Deductive Method in Mathematics

निगमन विधि (Deductive Method in Mathematics) 

1.भूमिका (Introduction)

इस विधि का प्रयोग करते समय हम सामान्य से विशिष्ट और सूक्ष्म से स्थूल की ओर अग्रसर होते हैं। इस विधि में विद्यार्थियों के सम्मुख ज्ञान सूत्रों, नियमों, सम्बन्धों, निष्कर्षों आदि के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तथा विद्यार्थी इनको याद कर लेते हैं। इनका उपयोग विद्यार्थी समस्याओं के हल ज्ञात करने में करते हैं। इस विधि में निगमन तर्क का प्रयोग होता है तथा विद्यार्थी नियमों या सूत्रों की सत्यता अभ्यास के द्वारा सीखते हैं।
प्रत्येक मानव मर्त्य है।
सुकरात मानव है।
अत: सुकरात मर्त्य है।
निगमन विधि, आगमन विधि की पूरक है। यह विधि स्वयं में उपयोगी नहीं है, क्योंकि इस विधि द्वारा विद्यार्थी नियमों या सूत्रों की प्रत्यक्ष जाँच नहीं कर सकते और न ही वे इनको ज्ञात करने की विधि सीख सकते हैं। इस विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक विद्यार्थियों को गणित की विषय-सामग्री के सूत्र तथा नियम बता देते हैं जिनका उपयोग विद्यार्थी प्रश्नों को हल करने में करते हैं। इस विधि का प्रयोग मुख्य रूप से बीजगणित, त्रिकोत्रमिति तथा रेखागणित में किया जाता है। इन विषयों में अनेक सूत्रों एवं सम्बन्धों का प्रयोग होता है तथा प्रत्येक सूत्र की जाँच करना सम्भव नहीं है। अध्यापक अभ्यास के लिए इन विषयों के सूत्रों की जानकारी विद्यार्थियों को देता है।
बीजगणित, ज्यामिति तथा त्रिकोणमिति में अध्यापक कक्षा में यंत्रवत सामान्य रूप से बातें बताते हैं।
इस विधि से में विद्यार्थी सूत्रों को रटकर याद कर लेते हैं क्योंकि उन्हें सीधे ही सूत्र बता दिए जाते हैं। सूत्रों का सामान्यीकरण विधि से निरूपण नहीं कराया जाता है।
इस विधि में विद्यार्थियों में तर्क एवं गहन चिंतन का विकास सम्भव नहीं है। यदि परीक्षा में सूत्र याद नहीं आए तो वे प्रश्न को हल नहीं कर सकते हैं। इस विधि से गणित का मौलिक विकास भी सम्भव नहीं है। विश्व के महान् गणितज्ञों ने आगमन की प्रक्रिया से ही गणित में नवीन सोच को जन्म दिया। निगमन विधि से मौलिकता का विकास सम्भव नहीं है। निगमन विधि प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि सूत्रों को रटने से ऐसे विद्यार्थियों को सैद्धान्तिक पक्ष समझने में कठिनाई होती है। रटने को बल मिलने से विद्यार्थी गणितीय प्रक्रियाओं के अंतर्गत निहित सूक्ष्म संकल्पनाओं को नहीं समझ पाते।
निगमनात्मक विधि एक विशेष प्रकार की तर्क विधि है। गणित के क्षेत्र में इस विधि का विशेष उपयोग है क्योंकि इस विषय के अनेक तथ्य, सूत्र, नियम आदि निगमनात्मक विधि से प्राप्त हुए हैं। चिंतन की निगमनात्मक शैली का प्रयोग व्यक्ति उस समय करता है जब वह पूर्व निर्धारित तथ्यों एवं परिकल्पनाओं की सहायता से नवीन सम्बन्ध एवं नियम निकालने के प्रयत्न करता है। गणित में ज्यामिति, बीजगणित, त्रिकोत्रमिति आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ हम इस विधि का अधिकाधिक प्रयोग करते हैं। इस विधि में आधारभूत तत्त्वों, अभिधारणाओं और स्वयं सिद्धियों की सहायता ली जाती है। उच्च कक्षाओं में गणित को सीखने के लिए निगमन विधि का ही प्रयोग किया जाता है क्योंकि आगमन विधि केवल छोटी कक्षाओं के लिए ही उपयोगी है।
Deductive Method in Mathematics

Deductive Method in Mathematics-Albert Einstein


2.निगमन विधि की विशेषताएं(Qualities of Deductive Method) -

(1.)इस विधि में विद्यार्थी को प्रत्येक सूत्र, विधि, नियम या निष्कर्ष को खोजना नहीं पड़ता। यह विधि संक्षिप्त होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है। इस विधि से कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त करना सम्भव है।
(2.)इस विधि से ज्ञात सूत्रों की उपयोगिता का क्षेत्र बहुत व्यापक है।
(3.)इस विधि में विद्यार्थियों एवं अध्यापकों को कम परिश्रम करना पड़ता है क्योंकि प्रत्येक सूत्र या नियम को ज्ञात करने से सम्बंधित पदों की जानकारी आवश्यक नहीं है। अनेक सूक्ष्म सिद्धान्त विद्यार्थियों को कम समय में बताए जा सकते हैं।
(4.)जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नवीन समस्याओं को हल करने के लिए यह विधि अत्यन्त उत्तम है क्योंकि हल प्राप्त करने के लिए सूत्रों या विधियों की जानकारी ही आवश्यक होती है।
(5.)सूत्र या नियम पहले से ही ज्ञात होने के कारण समस्याओं को हल करने में एक विशेष सुविधा होती है।
(6.)यह विधि उस समय भी उपयोगी सिद्ध होती है जब पाठ का जीवन से कोई सम्बन्ध स्थापित किया जाना सम्भव नहीं हो।

3.सीमाएँ(Limitations) -

(1.)इस विधि से अर्जित ज्ञान स्थायी नहीं होता क्योंकि सीखे हुए सूत्रों या नियमों को ज्ञात करने की विधि इसके द्वारा नहीं सिखाई जाती। विद्यार्थियों को सूक्ष्म सिद्धान्तों को केवल मात्र बता दिया जाता है जिन्हें विद्यार्थी भूल भी जाते हैं। बहुत से विद्यार्थी अध्ययन के पश्चात भी सूत्रों में अन्तर नहीं समझते।
(2.)यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि इस विधि में विद्यार्थी के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि इस विधि में विद्यार्थी स्वयं अपने अनुभवों के आधार पर नहीं सीखते। सूत्रों, सूक्ष्म विचारों एवं क्रियाओं को समझना उनके लिए अत्यन्त कठिन होता है। बहुत से विद्यार्थी विभिन्न सूत्रों में अन्तर नहीं समझते क्योंकि इस विधि में सूत्रों को प्रयोग द्वारा ज्ञात करने का प्रावधान नहीं है।
(3.)इस विधि में रटने को अधिक बल मिलता है तथा विद्यार्थियों को तर्क एवं अन्वेषण करने के अवसर प्राप्त नहीं होते हैं।
(4.)यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है क्योंकि 'सूक्ष्म से स्थूल की ओर' का सिद्धान्त मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के विपरीत है।
(5.)इस विधि की सफलता आगमन विधि के साथ प्रयोग करने पर निर्भर करती है।
(6.)इस विधि से सीखा हुआ ज्ञान उपयोगी नहीं होता क्योंकि ज्ञान की मात्रा के आधिक्य के कारण व्यक्ति इसका समुचित लाभ नहीं उठा सकता। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में अधिकांशतः इस विधि का प्रयोग होता है और हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि हमारे विश्वविद्यालयों से दीक्षित अधिकांश विद्यार्थी जीवन से सम्बंधित क्षेत्रों की समस्या का सामना करने में सक्षम नहीं माने जाते हैं।
(7.)इस विधि से कोई नया सिद्धान्त खोजा नहीं जा सकता है।

4.अध्यापकों को सुझाव(Suggestion to Teachers) -

(1.)आगमन तथा निगमन विधियाँ एक-दूसरे की विरोधी नहीं है वरन् एक-दूसरे की पूरक हैं। गणित के अध्ययन में आगमन पर बल देना चाहिए किन्तु जहाँ पर यह विधि सफल नहीं हो वहाँ पर निगमन विधि का प्रयोग करना चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी सम्भव है कि कोई सामान्य नियम विशिष्ट उदाहरणों के आधार पर निरूपित नहीं किया जा सकता है।
(2.)जो ज्ञान विद्यार्थी स्वयं प्रत्यक्ष उदाहरणों तथा तथ्यों से प्राप्त किया करते हैं, वह उनके लिए सदैव उपयोगी बना रहता है। अंकगणित में औसत, वर्गमूल, घनमूल को ज्ञात करने के सिद्धान्त, सरल ब्याज, त्रिभुज, आयत, चार दीवारों के क्षेत्रफल को ज्ञात करने के सूत्र, वृत्त से सम्बंधित सूत्र आदि को प्रत्यक्ष रूप से निरूपित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
(3.)निगमन विधि को पूर्ण रूप से त्यागा नहीं जा सकता है
इस विधि का भी उन स्थलों पर प्रयोग किया जाए जहाँ आगमन विधि का प्रयोग सम्भव नहीं है।
(4.)आगमन विधि से सिद्धान्त, नियम, सूत्र सम्बन्ध आदि ज्ञात किए जाते हैं तथा निगमन विधि से सम्बंधित उप-विषय की समस्याओं को हल किया जाता है। सिद्धान्त निरूपण के पश्चात निगमन विधि का उपयोग करें।
(5.)प्रत्येक उप-विषय के अनेक प्रत्यक्ष उदाहरण एकत्रित कर आगमन विधि का सफलता से प्रयोग किया जा सकता है।
(6.)गणित को रुचिकर, उपयोगी तथा व्यावहारिक बनाने के लिए यथासंभव आगमन विधि को काम में लाया जाए।
(7.)ऊँची कक्षाओं में निगमन विधि का उपयोग किया जाता है किन्तु विषय सामग्री के सूक्ष्म और कठिन स्थलों का अध्यापन जहाँ तक संभव हो, आगमन विधि द्वारा किया जाए।
(8.)पाठ्यपुस्तकों के निर्माण में आगमन विधि को आधार बनाया जाए जिससे कि कक्षा अध्यापन में सहायता मिल सके तथा विद्यार्थी स्वाध्याय द्वारा लाभ उठा सकें।
(9.)गणित में प्रायोगिक कार्य को अधिक महत्त्व देना चाहिए जिससे कि सिद्धान्तों के महत्त्व को प्रत्यक्ष रूप से समझा जा सके। ज्यामिति तथा त्रिकोत्रमिति के क्षेत्र इस संदर्भ में विशेष महत्त्व के विषय हैं।
(10.)गणित का अध्यापन सम्बन्धित विधियों के सफल प्रयोग पर निर्भर करता है। अतः अध्यापक स्वयं विषय सामग्री की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही विधि के चयन के बारे में निर्णय करे। अध्यापन कार्य आगमन विधि से प्रारम्भ करें।

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