Present Position Of Teaching Mathematics

 present position of Teaching Mathematics-

गणित की वर्तमान दशा(present position of Mathematics) :- 

Present Position Of Teaching Mathematics

Present Position Of Teaching Mathematics 

आधुनिक युग में गणित विषय का महत्त्व प्रत्येक क्षेत्र में समझा और महसूस किया जाता है. प्रत्येक प्रतियोगिता परीक्षा सरकारी, अर्द्धसरकारी तथा निजी क्षेत्र में परीक्षण आवश्यक माना जाता है. अर्थात् यह कहा जा सकता है कि सामाजिक, पारिवारिक तथा सरकारी क्षेत्र जिसमें व्यावसायिक कार्य होता है उनमें गणित का उपयोग होता है. लेकिन दु:ख होता है कि गणित विषय का शिक्षण सन्तोषजनक नहीं है इसलिए योग्य अभ्यर्थी भी नहीं मिल पाते हैं. गणित विषय का पठन-पाठन प्रारम्भिक स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक किया जा रहा है अर्थात् बी. एस. सी, एम. एस. सी, एम. फिल. और पी. एच. डी तक किया जा रहा है. ऐसी स्थिति में नये नये अनुसन्धान होते रहते हैं इसके बावजूद यही सुनने को मिलता है कि गणित में योग्य अभ्यर्थी तथा दक्षता रखने वालों का अभाव है, इसके निम्न कारण हो सकते हैं -

(1.)गणित विषय का ऐच्छिक होना ( Mathematics is a optional subject) :-

 वर्तमान शिक्षा प्रणाली में गणित विषय को ऐच्छिक बना रखा है इस कारण अन्य विषयों के विद्यार्थियों को गणित का ज्ञान नहीं हो पाता है. Candidate प्रतियोगिता परीक्षाओं में, व्यवसाय में, सरकारी व गैरसरकारी कार्यालयों में गणित सम्बन्धी कार्य को दक्षतापूर्वक नहीं कर पाते हैं और वे छोटी छोटी गलतियाँ कर बैठते हैं. हालांकि आज का युग तकनीकी व कम्प्यूटर का युग है इसलिए गणित सम्बन्धी गणनाएं कम्प्यूटर व केलकुलेटर से आसानी से हल की जा सकती हैं परन्तु कम्प्यूटर के ज्ञान के लिए भी अतिरिक्त कौशल व प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है और फिर वे छोटी-छोटी गणनाओं के लिए कम्प्यूटर व केलकुलेटर पर आश्रित हो जाते हैं जिससे उनकी वैचारिक क्षमता व गणितीय गणना करने क्षमता का विकास नहीं हो पाता है.

(2.)गणित शिक्षण का परीक्षा केन्द्रित होना (Teaching Mathematics is Oriented to Examination) :-


आजकल विद्यालय महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में गणित का शिक्षण परीक्षा उत्तीर्ण कराने के दृष्टिकोण से कराया जाता है. इसमें छात्र-छात्राएं मुख्य सवालों के हल को रट लेते हैं और उत्तीर्ण हो जाते हैं जिससे उनका गणित सम्बन्धी ज्ञान अधूरा रह जाता है.

(3.)कक्षा में गणित के छात्रों की संख्या का अधिक होना (  A lot of students in the Class) :-

आजकल विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या इतनी अधिक होती है या स्कूल प्रशासन द्वारा इतनी भर दी जाती है कि प्रत्येक छात्र-छात्रा के अध्यापक के सीधे सम्पर्क में नहीं आता है. इसलिए अध्यापक इस प्रकार के छात्र-छात्राओं के बारे में ठीक प्रकार से नहीं जानता है अर्थात् उन छात्र-छात्राओं की क्या क्या कठिनाइयाँ है उन्हें नहीं जान पाता है. कक्षा में सभी प्रकार के विद्यार्थी होते हैं तीव्र, मध्यम और मन्द बुद्धि वाले. तीव्र बुद्धि वाले विद्यार्थियों के तो ठीक से व तत्काल समझ में आ जाता है और मन्द बुद्धि वाले बालक पिछड़ जाते हैं. आगे जाकर इस प्रकार के विद्यार्थियों के लिए गणित विषय कठिन व नीरस लगने लगता है और वे जैसे तैसे परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहते हैं.

(4.)अत्यधिक पाठ्य सामग्री का होना( A lot of study Material) :-

आधुनिक शिक्षा पद्धति में इतना अधिक पाठ्यक्रम है कि वे जब एक विषय का अध्ययन करते हैं तो दूसरे विषय का पाठ्यक्रम पूरा नहीं हो पाता है विशेषरूप से अत्यधिक पाठ्यक्रम होने के कारण गणित सम्बन्धी ज्ञान अधूरा रह जाता है.

(5.)अध्यापकों का परीक्षाफल पर फोकस :-

 अध्यापकों, माता-पिता व अभिभावकों का एक ही दबाव रहता है कि उन्हें परीक्षा में अव्वल आना है. वे छात्र-छात्राओं के सम्मुख इस प्रकार का वर्णन करते हैं और वातावरण बनाते हैं कि मेरे विषय में इतने छात्र प्रथम श्रेणी में, इतने छात्र द्वितीय श्रेणी में तथा इतने छात्र तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हैं उन्हें भी अव्वल आना है जिससे छात्र-छात्राएं मानसिक दबाव में आ जाते हैं. परिणाम यह होता है कि विद्यार्थी गणित विषय को नीरस समझकर तथा कम अंक आने के कारण छोड़ देते हैं.

(6.)गणित सम्बन्धी नवीन अन्वेषण का उपलब्ध न होना (New Innovation of Mathematics not available) :-

गणित में नये नये प्रयोग तथा अन्वेषण होते रहते हैं जो ऐसी पत्र-पत्रिकाओं में छपते हैं जो या तो इतनी महंगी होती हैं जिन्हें छात्र-छात्राएं खरीद नहीं पाते हैं या आसानी से हर जगह उपलब्ध नहीं हो पाती हैं जिससे विद्यार्थी अपने ज्ञान को न बढ़ा सकता है और न ही अपडेट कर सकता है. इस प्रकार उसकी गणित में रुचि नहीं बढ़ती है.

 सुझाव(suggestion) :- 

उक्त दोषों के निवारण के लिए छात्र-छात्राओं को इस योग्य बनाना है कि वे गणित विषय में रुचि लेकर अपने जीवन को उपयोगी बना सकें और आनेवाली समस्याओं का समाधान कर सके :-

(1.)गणित विषय को अनिवार्य बनाना (To make Mathematics as Compulsory subject) :- 

गणित विषय को हर विद्यार्थी के लिए अनिवार्य कर दिया जाए अर्थात् साइंस, आर्ट्स, कामर्स के सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए जिससे उन्हें व्यावहारिक जीवन में किसी भी प्रकार की कोई प्रॉब्लम न हो और यदि कोई प्राॅब्लम आए तो आसानी से हल कर सके.

(2.)समस्या केन्द्रित विषय का होना (problem oriented topics) :- 

हर विद्यार्थी को कुछ इस प्रकार के टाॅपिक देने चाहिए जिससे उनके विचार करने की क्षमता का विकास हो सके और वे गणित में रूचि ले सके.

(3.)बालकों की संख्या (Number of students) :-

 कक्षा में बालकों की संख्या ज्यादा नहीं होनी चाहिए क्योंकि अधिक संख्या में बालक होने पर अध्यापक प्रत्येक छात्र-छात्रा पर ध्यान नहीं दे सकता है.

(4.)उचित गणित विषय सामग्री (proper study material of Mathematics) :-

 गणित की विषय सामग्री अत्यधिक मात्रा में नहीं होनी चाहिए और न ही अत्यधिक जटिल होनी चाहिए जिससे विद्यार्थी को गणित भारस्वरूप लगे और उनके लिए गणित नीरस और बोझिल लगे.

(5.)कमजोर विद्यार्थियों का ध्यान :-

कमजोर छात्र-छात्राओं पर अलग से ध्यान देना चाहिए और उनकी कमजोरी को दूर करने का प्रयास करना चाहिए.

(7.)गणित का विस्तृत अध्ययन (Detailed study of Mathematics) :-

 गणित को परीक्षा के दृष्टिकोण से न पढ़ाकर विस्तृत अध्ययन कराया जाना चाहिए जिससे छात्र-छात्राओं को गणित नीरस न लगे.


(8.)गणित की नवीन खोजों को उपलब्ध कराना :- 

विद्यालय में एक ऐसी लाइब्रेरी होनी चाहिए जिसमें इस प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध करावाई जाए जिनका अध्ययन करके छात्र-छात्राएं गणित विषय में होनेवाली नवीन खोजों के बारे में जान सके.

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