Importance of exercise for students in hindi

Importance of exercise for students

अभ्यास का महत्त्व(Importance of exercise for Students):-

Importance of exercise for students

Importance of exercise for students

(1.)विद्यार्थियों को पाठ का सैद्धांतिक शिक्षण कराने के बाद अभ्यास करवाना चाहिए। अभ्यास प्रारम्भ कराने से पहले विद्यार्थियों की उस पाठ में रूचि जाग्रत करनी चाहिए अन्यथा विद्यार्थी अभ्यास कार्य नहीं करेंगे।
(2.)अभ्यास देने में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अभ्यास सरल से कठिन की ओर हो अर्थात् पहले सरल question देने चाहिए और फिर कठिन question देने चाहिए क्योंकि अधिकतर छात्रों का बौद्धिक स्तर सामान्य ही होता है।
(3.)अभ्यास हल कराते समय विद्यार्थी जो त्रुटियाँ करते हैं उनका तत्काल सुधार करवा देना चाहिए।
(4.)शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि छात्र-छात्राएं त्रुटि करने के बाद पहले अपनी त्रुटियों को स्वयं पता लगाने की कोशिश करे और इसके लिए छात्र-छात्राओं को प्रेरित करें।
(5.)शिक्षक को इस कला को सीखना चाहिए कि बालकों रुचि बनाए रखे, बिना रुचि के चाहे जितना अभ्यास दिया जाए, बालक सीख नहीं पाएगा।
(6.)छात्र-छात्राओं को शुरू में जो आवश्यक निर्देश हों वे ही दिए जाने चाहिए (संक्षेप में)। यदि निर्देश बहुत अधिक दिए जाएंगे तो छात्र-छात्राएं अभ्यास को हल करने में ध्यान नहीं लगा पाएगा।
(7.)बालकों को एक बार पुस्तक को हल करने के बाद कर लेनी चाहिए जिससे जटिल विषयों को ठीक से समझा जा सके। यदि कोई कठिनाई हो तो शिक्षक के मदद ले ले।
(8.)शिक्षक को जटिल विषय पर छात्र-छात्राओं को चिन्तन करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
(9.)कक्षा में भिन्न भिन्न मानसिक स्तर के बालक होते हैं अतः उनके अनुरूप ही शिक्षण करवाया जाना चाहिए।
(10.)यदि बालक त्रुटियों को सुधारने में प्रगति नहीं कर रहा हो तो छात्र-छात्राओं व शिक्षक को धैर्य रखना चाहिए।
(11.)बालक में त्रुटि सुधार उस समय ही प्रभावी होता है जब शिक्षक त्रुटि पकड़ने के पश्चात् शीघ्र उसका सुधार करवा देता है।
निष्कर्ष :- अभ्यास द्वारा विद्यार्थियों तथा शिक्षकों को यह पता लग जाता है कि विद्यार्थी कहां-कहां, किस प्रकार की त्रुटि करता है तथा कहां पर उसको हल करने में कठिनाई आती है। त्रुटियों के कारण का पता लगाकर उसको तत्काल दूर करवाया जा सकता है। छात्र-छात्राओं को त्रुटियों से सावधान दिए जा सकते हैं। अभ्यास देने से तत्काल त्रुटियों में तत्काल त्रुटियों में सुधार करवाया जा सकता है। यथासम्भव त्रुटियों में सुधार छात्र-छात्राओं से ही करवाया जाना चाहिए।
अभ्यास कराने से मन्द बुद्धि बालक भी प्रखर बन सकता है। जैसे महामूर्ख कालीदास महाकवि कालिदास बन गए। मूर्ख बोपदेव ने संस्कृत के ग्रंथ की रचना की। इस प्रकार के ढेरो उदाहरण दिए जा सकते हैं। कहावत भी है कि"करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जावत के सिल पर पड़त निशान अर्थात् अभ्यास के बल पर मूर्ख मनुष्य भी सज्जन हो जाता है जैसे कुंए में रस्सी से पानी खींचने पर पत्थर पर निशान पड़ जाता है। अंग्रेज़ी में भी कहावत है कि Try and Try again you will success at last.
 श्रीमद्भगवद्गीता गीता में भी कहा गया है कि "
 अभ्यासयोग युक्तेन चेतसा नान्यगामिना।
 परमं पुरुषे दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्।।
 अर्थात् हे पार्थ! यह नियम है कि परमेश्वर (अपने अध्ययन रुपी कर्म) के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश रूप दिव्य पुरुष अर्थात् एकाग्रता रूपी परमेश्वर को ही प्राप्त होता है।

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