Commercial Arithmetic

वाणिज्यिक अंकगणित(Commercial Arithmetic) -

1.शेयर तथा डिविडेन्ड (Shares and Dividends) -
बड़े-बड़े उद्योग-धन्धे चलाने के लिए कुछ इच्छुक साझीदारों के प्रयत्न से एक कम्पनी स्थापित की जाती है। कम्पनी के प्रबन्ध के लिए डायरेक्टर्स चुन लिए जाते हैं। आवश्यक पूँजी को छोटे-छोटे भागों में बाँट दिया जाता है। इन भागों को शेयर (shares) कहते हैं जो प्रायः 100 या 10 रुपये के होते हैं। कोई भी मनुष्य अपनी इच्छानुसार शेयर खरीद व बेच सकता है। शेयर खरीदने वाले को शेयर होल्डर या भागीदार कहते हैं। लगाई हुई पूँजी के अनुपात में भागीदारों में लाभांश अथवा डिविडेन्ड (Dividend) का बँटवारा हो जाता है।
प्रारम्भ में प्रत्येक भागीदार से इसके भागों का सम्पूर्ण धन न लेकर उसका कुछ भाग लिया जाता है। शेयर का शेष भाग आवश्यकता पड़ने पर उनसे माँग लिया जाता है।
Commercial Arithmetic

Commercial Arithmetic 

कोई भी भागीदार अपने भागों का धन कम्पनी से वापिस नहीं ले सकता। वह अपने भागों को बेच सकता है। यदि कम्पनी लाभ में होती है तो शेयर का बाजार मूल्य वास्तविक मूल्य से बढ़ जाता है तथा हानि पर शेयर का बाजारी मूल्य घट जाता है। परन्तु शेयर के बाजारी मूल्य का प्रभाव व्यापार की पूँजी पर नहीं पड़ता। मान लो सोहन के पास 100 रुपये का एक शेयर है जिस पर कम्पनी उसे 6% लाभ देती है। सोहन को प्रतिवर्ष 5रुपये लाभ मिलेगा। यदि बाजार में शेयर का मूल्य 115 रुपये हो जाए तो भी भागीदार को 6 रुपये ही लाभ होगा।
कम्पनी शेयर के वास्तविक मूल्य पर लाभ देती है उसके बाजारी मूल्य पर नहीं।
कम्पनी शेयर के उस मूल्य पर लाभांश देती है, जो भुगतान कर दिया गया है। ऊपर के उदाहरण में यदि सोहन ने केवल 75 रुपये ही भुगतान किया है तो कम्पनी उसे (75x6)/100 रुपये अर्थात् 4.50 रुपये ही लाभांश देगी।

2.बैंकिंग (Banking) -

 विश्व के प्रत्येक देश की अपनी एक मुद्रा होती है, जिसकी सहायता से व्यापार चलता है। हमारे देश भारत की मुद्रा रुपया है। जो संस्थाएं मुद्रा का क्रय-विक्रय करती है उन्हें बैंक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में बैंक वह संस्था है जहाँ लोग अपनी बचत की धनराशि जमा कर सकते हैं और वहाँ से कुछ शर्तों के अधीन ऋण प्राप्त कर सकते हैं।

3.कराधान (Taxation) -

सरकार को कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने, उचित न्याय दिलाने, देश की रक्षा करने, मुद्रा की स्थिति बनाए रखने आदि जैसे कुछ बुनियादी कार्यकलापों को पूरा करने में काफी धन खर्च होता है। समय के साथ सामूहिक माँगें भी बढ़ती जा रही है। जिसका परिणाम यह हुआ कि लोग अब सरकार से यह आशा करने लगे हैं कि वह लोगों के जीवन को बेहतर बनाने और उन्हें अधिक से अधिक सुविधा उपलब्ध कराने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाये। लोक कल्याण राज्य की अब नई परिभाषा यह हो गई है कि आम जनता और उच्च वर्ग के व्यक्तियों के बीच के अन्तर को कम से कम किया जाए। बेरोजगारी दूर करने और शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के लिए उत्तम सुविधा उपलब्ध कराने जैसे विभिन्न सामाजिक उपायों को लागू करने की माँग आज के नागरिक सरकार से कर रहे हैं। इन सभी कार्य-कलापों ने सरकार पर एक नई जिम्मेदारी डाल दी है और नतीजे के रूप में सरकारी खर्चे में बढ़ोतरी होती जा रही है। इस खर्चे को पूरा करने के लिए  सरकार सरकार को देश के निवासियों और कुछ स्थितियों में (पर्यटकों और यात्रियों जैसे) अनिवासियों से धन जुटाने की व्यवस्था करनी होती है। जुटाया जाने वाला यह धन विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होता है जिसमें एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

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3(1.)कराधान (Taxation) -

आप आयकर, संपत्ति कर, उपहार कर, बिक्री कर आदि के नाम से अवश्य परिचित होंगें। ये सभी कर प्रत्येक वर्ष केन्द्रीय सरकार के बजट या राज्य सरकारों के बजट में प्रस्तावित किए जाते हैं, बढा़ये जाते हैं या कम किए जाते हैं। केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाए गये करों के अन्तर्गत आयकर, संपत्ति कर, उपहार कर, केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क, केन्द्रीय बिक्री कर आदि आते हैं जबक राज्य सरकारों द्वारा लगाए गए करों के अन्तर्गत, कृषि राजत्व कर, मनोरंजन कर, राज्य उत्पाद शुल्क और बिक्रीकर आदि आते हैं। नगर निगम, नगर पालिकाएं, केन्टोनमेन्ट बोर्ड, जिला परिषद आदि जैसे स्थानीय निकाय भी कुछ लगाते हैं। इनके द्वारा लाये गये करों के अन्तर्गत संपत्ति कर, व्यावसायिक कर, चुंगी, शिक्षा शुल्क आदि आते हैं। दूसरे शब्दों में यह बिल्कुल स्पष्ट है कि केन्द्रीय सरकार को किन-किन क्षेत्रों में कर लगाना होता है। क्योंकि राज्यों और स्थानीय निकायों की तुलना में केन्द्रीय सरकार को कर से काफी धनराशि प्राप्त होती है, अतः विकास पर किए जाने वाले खर्चों को पूरा करने के लिए केन्द्रीय सरकार अपने केन्द्रीय पूल से प्रत्येक राज्य /संघ-शासित क्षेत्र को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। कर के निम्नलिखित लक्षण हैं -
(1.)यह एक अनिवार्य योगदान है, हालांकि इसका भुगतान इच्छानुसार किया जा सकता है।
(2.)यह एक व्यक्तिगत दायित्व है।
(3.)यह एक सार्वहित के प्रति किया गया योगदान है और कुछ अतिरिक्त सुविधा प्राप्त करने की कीमत नहीं है।
(4.)इसे कुछ वैधानिक आवश्यकताओं के अनुसार लगाया जाता है।

3(2.)आयकर (Income Tax) -

यह वह कर है जो कि किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह की आय पर लगाया जाता है। प्रत्येक उस व्यक्ति (या व्यक्ति समूह) को, जिसकी वार्षिक आय एक निर्धारित सीमा से अधिक है, अपनी आय का एक अंश आयकर के रूप में सरकार को देना होता है। प्रत्येक वित्तीय वर्ष (Financial Year) के प्रारम्भ में ही सरकार आयकर की दरे निर्धारित कर देती है।
4.किश्तों के अन्तर्गत भुगतान (Payment in Instalments) -
बैंक जो रुपया ऋण के रूप में देते हैं उसका भुगतान प्रायः वे किश्तों के में लेते हैं। बीमा की धनराशि का भुगतान भी किश्तों में किया जाता है। कभी-कभी व्यापारी और दुकानदार भी अपने ग्राहकों को किश्तों पर भुगतान करने की सुविधा देते हैं। कुछ व्यक्ति मकान आदि पर किश्तों पर खरीदते हैं। ऋण शोधन निधि के लिए बचत भी किश्तों में की जाती है।
निश्चित शर्तो के अधीन समान समय अन्तराल पर भुगतान करने को किश्तों में भुगतान करना कहते हैं। जितनी धनराशि एक समय अन्तराल में भुगतान की जाती है उसे किश्त की राशि या संक्षेप में किश्त (Instalment) भी कहते हैं।

5.साझा (Partnership) -

दो अथवा अधिक व्यक्तियों के मिलकर व्यापार करने को साझा (partnership) कहते हैं और प्रत्येक व्यक्ति को साझा या साझीदार (Partner) कहते हैं। साझीदारों के लगे धन को पूँजी कहते हैं। अन्त में व्यापार में होने वाले लाभ या हानि को पूँजी के परिमाण और उसके लगे रहने के समय के अनुपात में साझीदारों को वितरित कर दिया जाता है।
साझा के प्रकार - साझा निम्न दो प्रकार का होता है -
(1.) साधारण साझा (2.) जटिल साझा
(1.)साधारण साझा - वह है जिसमें साझीदार अपनी पूँजी समान समय के लिए लगाते हैं। इसमें लाभ या हानि को पूँजी के अनुपातों के अनुसार बाँट दिया जाता है।
(2.)जटिल साझा - वह है जिसमें साझीदार अपनी पूँजी भिन्न-भिन्न समयों के लिए लगाते हैं। अतः वर्ष के अन्त में प्रत्येक साझीदार को हुआ लाभ या हानि उसके द्वारा लगाई हुई पूँजी तथा समय दोनों पर निर्भर करता है।

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