुतिकरण सम्भव हो सका है। इन क्षेत्रों में निरन्तर प्रगति गणित की सहायता से ही सम्भव है।

4.गणित एवं रसायन शास्त्र (Mathematics and Chemistry) -

रसायनशास्त्र में रासायनिक क्रियाओं के परिणामों का मान गणित की सहायता से ज्ञात किया जाता है। यौगिक, मिश्रण, रासायनिक समीकरण आदि वस्तुतः गणितीय संकल्पनाएं हैं जिनमें परिणाम का पक्ष महत्त्वपूर्ण है। रासायनिक संयोग आदि को व्यक्त करने के लिए अनुपात का ज्ञान आवश्यक है। रासायनिक क्रियाओं द्वारा बनने वाले पदार्थों की मात्रा ज्ञात करने के लिए प्रतिशत, भिन्न और अनुपात का उपयोग किया जाता है। रसायनशास्त्र के विभिन्न उप-विषयों को समझने के लिए गणित का ज्ञान आवश्यक है अन्यथा इसमें परिणामों से सम्बंधित पक्षों को समझने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा। यदि हमें पानी बनाना है तो हमें यह जानना होगा कि हाइड्रोजन तथा  आॅक्सीजन की कितनी मात्रा लेनी होगी और यह सब गणित के ज्ञान पर निर्भर करता है। कार्बोनिक यौगिकों का सूत्र ज्ञात करने के लिए गणित के बिना काम नहीं चल सकता। वायुमण्डल में तत्त्वों की रचना का ज्ञान, विभिन्न गैसों का वायुमंडल में अनुपात, परमाणुभार, अणुभार, तुल्यांकीभार आदि गणित के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। पीरियोडिक टेबल के विकास में गणित का एक महत्त्वपूर्ण योग रहा है। एबोग्रेडो संख्या, इलेक्ट्रान, प्रोटाॅन, न्यूट्राॅन आदि के भारो को ज्ञात करने और याद करने में बीजगणित के घातांकों का ज्ञान आवश्यक है। गैसों के आयतन, भार, घनत्व आदि की गणना में वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल आदि से सम्बन्धित क्रियाओं की जानकारी आवश्यक है। गैसों के नियम पूरी तरह समीकरण पर आधारित हैं। गैसों के नियम, भाप का दबाव, घुलनशीलता आदि को समझने में लेखाचित्रों की जानकारी सहायक सिद्ध होती है।
रसायनशास्त्र में तत्त्वों के सम्बन्धों को समझने के लिए सामान्यीकरण, सूत्रीकरण आदि गणितीय प्रक्रियाओं का प्रचुरता से उपयोग होता है। यदि विद्यार्थी बीजगणित के आधारभूत सिद्धान्तों तथा दक्षताओं में पारंगत नहीं हो तो उन्हें रसायनशास्त्र के प्रमुख एवं आधारभूत पक्षों को समझने में कठिनाई होगी। परमाणुभार निकालना, अणुभार निकालना, तुल्यांकीभार निकालना, यौगिकों में तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा ज्ञात करना आदि को समझने के लिए समीकरण, प्रतिशत, अनुपात, लेखाचित्र, प्रतिस्थापन, चर तथा अचर राशियां, औसत आदि का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। गणित के इन प्रमुख उप-विषयों के ज्ञान के बिना रसायनशास्त्र के सिद्धान्तों को नहीं समझा जा सकता है।
यहाँ पर यह बताना भी आवश्यक है कि रसायनशास्त्र की अधिकांश भाषा भी गणितीय है। उदाहरणार्थ बाॅयल का नियम कहता है कि ताप के स्थिर रहने पर किसी गैस की निश्चित मात्रा का आयतन उसके दबाव का प्रतिलोमानुपाती है तथा चार्ल्स के नियम के अनुसार दबाव स्थिर रहने पर गैस की निश्चित मात्रा का आयतन उसके ताप का समानुपाती होता है। इन नियमों को हम क्रमशः p=k/v और v=mT की सांकेतिक भाषा में लिख सकते हैं। इसी प्रकार रसायनशास्त्र के प्रत्येक क्षेत्र में सूत्र, समीकरण, संकेत तथा मान-प्रतिस्थापन का उपयोग होता है। गणित के ज्ञान के बिना रसायनशास्त्र के नियमों और क्रियाओं को सांकेतिक भाषा में लिखना तथा समझना कठिन होगा।

5.गणित एवं प्राणी तथा वनस्पति विज्ञान

प्राणी विज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए भी गणित का ज्ञान आवश्यक है। गणित के ज्ञान के बिना विद्यार्थियों को इन विचारों के अध्ययन में कठिनाई होगी। किसी जीव की हड्डियों, नाडिय़ों आदि की संख्या, हड्डियों की लम्बाई, हड्डियों का परस्पर अनुपात, हड्डियों का भार आदि ज्ञात करने के लिए अंकगणित का ज्ञान आवश्यक है। कोशिकाओं का अध्ययन करते समय विद्यार्थियों के लिए वर्ग,वृत्त, बहुभुजीय क्षेत्र आदि का ज्ञान होना आवश्यक है। इस संदर्भ में ज्यामिति का अध्ययन सहायक सिद्ध होता है। कोशिकाओं में कार्बनहाइड्रोजन, नाइट्रोजन आदि की मात्रा ज्ञात करने के लिए प्रतिशत का ज्ञान होना वांछनीय है। मैंडल के सिद्धान्त को समझने के लिए गणित की सहायता लेना जरूरी होता है।
इसी प्रकार वनस्पतिशास्त्र में भी गणित के आधारभूत सिद्धान्तों का ज्ञान सहायक होता है। पुष्प, पत्ती, जड़ आदि के अध्ययन में गणित की अनेक क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी, अंकुरण, बीज, पौधा पुष्प, फल आदि में परस्पर गणितीय सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता पड़ती है तथा इन सम्बन्धों को अनेकों प्रयोगों द्वारा विस्थापित किया जाता है। वनस्पतिशास्त्र में घनत्व, वितरण, आवृत्ति, क्षेत्रफल आदि प्रत्ययों का प्रयोग भी होता है। लेखाचित्र का प्रयोग वनस्पतिशास्त्र के प्रत्येक क्षेत्र में किया जाता है जिससे स्थिति के अवयवों में परस्पर सम्बन्ध समझने में सहायता मिलती है।
प्राणी विज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान के क्षेत्रों में नवीन ज्ञान को प्राप्त करने में गणित का अभूतपूर्व योगदान रहा है। नवीन खोजों एवं अनुसंधानों में गणित एक महत्त्वपूर्ण आधार प्रदान करता है तथा निष्कर्षों के तुलनात्मक अध्ययन में सहायक होता है।

6.गणित एवं अर्थशास्त्र(Mathematics and Economics)-

आज का युग अर्थशास्त्र का युग है तथा प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अर्थ एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। ज्यों-ज्यों तकनीकी प्रगति होती जा रही है उतना ही अधिक अर्थशास्त्र का उपयोग बढ़ता जा रहा है। अर्थशास्त्र के नियमों में गणित के द्वारा निश्चितता का लाना सम्भव हो सका है। अब तो यह स्थिति आ गई है कि अर्थशास्त्र के विद्यार्थी के लिए गणित का ज्ञान आवश्यक हो गया है। 'इकाॅनोमेट्रिक्स' एक अर्थशास्त्र की महत्त्वपूर्ण शाखा है जिसमें गणित एवं सांख्यिकी का उपयोग होता है। अर्थशास्त्र में अनेक विषय हैं जिनका गणित के उपयोग के बिना उचित स्पष्टीकरण नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए उपयोगिता, माँग एवं पूर्ति, राष्ट्रीय आय, मूल्य निर्धारण, पारिवारिक बजट, सूचकांक, विदेशी व्यापार, आर्थिक नियोजन, मुद्रा स्फीति, मुद्रा अवमूल्यन, विदेशी विनिमय दर, निवेश विश्लेषण, कर निर्धारण, सार्वजनिक ऋण, जनसंख्या आदि आर्थिक विषयों का विवेचन, स्पष्टीकरण एवं शुद्धता के लिए गणित का उपयोग आवश्यक है। गणित के क्षेत्र में से प्रतिशत, औसत, ब्याज, समीकरण, सूत्र निर्धारण, वृत्ताकार एवं विभिन्न प्रकार के लेखाचित्र आदि के प्रयोग द्वारा अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री को वैज्ञानिक विधि से प्रतिपादित किया जाता है। गणित की सहायता से आधुनिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र की अनेक बातें विद्यार्थी आसानी से समझ सकता है। मूल्य निर्धारण, माँग एवं पूर्ति, मुद्रा, नियोजन आदि क्षेत्रों में बीजगणितीय सूत्रों का प्रचुर मात्रा में उपयोग होता है। राष्ट्रीय आय, जनसंख्या, विदेशी व्यापार, उत्पादन, पारिवारिक बजट आदि को ग्राफ के द्वारा भली प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है तथा चित्रों द्वारा संकल्पनाओं का स्पष्टीकरण किया जा सकता है। नियोजन के प्रारूपों का निर्माण गणित की सहायता से सम्भव हो सका है। संसार के जितने भी प्रगतिशील देश हैं उन्होंने नियोजन के द्वारा ही आर्थिक प्रगति की है तथा भारत में गत पंचवर्षीय योजनाओं की व्याख्या गणित की सहायता से ही की जा सकी है। नियोजन में आँकड़ों की आवश्यकता पड़ती है तथा उनके औसत और प्रतिशत तुलनात्मक अध्ययन एवं मूल्यांकन के लिए ज्ञात किए जाते हैं। आधुनिक युग में प्रत्येक देश की समृद्धि अधिक निर्यात पर निर्भर करती है और प्रत्येक देश विदेशी मुद्रा कमाने का प्रयत्न करता है ताकि इस मुद्रा का उपयोग आधुनिकतम तकनीकी सामान-सज्जा प्राप्त करने में किया जा सके।
अधिक विदेशी मुद्रा की प्राप्ति तभी सम्भव है जबकि भुगतान सन्तुलन देश के पक्ष में हो। इसके लिए निर्यात का आयात से अधिक होना आवश्यक है और यह सब जानकारी तभी व्यावहारिक हो सकती है जब इसके लिए गणित का उपयोग किया जाय। भुगतान सन्तुलन को पक्ष में करने के लिए राष्ट्रों को कई बार मुद्रा के अवमूल्यन का सहारा लेना पड़ता है। इस अवमूल्यन की सही मात्रा का फलन गणित के बिना असम्भव है। इसलिए आर्थिक संस्थानों में अर्थशास्त्रियों को अच्छे स्तर की गणित की जानकारी आवश्यक हो गई है। आज प्रत्येक नागरिक मूल्यों में लगातार वृद्धि से परेशान है। मुद्रा की मात्रा में कमी या वृद्धि का मूल्य स्तर पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे गणित की सहायता से आँका जा सकता है। महँगाई भत्ता आदि निर्धारित करने के लिए जीवन-लागत सूचकांक का प्रयोग किया जाता है जिसमें गणित के सिद्धान्तों एवं दक्षताओं का प्रचुर मात्रा में उपयोग होता है। आधुनिक युग में जनसंख्या में वृद्धि से असंतुलन हो जाता है तथा गरीबी में वृद्धि होती है। जन्मदर, मृत्युदर, उत्तरजीवी दर आदि के द्वारा जनसंख्या में परिमाणात्मक परिवर्तनों को गणित की सहायता से ज्ञात किया जाता है तथा रोजगार एवं मूल्यों पर इनके प्रभाव को आँका जाता है। संसार के जनसंख्या विशेषज्ञ विद्यालयों में 'जनसंख्या गणित' की सिफारिश कर रहे हैं।

7.गणित एवं मनोविज्ञान(Mathematics and Psychology)-

आधुनिक मनोविज्ञान में मापन प्रक्रिया के उपयोग के कारण गणित का ज्ञान होना आवश्यक हो गया है। मनोविज्ञान के विद्यार्थी के लिए औसत, प्रतिशत, अनुपात, लेखाचित्र का साधारण ज्ञान तो अत्यन्त आवश्यक है। किन्तु मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले विशेषज्ञों के लिए गणितीय चिंतन से भलीभाँति परिचित होना आवश्यक है, क्योंकि सूत्रीकरण, सामान्यीकरण, प्रतिस्थापन आदि महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं का उपयोग उनके लिए अनिवार्य है। बालक का विकास, वंश परंपरा एवं वातावरण सीखना, बुद्धि परीक्षा, व्यक्तित्त्व, रुचि एवं अभिरुचि का मापन आदि मनोविज्ञान के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को समझने के लिए गणित का ज्ञान सहायक सिद्ध होता है। मनोविज्ञान में गणना परीक्षण, मापन, तुलना, तत्त्वों का अध्ययन प्रमाणीकरण, निदान, उपचार - आदि पक्षों में गणित का बहुतायत से प्रयोग होता है। व्यक्तित्व के किसी आयाम से विकास की गति, वातावरण का प्रभाव आदि सम्बन्धों को सूत्रों एवं लेखाचित्रों से प्रदर्शित किया जाता है। मनोविज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में गणित के उपयोग से गुणात्मक पक्ष का परिमाण एवं संख्याओं के संदर्भ में अध्ययन किया जाना सम्भव हो सका है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में जितने अनुसंधान किए गए हैं उनके निष्कर्षों के सत्यता की जाँच में गणित का उपयोग महत्त्वपूर्ण रहा है। गणित के बिना मनोविज्ञान केवल परिभाषाओं एवं वृतान्तों का शास्त्र रह जाता तथा इसका व्यापक उपयोग भी सम्भव नहीं हो पाता। आज के युग में मनोविज्ञान का प्रत्येक क्षेत्र में उपयोग हो रहा है तथा गणित की सहायता से मनोविज्ञान के नियमों एवं निष्कर्षों का स्वरूप परिस्थितियों के सन्दर्भ में आँका जाता है। मनोविज्ञान में सांख्यिकी का बड़ी मात्रा में प्रयोग होता है तथा अनेक निष्कर्ष ज्ञात करने में सांख्यिकी के सिद्धान्तों एवं सूत्रों का व्यापक प्रयोग किया जाता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण में गणित का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग कर निष्कर्ष ज्ञात किए जाते हैं।

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