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self control in hindi |Importance of self control by satyam coaching centre
via https://youtu.be/bz8U_GwTZbU
Simple harmonic motion(Rectilinear motion)
Simple Harmonic Motion(rectilinear motion)
Question-A point executes S.H.M. such that in two of its position the velocities are u,v and the corresponding accelerations are show that the distance between the position ,the amplitude of the motion and the time period .
undetermined coefficients method
Method of Undetermined Coefficients
(Linear Differential Equation of second order)
undetermined coefficients method |
what is illusion in hindi |what is attachment by satyam coaching centre
via https://youtu.be/PnZt8tsCRr4
Partial Differentiation(Euler's theorem of homogeneous function)
Partial Differentiation(Euler's theorem of homogeneous function)
Partial Differentiation(Euler's theorem of homogeneous function) |
Homogeneous differential equation (Differential equation)
Homogeneous differential equation
(Equation of the first order and first degree)
Homogeneous differential equation |
Surface of solid of Revolution ( Integral calculus)
Surface of solid of Revolution
In this post we will find surface area of solid Revolution of the curve ellipse about minor axis
Surface of solid of Revolution |
what is the cause of greed in hindi |what is temptation by satyam coaching centre
via https://youtu.be/WFuIppxVtTk
Homogeneous differential equation
Homogeneous differential Equation
Equation of the first order and first degree
Homogeneous differential Equation |
Equation of a sphere passing two circles (Co-ordinate Geometry)
Equation of a sphere passingThrough two circles
Equation of a sphere passing Through two circlesF0r more information please go to this link "https://www.satyamcoachingcentre.in/2019/04/circle-as-intersection-of-sphere-plane.html " |
length of plane curve Rectification)( Integral calculus)
Length of Plane Curve (Rectification)
Cartesian equation of curve
Figure-Length of Plane Curve (Rectification) |
equation in which variables are separable
Equation in which variables are separables
(Equation of the first order and first degree)
Equation in which variables are separables |
Nature of mathematics in hindi
Nature of mathematics
गणित की प्रकृति (nature of mathematics)
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| Nature of mathematics |
(1.) गणित की विषयवस्तु विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र, भूगोल, हिन्दी, अँग्रेजी, राजनीतिशास्त्र इत्यादि विषयों से भिन्न है ।अन्य विषयों की विषयवस्तु जीवन के अनुभवों से सीधी सम्बन्धित रहती है जबकि गणित की विषयवस्तु अन्य विषयों की तरह जीवन के अनुभवों से सीधी सम्बन्धित नहीं रहती है ।
(2.)जीवन के अनुभवों से सीधी सम्बन्धित होने के कारण अन्य विषयों की विषयवस्तु आपस में सम्बन्धित नहीं रहती है जबकि गणित की विषयवस्तु आपस में सम्बन्धित रहती है ।जैसे यदि आपको जोड़, बाकी, गुणा, भाग का ज्ञान नहीं है तो हम लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन आदि से सम्बंधित समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं ।परन्तु जैसे हिन्दी में कबीर से सम्बंधित विषयवस्तु समझ नहीं आई तो हम रसखान की विषयवस्तु को समझ सकते हैं ।(3.)गणित की भाषा अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है अर्थात् इसमें प्रयोग किए जाने वाले सूत्र, संकेत एवं सिद्धान्तों को विश्व के सभी विद्यालय, महाविद्यालय में लगभग समान है ।गणित के विकास में विश्व के सभी देशों के गणितज्ञों का योगदान है जबकि भूगोल की विषयवस्तु प्रत्येक देश की अलग-अलग है।
(4.)गणित में निरीक्षण तथा ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से नए-नए सिद्धान्तों, प्रमेयों तथा संकल्पनाओं की खोज की जाती है ।
(5.)गणित में आगमन - निगमन, संश्लेषण-विश्लेषण, अनुसंधान विधि, प्रयोगशाला विधि तथा समस्या निवारण विधि का प्रयोग करके विभिन्न सिद्धान्तों, प्रमेयों तथा समस्याओं का हल ज्ञात किया जाता है ।
(6.)गणित अन्य विषयों की तुलना में जटिल विषय है अतः शिक्षक तथा मार्गदर्शक की सहायता के बिना सीखना तथा प्रश्नों को हल करना कठिन है ।जो विद्यार्थी गणित के कालांश में अनुपस्थित रहते हैं उनके छूटे हुए टाॅपिक विद्यार्थी के लिए स्वयं हल करना कठिन है ।
(7.)गणित में अभ्यास कार्य देकर विद्यार्थियों के समक्ष समस्याएं प्रस्तुत की जाती हैं जिनको विद्यार्थी समस्या समाधान विधि द्वारा हल करने का प्रयास करते हैं तथा जिन प्रश्नों व समस्याओं को हल नहीं कर पाते हैं उनको शिक्षक की सहायता से हल करते हैं ।
(8.)गणित में निश्चित नियम व सिद्धान्त होते हैं ।ये नियम तथा सिद्धान्त तर्कसंगत होते हैं जिनका बुद्धि व तर्क द्वारा हल किया जा सकता है ।
(9.)यदि विद्यार्थी सतत, नियमित तथा कठिन परिश्रम करे तो गणित की समस्याएं सरल व रूचिकर लगने लगती है ।लेकिन जो विद्यार्थी केवल परीक्षा के समय तैयारी करके उत्तीर्ण होना चाहते हैं उनके लिए यह विषय कठिन होता जाता है ।
(10.)गणित की जटिल समस्याओं को तत्काल साथी विद्यार्थी या शिक्षक की सहायता से हल कर लेना चाहिए अन्यथा आगे गणित की विषयवस्तु बहुत कठिन हो जाती है जिनको सरल करना अत्यन्त कठिन हो जाता है ।
(11.)अच्छे व सफल अध्यापक अपने विद्यार्थियों को सक्रिय रखते हैं तथा विद्यार्थियों को आगे बढ़ने के टिप्स देते रहते हैं ।उनके विद्यार्थी मेधावी तथा प्रवीण हो जाते हैं ।ऐसे विद्यार्थी अपने शिक्षक, परिवार, विद्यालय तथा देश का यश बढ़ाते हैं ।
(12.)भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान की तरह गणित की प्रयोगशाला नहीं होती है इसलिए यह नीरस विषय लगता है ।परन्तु यदि इसे रुचिकर बनाना हो तो चित्र, माॅडल, चार्टस आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
(13.)वर्तमान युग विज्ञान का युग है तथा विज्ञान में नये-नये आविष्कारों एवं खोजों में प्रगति में गणित का विशेष योगदान है ।
(14.)नवीन गणित के आविष्कार ने गणित क विभिन्न शाखाओं के एकीकरण में बहुत योगदान दिया है ।गणित के विभिन्न विषय जैसे समुच्चय, असमिकायें, फलन आदि ने गणित की नई संकल्पनाओं को जन्म दिया है ।
Objective test in hindi |वस्तुनिष्ठ परीक्षण
Objective test
वस्तुनिष्ठ परीक्षा (objective type examination)
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Objective test |
(1.)लिखित परीक्षा का प्रथम रूप निबन्धात्मक परीक्षा है तथा दूसरा रूप वस्तुनिष्ठ परीक्षा है ।निबन्धात्मक परीक्षा के दोषों को दूर करने के लिए वस्तुनिष्ठ परीक्षा आवश्यकता महसूस हुई ।
(2.)वस्तुनिष्ठ परीक्षा में किसी प्रश्न के कुछ विकल्प दिए जाते हैं ।परीक्षार्थी को उन विकल्पों में से ही उत्तर देना होता है ।सही विकल्प के अलावा अन्य विकल्प के रूप में उत्तर देने पर प्रश्न गलत होता है ।(3.)वस्तुनिष्ठ प्रश्नों की संख्या बहुत अधिक होती है जिससे सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का समावेश हो जाता है ।वर्तमान समय में अधिकतर प्रतियोगिता परीक्षाओं में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के द्वारा ही प्रतियोगी का चयन किया जाता है ।
लाभ(merit) :-
(1.) इस प्रकार की परीक्षा में विद्यार्थियों से बहुत अधिक संख्या में प्रश्न पूछे जाते हैं इसलिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के प्रश्न शामिल हो जाते हैं ।विद्यार्थी रटकर सफल नहीं हो सकते हैं ।
(2.)इस प्रकार के प्रश्नों की जाँच में वस्तुनिष्ठता रहती है अर्थात् अध्यापक की रूचि का इसमें फर्क नहीं पड़ता है ।सभी विद्यार्थियों ने जिन्होंने सही उत्तर दिए हैं समान अंक प्रदान किए जाते हैं ।
(3.)इस प्रकार की परीक्षा पद्धति में उन विद्यार्थियों को कोई नुकसान नहीं होता है जिनका लेखन खराब होता है ।
(4.)इस परीक्षा पद्धति में कम समय में उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच की जा सकती है तथा शीघ्र ही परीक्षा परिणाम घोषित किया जा सकता है ।
(5.)इस परीक्षा पद्धति में वन वीक सीरीज तथा बुक में कुछ प्रश्नों को रटकर सफल नहीं हुआ जा सकता है ।अर्थात् विद्यार्थी को सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को पढ़ना व तैयार करना होता है ।
हानि(Demerit) :-
(1.)इस प्रकार की परीक्षा पद्धति में अनुमान के आधार पर उत्तर दिया जा सकता है और सफल हुआ जा सकता है ।
(2.)वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न पत्र को तैयार करने में बहुत अधिक समय व श्रम व्यय करना पड़ता है ।
(3.)विद्यार्थियों की लेखन क्षमता को प्रकट करने की जाँच नहीं की जा सकती है ।
(4.)वस्तुनिष्ठ परीक्षा पद्धति में विचार और तर्कशक्ति का विकास नहीं हो पाता है ।
(5.)कुछ विवादास्पद प्रश्न भी होते हैं उनका निराकरण इस परीक्षा पद्धति से नहीं हो सकता है ।
(6.)इस प्रकार की परीक्षा पद्धति में नकल करने की अधिक सम्भावना होती है ।
सुझाव(suggestion) :-
(1.)विवादास्पद प्रश्नों को शामिल नहीं करना चाहिए तथा प्रश्न पत्र किसी विशेषज्ञ से ही तैयार कराया जाना चाहिए ।
(2.)सार्वजनिक परीक्षा-केन्द्रों में प्रवेशद्वार एक ही होना चाहिए तथा पूर्ण जाँच-पड़ताल के बाद ही विद्यार्थियों /परीक्षार्थियों को प्रवेश देना चाहिए ।
(3.)प्रश्न-पत्र बनाने वाले विशेषज्ञ द्वारा उसकी उत्तर पुस्तिका भी साथ ही तैयार करना चाहिए ।
(4.)प्रश्न-पत्र में सभी प्रकार के प्रश्न देने चाहिए अर्थात् कठिन व सरल सभी प्रकार के प्रश्न शामिल करने चाहिए ।
(5.)प्रश्न-पत्रों की भाषा क्लिष्ट व जटिल नहीं होनी चाहिए ।
(6.)प्रश्न-पत्रों के सही विकल्प वाले प्रश्नों को एक ही क्रम में नहीं देना चाहिए ।
(7.)उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच के लिए सभी परीक्षाकों को सही विकल्प की उत्तर पुस्तिका उपलब्ध करवानी चाहिए ।
Reducible to clairaut's form
Reducible to clairaut's form
(Differential Equation of First Order but not of First Degree)
Reducible to clairaut's form |
Essay type examination in hindi
Essay type examination
निबन्धात्मक परीक्षा(Essay Type Examination)
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Essay type examination |
(1.)लाभ (Merit) :-
(i) लिखित परीक्षाओं में विद्यार्थियों को उत्तर लिखित में देना होता है। निबन्धात्मक परीक्षा लिखित परीक्षा है। इसके द्वारा विद्यार्थियों का मूल्यांकन किया जाता है। इस परीक्षा में उत्तर विस्तार से दिया जाता है।(ii.)निबन्धात्मक परीक्षा में विषय से संबंधित प्रश्न दिए जाते हैं जिनका उत्तर विद्यार्थियों को विस्तारपूर्वक देना होता है। यह व्यवस्था सयय से चल रही है।
(iii.)इस परीक्षा के प्रश्नों के उत्तर लिखने पर विद्यार्थियों की लेखन शक्ति का विकास होता है और इनका उत्तर विद्यार्थी अनुमान के आधार पर नहीं दे सकते हैं। इस प्रकार की परीक्षाओं में विद्यार्थियों की स्मरणशक्ति एवं कुशलता का सहज ही मूल्यांकन किया जा सकता है।
(iv.)इस प्रकार की परीक्षा पद्धति से विद्यार्थियों के तथ्यात्मक ज्ञान तथा तर्कशक्ति अर्थात् विचार करने की क्षमता का पता लगता है।
(v.)विद्यार्थियों तथा अध्यापकों दोनों के लिए ही य। यह परीक्षा पद्धति उपयोगी है।।।
(2.)दोष( Demerit) :-
(i.)इस परीक्षा पद्धति में प्रश्नों का उत्तर बहुत बड़ा व विस्तारपूर्वक दिया जाता है जिससे विद्यार्थियों को याद करना बहुत कठिन है।(ii.)इस परीक्षा पद्धति में विद्यार्थियों में रटने की प्रवृत्ति पैदा होती है। इसलिए इससे केवल सैद्धांतिक ज्ञान ही होता है, व्यावहारिक ज्ञान नहीं होता है।
(iii.)इस प्रकार की परीक्षा पद्धति में अंक देने असमानता रहती है। एक ही प्रश्न के उत्तर में किसी विद्यार्थी के कम अंक तथा किसी विद्यार्थी को ज्यादा अंक दे दिए जाते हैं।
(iv.)इसमें प्रश्न पत्र बहुत छोटा अर्थात् 5-6 प्रश्न ही दिए जाते हैं जिससे सम्पूर्ण पाठ्यक्रम शामिल नहीं होता है। अतः विद्यार्थी का व्यापक मूल्यांकन नहीं हो पाता है।
(3.)सुझाव (Suggestion) :-
उपर्युक्त दोषों के होते हुए भी वर्तमान में इस परीक्षा की प्रासंगिकता है यदि इसमें कुछ सुधार कर दिए जाए तो यह परीक्षा पद्धति उपयोगी हो सकती है :-(i.)निबन्धात्मक प्रश्नों के साथ - साथ लघुत्तरात्मक तथा अतिलघुत्तरात्मक प्रश्नों को शामिल किया जाए अर्थात् प्रश्न पत्र का ओर अधिक विस्तार किया जाए।
(ii.)प्रश्न जटिल तथा उलझे हुए न हो बल्कि सरल तथा स्पष्ट होने चाहिए।
(iii.)प्रश्नपत्रों की जाँच करने हेतु परीक्षकों को प्रशिक्षण तथा निर्देश दिए जाए कि उत्तरपुस्तिका किस प्रकार जाँचनी है। जिससे जाँच करने में वस्तुनिष्ठता रहे अर्थात् आत्मनिष्ठता कम से कम रहे।
(iv.)प्रश्नपत्र में प्रश्न विविध प्रकार के देने चाहिए। बार बार महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को देने से विद्यार्थी परीक्षा के लिए छोटी सी सीरिज व पासबुक से उन प्रश्नों के उत्तरों को रट लेते हैं जो हर वर्ष repeat होते हैं ।और उनकों रटकर पास हो जाते हैं।
(v.)लम्बे उत्तर के बजाए स्पष्ट व संक्षिप्त उत्तरों को महत्त्व दिया जाना चाहिए।
(vi.)ऐसे प्रश्न भी दिए जाने चाहिए जिनके उत्तर ग्राफ, चित्र, रेखाचित्र बनवाने से सम्बंधित हो।
(vii.)उत्तरपुस्तिका योग्य अध्यापकों से ही जाँच करवानी चाहिए।
(viii.)परीक्षा केन्द्रों की औचक निरीक्षण करवाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
What is the main cause of anger in hindi |how to control anger by satyam coaching centre
via https://youtu.be/4jDFOKVXMBQ
Importance of mathematics in hindi
Importance of mathematics
गणित का महत्त्व(Importance of Mathematics)
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Importance of mathematics |
(1.)बुद्धि का विकास :- गणित के अलावा अन्य कोई ऐसा विषय नहीं है जो गणित की तरह विद्यार्थियों को क्रियाशील रख सके।गणित की किसी भी समस्या को हल करने के लिए विद्यार्थियों को मानसिक कार्य करना होता है ।गणित ही ऐसा विषय है जो विद्यार्थियों में रचनात्मक एवं सृजनात्मकता का विकास कर सकती है ।गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में तर्कशक्ति, स्मरणशक्ति, एकाग्रता, विचार एवं चिन्तन शक्ति आदि सभी मानसिक क्रियाओं का विकास होता है ।(2.)संस्कृति का विकास :-गणित के अध्ययन से छात्र-छात्राओं को समानता, नियमितता तथा क्रमबद्धता का ज्ञान होता है जो कि संस्कृति के प्रमुख अंग हैं।संस्कृति से हमारा तात्पर्य यह है कि अपने पूर्वजों द्वारा जो अच्छी व कल्याणकारी बातें हैं वे सम्मिलित होती हैं ।इसके अलावा समाज से गरीबी, अज्ञानता, बीमारी,अशिक्षा,अन्धविश्वास को हटाने में गणित का योगदान है ।(3.)अनुशासन :- विद्यार्थियों को गणित अध्ययन कराने से नियमितता, शुद्धता, मौलिकता, क्रमबद्धता, ईमानदारी, एकाग्रता, कल्पना, आत्मविश्वास, स्मृति, शीघ्र समझने की शक्ति जैसी मानसिक शक्तियों का विकास होता है जिससे उनका मस्तिष्क अनुशासित होता है ।(4.)सामाजिकता का विकास :- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा विद्यार्थियों को भी आगे जाकर समाज का अंग बनना है ।सामाजिक जीवन के गणित के ज्ञान की आवश्यकता है क्योंकि समाज में भी लेन-देन, व्यापार, हिसाब किताब रखने की आवश्यकता है जो कि गणित के ज्ञान पर निर्भर है ।समाज के विभिन्न अंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने तथा समाज के विभिन्न अंगों को निकट लाने में विभिन्न आविष्कारों, आवश्यकताओं में सहायता देने में गणित का बहुत बड़ा योगदान है ।
(5.)वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास :- गणित का अध्ययन करने के लिए विद्यार्थियों में एक विशेष प्रतिभा की आवश्यकता होती है जिसके आधार पर विद्यार्थी अपना नियमित कार्य करते हैं इसे ही हम वैज्ञानिक ढंग कहते हैं ।गणित के अध्ययन में सबसे पहले देखते हैं कि समस्या क्या है? क्या ज्ञात करना है? तथा उसके उद्देश्य क्या है? इन पदों का समाधान करने के लिए समस्या पर विशेष चिन्तन की आवश्यकता है जिससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास विकास होता है ।(6.)व्यावहारिकता का ज्ञान :- घर का बजट बनाने, मापने, घड़ी में समय देखने, कार्यालय में जाते समय, थर्मामीटर लगाते समय, परीक्षा में पर्चे बाँटते समय गणना करने की आवश्यकता पड़ती है ।इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में मूलभूत क्रियाओं जैसे गिनना, जोड़ना, भाग देना, घटाना, तौलना, मापना, खरीदना, गुणा करना आदि की हमारे जीवन में बहुत आवश्यकता होती है जिनकी गणना गणित के ज्ञान के आधार पर ही सम्भव है ।मनुष्य को आनन्द व सुख देने वाली वस्तुएं जैसे रेड़ियों, टेलीविजन, मोबाईल फोन, बिजली के पंखें, कुलर आदि सभी का आविष्कार गणित के ज्ञान के बिना संभव न था ।इस प्रकार विज्ञान को व्यावहारिक बनाने में गणित का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है ।(7.)जीविकोपार्जन का साधन :- आधुनिक युग में जीविकोपार्जन करना भी शिक्षा का एक उद्देश्य है ।अन्य विषयों की अपेक्षा आज हर प्रतियोगिता परीक्षा में जैसे बैंकिंग, क्लर्क, एकाउन्टेन्ट, कांस्टेबल तथा अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं में गणित का test लिया जाता है ।गणित के बिना इन प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होना मुश्किल है ।वर्तमान समय में इंजीनियरिंग, बैंकिंग, तकनीकी व्यवसायों का ज्ञान एवं प्रशिक्षण गणित के द्वारा ही सम्भव है ।गणित में पढ़ा लिखा विद्यार्थी को जीविकोपार्जन में कोई समस्या नहीं आती है ।गणित का विद्यार्थी आसानी से वर्तमान युग में आसानी से जीविकोपार्जन कर सकता है ।
(5.)वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास :- गणित का अध्ययन करने के लिए विद्यार्थियों में एक विशेष प्रतिभा की आवश्यकता होती है जिसके आधार पर विद्यार्थी अपना नियमित कार्य करते हैं इसे ही हम वैज्ञानिक ढंग कहते हैं ।गणित के अध्ययन में सबसे पहले देखते हैं कि समस्या क्या है? क्या ज्ञात करना है? तथा उसके उद्देश्य क्या है? इन पदों का समाधान करने के लिए समस्या पर विशेष चिन्तन की आवश्यकता है जिससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास विकास होता है ।(6.)व्यावहारिकता का ज्ञान :- घर का बजट बनाने, मापने, घड़ी में समय देखने, कार्यालय में जाते समय, थर्मामीटर लगाते समय, परीक्षा में पर्चे बाँटते समय गणना करने की आवश्यकता पड़ती है ।इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में मूलभूत क्रियाओं जैसे गिनना, जोड़ना, भाग देना, घटाना, तौलना, मापना, खरीदना, गुणा करना आदि की हमारे जीवन में बहुत आवश्यकता होती है जिनकी गणना गणित के ज्ञान के आधार पर ही सम्भव है ।मनुष्य को आनन्द व सुख देने वाली वस्तुएं जैसे रेड़ियों, टेलीविजन, मोबाईल फोन, बिजली के पंखें, कुलर आदि सभी का आविष्कार गणित के ज्ञान के बिना संभव न था ।इस प्रकार विज्ञान को व्यावहारिक बनाने में गणित का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है ।(7.)जीविकोपार्जन का साधन :- आधुनिक युग में जीविकोपार्जन करना भी शिक्षा का एक उद्देश्य है ।अन्य विषयों की अपेक्षा आज हर प्रतियोगिता परीक्षा में जैसे बैंकिंग, क्लर्क, एकाउन्टेन्ट, कांस्टेबल तथा अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं में गणित का test लिया जाता है ।गणित के बिना इन प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होना मुश्किल है ।वर्तमान समय में इंजीनियरिंग, बैंकिंग, तकनीकी व्यवसायों का ज्ञान एवं प्रशिक्षण गणित के द्वारा ही सम्भव है ।गणित में पढ़ा लिखा विद्यार्थी को जीविकोपार्जन में कोई समस्या नहीं आती है ।गणित का विद्यार्थी आसानी से वर्तमान युग में आसानी से जीविकोपार्जन कर सकता है ।
Derivative of Length of Arc (Parametric Formulae)
Derivative of Length of Arc (Parametric Formulae)
( Derivative of an arc and pedal equation )
Derivative of Length of Arc (Parametric Formulae) |
General rules of teaching Maths in hindi
General rules of teaching Maths
गणित शिक्षण के सामान्य नियम (General Rules of Teaching Maths.)
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General rules of teaching Maths |
(1.)प्रारम्भिक कक्षाओं में ही विद्यार्थियों को कठोर अनुशासन में नहीं रखना चाहिए और न ही अधिक व कठोर आदेश देना चाहिए। प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों को प्रेम व स्नेहपूर्वक पाठ सम्बन्धी नियमों को बता देना चाहिए। यदि शुरू से ही विद्यार्थियों को कठोर नियन्त्रण व आदेश में रखा जाएगा तो विद्यार्थी गणित से भय खाने लगते हैं और वे गणित पढ़ने से कतराने लगते हैं।(2.)प्रारम्भ में शिक्षा को ज्ञान केन्द्रित न रखकर बाल केन्द्रित रखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे बालकों की समझने की शक्ति बढ़ती है। प्रारम्भ में समझने की शक्ति को बढ़ाना ज्ञान प्राप्त करने की अपेक्षा अच्छा समझा जाता है। इसलिए पाठ पढ़ाते समय न तो बालकों को बहुत अधिक समझाना चाहिए और न ही इतना कम बताना चाहिए कि उसको ठीक से पाठ समझ ही न आए।(3.)गणित शिक्षण में बालकों को अधिक सक्रिय रखने हेतु अभ्यास कार्य अधिक देना चाहिए। अभ्यास कार्य में भी विद्यार्थियों को कम से कम सहायता देनी चाहिए।(4.)शिक्षक को अभ्यास कार्य में की गई त्रुटि का पता लगाकर, त्रुटि करने का कारण जान, समझकर तत्काल विद्यार्थियों से ठीक करवाना चाहिए।(5.)गणित शिक्षण में गणना, साधारण, दशमलव व भिन्नों के जोड़, बाकी, गुणा, भाग तथा वर्गमूल, घनमूल, अनुपात, समानुपात का बहुत अधिक महत्व है। इसी से गणित में शुद्धता व प्रवीणता आती है।(6.)प्रारम्भ में गणित में मौखिक अभ्यास देना चाहिए पश्चात धीरे-धीरे जोड़ना, घटाना, गुणा व भाग का कार्य दिया जाना चाहिए। पश्चात् लिखित अभ्यास क्रम से व निरन्तर देना चाहिए। इस तरह कार्य देने से बालकों में दृढ़इच्छाशक्ति व आत्मविश्वास पैदा होता है।(7.)विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने का अवसर देना चाहिए तथा उस प्रश्न को ठीक तरह से समझाना चाहिए। अभ्यास इस प्रकार का देना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को अरुचि उत्पन्न न हो।(8.)मौखिक कार्य के बाद विद्यार्थियों को लिखित कार्य करवाने पर बल देना चाहिए। लिखित कार्य में शुद्धता, स्वच्छता तथा सफाई की भी जाँच की जानी चाहिए। विद्यार्थियों को शुद्धता, स्वच्छता तथा सफाई से कार्य करने पर बल दिया जाना चाहिए।(9.)गणना करने पर कहीं पर काँट-छाँट हो तो बिल्कुल साफ होनी चाहिए। ऐसा न हो कि काँट-छाँट को मिटाने में अशुद्धि फैल जाए।(10.)प्रश्नों को हल करने में सरलता व स्पष्टता होनी चाहिए। प्रश्नों के उत्तर भी पाठ्य पुस्तक में होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों द्वारा हल किए गए प्रश्नों को स्वयं अपने स्तर पर जाँच कर सके।(11.)विद्यार्थियों को रेखागणित संबंधी ज्ञान में बिन्दु, वर्ग, वृत्त आदि शब्दों का ज्ञान कराना तथा क्रियात्मक रूप से इन्हें बनाना भी सीखाना चाहिए।(12.)विद्यार्थियों को माध्यमिक स्तर तक क्षेत्रफल, आयतन, कोण, सर्वांगसमता, समरुपता का सही-सही ज्ञान करा देना चाहिए जिससे उच्च कक्षाओं में कठिनाई न हो।(13.)विद्यार्थियों को व्यावहारिक गणित जैसे दो स्थानों के बीच दूरी, बैंकों में ब्याज की दरें, बस व रेल की प्रतिघंटा चाल, मोटरसाइकिल, स्कूटर, मोपेड की कीमत, कक्षा के विद्यार्थियों का औसत भार, खेत का क्षेत्रफल, कक्षा के कमरे की चारों दीवारों का क्षेत्रफल, भारत की आबादी में प्रतिवर्ष वृध्दि दर, भारत में मृत्युदर, जन्मदर, भारत की राष्ट्रीय आय, राजस्थान में शिक्षा पर प्रति व्यक्ति खर्च, कम्प्यूटर व मोबाइल की कीमत आदि की सामान्य जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए पर्याप्त अभ्यास की आवश्यकता है। इनका ज्ञान होने से विद्यार्थियों को गणित का हमारे जीवन में व्यावहारिक महत्त्व का पता चलेगा और गणित में रुचि जाग्रत होगी।
Derivative of Length of an Arc (Polar Formula)
(1.)Derivative of Length of an Arc (Polar Formula)
(Derivative of an Arc and pedal Equation
Derivative of Length of an Arc (Polar Formula) |
singular solution,extraneous and general solution
Singular Solution,Extraneous and General Solution
(Differential Equation Of First Order but not of First Degree)
singular solution,extraneous and general solution |
Teaching for backward students in hindi
Teaching for backward students
पिछड़े बालकों के लिए शिक्षण (Teaching for backward students ):-
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Teaching for backward students |
(1.)कक्षा के वर्ग बनाते समय कमजोर विद्यार्थियों को एक ही वर्ग में रखा जाए। कक्षा के वर्ग में 25-30 विद्यार्थियों से ज्यादा संख्या नहीं होनी चाहिए।
(2.)कमजोर विद्यार्थियों को व्यक्तिगत रूप से तथा बहुत सरल विधि से प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करते हुए पढ़ाया जाए।(3.)पिछली कक्षाओं की कमजोरी जैसे गुणा, भाग, जोड़, बाकी, घनमूल, वर्गमूल, अनुपात, प्रतिशत, दशमलव आदि में की जाने वाली गलतियों में सुधार करवाया जाए।
(4.)पिछड़े बालकों को गल्ती करने पर डाँटना, फटकारना नहीं चाहिए बल्कि गल्ती में सुधार के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
(5.)कमजोर विद्यार्थियों को मौखिक व मानसिक गणित हल करने के लिए अभ्यास कार्य कक्षा में देने के साथ-साथ हल करवाया जाना चाहिए।
(6.)कमजोर विद्यार्थियों को ग्राफ, चित्र, माॅडल, चार्ट आदि का प्रयोग जहां आवश्यक हो वहाँ किया जाकर प्रत्ययों को स्पष्ट करना चाहिए।
(7.)कमजोर विद्यार्थियों के आत्म-विश्वास की भावना का विकास करने के लिए उन्हें इतिहास के ऐसे विद्यार्थियों या महान व्यक्तित्वों से परिचय कराया जाए जो प्रारम्भ में बहुत फिसड्डी थे जैसे महाकवि कालिदास, बोपदेव, जेम्स वाट इत्यादि।
(8.)कमजोर विद्यार्थियों के अभिभावकों से घर पर व्यक्तिगत सम्पर्क करके गणित सीखने में सहायता करने हेतु परामर्श दिया जाए।
(9.)विद्यार्थियों को प्रश्नों को हल करने हेतु पर्याप्त समय देना चाहिए जिससे वे सोचकर एवं तर्क करके प्रश्न को हल कर सके।
(10.)विद्यार्थियों को लिखित कार्य में की गई त्रुटियों को जाँचकर उनमें तत्काल सुधार करवाया जाए जिससे वे गलती करने की पुनरावृति न कर सके।
(11.)प्रश्नों में आए जटिल व तकनीकी शब्दों को सरल व स्पष्ट कर देना चाहिए तथा उनको यह भी बताना चाहिए कि प्रश्न में हमें क्या तो ज्ञात है तथा क्या ज्ञात करना है।
(12.)कमजोर विद्यार्थियों को कक्षा में आगे बिठाना चाहिए।
(13.)कक्षा में विद्यार्थियों को सक्रिय रखने के लिए प्रश्नोत्तर करते रहना चाहिए।
(14.)विद्यार्थियों को शुद्ध व विस्तृत उत्तर लिखने की आदत डाली जाए जिससे वे कम से कम गलतियाँ कर सके।
(15.)ब्लैकबोर्ड या व्हाइट बोर्ड पर प्रश्नों को हल करते समय विद्यार्थियों का सहयोग लेना चाहिए तथा सही उत्तर बताने पर प्रोत्साहित किया जाए।
(16.)अभ्यास कार्य देते समय टाॅपिक की प्रकृति को ध्यान में रखना चाहिए।
(17.)विद्यार्थियों को शुरू में सरल व बाद में कठिन प्रश्नों का अभ्यास करवाया जाना चाहिए।
(18.)शिक्षण कार्य के दौरान विद्यार्थियों की रुचि को बनाए रखने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
(19.)शिक्षक को विद्यार्थियों से व्यक्तिगत सम्बन्ध भी बनाने चाहिए।
(20.)कमजोर विद्यार्थियों की छिपी हुई प्रतिभा, योग्यता व स्किल्स का उसे परिचय कराया जाए एवं उनमें हीन भावना न आने दें।
(21.)विद्यार्थियों द्वारा ठीक उत्तर देने पर उनकी प्रशंसा करते हूए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
(22.)सम्पूर्ण कालांश में विद्यार्थियों को सक्रिय रखा जाए।
Written and oral work in mathematics in hindi
Written and oral work in mathematics
गणित में मौखिक और लिखित कार्य(Written and oral work in Mathematics)
Written and oral work in mathematics |
(1.)गणित के प्रश्नों को हल करने में मौखिक और लिखित कार्य एक दूसरे के विरोधी नहीं है बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं।
(2.)गणित के प्रश्नों को बिना पैन व कागज के हल करना मौखिक कार्य होता है तथा पैन व कागज पर प्रश्नों को हल करना लिखित कार्य होता है।(3.)आधुनिक युग में ज्यों ज्यों विद्यार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है त्यों त्यों मौखिक कार्य न के बराबर कराया जाता है अर्थात् मौखिक कार्य का अभ्यास नहीं कराया जाता है। लिखित रूप से कराए गए कार्य को यदि मौखिक रूप से पूछा जाता है तो विद्यार्थी या तो उत्तर ही नहीं देता या बताने में बहुत अधिक समय लेता है।(4.)यह आवश्यक रूप से समझा जाना चाहिए कि जिस प्रकार लिखित कार्य गणित का आवश्यक अंग है उसी प्रकार मौखिक कार्य भी गणित का आवश्यक अंग है। आधुनिक गणित में मौखिक गणित को कोई स्थान नहीं दिया गया है। मौखिक गणित से विद्यार्थियों का मानसिक व बौद्धिक विकास होता है।(5.)मौखिक गणित से पाठ की पुनरावृति होती है तो लिखित कार्य से विचार स्पष्ट होते हैं तथा तार्किक क्षमता बढ़ती है।(6.)मौखिक गणित से समय की बचत होती है तो कठिन व जटिल समस्याओं को लिखित गणित द्वारा ही समझा जा सकता है।(7.)दैनिक जीवन में मौखिक गणित का उपयोग होता है तो लिखित गणित के आधार पर कक्षा में विद्यार्थी का स्तर ज्ञात होता है।(8.)मौखिक कार्य करने से मस्तिष्क की प्रश्नों के हल करने की क्षमता बढ़ती है तो लिखित कार्य से मस्तिष्क में कार्य स्थायी होता है।(9.)मौखिक गणित से जब हम प्रश्नों को हल नहीं कर पाते हैं तो लिखित कार्य के द्वारा उसका हल आसानी से कर पाते हैं।(10.)हालांकि मौखिक कार्य लिखित कार्य में सहायक नहीं है परन्तु उसका पूरक अवश्य है। विद्यार्थियों की बौद्धिक, तार्किक क्षमता बढ़ाने एवं विद्वान बनाने में दोनों की आवश्यकता होती है।(11.)लिखित कार्य का चयन आजकल स्कूलों में व्यावसायिक रूप लेता जा रहा है। यह प्राथमिक स्तर तक तो ठीक है परन्तु माध्यमिक एवं उच्च कक्षाओं में उपयुक्त नहीं कहा जा सकता है।
(12.)आधुनिक गणित में लिखित कार्य बहुत अधिक करवाया जाता है जबकि मौखिक कार्य की ओर शिक्षकों, शिक्षा संस्थानों के संचालकों एवं अभिभावकों का कोई ध्यान नहीं जाता है फलस्वरूप विद्यार्थी आगे जाकर पिछड़ जाता है। वस्तुतः अध्ययन के लिए लिखित एवं मौखिक दोनों ही आवश्यक है।(13.)चित्र, माॅडल, ग्राफ इत्यादि बनाना लिखित कार्य के द्वारा ही किया जा सकता है मौखिक कार्य के द्वारा सम्भव नहीं है परन्तु छोटी-छोटी गणनाएं गुणा, भाग, जोड़, बाकी, वर्गमूल, घनमूल जैसे कार्य मौखिक कार्य द्वारा ही किया जा सकता है। इसी प्रकार के अनेक कार्य मौखिक कार्य द्वारा ही सम्भव है।(14.)गणित में लिखित कार्य का ही सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है परन्तु लिखित तथा मौखिक दोनों की ही सीमित उपयोगिता है।
Mathematics library in hindi
Mathematics library
गणित का पुस्तकालय (Mathematics Library ):-
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Mathematics library |
(1.)कक्षा में गणित का विस्तृत तथा गहराई से अध्ययन कराया जाना सम्भव नहीं है। आधुनिक युग में गणित की कई शाखाएं तथा प्रशाखाएं हो गई है तथा उसका विस्तार बहुत हो गया है। आज हर काॅम्पीटिशन में गणित की परीक्षा ली जाती है, इसी से गणित की उपयोगिता और महत्त्व को समझा जा सकता है।
(2.)गणित की पाठ्य पुस्तक को पढ़कर विस्तृत और गहराई से ज्ञान प्राप्त करना सम्भव नहीं है इसलिए विद्यार्थियों को सहायक पुस्तकों का अध्ययन भी करना चाहिए। सभी विद्यार्थी सहायक पुस्तकें खरीदने में सक्षम नहीं है, ऐसी स्थिति में सभी शिक्षण संस्थानों तथा सार्वजनिक पुस्तकालयों का अवलोकन किया जाए तो उनमें गणित की प्रचुर पुस्तकें उपलब्ध होनी चाहिए। वर्तमान समय में यदि पुस्तकालयों का अवलोकन किया जाए तो उनमें पर्याप्त संख्या में पुस्तकें उपलब्ध नहीं है यदि उपलब्ध हैं भी तो पाठ्य पुस्तक से सम्बन्धित पुस्तकें उपलब्ध हैं। अतः विद्यार्थियों और शिक्षकों को ध्यान में रखकर सहायक तथा सन्दर्भ पुस्तकें, गणित परिभाषा कोश, डिक्शनरी प्रचुर मात्रा में होनी चाहिए। केवल पाठ्य पुस्तकें पढ़ने से विद्यार्थियों का ज्ञान सीमित रह जाता है जिससे विद्यार्थी गणित के व्यावहारिक एवं व्यावसायिक ज्ञान से वंचित रह जाते हैं।(3.)गणित की सहायक पुस्तकें पढ़ने से विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकें समझने में सहायता मिलती है तथा ज्ञान विस्तृत व व्यापक होता है। गणित के बारे में ऐसी अनेक रूचिकारक व मनोरंजक बातें हैं जिनको समयाभाव के कारण शिक्षक विद्यार्थियों को नहीं बता पाते हैं। इन सब बातों की जानकारी पुस्तकालयों में उपलब्ध सहायक पुस्तकों से मिल सकती है।
(4.)गणित विषय में रुचि का विकास करने में पुस्तकालयों में उपलब्ध पुस्तकों का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है, आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा संस्थानों के संचालकों, निदेशकों एवं प्रधानाध्यापकों को इसकी जानकारी हो जिससे आवश्यक पुस्तकें पुस्तकालय के लिए क्रय की जा सके।
(5.)गणित के शिक्षक के लिए भी यह आवश्यक है कि वह गणित में नवीन ज्ञान, नयी खोजों, आविष्कारों तथा विषय के व्यापक स्वरूप को समझकर विद्यार्थियों को बताएं। इसके लिए पुस्तकालयों में सहायक पुस्तकों का अध्ययन करे।
(6.)पुस्तकालय में प्रसिद्ध गणितज्ञों द्वारा गणित की विषय सामग्री पर लिखी गई गणित के इतिहास, गणित की मनोरंजन, खेल, चमत्कार, पहेली से सम्बंधित, उच्च गणित, गणित की चित्रमय, गणित की पत्रिकाएं, गणित की विभिन्न पाठ्य पुस्तकें तथा गणित व गणित अध्यापन पर प्रकाशित देशी व विदेशी पुस्तकें होनी चाहिए।
(7.)अध्यापक को विद्यार्थियों को पढ़ाते समय सम्बन्धित सामग्री की पुस्तकों के नाम, विवरण व विशेषताएं बता देनी चाहिए तथा इन पुस्तकों की सामग्री का कक्षा में उपयोग करना चाहिए तथा विद्यार्थियों को को इन पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
(8.)पुस्तकालय के संचालक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गणित की पुस्तकें पुस्तकालय में पर्याप्त मात्रा में हो तथा विद्यार्थियों को पुस्तकें प्राप्त करने में कोई कठिनाई न हो। पुस्तकालय में कम्प्यूटर भी उपलब्ध हो और पुस्तकों की सूची भी टँगी हो तो ज्यादा अच्छा होगा।
How to teach definition of words in Mathematics in hindi
How to teach definition of words in Mathematics
गणित में परिभाषाओं का अध्ययन(To teach definition of words in Mathematics)
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How to teach definition of words in Mathematics |
(1.)परिभाषाओं को पढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह जटिल व शंकास्पद न हो कुछ शब्द जैसे बिन्दु, रेखा, समतल, धरातल आदि की परिभाषाएं छात्र-छात्राओं के मस्तिष्क में स्पष्टता के स्थान पर भ्रम उत्पन्न कर सकती है इसलिए इनको पढ़ाते समय सावधानी रखने की आवश्यकता है।
(2.)परिभाषा में ऐसे कठिन व तकनीकी शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए कि उनको पढ़ाते समय फिर से उन शब्दों की परिभाषा बतानी पड़े। जैसे दो प्रतिच्छेदी रेखाएं एक बिन्दु पर मिलती है। दो रेखाएं सम्पाती होती है तो समान कोण बनाती है। इन परिभाषाओं में प्रतिच्छेदी व संपाती जैसे शब्दों को समझाए बिना ये परिभाषाएं समझ में नहीं आएगी। इसलिए इन शब्दों की अलग से परिभाषा देनी पड़ेगी ऐसी स्थिति से बचा जाए तो ज्यादा अच्छा है।
(3.)किसी शब्द की परिभाषा तथा उसकी आकृति को जानना समझना अलग-अलग बात है। अधिकांश विद्यार्थी आकृतियों को तो पहचानते हैं परंतु उनकी परिभाषा नहीं जानते हैं। यदि परिभाषा को रट लिया जाए तो उसका वास्तविक अर्थ समझ नहीं आएगा इसलिए परिभाषाओं को उसके वास्तविक उदाहरण से समझाना चाहिए।
(4.)कुछ शब्दों को परिभाषा द्वारा समझाना तथा उदाहरण देकर समझाना अत्यंत कठिन है इसलिए अच्छा है कि ऐसे शब्दों की प्राथमिक जानकारी दे देनी चाहिए। उच्च कक्षाओं में पहुँचने पर छात्र-छात्राएं स्वयं ही समझ जाते हैं। इस प्रकार के शब्द स्वयं सिद्धियाँ होती जैसे बिन्दु, रेखा, दिशा |जैसे कोण की परिभाषा इस प्रकार देना कि दो प्रतिच्छेदी रेखाओं के बीच के धरातल को कोण कहते हैं। यह अस्पष्ट परिभाषा है क्योंकि धरातल स्वयं क्षेत्रफल से जुड़ा हुआ शब्द है। हम कोण की परिभाषा में क्षेत्रफल को सम्मिलित नहीं कर सकते हैं।
(5.)परिभाषाओं को समझाते समय अलंकारिक, क्लिष्ट एवं कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जहां तक हो सके सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। परिभाषा को पुस्तक से जैसी है वैसी ही रटकर बोलना या लिखना परिभाषा नहीं कहा जा सकता है। परिभाषाएं किसी शब्द को समझाने का भाग होती है।
(6.)परिभाषा के द्वारा एक शब्द की दूसरे शब्द से भिन्नता दर्शाना हो तो उन शब्दों को ठीक से विवरण देकर समझाना चाहिए जिससे छात्र उन शब्दों के अर्थ को ठीक प्रकार से पहचान व समझ सके। यदि वास्तविक प्रतीको के द्वारा समझाया जाए तो ज्यादा अच्छा है।
(7.)छात्र-छात्राओं को तकनीकी शब्दों का अर्थ समझना और समझाना कठिन कार्य है। इसका सबसे उपाय यह हो सकता है कि छात्र-छात्राओं को अनेक प्रश्नों एवं उदाहरणों द्वारा समझाया जाए। केवल तकनीकी शब्दों को रटकर याद कर लेने से गणित में रुचि समाप्त हो जाएगी।
(8.)परिभाषाओं को प्रायोगिक कार्य या चित्र द्वारा समझाया जा सकता हो तो परिभाषा सरलतापूर्वक समझ में आ सकती है और उसको अधिक सफलतापूर्वक स्पष्ट किया जा सकता है। जैसे कोणों के चित्र बनाकर कोणों को समझाया जा सकता है। न्यून कोण, अधिक कोण, समकोण, सरल कोण, वृहत कोण आदि को चित्र के द्वारा अधिक सरलता से समझाया जा सकता है।
(9.)कुछ परिभाषाओं को प्रयोगशाला में माॅडल आदि के द्वारा समझाया जा सकता है। जैसे प्रिज्म, गोला आदि के माॅडल से उनके क्षेत्रफल व आयतन को समझाया जा सकता है।
(10.)परिभाषाओं का विशेष अर्थ होता है। अतः इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि छात्र-छात्राएं परिभाषाएं को रटे नहीं बल्कि समझकर फिर उसे याद करे। जहां तक हो सके परिभाषा को उसकी आकृतियों, चित्रों, माॅडलों एवं अनुभवों के द्वारा करना चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी सम्भव है कि किसी परिभाषा को उसके अर्थ से बताना कठिन प्रतीत होता है ऐसी स्थिति में केवल अर्थ बताकर संतोष कर ले।
(10.)परिभाषाओं का विशेष अर्थ होता है। अतः इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि छात्र-छात्राएं परिभाषाएं को रटे नहीं बल्कि समझकर फिर उसे याद करे। जहां तक हो सके परिभाषा को उसकी आकृतियों, चित्रों, माॅडलों एवं अनुभवों के द्वारा करना चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी सम्भव है कि किसी परिभाषा को उसके अर्थ से बताना कठिन प्रतीत होता है ऐसी स्थिति में केवल अर्थ बताकर संतोष कर ले।
What is the difference between proud and polite person in hindi by satyam coaching centre
via https://youtu.be/_mJ3wTOsovw
How to teach modern mathematics in hindi
How to teach modern mathematics
आधुनिक गणित कैसे पढ़ाए?(How to Teach Modern Mathematics ):-
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How to teach modern mathematics |
(1.)आधुनिक गणित का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है और होता जा रहा है इसलिए गणित शिक्षण में क्रांति की आवश्यकता है अर्थात् गणित को विज्ञान की भाँति पढ़ाया जाना चाहिए। केवल सूत्रों को पढ़ाना गणित नहीं है।
(2.)गणित अमूर्त संरचनाओं प्रतिरूपों का अध्ययन है। छात्र-छात्राओं को गणित की इस मौलिक अवधारणा का ज्ञान कराने हेतु हर छोटी-छोटी बातों को विस्तृत एवं गहराई से परिचय कराया जाए, इनका परिचय प्रतिरूपों के माध्यम से कराया जाए जैसे समान्तर श्रेढ़ी, गुणोत्तर श्रेढ़ी की संख्याओं में एक प्रतिरूप होता है। बहुभूज तथा बहुफलकों के भी प्रतिरूप होते हैं। जहां प्रतिरूप नहीं होते हैं जैसे अमूर्त गणित में वहां गणित को समझाना थोड़ा कठिन होता है।(3.)छात्र-छात्राओं को इन संरचनाओं को खोजने तथा अन्वेषण करने के लिए उत्साहित किया जाए। छात्र-छात्राओं को सामूहिक रूप से प्रयत्नों द्वारा प्रतिरूपों को खोज के लिए प्रोत्साहित किया जाए। गणित में अभ्यास की ज्यादा आवश्यकता होती है इसलिए अभ्यास को प्राथमिकता दी जाए।
(4.)अमूर्त गणित के लिए अर्न्तज्ञान की आवश्यकता होती है इसलिए अर्न्तज्ञान को विकसित करने के लिए व्यापक एवं गहन अध्ययन पर जोर दिया जाए। सही अनुमान तथा सही व्यापकीकरण इस दिशा में मार्गदर्शक होते हैं।
(5.)गणित अध्यापन द्वारा छात्रों में निगमन तर्क (induction logic) (इस विधि का प्रयोग करते समय सामान्य से विशिष्ट, सूक्ष्म से स्थूल की ओर अध्ययन कराया जाता है) का विकास किया जाना चाहिए। जैसे त्रिभुज के तीनों कोणों का योग दो समकोण के बराबर होता है। किसी चतुर्भुज के आमने-सामने के कोण बराबर हो तो वह समान्तर चतुर्भुज होता है।
(6.)मेधावी छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण एवं रुचिकर प्रश्नों तथा कमजोर छात्रों के लिए सरल प्रश्नों को शामिल किया जाना चाहिए।
(7.)गणित अमूर्त विषय है किन्तु इसकी शिक्षा मूर्त वस्तुओं के उदाहरणों, तथ्यों, सम्बन्धों द्वारा दी जानी चाहिए।
(8.)गणित तर्कसंगत है अतः इसके शिक्षण के लिए मनन, चिंतन तथा तर्क-वितर्क का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(9.)नवीन खोजों तथा क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए तथा हमेशा सीखते रहना चाहिए।
(10.)गणित शिक्षण के लिए सहज ज्ञान तथा सामान्य अनुमान का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(11.)कठिन, जटिल तथा चुनौतीपूर्ण प्रश्नों व समस्याओं को हल करने के लिए छात्र-छात्राओं को सोचने का मौका दिया जाना चाहिए।
(12.)अध्यापक का कार्य है एक दिशासूचक यंत्र की तरह परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि जो भी कठिन प्रश्न हो तो उनका हल छात्र-छात्राओं को हल करके उपलब्ध करादे बल्कि छात्र-छात्राओं को स्वयं हल करने के लिए प्रेरित करे। कोशिश करने पर भी यदि हल न हो तो अध्यापक को उसकी गाईड लाईन बतानी चाहिए।
(13.)गणित विषय का विस्तृत व गहराई से अध्ययन कराना गणित विषय को गतिशील बनाता है तथा सीखने के लिए प्रेरित करता है।
(14.)ज्यादा जटिल प्रश्नों के स्थान पर बौद्धिक बल व मनोरंजन आधारित प्रश्नों को शामिल करना चाहिए।
(15.)तकनीकी शब्दों को परिभाषा के द्वारा समझाने के साथ-साथ अनेक प्रश्नों व उदाहरणों द्वारा समझाया जाना चाहिए।
(16.)परिभाषाओं में उपस्थित कठिन शब्दों को सरल करके उसके समनुरूप शब्द के द्वारा समझाया जाना चाहिए।










