General rules of teaching Maths in hindi
General rules of teaching Maths
गणित शिक्षण के सामान्य नियम (General Rules of Teaching Maths.)
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(1.)प्रारम्भिक कक्षाओं में ही विद्यार्थियों को कठोर अनुशासन में नहीं रखना चाहिए और न ही अधिक व कठोर आदेश देना चाहिए। प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों को प्रेम व स्नेहपूर्वक पाठ सम्बन्धी नियमों को बता देना चाहिए। यदि शुरू से ही विद्यार्थियों को कठोर नियन्त्रण व आदेश में रखा जाएगा तो विद्यार्थी गणित से भय खाने लगते हैं और वे गणित पढ़ने से कतराने लगते हैं।(2.)प्रारम्भ में शिक्षा को ज्ञान केन्द्रित न रखकर बाल केन्द्रित रखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे बालकों की समझने की शक्ति बढ़ती है। प्रारम्भ में समझने की शक्ति को बढ़ाना ज्ञान प्राप्त करने की अपेक्षा अच्छा समझा जाता है। इसलिए पाठ पढ़ाते समय न तो बालकों को बहुत अधिक समझाना चाहिए और न ही इतना कम बताना चाहिए कि उसको ठीक से पाठ समझ ही न आए।(3.)गणित शिक्षण में बालकों को अधिक सक्रिय रखने हेतु अभ्यास कार्य अधिक देना चाहिए। अभ्यास कार्य में भी विद्यार्थियों को कम से कम सहायता देनी चाहिए।(4.)शिक्षक को अभ्यास कार्य में की गई त्रुटि का पता लगाकर, त्रुटि करने का कारण जान, समझकर तत्काल विद्यार्थियों से ठीक करवाना चाहिए।(5.)गणित शिक्षण में गणना, साधारण, दशमलव व भिन्नों के जोड़, बाकी, गुणा, भाग तथा वर्गमूल, घनमूल, अनुपात, समानुपात का बहुत अधिक महत्व है। इसी से गणित में शुद्धता व प्रवीणता आती है।(6.)प्रारम्भ में गणित में मौखिक अभ्यास देना चाहिए पश्चात धीरे-धीरे जोड़ना, घटाना, गुणा व भाग का कार्य दिया जाना चाहिए। पश्चात् लिखित अभ्यास क्रम से व निरन्तर देना चाहिए। इस तरह कार्य देने से बालकों में दृढ़इच्छाशक्ति व आत्मविश्वास पैदा होता है।(7.)विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने का अवसर देना चाहिए तथा उस प्रश्न को ठीक तरह से समझाना चाहिए। अभ्यास इस प्रकार का देना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को अरुचि उत्पन्न न हो।(8.)मौखिक कार्य के बाद विद्यार्थियों को लिखित कार्य करवाने पर बल देना चाहिए। लिखित कार्य में शुद्धता, स्वच्छता तथा सफाई की भी जाँच की जानी चाहिए। विद्यार्थियों को शुद्धता, स्वच्छता तथा सफाई से कार्य करने पर बल दिया जाना चाहिए।(9.)गणना करने पर कहीं पर काँट-छाँट हो तो बिल्कुल साफ होनी चाहिए। ऐसा न हो कि काँट-छाँट को मिटाने में अशुद्धि फैल जाए।(10.)प्रश्नों को हल करने में सरलता व स्पष्टता होनी चाहिए। प्रश्नों के उत्तर भी पाठ्य पुस्तक में होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों द्वारा हल किए गए प्रश्नों को स्वयं अपने स्तर पर जाँच कर सके।(11.)विद्यार्थियों को रेखागणित संबंधी ज्ञान में बिन्दु, वर्ग, वृत्त आदि शब्दों का ज्ञान कराना तथा क्रियात्मक रूप से इन्हें बनाना भी सीखाना चाहिए।(12.)विद्यार्थियों को माध्यमिक स्तर तक क्षेत्रफल, आयतन, कोण, सर्वांगसमता, समरुपता का सही-सही ज्ञान करा देना चाहिए जिससे उच्च कक्षाओं में कठिनाई न हो।(13.)विद्यार्थियों को व्यावहारिक गणित जैसे दो स्थानों के बीच दूरी, बैंकों में ब्याज की दरें, बस व रेल की प्रतिघंटा चाल, मोटरसाइकिल, स्कूटर, मोपेड की कीमत, कक्षा के विद्यार्थियों का औसत भार, खेत का क्षेत्रफल, कक्षा के कमरे की चारों दीवारों का क्षेत्रफल, भारत की आबादी में प्रतिवर्ष वृध्दि दर, भारत में मृत्युदर, जन्मदर, भारत की राष्ट्रीय आय, राजस्थान में शिक्षा पर प्रति व्यक्ति खर्च, कम्प्यूटर व मोबाइल की कीमत आदि की सामान्य जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए पर्याप्त अभ्यास की आवश्यकता है। इनका ज्ञान होने से विद्यार्थियों को गणित का हमारे जीवन में व्यावहारिक महत्त्व का पता चलेगा और गणित में रुचि जाग्रत होगी।