What is Place of Mathematics in Curriculum?

What is Place of Mathematics in Curriculum?

पाठ्यक्रम में गणित का स्थान(Place of Mathematics in Curriculum)-


    1.गणित का पूर्व सम्मानित स्थान(Pre-honored Mathematics Place)-

    What is Place of Mathematics in Curriculum
    What is place of Mathematics in Curriculum 
    प्राचीनकाल से ही शिक्षा में गणित का सदैव उच्च स्थान रहा है। प्लेटो ने तो अपनी पाठशाला के द्वार पर यहाँ तक लिख रखा था कि जो व्यक्ति रेखागणित को नहीं समझते हैं, वे उस पाठशाला में शिक्षा ग्रहण करने के ध्येय से प्रवेश न करें। प्रायः सभी महान् शिक्षकों जैसे-हर्बर्ट, फ्राबेल, पेस्टालाॅजी, डाॅ. मेरिया, माॅण्टेसरी और सर टी. पी. नन आदि ने गणित को मानव-विकास का प्रतीक माना है। इन्होंने गणित की शिक्षा को मनुष्य के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विकास (Cultural Development) का सर्वश्रेष्ठ साधन मानकर शिक्षा के पाठ्यक्रम में उच्चतम स्थान दिया है। नेपोलियन जैसे महान् योद्धा, शासक एवं राजनीतिज्ञ के कथनानुसार-गणित की उन्नति के साथ देश की उन्नति का घनिष्ठ सम्बन्ध है।
    गणित के बारे में तो जैन गणितज्ञ श्री महावीराचार्य जी ने अपनी 'गणित-सार-संग्रह' नामक पुस्तक में अत्यन्त प्रशंसा की है। वह लिखते हैं-"लौकिक, वैदिक तथा सामाजिक जो-जो व्यापार हैं, उन सब में गणित का उपयोग है। कामशास्त्र, अर्थशास्त्र, पाकशास्त्र, गन्धर्वशास्त्र(गायन), नाट्यशास्त्र, आयुर्वेद, भवन निर्माण-शास्त्र आदि वस्तुओं में, छन्द, अलंकार, काव्य, तर्क, व्याकरण इत्यादि तथा कलाओं के समस्त गुणों में गणित अत्यन्त उपयोगी है। सूर्य आदि ग्रहों की गति ज्ञात करने में, ग्रहण का समय ज्ञात करने में, दिशा, देश तथा समय ज्ञात करने में, चन्द्रमा के परिलेख आदि में सर्वत्र गणित का काम पड़ता है। द्वीपों, समुद्रों और पर्वतों की संख्या, व्यास और परिधि, लोक-अन्तर्लोक, स्वर्ग एवं नरक के रहने वालों के मकानों में, सभा-भवनों एवं गुम्बदाकार मन्दिरों के परिमाण तथा अन्य बातें गणित की सहायता से जानी जाती है। वहाँ पर प्राणियों के संस्थान, उनकी आयु और आठ गुण, मात्रा तथा संहिता आदि से सम्बन्ध रखने वाले विषय-सभी गणित पर निर्भर हैं। अधिक क्या कहें-सचराचर त्रैलोक्य में जो कुछ भी वस्तु है, उसका अस्तित्व गणित के बिना सम्भव नहीं हो सकता। "
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    2.गणित विषय को पाठ्यक्रम में एक विशेष स्थान देने के मुख्य कारण(The main reasons for giving mathematics a special place in the curriculum)-

    (1.)गणित एक यथार्थ (Exact) विज्ञान है-
    इसका अध्ययन करने का मुख्य कारण यह है कि विद्यार्थियों में इस विषय के अध्ययन द्वारा स्पष्टता(Exactness) पैदा होती है तथा विद्यार्थी अपने कार्य में सही तथा स्पष्ट रहता है। गणित विषय में यदि किसी प्रश्न का "हाँ" या "न" में उत्तर आता है तो वह कुछ गलत तथा कुछ सही नहीं हो सकता है बल्कि एक ही हो सकता है। उदाहरण के रूप में 2+3=5 और वह 6 या 4 नहीं हो सकता है।
    (2.)गणित तार्किक(Logical) दृष्टिकोण पैदा करता है-
    प्रत्येक समस्या के हल करने में विद्यार्थी को तर्क के आधार पर समस्या को हल करना पड़ता है। प्रत्येक पद का सम्बन्ध दूसरे पद से किसी निश्चित तर्क पर आधारित होता है।
    (3.)गणित का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है (Related to Life) -
    गणित को व्यापार का प्राण तथा विज्ञान का जन्मदाता कहा जाता है। गणित का गणितज्ञ, इंजीनियर आदि व्यवसाय से सीधा सम्बन्ध होता है तथा उपर्युक्त व्यवसायों में प्रवेश तथा सफलता तभी सम्भव है जब गणित का अध्ययन किया जाय। इसके अतिरिक्त अन्य व्यवसायों जैसे - मशीनों का प्रयोग, भवन-निर्माण, दैनिक वस्तुओं की खरीद आदि में भी गणित का सामान्य ज्ञान आवश्यक होता है। इस प्रकार प्रत्येक दैनिक कार्यक्रम में बिना गणित के ज्ञान के सफलता मिलना कठिन है। आधुनिक युग में सभ्यता की नींव गणित पर आधारित है।
    (4.)गणित वैज्ञानिक विषयों की आधारशिला है (Mathematics is the Basis of all Sciences) -
    विज्ञान के भिन्न-भिन्न विषय जैसे-ज्योतिष विज्ञान(Astrology), नक्षत्र विज्ञान(Astronomy), भौतिक विज्ञान(Physics), रसायन विज्ञान(Chemistry), जीव-विज्ञान(Biology), भूगर्भ विज्ञान(Geology) आदि जिनका आधुनिक युग में विशेष महत्त्व है, का आधार गणित ही है। गणित के ज्ञान के अभाव में इनका विकास सम्भव नहीं है,उदाहरण के रूप में दबाव की मात्रा, भार, आयतन, घनत्व, गुणात्मक ज्ञान, परमाणुओं की संख्या का बोध, औषधियों का निर्माण तथा अन्य माप(Measurement) सभी का आधार गणित है । इकाई(unit) का प्रत्यय गणित ही है ।वैज्ञानिक विषयों के अतिरिक्त विद्यालय के अन्य विषय भी गणित के बिना अपने उद्देश्यों की पूर्ति नहीं कर सकते हैं।
    (5.)गणित एक विशेष प्रकार के सोचने का दृष्टिकोण प्रदान करता है(Mathematics Provides a Definite Way of Thinking) -
    गणित से एक निश्चित, क्रमानुसार सत्य, तार्किक रूप से सोचने का दृष्टिकोण पैदा होता है। प्रत्येक गणित की समस्या को हल करने में विद्यार्थी सत्य, निश्चित, एक क्रम, तर्क का प्रयोग करता है जिससे धीरे-धीरे उसका दृष्टिकोण एक निश्चित रूप का बन जाता है जो कि अन्य विषयों से भिन्न होता है।
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    3.गणित अनिवार्य विषय(Compulsory subject)-'

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    गणित' इतना अनिवार्य विषय होते हुए भी अनिवार्य(Compulsory) क्यों न रखा जाय। कितने ही प्रदेशों में पाठ्यक्रम (Syllabus)  में से बालकों को गणित छोड़ देने की पूर्ण स्वतंत्रता दे दी है। यह उनकी बहुत बड़ी भूल है । इसका प्रभाव छोटी कक्षाओं पर भी पड़ता है और पड़ना जरूरी भी है। आजकल जब बालकों के मन में मैट्रिक तथा उसकी परीक्षा ही आराध्यदेवी बनकर बैठी हो तब गणित की ऐसी अवज्ञापूर्ण दशा में बालकों के मन में गणित के प्रति श्रद्धा कभी जाग्रत नहीं हो सकती।
    अधिकांश बालक मैट्रिक पास करके व्यावहारिक जीवन में प्रवेश करते हैं। उनको जीविकोपार्जन हेतु बैंकों, दफ्तरों और दुकानों आदि में काम करना पड़ता है, जहाँ पर उनकी संख्याओं, स्टाकों और शेयरों (Stocks and Shares), लाभ-हानि (Profit and Loss), मितीकाटा और तत्काल धन(Present Worth and True Discount) से काम पड़ता है। बालक गणित के ज्ञान के अभाव में इन बातों में पीछे रह जाता है। यदि पाठ्यक्रम में गणित की अवहेलना की गई तो बालकों को आगामी जीवन में बड़ा नीचा देखना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त गणित के अध्ययन से जो मानसिक प्रशिक्षण (Mental Training) प्राप्त होता है, वह भी खटाई में पड़ जाएगा। अतः इन सब बातों से पाठ्यक्रम में गणित का अनिवार्य होना जरूरी है।
    कभी-कभी ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक विद्यार्थी को इंजीनियर या मिस्त्री तो बनना ही नहीं है, जिससे व्यवसाय में गणित का ज्ञान काम आ सके। इसलिये सब विद्यार्थियों को गणित अनिवार्य बनाकर पढ़ाने से क्या लाभ है? बात भी सही है । प्रत्येक विद्यार्थी डाॅक्टर या इन्जीनियर नहीं बन सकता। परन्तु क्या मालूम, कौन क्या बनेगा!हमारा काम तो यह है कि मैट्रिक के विद्यार्थियों को अधिक से अधिक ज्ञान दें ताकि उनको अपनी रुचि के अनुसार कोई भी व्यवसाय चुनने में जरा भी कठिनाई न हो। हाईस्कूल कक्षाओं से पहले विद्यार्थी काफी छोटे व अज्ञानी होते हैं। उनको इस बात का ज्ञान नहीं होता है कि वे कौन-सा विषय लें जो उनके भविष्य में लाभदायक हो। प्रायः अपने सहपाठियों तथा मित्रों की सलाह से मनचाहे विषय चुन लेते हैं। परन्तु जब वे विषय, व्यवसाय में लाभदायक नहीं होते हैं अथवा छोड़े हुए विषयों की कमी के कारण व्यवसाय में कठिनाई प्रतीत होती है, तब वे अपने पहले अज्ञानतापूर्ण निर्वाचन पर हाथ मलते हैं और सलाह देने वालों को कोसते हैं, अतः गणित को अनिवार्य विषय बनाने पर यह कठिनाई कभी प्रतीत न होगी।
    गणित को हाईस्कूल कक्षाओं में ऐच्छिक (Optional) विषय करने से इस बात पर भी असर पड़ता है कि जिन विद्यार्थियों की हाईस्कूल कक्षाओं में गणित नहीं होती है, उनका व्यवसाय सम्बन्धी निर्वाचन(Choice of Profession) बहुत संकीर्ण (Limited ) रह जाता है। यहाँ तक कि जो विद्यार्थी काॅलेजों में प्रवेश करते हैं, उनके विषय जैसे-जीव-विज्ञान(Biology) और अर्थशास्त्र(Economics) आदि तक की पढ़ाई में गणित की अज्ञानता (Ignorance) बाधा डालती है।
    गणित के अतिरिक्त स्कूल पाठ्यक्रम में कोई भी ऐसा विषय नहीं है जो बिना अधिक अध्ययन किये जीवन में प्रयोग हो सके। गणित ही ऐसा विषय है , जिसका हाईस्कूल कक्षाओं तक का ज्ञान जीवन में प्रयोग हो सकता है। बेचारे कुली (Labourer) से लेकर, जो मुश्किल से अपनी जीविका कमा पाता है, अर्थ मन्त्री(Finance Minister) तक जिसका लाखों और करोड़ों रुपयों का बजट बनता है , पान से लेकर जो कि सिर्फ रुपये और पैसे तक हिसाब रखता है, बिरला और टाटा तक जो करोड़ों रुपये का व्यवसाय करते हैं, साधारण बढ़ई से लेकर बड़े-बड़े इंजीनियरों तक जो संसद जैसे विशाल भवन का निर्माण करते हैं, सभी को अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। अतः दाल-रोटी के उद्देश्य से ही यदि पाठ्यक्रम बनाया जाय तो भी गणित का स्कूल के पाठ्यक्रम में सर्वप्रथम स्थान होना चाहिए।
    इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि गणित मनुष्य जाति के लिए उसके जीवन में कदम-कदम पर अनेक प्रकार से उपयोगी है। इसके बिना वह जीवन में तनिक भी उन्नति के पथ की ओर नहीं चल सकता है। स्कूल के अन्य सभी विषय इसी के आधार पर मनुष्य के लिए उपयोगी हो सकते हैं। इसके बिना सभी विषय निरर्थक प्रतीत होते हैं। अतः गणित का स्कूल पाठ्यक्रम में सर्वप्रथम तथा प्रतिष्ठित (Respected) स्थान होना अति आवश्यक है। 

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