Gender differences in mathematics increase by underestimating girls

Gender differences in mathematics increase by underestimating girls

1.लड़कियों को कम आंकने से गणित में लैंगिक अंतर बढ़ता है का परिचय (Introduction to Gender differences in mathematics increase by underestimating girls)-

इस आर्टिकल में बताया गया है कि गणित सीखने के लिए शिक्षकों द्वारा लड़को को प्राथमिकता देने व लड़कियों को कमतर आंकने से लड़कियां पिछड़ जाती हैं। इसलिए सबके साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। बौद्धिक रूप से यह विचार सुलझा हुआ तथा अच्छा लगता है परन्तु व्यावहारिक रूप से इस पर विचार करें तो यह कार्य बहुत कठिन है। क्या समानता लाने के लिए मोटे व्यक्ति को समान करने के लिए उसको छीला जा सकता है? व्यावहारिक रूप में यह कार्य कठिन है। संसार में हर चीज के दो पहलू होते जैसे शुभ-अशुभ, न्याय-अन्याय, हानि-लाभ, ऊँच-नीच, जय-पराजय इत्यादि। अर्थात् एक के बिना दूसरा असंभव है।जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं चित्त और पट। उसी प्रकार संसार में जो चीजे हैं उसके दो पहलू होते हैं। यहाँ कहने का यह तात्पर्य नहीं है कि समानता लाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। वस्तुतः जब तक हम किसी भी बात के पक्ष-विपक्ष की पूरी जाँच-पड़ताल नहीं कर लेते हैं तब तक उस पर चलना या कदम बढ़ाना हमारे लिए समस्या पैदा कर सकता है। समानता का अधिकार भी उसी तरह है। समानता लाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए परन्तु इसमें शत-प्रतिशत सफलता प्राप्त करना नामुमकिन है। 
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2.लड़कियों को कम आंकने से गणित में लैंगिक अंतर बढ़ता है(Gender differences in mathematics increase by underestimating girls)-

महिलाओं के हर क्षेत्र में पिछड़ने का मूल कारण है स्त्री शिक्षा का अभाव। जो नारी शिक्षा ग्रहण करने में रूचि नहीं लेती हैं या जिनके अभिभावक नारी शिक्षा पर ध्यान नहीं देते है वे नारियाँ पिछड़ी हुई रह जाती हैं। इस प्रकार की नारियाँ या मनुष्य जैसे -तैसे अपने जीवन को बोझ की तरह ढोकर जैसे आए थे वैसे ही मृत्यु के मुख में चली जाती हैं।
प्राचीन भारत में नारी व पुरुष को समान रूप से शिक्षा दी जाती थी इसलिए पुरुषों के समान कई महिलाएं विख्यात हुई और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उस काल में गार्गी, मैत्रेयी, घोषा, लोपामुद्रा, विश्वारा, अपाला आदि विदुषी नारियों ने नारी जाति का गौरव बढ़ाया है. महाकवि कालिदास की पत्नी विद्योत्तमा विदुषी महिला थी उसने अनेक विद्वानों को शास्त्रार्थ में हराया था. शिवाजी, महाराणा प्रताप जैसे महापुरुषों को आगे बढ़ाने के पीछे नारी का ही योगदान था. धीरे-धीरे समाज पुरुष प्रधान होता गया और नारी को दोयम दर्जा देकर उनको घर में कैद कर दिया गया। 
इस आर्टिकल में बताया गया है कि शिक्षकों के द्वारा बालकों को अधिक प्राथमिकता देने के कारण लड़कियां गणित शिक्षा में पिछड़ती गई। वस्तुतः लड़कियों के साथ यह भेदभाव शिक्षकों के द्वारा ही नहीं किया जाता है बल्कि हम सभी इसके लिए जिम्मेदार हैं। माता-पिता भी लड़कियों के साथ भेदभाव करते हैं उनकी मानसिकता  यह है कि लड़कियों की शादी करनी है इसलिए उनको सामान्य शिक्षा प्रदान करवा दी जाए जिससे उनके लिए अच्छा रिश्ता मिल जाए और घर को ठीक से सम्हाल सके यानि वे शिक्षा को मात्र शादी का सर्टिफिकेट मानते हैं इसलिए उनको शिक्षा या उच्च शिक्षा के बजाए कला शिक्षा को चुनने हेतु कहा जाता है। 
समाज में भी लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है जो लड़के गणित में अव्वल आते हैं उनको सम्मानित किया जाता है और पदक दिए जाते हैं। 
इस प्रकार के वातावरण में जब लड़कियां अपने साथ भेदभाव होता देखती है तो इसे नियति समझकर समझौता कर लेती है, इस प्रकार लड़कियाँ स्वयं भी इसके लिए जिम्मेदार है। गणित शिक्षा में लड़कियों को बढ़ावा न देने के कारण वे पिछड़ती जाती है और उनकी सुप्त प्रतिभा को पल्लवित और जाग्रत होने से पहले ही कुचल दिया जाता है। 
हालांकि ज्यों-ज्यों शिक्षा का ग्राफ समाज में बढ़ता जा रहा है तो लोगों की मानसिकता में परिवर्तन होता जा रहा है। आज हर क्षेत्र में भी नारी अपना दबदबा कायम कर रही है और पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर योगदान दे रही है। इसलिए ध्यान रखा जाना चाहिए कि लड़कियों की प्रतिभा को कुचलने से उनमें हीन भावना घर कर जाती है और वे सोचती है कि गणित शिक्षा प्राप्त करना उनके वश में नहीं है और वे गणित शिक्षा प्राप्त करने की हकदार नहीं है। इसलिए गणित में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उनको खुद को संघर्ष करना पड़ेगा तभी सच्चे अर्थों में वे आगे बढ़ सकेंगी। एक बार संघर्ष का रास्ता चुन लिया तो लोग खुद-ब-खुद  जुड़ने लगेगें और उनको प्रोत्साहित करने लगेंगे। माता-पिता अभिभावक शिक्षकों व समाज को भी नारी शिक्षा के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। इसलिए उनकी प्रतिभा को पहचानकर जिस क्षेत्र में उनकी रुचि व जिज्ञासा जिस क्षेत्र में हो तथा उस क्षेत्र के लायक उनमें प्रतिभा हो तो उस क्षेत्र में शिक्षा दिलवाने में प्रोत्साहन व प्रेरणा देने की आवश्यकता है। 
नारी को शिक्षा का अवसर दिया जाए तो ज्ञान व बुद्धि में वह भी आगे बढ़ सकती है। वर्तमान युग में नारी व पुरुष को समानता का अधिकार देने के कारण नारी शिक्षा में वृद्धि हुई है। इसलिए धीरे -धीरे हर क्षेत्र में नारी आगे बढ़ रही। 'नोबेल ऑफ मैथ ' जिसे गणित का नोबल पुरस्कार कहा जाता है ,एक महिला को मिलना शुभ संकेत है.यह  करेन उहलेनबेक को मिला है। 
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3.लड़कियों को कम आंकने से गणित में लैंगिक अंतर बढ़ता है (Gender differences in mathematics increase by underestimating girls)-

कामयाबी और व्यवहार में लड़कों के बराबर होने के बावजूद शिक्षकों की ओर से लड़कियों को कमतर आंकने की वजह से गणित विषय में लैंगिक फासला बढ़ता है. एक नए शोध में यह बात सामने आई है. शोधकर्ताओं का कहना है कि प्राथमिक विद्यालय के स्तर से लड़के गणित में लड़कियों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं और यही स्थिति आगे भी बनी रही. यह हालात 1990 के दशक के आखिर में था.
न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जोसेफ रॉबिन्सन किम्पियन ने कहा, शैक्षणिक क्षेत्र में बदलावों के बावजूद, हमारे शोध में यह बात सामने आई है कि साल 2010 में प्राथमिक विद्यालयी स्तर के बच्चों में लैंगिक स्तर पर अंतर वही था जो 1998 में इसी स्तर पर बच्चों के बीच था. अध्ययन में अमेरिका के लड़के और लड़कियों के विकासात्मक और शैक्षणिक परिणामों पर नजर रखा गया.
शोधकर्ताओं ने 1998-1999 में प्राथमिक विद्यालय में कदम रखने वाले उन लड़के और लड़कियों पर अध्ययन आरंभ किया जिनकी गणित विषय में दक्षता समान थीं, लेकिन तीसरी कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते लड़कियां पीछे छूट गईं. लड़के और लड़कियों के बीच का यह अंतर गणित विषय के संदर्भ में अधिक था.
अध्ययन में यह पाया गया कि इस लैंगिक अंतर के लिए छात्रों के प्रति शिक्षकों की धारणा भी जिम्मेदार है. गणित में विषय में प्रदर्शन को लेकर शिक्षक लड़कियों को लड़कों से कम आंकते हैं.
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